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सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को दिया निर्देश, पत्नी को 5 करोड़ और बेटे को 1 करोड़ रुपये का दे स्थायी गुजारा भत्ता - SUPREME COURT

सुप्रीम कोर्ट ने दुबई स्थित बैंक के CEO को अपनी वाइफ को 5 करोड़ और बेटे को 1 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 11, 2024, 5:46 PM IST

Updated : Dec 11, 2024, 9:13 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दुबई स्थित बैंक के CEO की शादी को दो दशकों से अधिक समय से अलग रहने और अपनी हाउस वाइफ के साथ तनावपूर्ण संबंधों का हवाला देते हुए शादी को खत्म कर दिया. साथ ही कोर्ट ने उसे अपनी पत्नी को एकमुश्त 5 करोड़ रुपये और अपने बेटे को 1 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया है.

जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा, "एक पिता के लिए भी अपने बच्चों की देखभाल करना न्यायसंगत और अनिवार्य है, खासकर तब, जब उसके पास ऐसा करने के साधन और क्षमता हो." पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद मटैरियल, परिस्थितियां और इस मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, पत्नी और बेटे के लिए एकमुश्त राशि देना उचित होगा.

यह देखते हुए कि बेटा अब वयस्क हो गया है और उसने अभी-अभी अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की है. पीठ ने कहा कि सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में, लाभकारी रोजगार तभी संभव हो सकता है, जब बच्चा 18 साल की आयु से आगे की शिक्षा प्राप्त करे. इस प्रतिस्पर्धी समय में केवल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करना ही लाभकारी रोजगार की गारंटी नहीं है.

5 करोड़ रुपये एकमुश्त मिलें
पीठ ने मंगलवार को दिए गए फैसले में कहा, "बेटे के भरण-पोषण और देखभाल के लिए 1 करोड़ रुपये की राशि उचित प्रतीत होती है, जिसका उपयोग वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक सुरक्षा के रूप में कर सकता है." पत्नी के पहलू पर पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस नाथ ने कहा कि विवाह के दौरान उसके द्वारा जी गई लाइफ स्टाइल, अलगाव की लंबी अवधि और अपीलकर्ता की वित्तीय क्षमता को देखते हुए, 5 करोड़ रुपये की एकमुश्त समझौता राशि प्रतिवादी के लिए उचित, उचित और तर्कसंगत लगती है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता वर्तमान में दुबई में एक बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के रूप में काम कर रहा है और उसका अनुमानित वेतन लगभग 50,000 दिरहम प्रति माह है और वह लगभग 10 से 12 लाख रुपये कमा रहा है.

1998 में हिंदू रीति-रिवाज से शादी
पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों ने दिसंबर 1998 में हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार विवाह किया था और उनके विवाह से एक बेटा भी हुआ था, लेकिन वैवाहिक संबंध खराब हो गए और दोनों पक्ष जनवरी, 2004 से अलग-अलग रहने लगे. पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच संबंध शुरू से ही तनावपूर्ण थे और पिछले कुछ सालों में और भी खराब होते गए. तलाक की याचिका के लंबित रहने के दौरान सुलह की कार्यवाही भी विफल रही."

पीठ ने कहा कि दोनों पक्ष लंबे समय से भरण-पोषण की कार्यवाही कर रहे हैं और बीस साल के तनावपूर्ण रिश्ते और अलगाव के बाद अंतरिम भरण-पोषण के मुद्दे पर ही विचार करने का कोई ठोस कारण नहीं दिखता. यह देखते हुए कि दोनों पक्षों का मेल-मिलाप करने का कोई इरादा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया क्योंकि दोनों पक्षों ने इस पर सहमति जताई थी.

लगभग पांच करोड़ रुपये का निवेश
पीठ ने कहा कि हालांकि अपीलकर्ता ने 2010 से अपने डीमैट अकाउंट का विवरण दाखिल किया है, लेकिन यह पता चला है कि उस समय उसके पास लगभग पांच करोड़ रुपये का निवेश था. पीठ ने यह भी कहा कि उसके पास क्रमशः लगभग दो करोड़, पांच करोड़ और दस करोड़ रुपये की तीन संपत्तियां हैं.

सु्प्रीम कोर्ट का यह फैसला एक व्यक्ति द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया, जिसने पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण राशि 1.15 लाख रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 1.45 लाख रुपये प्रति माह कर दी थी.

पीठ ने कहा, "अलग होने के बाद से इन सभी वर्षों में पक्षों के बीच मुख्य मुद्दा अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को दिए जाने वाले भरण-पोषण की राशि है. विवाह विच्छेद के साथ ही पेंडेंट लाईट भरण-पोषण का मुद्दा अब निरर्थक हो गया है, लेकिन पत्नी के वित्तीय हितों को अभी भी स्थायी गुजारा भत्ता प्रदान करके संरक्षित करने की आवश्यकता है."

यह भी पढे़ं- 10 मौके जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से हुआ टकराव

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दुबई स्थित बैंक के CEO की शादी को दो दशकों से अधिक समय से अलग रहने और अपनी हाउस वाइफ के साथ तनावपूर्ण संबंधों का हवाला देते हुए शादी को खत्म कर दिया. साथ ही कोर्ट ने उसे अपनी पत्नी को एकमुश्त 5 करोड़ रुपये और अपने बेटे को 1 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया है.

जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा, "एक पिता के लिए भी अपने बच्चों की देखभाल करना न्यायसंगत और अनिवार्य है, खासकर तब, जब उसके पास ऐसा करने के साधन और क्षमता हो." पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद मटैरियल, परिस्थितियां और इस मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, पत्नी और बेटे के लिए एकमुश्त राशि देना उचित होगा.

यह देखते हुए कि बेटा अब वयस्क हो गया है और उसने अभी-अभी अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की है. पीठ ने कहा कि सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में, लाभकारी रोजगार तभी संभव हो सकता है, जब बच्चा 18 साल की आयु से आगे की शिक्षा प्राप्त करे. इस प्रतिस्पर्धी समय में केवल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करना ही लाभकारी रोजगार की गारंटी नहीं है.

5 करोड़ रुपये एकमुश्त मिलें
पीठ ने मंगलवार को दिए गए फैसले में कहा, "बेटे के भरण-पोषण और देखभाल के लिए 1 करोड़ रुपये की राशि उचित प्रतीत होती है, जिसका उपयोग वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक सुरक्षा के रूप में कर सकता है." पत्नी के पहलू पर पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस नाथ ने कहा कि विवाह के दौरान उसके द्वारा जी गई लाइफ स्टाइल, अलगाव की लंबी अवधि और अपीलकर्ता की वित्तीय क्षमता को देखते हुए, 5 करोड़ रुपये की एकमुश्त समझौता राशि प्रतिवादी के लिए उचित, उचित और तर्कसंगत लगती है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता वर्तमान में दुबई में एक बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के रूप में काम कर रहा है और उसका अनुमानित वेतन लगभग 50,000 दिरहम प्रति माह है और वह लगभग 10 से 12 लाख रुपये कमा रहा है.

1998 में हिंदू रीति-रिवाज से शादी
पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों ने दिसंबर 1998 में हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार विवाह किया था और उनके विवाह से एक बेटा भी हुआ था, लेकिन वैवाहिक संबंध खराब हो गए और दोनों पक्ष जनवरी, 2004 से अलग-अलग रहने लगे. पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच संबंध शुरू से ही तनावपूर्ण थे और पिछले कुछ सालों में और भी खराब होते गए. तलाक की याचिका के लंबित रहने के दौरान सुलह की कार्यवाही भी विफल रही."

पीठ ने कहा कि दोनों पक्ष लंबे समय से भरण-पोषण की कार्यवाही कर रहे हैं और बीस साल के तनावपूर्ण रिश्ते और अलगाव के बाद अंतरिम भरण-पोषण के मुद्दे पर ही विचार करने का कोई ठोस कारण नहीं दिखता. यह देखते हुए कि दोनों पक्षों का मेल-मिलाप करने का कोई इरादा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया क्योंकि दोनों पक्षों ने इस पर सहमति जताई थी.

लगभग पांच करोड़ रुपये का निवेश
पीठ ने कहा कि हालांकि अपीलकर्ता ने 2010 से अपने डीमैट अकाउंट का विवरण दाखिल किया है, लेकिन यह पता चला है कि उस समय उसके पास लगभग पांच करोड़ रुपये का निवेश था. पीठ ने यह भी कहा कि उसके पास क्रमशः लगभग दो करोड़, पांच करोड़ और दस करोड़ रुपये की तीन संपत्तियां हैं.

सु्प्रीम कोर्ट का यह फैसला एक व्यक्ति द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया, जिसने पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण राशि 1.15 लाख रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 1.45 लाख रुपये प्रति माह कर दी थी.

पीठ ने कहा, "अलग होने के बाद से इन सभी वर्षों में पक्षों के बीच मुख्य मुद्दा अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को दिए जाने वाले भरण-पोषण की राशि है. विवाह विच्छेद के साथ ही पेंडेंट लाईट भरण-पोषण का मुद्दा अब निरर्थक हो गया है, लेकिन पत्नी के वित्तीय हितों को अभी भी स्थायी गुजारा भत्ता प्रदान करके संरक्षित करने की आवश्यकता है."

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Last Updated : Dec 11, 2024, 9:13 PM IST
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