चंडीगढ़: हीमोफीलिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो ज्यादातर मां से बच्चों में ट्रांसफर होता है. इस रोग के प्रति जागरूकता की कमी होने से कई बार लोगों को इसका पता देर से चलता है. लोगों को हीमोफीलिया से जागरूक करने के लिए 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे के रूप में मनाया जाता है. इस रिपोर्ट में डॉक्टर अरिहंत जैन से जानेंगे हीमोफीलिया बीमारी से जुड़ी जरूरी जानकारी, साथ ही जानेंगे हीमोफीलिया से पीड़ित मरीजों के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल टिप्स.
हीमोफीलिया के प्रकार: हीमोफीलिया के दो प्रमुख प्रकार होते हैं – टाइप ए और टाइप बी. ए और बी दोनों के अलग-अलग स्टेज होते हैं. डॉक्टर अरिहंत जैन बताते हैं कि करीब 25% मामले हल्के होते हैं. हल्के हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्ति में कारक स्तर 6-30 फीसदी होता है. जबकि करीब 15% मामले मध्यम होते हैं और मध्यम हीमोफीलिया वाले व्यक्ति में कारक स्तर 1-5% होता है. वहीं, लगभग 60% मामले गंभीर हैं, और गंभीर हीमोफीलिया वाले लोगों में कारक स्तर 1% से कम होता है.
क्या हैं लक्षण: हीमोफीलिया के लक्षण ब्लड क्लॉटिंग के कारकों के स्तर के आधार पर अलग-अलग होते हैं. यदि आपका क्लॉटिंग फैक्टर का स्तर थोड़ा कम हो गया है, तो आपको केवल सर्जरी या चोट के बाद ही ब्लीडिंग होती है. यदि इसमें गंभीर कमी है, तो आपको बिना किसी कारण के कभी भी ब्लीडिंग शुरू हो सकती है. कटने या चोट लगने से, या सर्जरी या डेंटल चेकअप के बाद ब्लीडिंग न रुकने पर भी समस्या उत्पन्न हो सकती है.
मुख्य लक्षण: इसके अलावा, ज्यादा आसानी से गहरी चोट आना. वैक्सीनेशन के बाद असामान्य ब्लीडिंग होना, जोड़ों में दर्द-सूजन या जकड़न होना. इसके अलावा, यूरिन और स्टूल में ब्लड आना, नाक से अक्सर खून आना, नवजात में, अस्पष्ट चिड़चिड़ापन होना, शरीर में नीले निशान पड़ना, अधिक कमजोरी महसूस होना या चलने में परेशानी होना. आंखों के अंदर खून आना जैसे इस बीमारी के मुख्य लक्षण हो सकते हैं.
हीमोफीलिया का गंभीर रूप: आपको बता दें कि हीमोफीलिया गंभीर स्तर का होने पर ब्रेन ब्लीडिंग भी हो सकती है. इससे पीड़ित लोगों के सिर पर एक साधारण उभार मस्तिष्क में रक्तस्राव का कारण बन सकता है। यह दुर्लभ मगर सबसे गंभीर कॉम्प्लिकेशंस में से एक है. जिसके चलते लंबे समय तक सिरदर्द, बार-बार उल्टी होना, नींद आना या सुस्ती, या फिर डबल विजन यानी धुंधला दिखाई देना और दौरे पड़ना भी इसका मुख्य संकेत हो सकता है.
बचाव करने का तरीका: इससे बचाव के लिए रोजाना नियमित व्यायाम करना चाहिए, डॉक्टर की राय के बिना कोई भी दवा नहीं खानी चाहिए. दांतों और मसूड़ों की अच्छी तरह से देखरेख तथा सफाई करना, इस बीमारी से ग्रस्त या अन्य बीमारियों से जूझ रहे बच्चे की सेफ्टी का ध्यान रखना, साफ सफाई रखना. इसके अलावा, हेपेटाइटिस ए और बी टीकाकरण के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
पुरुषों में अधिक होती है हीमोफीलिया की बीमारी: डॉ. अरिहंत जैन ने बताया कि चंडीगढ़ पीजीआई में लगने वाली 3 दिन की ओपीडी में हीमोफीलिया के 60 से 70 मरीज देखे जाते हैं. वही, बच्चों वाले वार्ड में भी स्पेशल ओपीडी के दौरान 50 के करीब बच्चों को इस बीमारी से ग्रस्त देखा जा रहा है. महिलाओं के मुताबिक पुरुषों में हीमोफीलिया की बीमारी ज्यादा देखी जाती है. क्योंकि यह एक मां के परिवार से होती हुई बच्चों तक पहुंचती है. ऐसे में अगर परिवार में किसी को हीमोफीलिया है तो जो परिवार आगे संतान पैदा करना चाहता है, वे इस समस्या को देखते हुए अपना समय पर इलाज करवा सकते हैं. ताकि होने वाले बच्चे को इससे ग्रस्त होने से बचाया जा सके.
स्वास्थ्य के लिए गंभीर है हीमोफीलिया: उन्होंने बताया कि फिलहाल यह एक जेनेटिक बीमारी है, जो परिवार से होती हुई नई पीढ़ी में आती है. हीमोफीलिया का इलाज आम भाषा में समझाना मुश्किल होगा. ऐसे में जिस व्यक्ति को अचानक से रक्त प्रवाह होता है, इस स्थिति में डॉ. मरीज ब्लीडिंग को रोकने की कोशिश करते हैं. हीमोफीलिया के मरीज का इलाज उम्र भर चल सकता है. ऐसे में लगातार परहेज रखना और दवा का सही इस्तेमाल करने पर लगातार रक्तस्राव जैसी स्थिति को रोका जा सकता है.
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