देहरादून: केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में मौजूद 13 संवेदनशील ग्लेशियर झीलों को चिन्हित किया है. इनमें से 5 ग्लेशियर झीलों को अति संवेदनशील माना है, जिनका निरीक्षण के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है. जिस पर आपदा प्रबंधन विभाग ने इन सभी ग्लेशियर झीलों की निगरानी के लिए मल्टी डिसिप्लिनरी टीम भी गठित की, लेकिन इसके बावजूद अभी तक मात्र एक ग्लेशियर लेक वसुधारा का ही स्थलीय निरीक्षण किया जा सका है. जबकि, साल 2024 का बीतने को है. ऐसे में जानते हैं आपदा प्रबंधन विभाग की क्या है स्ट्रेटजी? कब तक अन्य झीलों का निरीक्षण के लिए टीम की जाएगी?
उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. मानसून सीजन के दौरान तो आपदा की स्थिति और ज्यादा भयावह हो जाती है. उत्तराखंड में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (हिमनद झील विस्फोट बाढ़) जैसी दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें हजारों लोगों ने जान गंवाई. यही वजह है कि आपदा विभाग ग्लेशियर में मौजूद ग्लेशियर लेक के अध्ययन पर जोर देता रहा है.
इसी कड़ी में एनडीएमए यानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (भारत सरकार) ने साल 2024 के फरवरी महीने में देशभर में मौजूद 190 संवेदनशील और अति संवेदनशील ग्लेशियर लेक की सूची जारी की थी. साथ ही संबंधित राज्य सरकारों को हर साल इन सभी ग्लेशियर लेक की निगरानी करने के निर्देश दिए थे.
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड से मच चुकी तबाही: दरअसल, उत्तराखंड में पिछले एक दशक के भीतर दो बड़ी घटनाएं हुई है, जो कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood) यानी ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ आई थी. साल 2013 में केदार घाटी से ऊपर मौजूद चौराबाड़ी ग्लेशियर झील की दीवार टूटने की वजह से एक बड़ी आपदा आई थी. उस दौरान करीब 6 हजार लोगों की मौत हुई थी.
इसके साथ ही फरवरी 2021 में चमोली जिले में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से धौलीगंगा में बड़ी तबाही मच गई थी. इस भीषण बाढ़ आने के चलते करीब 206 से ज्यादा लोगों की मौत होने के साथ ही दो विद्युत परियोजनाएं भी पूरी तरह से तबाह हो गई थी. यही वजह है कि ग्लेशियर लेक भविष्य के लिहाज से काफी खतरनाक माने जा रहे हैं. लिहाजा, ग्लेशियर में मौजूद झीलों का समय-समय पर निगरानी करने की जरूरत है.
उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर लेक संवेदनशील और अति संवेदनशील: एनडीएमए की ओर से जारी संवेदनशील ग्लेशियर लेक की सूची के अनुसार, उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर लेक संवेदनशील और अति संवेदनशील हैं. जिसको एनडीएमए ने संवेदनशीलता के आधार पर तीन कैटेगरी में रखा है. अति संवेदनशील 5 ग्लेशियर झील को A कैटेगरी में रखा गया है, जिसमें से 4 ग्लेशियर लेक पिथौरागढ़ और एक ग्लेशियर लेक चमोली जिले में मौजूद है.
इसके बाद थोड़ा कम संवेदनशील वाले चार जिलों को B कैटेगरी में रखा गया है, जिसमें से एक चमोली, एक टिहरी और दो झीलें पिथौरागढ़ जिले में हैं. इसी तरह से कम संवेदनशील 4 झीलों को C कैटेगरी में रखा है, ये झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिले में मौजूद हैं.
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग क्यों कर रहा लेटलतीफी? एनडीएमए की ओर से अति संवेदनशील और संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की रिपोर्ट जारी करने के बाद उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने शुरुआती दौर में तत्परता जरूर दिखाई थी, लेकिन समय के साथ आपदा विभाग की ओर से इन अति संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की निगरानी का मामला सुस्त पड़ गया.
फरवरी 2024 में एनडीएमए की ओर से रिपोर्ट जारी किए जाने के बाद आपदा विभाग ने निर्णय लिया था कि अति संवेदनशील पांचों ग्लेशियर झीलों की निगरानी के लिए टीम गठित कर भेजी जाएगी, लेकिन टीम गठित करने में आपदा विभाग को थोड़ा समय लग गया और इसी बीच उत्तराखंड चारधाम यात्रा और फायर सीजन शुरू हो गया. फायर सीजन से थोड़ी राहत मिलते ही आपदा विभाग ने टीमों के रवानगी पर जोर देता, तभी मानसून के सीजन में दस्तक दे दी.
मानसून के चलते आपदा विभाग को टीम न भेजने का एक और बहाना मिल गया. ऐसे में मानसून सीजन समाप्त होने के बाद आपदा विभाग ने चमोली जिले में मौजूद अति संवेदनशील वसुधारा ग्लेशियर लेक निरीक्षण के लिए टीम भेजी थी. हालांकि, निरीक्षण के लिए भेजी गई मल्टी डिसिप्लिनरी टीम निरीक्षण कर वापस आ गई है. साथ ही वसुधारा ग्लेशियर लेक की मौजूदा स्थिति पर रिपोर्ट तैयार कर रही है.
मल्टी डिसिप्लिनरी टीम में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA), एनआईएच रुड़की यानी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH Roorkee), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग देहरादून (IIRS Dehradun), जीआईएस लखनऊ (GIS Lucknow), वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia) और उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन मैनेजमेंट सेंटर (ULMMC) के विशेषज्ञ को शामिल किया गया था. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अगले कुछ दिनों में ही ये टीम वसुधारा ग्लेशियर लेक पर अपनी रिपोर्ट जमा कर देगी.
वसुधारा ग्लेशियर लेक का लगातार बढ़ रहा आकार: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून की ओर से वसुधारा ग्लेशियर लेक पर किए गए अध्ययन के अनुसार, वसुधारा ग्लेशियर लेक की साइज लगातार बढ़ती जा रही है. साल 1968 में वसुधारा ग्लेशियर लेक की साइज 0.14 वर्ग किलोमीटर था, जो साल 2021 में बढ़कर करीब 0.59 वर्ग किलोमीटर हो गया है. यानी इन 53 सालों में वसुधारा ग्लेशियर लेक की साइज में करीब 421.42 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.
53 सालों में वसुधारा ग्लेशियर लेक में 767.77 फीसदी पानी बढ़ा: इसी तरह वसुधारा ग्लेशियर लेक में जमा पानी की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है. साल 1968 में वसुधारा ग्लेशियर लेक में करीब 21,10,000 क्यूब मीटर पानी था. जो साल 2021 में बढ़कर करीब 1,62,00,000 क्यूबिक मीटर हो गया है. यानी इन 53 सालों में वसुधारा ग्लेशियर लेक में मौजूद पानी की मात्रा में करीब 767.77 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.
आपदा सचिव बोले- ग्लेशियर लेक सुरक्षित, खतरे की बात नहीं: वहीं, उत्तराखंड आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि प्रदेश में मौजूद ग्लेशियर लेक सुरक्षित हैं और खतरे की कोई बात नहीं है, लेकिन प्रदेश में मौजूद पांच हिमनद झीलों को अति संवेदनशील कैटेगरी में रखा गया है. जिसके चलते ये कहा गया है कि इन पांचों झीलों का हर साल अध्ययन कराया जाए. हालांकि, अभी तक एक ग्लेशियर झील का ही अध्ययन करवा पाए हैं.
चमोली जिले के धौलीगंगा बेसिन में मौजूद वसुधारा झील का अध्ययन करने के लिए टीम गई थी, जिसने अध्ययन भी किया है और जल्द ही आपदा विभाग की अध्ययन रिपोर्ट भी मिल जाएगा. साथ ही कहा कि बाकी बचे चार जिलों का अभी अध्ययन करना संभव नहीं है. ऐसे में अगले साल से रेगुलर बेसिस पर टीमें अध्ययन के लिए जाएंगी. टीमों के साथ एक्सपर्ट एजेंसी भी भेजी जाएगी, जो अध्ययन करेगी और उसके रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
उन्होंने कहा कि जब झीलों में कुछ हलचल महसूस होता है तो फिर जो भी सुरक्षात्मक काम किए जाने होते हैं, वो काम किए जाते हैं. आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि उत्तराखंड में पिछले एक दशक के भीतर दो बड़ी घटनाएं हुई है. इसके अलावा नेपाल, सिक्किम समेत अन्य जगहों पर भी इस तरह की घटनाएं देखी गई है. जिसके चलते भारत सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है.
सुरक्षात्मक कार्य को लेकर कही ये बात: आपदा सचिव ने बताया कि सुरक्षात्मक कार्य क्या किए जाने हैं? इसको लेकर अभी कहना काफी मुश्किल है. क्योंकि, सुरक्षात्मक कार्य तभी किया जा सकता है, जब ये पता हो कि खतरा किस तरह का है, उस आधार पर ही सुरक्षात्मक कार्य किए जा सकेंगे. हालांकि, कभी-कभी ही ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड की घटनाएं देखने को मिलती हैं.
यह घटनाएं भविष्य में ना हो, इसके लिए भारत सरकार ने देशभर में मौजूद ग्लेशियर लेक को चिन्हित किया है. जिसमें पांच ग्लेशियर लेक अति संवेदनशील हैं, जो उत्तराखंड में मौजूद हैं. जिसको आपदा विभाग लगातार मॉनिटरिंग करता रहेगा और जब भी कोई खतरे की बात सामने आएगी तो उसका अध्ययन कर सुरक्षात्मक उपाय किए जाएंगे.
उत्तराखंड में करीब 1,200 ग्लेशियर लेक: वहीं, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेहता का कहना है कि उत्तराखंड में करीब 1,200 ग्लेशियर लेक हैं, जो अलग-अलग कैटेगरी की हैं. जो सुप्रा ग्लेशियर लेक, प्रो ग्लेशियर लेक और मोरेन डैम ग्लेशियर लेक की कैटेगरी में शामिल हैं.
एनडीएमए ने उत्तराखंड में मौजूद 13 ग्लेशियर लेक चिन्हित किए हैं, जिसमें से पांच ग्लेशियर लेक अति संवेदनशील हैं. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान सैटेलाइट डेटाबेस के आधार पर इन सभी ग्लेशियर लेक पर अध्ययन कर रहा है. इसके साथ ही साल 2021 से वाडिया संस्थान वसुधारा झील की निगरानी कर रहा है. मनीष मेहता ने बताया कि प्रदेश में जितने भी प्रो ग्लेशियर लेक हैं, उनकी साइज लगातार बढ़ रही है.
ग्लेशियर लेक का बनना और खत्म होना नेचुरल प्रक्रिया: ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेहता ने बताया कि ग्लेशियर के पिघलने की वजह से ही ग्लेशियर में ग्लेशियर लेक बन जाते हैं. हालांकि, ग्लेशियर लेक का बनना और खत्म होना यह एक नेचुरल प्रोसेस है. यानी जब ग्लेशियर पिघलेगा तो ग्लेशियर लेक बनेगा और जब ग्लेशियर बढ़ेगा तो ग्लेशियर लेक समाप्त हो जाएगी.
साथ ही कहा कि जितने भी लेक चिन्हित किए गए हैं, वो 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मौजूद हैं. ऐसे में शीतकाल के दौरान इतनी ऊंचाई पर टेंपरेचर माइनस में होता है, जिसके चलते सभी लेक जम जाती हैं. लिहाजा, शीतकाल के दौरान लेक का बहुत ज्यादा खतरा नहीं होता है, लेकिन गर्मियों के समय में ग्लेशियर और बर्फ के पिघलने का सिलसिला शुरू हो जाता है. जिसके चलते लेक बनने और उसके खतरनाक होने के साथ ही टूटने की संभावना बढ़ जाती है.
ग्लेशियर में बनने वाले ग्लेशियर लेक के मुख्य प्रकार-
- प्रो ग्लेशियर लेक- ग्लेशियर के आगे बनने वाला झील प्रो ग्लेशियर लेक होती है, जिसे मोरेन डैम ग्लेशियर लेक भी कहते हैं. ये ग्लेशियर लेक अति संवेदनशील माने जाते हैं.
- सुप्रा ग्लेशियर लेक- ये लेक ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से में बनती हैं, जो अपने आप बनती है और अपने आप समाप्त भी हो जाती है.
- सब ग्लेशियर- ये लेक ग्लेशियर के नीचे बनती है, जो समय के साथ अपने आप खत्म हो जाती है.
एनडीएमए की ओर से चिन्हित 5 अतिसंवेदनशील ग्लेशियर लेक-
- चमोली जिले में मौजूद वसुधारा झील अतिसंवेदनशील ग्लेशियर लेक है, जो धौलीगंगा बेसिन में मौजूद है. जिसका आकार करीब 0.50 हेक्टेयर और ऊंचाई 4,702 मीटर है.
- पिथौरागढ़ में मौजूद मबान झील अतिसंवेदनशील ग्लेशियर लेक है, जो लस्सार यांकटी घाटी में है. जिसका आकार करीब 0.11 हेक्टेयर और समुद्र तल से 4,351 मीटर की ऊंचाई पर है.
- पिथौरागढ़ के मौजूद प्युंगरू झील अतिसंवेदनशील ग्लेशियर लेक है, जो दारमा यांकटी घाटी में है. जिसका आकार करीब 0.02 हेक्टेयर और समुद्र तल से 4,758 मीटर की ऊंचाई पर है.
- पिथौरागढ़ के कुथी यांकटी घाटी में मौजूद अनक्लासिफाइड ग्लेशियर लेक है, जो करीब 0.04 हेक्टेयर में फैली है. इसकी ऊंचाई 4,868 मीटर है.
- पिथौरागढ़ के दारमा यांकटी घाटी में मौजूद अनक्लासिफाइड ग्लेशियर लेक है, जो करीब 0.09 हेक्टेयर में फैली है और इसकी ऊंचाई 4,794 मीटर है.
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