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जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका को सूचीबद्ध करने पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सहमत

आवेदन में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को जल्द से जल्द बहाल करने के लिए उचित निर्देश पारित किए जाएं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

SC AGREES TO LIST PLEA
फाइल फोटो. (PTI)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने गुरुवार को दो महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई. एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए आवेदन का उल्लेख किया, जिस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह मामले को सूचीबद्ध करेगी.

कॉलेज शिक्षक जहूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि सॉलिसिटर जनरल की ओर से दिए गए आश्वासन के बावजूद कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, अनुच्छेद 370 मामले में फैसले के बाद पिछले दस महीनों में संघ ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया है.

यह आवेदन अधिवक्ता सोयब कुरैशी के माध्यम से अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के निपटारे के मामले में दायर किया गया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने को बरकरार रखा था.

आवेदक, जम्मू-कश्मीर के जागरूक नागरिक होने के नाते इस बात से व्यथित हैं कि 11 अगस्त, 2023 के आदेश के 10 महीने बीत जाने के बाद भी, आज तक जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है, जो जम्मू-कश्मीर के निवासियों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है और संघवाद के मूल ढांचे का भी उल्लंघन कर रहा है; और यही कारण है कि आवेदकों ने दो महीने की अवधि के भीतर समयबद्ध तरीके से जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के लिए भारत संघ को उचित निर्देश देने के लिए वर्तमान आवेदन को प्राथमिकता दी है.

आवेदन में कहा गया है कि यदि इस न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के निर्देश जल्द से जल्द पारित नहीं किए जाते हैं, तो इससे देश के संघीय ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचेगा. जम्मू-कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों का हवाला देते हुए, आवेदन में कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल होने से पहले विधानसभा का गठन संघवाद के विचार का उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. चूंकि हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुए थे, इसलिए अगर सर्वोच्च न्यायालय समय-सीमा के भीतर केंद्र शासित प्रदेश को राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देता है, तो कोई सुरक्षा चिंता नहीं होगी.

आवेदन में आगे कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की संख्या में गंभीर कमी आएगी, जिससे संघवाद के विचार का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. यह भी तर्क दिया गया कि जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने के परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार का कमतर स्वरूप दिया गया है, जो विधानसभा के परिणाम घोषित होने के बाद जल्द ही गठित हो जाएगी.

इसमें कहा गया है कि यदि समयबद्ध तरीके से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया तो जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा होगा, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा. जम्मू-कश्मीर के लोकतांत्रिक ढांचे और इसकी क्षेत्रीय अखंडता पर भी गंभीर असर पड़ेगा.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने गुरुवार को दो महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई. एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए आवेदन का उल्लेख किया, जिस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह मामले को सूचीबद्ध करेगी.

कॉलेज शिक्षक जहूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि सॉलिसिटर जनरल की ओर से दिए गए आश्वासन के बावजूद कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, अनुच्छेद 370 मामले में फैसले के बाद पिछले दस महीनों में संघ ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया है.

यह आवेदन अधिवक्ता सोयब कुरैशी के माध्यम से अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के निपटारे के मामले में दायर किया गया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने को बरकरार रखा था.

आवेदक, जम्मू-कश्मीर के जागरूक नागरिक होने के नाते इस बात से व्यथित हैं कि 11 अगस्त, 2023 के आदेश के 10 महीने बीत जाने के बाद भी, आज तक जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है, जो जम्मू-कश्मीर के निवासियों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है और संघवाद के मूल ढांचे का भी उल्लंघन कर रहा है; और यही कारण है कि आवेदकों ने दो महीने की अवधि के भीतर समयबद्ध तरीके से जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के लिए भारत संघ को उचित निर्देश देने के लिए वर्तमान आवेदन को प्राथमिकता दी है.

आवेदन में कहा गया है कि यदि इस न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने के निर्देश जल्द से जल्द पारित नहीं किए जाते हैं, तो इससे देश के संघीय ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचेगा. जम्मू-कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों का हवाला देते हुए, आवेदन में कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल होने से पहले विधानसभा का गठन संघवाद के विचार का उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. चूंकि हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुए थे, इसलिए अगर सर्वोच्च न्यायालय समय-सीमा के भीतर केंद्र शासित प्रदेश को राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देता है, तो कोई सुरक्षा चिंता नहीं होगी.

आवेदन में आगे कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की संख्या में गंभीर कमी आएगी, जिससे संघवाद के विचार का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. यह भी तर्क दिया गया कि जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने के परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार का कमतर स्वरूप दिया गया है, जो विधानसभा के परिणाम घोषित होने के बाद जल्द ही गठित हो जाएगी.

इसमें कहा गया है कि यदि समयबद्ध तरीके से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया तो जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा होगा, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा. जम्मू-कश्मीर के लोकतांत्रिक ढांचे और इसकी क्षेत्रीय अखंडता पर भी गंभीर असर पड़ेगा.

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