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बंगाल टीचर भर्ती घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जनता का भरोसा उठ गया तो कुछ नहीं बचेगा - SC on WB teachers recruitment scam

WB teachers recruitment scam : पश्चिम बंगाल में 25000 से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति रद्द होने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 'सार्वजनिक नौकरी बहुत दुर्लभ है... अगर जनता का भरोसा उठ गया तो कुछ नहीं बचेगा. यह प्रणालीगत धोखाधड़ी है.'

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (ANI PHOTO)
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By Sumit Saxena

Published : May 7, 2024, 3:45 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य में कथित भर्ती घोटाले को 'प्रणालीगत धोखाधड़ी' करार देते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में अधिकारी 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजीटल रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए बाध्य हैं.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार पर कई कड़े सवाल दागे. शीर्ष अदालत कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पश्चिम बंगाल के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी थी.

पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि उसने अतिरिक्त पद क्यों सृजित किए और प्रतीक्षा सूची वाले उम्मीदवारों को नियुक्त किया, जबकि चयन प्रक्रिया को ही अदालत में चुनौती दी गई थी. सीजेआई ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से सवाल किया, 'सार्वजनिक नौकरी बहुत दुर्लभ है... अगर जनता का विश्वास चला गया तो कुछ नहीं बचेगा. यह प्रणालीगत धोखाधड़ी है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज सार्वजनिक नौकरियां बेहद दुर्लभ हैं और इन्हें सामाजिक गतिशीलता के तौर पर देखा जाता है. सीजेआई ने पूछा, 'अगर उनकी नियुक्तियों को भी बदनाम कर दिया जाए तो सिस्टम में क्या रह जाएगा? लोगों का विश्वास उठ जाएगा... आप इसे कैसे मानते हैं?'

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पूछा कि क्या इस तरह के आदेश को कायम रखा जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि यह सीबीआई का भी मामला नहीं है कि सभी 25,000 नियुक्तियां अवैध हैं. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों द्वारा बनाए रखा गया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था.

स्कूल सेवा आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट की पीठ के पास नौकरियां रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था और उसके आदेश इस मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों के विपरीत थे. जब पीठ ने पूछा कि क्या ओएमआर शीट और उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैन की गई प्रतियां नष्ट कर दी गई हैं, तो उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया.

पीठ ने कहा, 'या तो आपके पास डेटा है या आपके पास नहीं है.... आप दस्तावेजों को डिजिटल रूप में बनाए रखने के लिए बाध्य थे. अब, यह स्पष्ट है कि कोई डेटा नहीं है.' पीठ ने कहा कि राज्य सरकार इस तथ्य से अनभिज्ञ है कि उसके सेवा प्रदाता ने दूसरी एजेंसी लगा रखी है. कोर्ट ने कहा कि 'आपको सुपरवाइजरी कंट्रोल बनाए रखना होगा.' राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि उसने नियुक्तियों को 'मनमाने ढंग से' रद्द कर दिया. अभी सुनवाई जारी है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य में कथित भर्ती घोटाले को 'प्रणालीगत धोखाधड़ी' करार देते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में अधिकारी 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजीटल रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए बाध्य हैं.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार पर कई कड़े सवाल दागे. शीर्ष अदालत कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसने पश्चिम बंगाल के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी थी.

पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि उसने अतिरिक्त पद क्यों सृजित किए और प्रतीक्षा सूची वाले उम्मीदवारों को नियुक्त किया, जबकि चयन प्रक्रिया को ही अदालत में चुनौती दी गई थी. सीजेआई ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से सवाल किया, 'सार्वजनिक नौकरी बहुत दुर्लभ है... अगर जनता का विश्वास चला गया तो कुछ नहीं बचेगा. यह प्रणालीगत धोखाधड़ी है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज सार्वजनिक नौकरियां बेहद दुर्लभ हैं और इन्हें सामाजिक गतिशीलता के तौर पर देखा जाता है. सीजेआई ने पूछा, 'अगर उनकी नियुक्तियों को भी बदनाम कर दिया जाए तो सिस्टम में क्या रह जाएगा? लोगों का विश्वास उठ जाएगा... आप इसे कैसे मानते हैं?'

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पूछा कि क्या इस तरह के आदेश को कायम रखा जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि यह सीबीआई का भी मामला नहीं है कि सभी 25,000 नियुक्तियां अवैध हैं. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों द्वारा बनाए रखा गया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था.

स्कूल सेवा आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट की पीठ के पास नौकरियां रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था और उसके आदेश इस मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों के विपरीत थे. जब पीठ ने पूछा कि क्या ओएमआर शीट और उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैन की गई प्रतियां नष्ट कर दी गई हैं, तो उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया.

पीठ ने कहा, 'या तो आपके पास डेटा है या आपके पास नहीं है.... आप दस्तावेजों को डिजिटल रूप में बनाए रखने के लिए बाध्य थे. अब, यह स्पष्ट है कि कोई डेटा नहीं है.' पीठ ने कहा कि राज्य सरकार इस तथ्य से अनभिज्ञ है कि उसके सेवा प्रदाता ने दूसरी एजेंसी लगा रखी है. कोर्ट ने कहा कि 'आपको सुपरवाइजरी कंट्रोल बनाए रखना होगा.' राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि उसने नियुक्तियों को 'मनमाने ढंग से' रद्द कर दिया. अभी सुनवाई जारी है.

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