रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव का काउंट डाउन शुरु हो चुका है. इस बार इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच सीधी टक्कर है. 2019 के चुनाव के वक्त की तस्वीर कुछ और थी. भाजपा और आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इसका खामियाजा दोनों पार्टियों को उठाना पड़ा. फायदा महागठबंधन को हुआ. इसबार एनडीए भी एकजुटता के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है.
एनडीए फोल्डर में जदयू के अलावा लोजपा (रामविलास) के भी शामिल होने की संभावना जतायी जा रही है. लेकिन एनडीए का मुख्य घटक आजसू अभी तक उस दर्द को नहीं भूला पा रहा है, जो उसे लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद मोदी कैबिनेट में अनदेखी से मिला है. वहीं 2019 का महागठबंधन अब इंडिया गठबंधन बन गया है. इस फोल्डर में झामुमो, कांग्रेस और राजद के अलावा भाकपा माले की भी इंट्री हो चुकी है. इस एकजुटता का असर लोकसभा चुनाव में दिख चुका है. भाजपा को अपनी तीनों एसटी सीटों (खूंटी, लोहरदगा और दुमका) से हाथ धोना पड़ा है.
फिलहाल, दोनों गठबंधन की प्राथमिकता सीट शेयरिंग को तय करने की है. अब दोनों खेमा परसेप्शन की बिसात तैयार कर रहा है. इंडिया गठबंधन ने स्पष्ट कर दिया है कि इसबार का चुनाव हेमंत सोरेन के नाम पर ही लड़ा जाएगा. अब सवाल है कि भाजपा जैसी बड़ी पार्टी सीएम चेहरा सामने क्यों नहीं ला रही है. इसके पीछे की क्या रणनीति हो सकती है. क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य के पहले मुख्यमंत्री रह चुके भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ईटीवी भारत के साथ बातचीत के दौरान कह चुके हैं कि इसबार किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर नहीं बल्कि भाजपा के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा.
वरिष्ठ पत्रकार बैद्यनाथ मिश्रा का कहना है कि 2019 में रघुवर दास सीएम थे, इसलिए उन्ही के चेहरे पर बीजेपी चुनाव लड़ी थी. पहली बात तो ये है कि बाबूलाल मरांडी सीएम बनने के लिए ही आए हैं. अगर मुख्यमंत्री नहीं बनाए गये तो फिर कहीं चले जाएंगे. यह भी सत्य है कि भाजपा के पास सीएम का कोई चेहरा नहीं है. रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल बन चुके हैं.
अर्जुन मुंडा लोकसभा चुनाव हार गये हैं. इसलिए अघोषित रुप से बाबूलाल मरांडी ही सामने हैं. इसी वजह से उनको पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया. पूर्व में उन्हीं को विधायक दल का नेता भी बनाया गया था. लेकिन विस में मान्यता नहीं मिलने की वजह से अमर बाउरी को पद देना पड़ा. बैद्यनाथ मिश्र का कहना है कि भाजपा की रणनीति है सर्व समाज का वोट हासिल करना. इसलिए सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया जा रहा है.
भाजपा अब नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा में दिख चुका है. भाजपा ने नये चेहरों को सीएम की कुर्सी दी है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में पार्टी की कमान बाबूलाल मरांडी के ही हाथ में रहेगी. चुनाव नतीजों के बाद क्या होगा, यह बाद की बात है.
2019 का सीट शेयरिंग फॉर्मूला
2019 के चुनाव में महागठबंधन में शामिल झामुमो, कांग्रेस और राजद ने एकजुटता दिखाते हुए सीट शेयरिंग की थी. झामुमो ने 43, कांग्रेस ने 31 और राजद ने 07 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस फोल्डर में भाकपा माले के आने से कम से कम उसको 02 सीटें दी जा सकती हैं. वहीं सूत्रों के मुताबिक भाजपा और आजसू ने अपनी-अपनी सीटों पर तैयारी शुरु कर दी है. लेकिन फॉर्मूले का खुलासा होना बाकी है.
2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 79 और आजसू ने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस जंग में कई दूसरी पार्टियां भी रास्ता तलाशने उतरीं थी. तृणमूल कांग्रेस ने 26, बसपा ने 66, सीपीआई ने 18, सीपीएम ने 09, सीटों पर चुनव लड़ा था. लेकिन ज्यादातर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. 2019 में 81 सीटों पर चुनाव लड़ने वाला जेवीएम अब इतिहास के पन्नों में समा चुका है. उस पार्टी के मुखिया रहे बाबूलाल मरांडी अब झारखंड भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं. झारखंड में भाजपा के पास उनसे बड़ा कोई चेहरा फिलहाल नहीं दिख रहा है.
ये भी पढ़ें-