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कॉर्बेट रिजर्व अवैध निर्माण: SC की हरक-किशन चंद को फटकार, 'खुद को ही कानून मान बैठे, पब्लिक ट्रस्ट डॉक्ट्रिन को कूड़ेदान में फेंका'

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 6, 2024, 12:38 PM IST

Updated : Mar 7, 2024, 7:22 PM IST

Harak Rawat reprimanded for illegal construction in Corbett Tiger Reserve सुप्रीम कोर्ट में आज राष्ट्रीय उद्यान में बाघ सफारी, पिंजरे में बंद जानवरों के साथ एक विशेष चिड़ियाघर बनाने के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण के लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत को फटकार लगाई है.

Harak Rawat
सुप्रीम कोर्ट समाचार

नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो रेंज में पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में सख्त रुख अपनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व IFS अधिकारी किशन चंद को कड़ी फटकार लगाई है. इसके साथ ही, देश में राष्ट्रीय उद्यानों के बफर जोन या इससे सटे सीमांत क्षेत्रों में टाइगर सफारी की इजाजत दी जा सकती है या नहीं, इसको देखने के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति बी आर गवई की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एक समिति का गठन करते हुए कहा कि इस समिति की सिफारिश सभी मौजूदा सफारियों पर भी लागू होंगी.

अपने जजमेंट को सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि- 'बाघ जंगल और जंगल बाघ के बिना नष्ट हो जाता है. इसलिए बाघ को जंगल की रक्षा में खड़ा रहना चाहिए और जंगल को अपनी सभी बाघों की रक्षा करनी चाहिए. इस तरह से इको सिस्टम में बाघों का महत्व को लेकर 'महाभारत' में बताया गया है. जंगल का अस्तित्व बाघों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है. यदि बाघ की रक्षा की जाती है, तो उसके चारों ओर का इको सिस्टम तंत्र भी सुरक्षित रहता है.'

इस टिप्पणी के बाद कोर्ट ने कहा कि, बाघ के संरक्षण और रक्षा के लिए बनाए गए तमाम प्रावधानों के बावजूद, वर्तमान मामला एक दुखद स्थिति को दर्शाता है कि कैसे मनुष्य के लालच ने बाघों के सबसे बेहतरीन निवास स्थलों में से एक यानी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बर्बाद कर दिया.

बता दें कि, वन्यजीव कार्यकर्ता व वकील गौरव बंसल द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया. गौरव बंसल की अपनी याचिका में पाखरो टाइगर सफारी में अवैध निर्माण और हजारों पेड़ों के अवैध कटान का आरोप लगाया है. बंसल ने कहा है कि इस कारण लैंसडाउन वन प्रभाग में बाघों के आवास खत्म हो रहे हैं और बाघों के घनत्व में कमी आ रही है. इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई की अनुमति देकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को नुकसान पहुंचाने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को भी फटकार लगाई.

हरक और किशन चंद को सुप्रीम कोर्ट की फटकार: कॉर्बेट में पेड़ों की कटाई के पहलू पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तत्कालीन मंत्री और डीएफओ के दुस्साहस से चकित है. शीर्ष अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान के संबंध में पहले से ही मामले की जांच कर रही सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को जंगल की बहाली सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी: शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में ये बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ ने खुद को ही कानून मान बैठे. पीठ ने कहा कि, ये एक क्लासिक मामला है जो दर्शाता है कि कैसे नेताओं और नौकरशाहों ने 'पब्लिक ट्रस्ट डॉक्ट्रिन को कूड़ेदान में फेंक दिया.'

नेता-नौकरशाह गठजोड़ ने पहुंचाया नुकसान: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक-नौकरशाह गठजोड़ ने वन और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया. राज्य को नुकसान की लागत का अनुमान लगाना चाहिए और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने के दोषियों से इसकी वसूली करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि, वर्तमान मामला बताता है कि कैसे एक राजनेता और एक वन अधिकारी के बीच सांठगांठ के कारण राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिए पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है. इस मामले में वन विभाग, विजिलेंस और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुशंसा को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, जिन्होंने संवेदनशील पद पर किशन चंद की पोस्टिंग पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि किस तरह तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ किशन चंद ने वैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज करने का दुस्साहस किया. हालांकि, शीर्ष अदालत ने ये साफ किया कि इस केस में अभी सीबीआई जांच जारी है इसलिए आगे इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जाएगी.

इसके साथ ही कोर्ट ने एक समिति गठित करने का आदेश दिया है. ये कमेटी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नियुक्त करेगा जिसमें शामिल होंगे-

  1. National Tiger Conservation Authority (एनटीसीए) के एक प्रतिनिधि.
  2. भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक प्रतिनिधि.
  3. सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी (सीईसी) के एक प्रतिनिधि.
  4. वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक अधिकारी जो संयुक्त सचिव पद से नीचे न हों.

कोर्ट ने ये भी निर्देश दिए हैं कि, पहले से मौजूद सफारियों और पाखरो में निर्माणाधीन सफारी को छेड़ा नहीं जाएगा. हालांकि, पाखरो टाइगर सफारी के पास एक रेस्क्यू सेंटर स्थापित किया जाए. समिति नियुक्त होने के बाद उससे मिली सिफारिशों के आधार पर 'टाइगर सफारी' की स्थापना और रखरखाव के संबंध में निर्देश जारी किए जाएंगे. ये सिफारिशें पहले से स्थापित सफारी सहित सभी सफारियों पर भी लागू होंगी.

ये समिति इस बारे में भी विचार करेगी कि किया बफर क्षेत्र या फ्रिंज क्षेत्र में टाइगर सफारी की अनुमति दी जाए. अगर अनुमति दी जा सकती है, तो ऐसी सफारी स्थापित करने के लिए क्या गाइडलाइन होनी चाहिए. ये समिति, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुई पर्यावरणीय क्षति का आकलन करेगी और उसकी बहाली के लिए लागत की मात्रा निर्धारित करेगी. साथ ही ऐसी क्षति के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करेगी. कोर्ट ने कहा कि, राज्य सरकार इस कृत्य के लिए जिम्मेदार पाए गए व्यक्तियों से निर्धारित लागत की वसूली करेगी. इस लागत को पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के विशेष उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाएगा. समिति ये बताएगी कि एकत्र की गई इस धनराशि का उपयोग किस तरह से इकोलॉजिकल डैमेज को सही करने के लिए किया जाएगा.

बता दें कि, अधिवक्ता के परमेश्वर इस मामले में न्याय मित्र (amicus curiae) थे. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड राज्य को ये निर्देश दिया है कि वह न्याय मित्र के परमेश्वर को मानदेय के रूप में दस लाख रुपये का भुगतान करे.

बता दें कि, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो सफारी मामले में सबसे पहले गौरव बंसल ने अगस्त 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. इसके बाद गौरव बंसल ने ही सुप्रीम कोर्ट में 2023 में इस मामले को उठाया. सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण को लेकर सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी (CEC) गठित कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था. इसके बाद CEC ने भी 2023 में इस जांच से जुड़े दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में सबमिट कर दिए थे.

CEC की रिपोर्ट में बताया गया था कि कॉर्बेट फाउंडेशन के करीब ₹200 करोड़ के बजट का भी इस्तेमाल किया गया है. अपनी इस जांच रिपोर्ट में CEC ने तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को जिम्मेदार बताया था. इन जांच रिपोर्ट्स के बाद डीएफओ किशन चंद, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग और कॉर्बेट में तैनात रेंजर बृज बिहारी को उत्तराखंड वन विभाग ने निलंबित किया गया. इसके साथ ही तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ रहे राजीव भरतरी को भी उनके पद से हटाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट से मिली थी राहत: इससे पहले साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क के साथ-साथ देश के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में किसी भी निर्माण कार्य पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने फैसला कॉर्बेट के पाखरो रेंज में अवैध निर्माण और पेड़ों के अवैध कटान होने की सूचना के बाद लगाया था. सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद अदालत ने तत्काल सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार के साथ-साथ अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में हो रहे निर्माण को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि आगामी आदेशों तक किसी तरह का कोई भी छोटा या बड़ा निर्माण कार्य इन उद्यान क्षेत्रों में नहीं होगा.

हालांकि, इस आदेश के बाद उत्तराखंड के वन प्रमुख व केंद्रीय वन मंत्रालय के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा था. कोर्ट को बताया गया कि उत्तराखंड में कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क के साथ-साथ अन्य वन क्षेत्रों में कई तरह के महत्वपूर्ण कार्य होने हैं. केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ उत्तराखंड वन मंत्रालय के आग्रह पर शीर्ष अदालत ने पूरे मामले को बड़ी बारीकी से जाना और उत्तराखंड में उन कार्यों को पूरा करने की अनुमति दी थी जो पहले से चल रहे थे और उन्हें रोक दिया गया था. अपने आदेश पर छूट देते हुए कोर्ट ने ऐसे बेहद जरूरी 44 निर्माण कार्यों को करने की अनुमति दे दी थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि इसमें किसी तरह का कोई नया कार्य या नया आदेश मान्य नहीं होगा.

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नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो रेंज में पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में सख्त रुख अपनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व IFS अधिकारी किशन चंद को कड़ी फटकार लगाई है. इसके साथ ही, देश में राष्ट्रीय उद्यानों के बफर जोन या इससे सटे सीमांत क्षेत्रों में टाइगर सफारी की इजाजत दी जा सकती है या नहीं, इसको देखने के लिए एक समिति गठित करने का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति बी आर गवई की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एक समिति का गठन करते हुए कहा कि इस समिति की सिफारिश सभी मौजूदा सफारियों पर भी लागू होंगी.

अपने जजमेंट को सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि- 'बाघ जंगल और जंगल बाघ के बिना नष्ट हो जाता है. इसलिए बाघ को जंगल की रक्षा में खड़ा रहना चाहिए और जंगल को अपनी सभी बाघों की रक्षा करनी चाहिए. इस तरह से इको सिस्टम में बाघों का महत्व को लेकर 'महाभारत' में बताया गया है. जंगल का अस्तित्व बाघों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है. यदि बाघ की रक्षा की जाती है, तो उसके चारों ओर का इको सिस्टम तंत्र भी सुरक्षित रहता है.'

इस टिप्पणी के बाद कोर्ट ने कहा कि, बाघ के संरक्षण और रक्षा के लिए बनाए गए तमाम प्रावधानों के बावजूद, वर्तमान मामला एक दुखद स्थिति को दर्शाता है कि कैसे मनुष्य के लालच ने बाघों के सबसे बेहतरीन निवास स्थलों में से एक यानी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बर्बाद कर दिया.

बता दें कि, वन्यजीव कार्यकर्ता व वकील गौरव बंसल द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया. गौरव बंसल की अपनी याचिका में पाखरो टाइगर सफारी में अवैध निर्माण और हजारों पेड़ों के अवैध कटान का आरोप लगाया है. बंसल ने कहा है कि इस कारण लैंसडाउन वन प्रभाग में बाघों के आवास खत्म हो रहे हैं और बाघों के घनत्व में कमी आ रही है. इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई की अनुमति देकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को नुकसान पहुंचाने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को भी फटकार लगाई.

हरक और किशन चंद को सुप्रीम कोर्ट की फटकार: कॉर्बेट में पेड़ों की कटाई के पहलू पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तत्कालीन मंत्री और डीएफओ के दुस्साहस से चकित है. शीर्ष अदालत ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान के संबंध में पहले से ही मामले की जांच कर रही सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को जंगल की बहाली सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी: शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में ये बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ ने खुद को ही कानून मान बैठे. पीठ ने कहा कि, ये एक क्लासिक मामला है जो दर्शाता है कि कैसे नेताओं और नौकरशाहों ने 'पब्लिक ट्रस्ट डॉक्ट्रिन को कूड़ेदान में फेंक दिया.'

नेता-नौकरशाह गठजोड़ ने पहुंचाया नुकसान: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक-नौकरशाह गठजोड़ ने वन और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया. राज्य को नुकसान की लागत का अनुमान लगाना चाहिए और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने के दोषियों से इसकी वसूली करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि, वर्तमान मामला बताता है कि कैसे एक राजनेता और एक वन अधिकारी के बीच सांठगांठ के कारण राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिए पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है. इस मामले में वन विभाग, विजिलेंस और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुशंसा को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, जिन्होंने संवेदनशील पद पर किशन चंद की पोस्टिंग पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि किस तरह तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ किशन चंद ने वैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज करने का दुस्साहस किया. हालांकि, शीर्ष अदालत ने ये साफ किया कि इस केस में अभी सीबीआई जांच जारी है इसलिए आगे इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जाएगी.

इसके साथ ही कोर्ट ने एक समिति गठित करने का आदेश दिया है. ये कमेटी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नियुक्त करेगा जिसमें शामिल होंगे-

  1. National Tiger Conservation Authority (एनटीसीए) के एक प्रतिनिधि.
  2. भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक प्रतिनिधि.
  3. सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी (सीईसी) के एक प्रतिनिधि.
  4. वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक अधिकारी जो संयुक्त सचिव पद से नीचे न हों.

कोर्ट ने ये भी निर्देश दिए हैं कि, पहले से मौजूद सफारियों और पाखरो में निर्माणाधीन सफारी को छेड़ा नहीं जाएगा. हालांकि, पाखरो टाइगर सफारी के पास एक रेस्क्यू सेंटर स्थापित किया जाए. समिति नियुक्त होने के बाद उससे मिली सिफारिशों के आधार पर 'टाइगर सफारी' की स्थापना और रखरखाव के संबंध में निर्देश जारी किए जाएंगे. ये सिफारिशें पहले से स्थापित सफारी सहित सभी सफारियों पर भी लागू होंगी.

ये समिति इस बारे में भी विचार करेगी कि किया बफर क्षेत्र या फ्रिंज क्षेत्र में टाइगर सफारी की अनुमति दी जाए. अगर अनुमति दी जा सकती है, तो ऐसी सफारी स्थापित करने के लिए क्या गाइडलाइन होनी चाहिए. ये समिति, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुई पर्यावरणीय क्षति का आकलन करेगी और उसकी बहाली के लिए लागत की मात्रा निर्धारित करेगी. साथ ही ऐसी क्षति के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करेगी. कोर्ट ने कहा कि, राज्य सरकार इस कृत्य के लिए जिम्मेदार पाए गए व्यक्तियों से निर्धारित लागत की वसूली करेगी. इस लागत को पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के विशेष उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाएगा. समिति ये बताएगी कि एकत्र की गई इस धनराशि का उपयोग किस तरह से इकोलॉजिकल डैमेज को सही करने के लिए किया जाएगा.

बता दें कि, अधिवक्ता के परमेश्वर इस मामले में न्याय मित्र (amicus curiae) थे. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड राज्य को ये निर्देश दिया है कि वह न्याय मित्र के परमेश्वर को मानदेय के रूप में दस लाख रुपये का भुगतान करे.

बता दें कि, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो सफारी मामले में सबसे पहले गौरव बंसल ने अगस्त 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. इसके बाद गौरव बंसल ने ही सुप्रीम कोर्ट में 2023 में इस मामले को उठाया. सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण को लेकर सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी (CEC) गठित कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था. इसके बाद CEC ने भी 2023 में इस जांच से जुड़े दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में सबमिट कर दिए थे.

CEC की रिपोर्ट में बताया गया था कि कॉर्बेट फाउंडेशन के करीब ₹200 करोड़ के बजट का भी इस्तेमाल किया गया है. अपनी इस जांच रिपोर्ट में CEC ने तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को जिम्मेदार बताया था. इन जांच रिपोर्ट्स के बाद डीएफओ किशन चंद, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग और कॉर्बेट में तैनात रेंजर बृज बिहारी को उत्तराखंड वन विभाग ने निलंबित किया गया. इसके साथ ही तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ रहे राजीव भरतरी को भी उनके पद से हटाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट से मिली थी राहत: इससे पहले साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क के साथ-साथ देश के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में किसी भी निर्माण कार्य पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने फैसला कॉर्बेट के पाखरो रेंज में अवैध निर्माण और पेड़ों के अवैध कटान होने की सूचना के बाद लगाया था. सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद अदालत ने तत्काल सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार के साथ-साथ अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में हो रहे निर्माण को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि आगामी आदेशों तक किसी तरह का कोई भी छोटा या बड़ा निर्माण कार्य इन उद्यान क्षेत्रों में नहीं होगा.

हालांकि, इस आदेश के बाद उत्तराखंड के वन प्रमुख व केंद्रीय वन मंत्रालय के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा था. कोर्ट को बताया गया कि उत्तराखंड में कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क के साथ-साथ अन्य वन क्षेत्रों में कई तरह के महत्वपूर्ण कार्य होने हैं. केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ उत्तराखंड वन मंत्रालय के आग्रह पर शीर्ष अदालत ने पूरे मामले को बड़ी बारीकी से जाना और उत्तराखंड में उन कार्यों को पूरा करने की अनुमति दी थी जो पहले से चल रहे थे और उन्हें रोक दिया गया था. अपने आदेश पर छूट देते हुए कोर्ट ने ऐसे बेहद जरूरी 44 निर्माण कार्यों को करने की अनुमति दे दी थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि इसमें किसी तरह का कोई नया कार्य या नया आदेश मान्य नहीं होगा.

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Last Updated : Mar 7, 2024, 7:22 PM IST
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