रतलाम : मालवा की धरती पर उगाए जाने वाले एक विशेष कंदमूल की मांग एमपी, दिल्ली, मुंबई में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. हाई डिमांड में चल रहा है यह जमीकंद है स्वाद का राजा गराड़ू, जिसकी मांग सर्दियों के मौसम में खूब होती है. गराड़ू को फरियाली नाश्ते और स्नेक्स के रूप में खाया जाता है. इसका खास स्वाद और मसालों के साथ नींबू की महक ऐसा टेस्ट बनाती है कि इसे एक बार खाने वाला दूर-दूर से रतलाम-मालवा खींचा चला आता है. जो यहां नहीं आ सकते वे कच्चे गराड़ू रिश्तेदारों से मंगवाना नहीं भूलते हैं. खास बात यह है कि गराड़ू की खेती केवल मालवा क्षेत्र के कुछ इलाकों तक ही सीमित है.
क्या है गराड़ू (Garadu)?
गराड़ू कंदमूल वर्ग की फसल है, जो जमीन के नीचे जड़ों में लगते हैं. यह देखने में शकरकंद की तरह ही होते हैं.लेकिन इनका स्वाद शकरकंद की तरह मीठा नहीं बल्कि आलू जैसा होता है. इसे फरियाली नाश्ते के तौर पर तेल में फ्राय कर मसालों के साथ खाया जाता है. इसकी फसल नवंबर के महीने से आना शुरू हो जाती है, जो फरवरी तक खेतों से निकाली जाती है. गर्म तासीर होने की वजह से लोग इसे सर्दियों में खाना पसंद करते हैं. वहीं, नमकीन स्वाद के शौकीन गराड़ू के स्वाद का लुत्फ उठाना नहीं भूलते.
खेत में कैसे तैयार होता है गराड़ू?
गराड़ू की खेती उज्जैन, रतलाम और मालवा के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में की जाती है. रतलाम में केवल दो ही गांव खेतलपुर एवं बांगरोद में इसकी खेती होती है. उद्यानिकी फसलों के विशेषज्ञ डॉक्टर रोशन गलानी ने बताया, '' यह शकरकंद की तरह ही एक फसल है. जो बहुतायत तौर पर रतलाम क्षेत्र में ही उगाई जाती है. यह करीब 5 महीने में तैयार होती है. लंबी अवधि की फसल होने और उत्पादन प्रभावित होने से अब इसका रकबा घटता जा रहा है. रतलाम जिले में अब इसकी खेती केवल बांगरोद और खेतलपुर गांव में ही होती है.''
70 से 100 रु किलो बिकता है गराड़ू
बांगरोद गांव के किसान कन्हैयालाल मेहता ने बताया, '' जून माह में इसकी चौपाई कर दी जाती है. बेल के एक ही सिरे पर कंद लगें, इसके लिए बेल को बांस और रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ाया जाता है. 5 महीने के बाद इसकी हार्वेस्टिंग की जाती है, जिसके बाद नवंबर के महीने से गराड़ू मंडियों में बिकने के लिए पहुंचने लगते हैं. डिमांड अच्छी होने पर गराड़ू के अच्छे दाम किसानों को मिल जाते हैं. वर्तमान में कच्चा गराडू 70 रुपए से लेकर 100 प्रति किलो तक बाजार में मिल रहा है.''
गराड़ू की रेसिपी
गराड़ू का सीजन आते ही मालवा के शहरों खासतौर पर इंदौर के प्रसिद्ध छप्पन और सराफा बाजार में गराड़ू के स्टॉल लगते हैं. यहां गराड़ू करीब 300 रु प्रति किलो की दर पर मिलता है. इसकी रेसिपी तैयार करने के लिए भी खासी मेहनत करना पड़ती है. खेत से निकाल कर लाए गए ताजे गराड़ू को छीलना पड़ता है. इसके टुकड़े काटकर कुछ समय तक पानी या फ्रिज में रखना पड़ता है. इसके बाद कटे हुए गराड़ू को धीमी आंच पर नरम होने तक तेल में तला जाता है. अच्छी तरह तले जाने के बाद इसमें सेंधा नमक, काला नमक, मिर्च, गरम मसाले और चाट मसाले के साथ नींबू डालकर गरमा-गरम परोसा जाता है.
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दिल्ली से दुबई तक है डिमांड
रतलाम की सेव नमकीन की तरह ही गराड़ू अब दुनिया भर में प्रसिद्ध हो रहा है. सेव नमकीन की तरह ही गराड़ू को भी दिल्ली, मुंबई और पुणे जैसे शहरों के साथ दुबई तक में मंगाया जाता है. अबू धाबी में प्राइवेट कंपनी में कार्य करने वाले कीर्ति वर्धन सिंह राठौर बताते हैं कि दुबई में रहने वाले उनके दोस्त हर वर्ष सर्दियों के मौसम में उनसे रतलाम के कच्चे गराडू मंगवाते है. स्वाद के राजा गराड़ू का सीजन शुरू हो चुका है और अब जैसे ही ठंड बढ़ती जाएगी गराड़ू के ठेलों पर स्वाद के शौकीनों की भीड़ भी बढ़ने लगेगी.