नई दिल्ली: तेलंगाना के पूर्व सीएम और बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा, जिसमें कांग्रेस सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हा रेड्डी आयोग की सभी आगे की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई है. बता दें, इस आयोग का उद्देश्य पिछली बीआरएस सरकार द्वारा किए गए बिजली खरीद समझौतों और दो थर्मल पावर प्लांटों के निर्माण की जांच करना है.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, इस मामले की सुनावाई मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं.
इससे पहले, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख द्वारा दायर याचिका को समय से पहले ही खारिज कर दिया था, जिसमें टीएस डिस्कॉम द्वारा छत्तीसगढ़ से बिजली की खरीद और टीएस जेनको द्वारा मनुगुरु में भद्राद्री थर्मल पावर प्लांट और दामरचेरला में यादाद्री थर्मल प्लांट के निर्माण आदि पर तेलंगाना की तत्कालीन सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की सत्यता और औचित्य पर न्यायिक जांच करने के लिए एक सदस्यीय आयोग की नियुक्ति को अवैध घोषित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
1 जुलाई को पारित अपने आदेश में मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनिल कुमार जुकांति की खंडपीठ ने कहा था कि यह पक्षपात का आरोप है कि आयोग निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर रहा है और इसका गठन राजनीतिक कारणों से किया गया है. तेलंगाना उच्च न्यायालय के समक्ष केसीआर के वकील ने तर्क दिया कि आयोग कानून के विपरीत काम कर रहा है, उन्होंने दावा किया कि न्यायमूर्ति नरसिम्हा रेड्डी ने जांच के विवरण की घोषणा करने के लिए एकतरफा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ काम किया.
आयोग ने केसीआर को नोटिस जारी कर बिजली खरीद समझौतों और बिजली संयंत्रों के निर्माण से संबंधित विवरण मांगा था. चूंकि वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार में व्यस्त थे, इसलिए उन्होंने जवाब देने के लिए और समय मांगा था. पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा अपना जवाब प्रस्तुत करने से पहले ही न्यायमूर्ति नरसिम्हा रेड्डी ने 15 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और कहा कि बिजली खरीद समझौतों और बिजली संयंत्रों के निर्माण में अनियमितताएं थीं. अपनी याचिका में केसीआर ने तर्क दिया कि जांच आयोग अवैध, मनमाना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है.
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