चंडीगढ़: आज हरियाणा दिवस है. 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया हरियाणा आज 59वां जन्मदिन मना रहा है. हरियाणा पंजाब से अलग होकर देश का 17वां राज्य बना. तब हरियाणा की पहचान रेतीले और कीकर के जंगलों तक सीमित थी. बुनियादी सुविधाएं ना के बराबर थी. आज हरियाणा की पहचान समृद्ध राज्यों में होती है. 58 साल के सफर में हरियाणा ने तरक्की की नई इबारत लिखी है.
हरियाणा दिवस आज: भले ही हरियाणा 1 नवंबर 1966 को अस्तित्व में आया हो, लेकिन इस प्रदेश का वर्णन मनुस्मृति, महाभाष्य, बोयण वर्ण सूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र, विनय पिटक और महाभारत के ग्रंथों में मिलता है. ये प्रदेश नदी-नालों, पर्वतों एवं भूखंडों के नाम तक में भारतीय संस्कृति के गहरे संबंध को प्रकट करता है.
हरियाणा में लड़ा गया महाभारत का युद्ध: हरियाणा दो शब्दों के मेल से बना है. हरि और आना. मतलब भगवान का आना या आगमन. हरियाणा गीता की जन्मभूमि है. हरियाणा की धरा पर ही महाभारत का युद्ध लड़ा गया था. भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश दिया था. जो आज भी लोगों को जीने की राह दिखाता है.
पानीपत की तीन लड़ाईयों का गवाह है हरियाणा: हरियाणा के पानीपत जिले में लड़ी गई तीन लड़ाईयां इतिहास में दर्ज हैं. पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल, 1526 को मुगल सम्राट बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई में बाबर की जीत हुई थी और मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई थी.
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर, 1556 को मुगल सम्राट अकबर और हेम चंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई में भी मुगल सेना की जीत हुई थी और अकबर का साम्राज्य मजबूत हुआ था.
पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई में अफ़गानों की जीत हुई थी. इस लड़ाई के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का दबदबा हरियाणा क्षेत्र पर बढ़ गया था.
वीरों की धरती है हरियाणा: हरियाणा वीरों की धरती भी कहलाता है. क्योंकि भारतीय सेना में हर दसवां सैनिक इस राज्य से है. यहां वीरों ने शत्रुओं का डटकर सामना किया और देश रक्षा के लिए बड़े से बड़े बलिदान दिए. वीर हेमू, वीर चूड़ामणि, बल्लभगढ़ नरेश नाहर सिंह, राव तुला राम, अमर सेनानी राव कृष्ण गोपाल आदि महान योद्धाओं का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है.
खेल खिलाड़ियों में अव्वल: हरियाणा को मेडल की खान के नाम से भी जाना जाता है. ओलंपिक खेलों में हरियाणा के मेडलों की हिस्सेदारी करीब 30 प्रतिशत है. जो कि देश के सभी राज्यों में से सबसे ज्यादा है. सुशील कुमार, बिजेंदर सिंह, गीता फोगाट, बबीता फोगाट, योगेश्वर दत्त, बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, युजवेंद्र चहल, नवदीप सैनी, रानी रामपाल, सविता पूनिया, अंतिम पंघाल, रवि दहिया और नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ी किसी पहचान के मोहताज नहीं है. इन खिलाड़ियों ने हरियाणा की शान में चार चांद लगाए हैं.
अंतरिक्ष में पहुंची हरियाणा की बेटी: कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय मूल की महिला बनीं. अपने अपनी जीवन में दो बार उन्होंने स्पेस मिशन की उड़ान भरी. पहली उड़ान सफल रही. लेकिन दूसरी बार स्पेस से लौटते वक्त स्पेस शटल आग में तब्दील हो गया और उसमें सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई. कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 में हरियाणा के करनाल में हुआ था. कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं.
हरियाणा के मुख्य उद्योग: हरियाणा को भारत का सबसे बड़ा ऑटो हब माना जाता है. यहां होंडा, मारुति सुज़ुकी, एस्कॉर्ट्स जैसे प्रमुख ऑटोमोबाइल ब्रैंड्स के उद्योग हैं. हरियाणा में देश की दो-तिहाई कारें, 50% ट्रैक्टर, और 60% मोटरसाइकिल बनती हैं.
- आईटी: हरियाणा आईटी और जैव प्रौद्योगिकी सहित ज्ञान उद्योग के लिए एक आधार है.
- रेडीमेड सूती वस्त्र: हरियाणा से रेडीमेड सूती वस्त्र प्रमुख निर्यातों में से एक है.
- खाद्यान्न: हरियाणा, भारत के दो अन्न भंडारों में से एक है. देश में बासमती चावल के निर्यात में भी इसका 60 प्रतिशत से ज्यादा योगदान है.
- इलेक्ट्रिक मशीनरी और उपकरण, पंचकूला में विनिर्माण, प्रसंस्करण सेवा, और मरम्मत. हरियाणा के पानीपत जिले में एशिया की सबसे बड़ी हैंडलूम मार्केट है. वहीं फरीदाबाद जिले को बुनकर नगरी के नाम से जाना जाता है.
आजादी से पहले हुई हरियाणा के गठन की मांग: वैसे तो हरियाणा की मांग आजादी से पहले से ही हो रही थी, लेकिन हरियाणा से बड़ी मांग अलग पंजाब की थी. 1930 के दशक में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल भाषाई आधार पर राज्य बनाने पर सहमत थे, लेकिन आजादी आते-आते वो भाषाई आधार पर राज्य बनाने का विरोध करने लगे. क्योंकि भाषाई आधार पर राज्यों की मांग आजादी के वक्त अलगाव पर उतर आई थी.
इन नेताओं ने किया संघर्ष: अलग हरियाणा के लिए जो लड़ाई लड़ी जा रही थी. वैसे तो उसमें बहुत से लोग शामिल थे, लेकिन चौधरी देवी लाल और प्रोफेसर शेर सिंह इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. उस समय हरियाणा के ही कुछ नेता ऐसे भी थे. जो अलग हरियाणा के विरोध में थे. जिसमें राव बीरेंद्र सिंह और भगवत दयाल शर्मा भी शामिल थे. जो बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने.
आजादी के बाद फिर उठी हरियाणा की मांग: आजादी के बाद जब संयुक्त पंजाब के पुनर्गठन और भारत के कई राज्यों में भाषा के आधार पर अलग प्रदेश की मांग उठी, तो एक कमेटी बनाई गई. जिसे जेवीपी कमेटी कहा गया. इस कमेटी में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया शामिल थे. इस कमेटी ने भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग को ठुकराते हुए कहा कि भाषा सिर्फ जोड़ने वाली शक्ति नहीं है. बल्कि एक दूसरे से अलग करने वाली ताकत भी है. क्योंकि अभी देश के विकास पर ध्यान देना जरूरी है. इसलिए अभी हर विघटनकारी शक्ति को हतोत्साहित करना जरूरी है.
इसका असर ये हुआ कि देश की आजादी के वक्त भाषा के आधार पर किसी राज्य का गठन नहीं हुआ, लेकिन केंद्र का ये निर्णय जल्द ही टूट गया. क्योंकि 15 दिसंबर 1952 को अलग आंध्र राज्य की मांग को लेकर पोट्टि श्रीरामुलु की अनशन के दौरान मौत हो गई. जिससे अलग आंध्र की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन उग्र हो गया और सरकार को आंध्र प्रदेश बनाना पड़ा.
फिर बना राज्य पुनर्गठन आयोग: जब भाषा के आधार पर भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश को मंजूरी दे दी, तो बाकी राज्यों की मांग भी तेजी से उठने लगी. इसलिए केंद्र सरकार ने 19 दिसंबर 1953 को एक राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया. जिसे फजल अली आयोग के नाम से भी जाना जाता है. इस आयोग ने सैकड़ों शहरों और कस्बों का दौरा कर हजारों लोगों से बातचीत की और 1956 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन इस आयोग ने भी अलग हरियाणा की मांग को नकार दिया और कहा कि अगर हरियाणा अलग राज्य बना तो उसके पास विकास के लिए कोई संसाधन नहीं होंगे.
फिर आया सच्चर फार्मूला: राज्य पुनर्गठन आयोग ने भले ही हरियाणा की मांग ठुकरा दी थी, लेकिन आंदोलनकारी अभी भी अपनी मांगों पर अड़े हुए थे. जिसे शांत करने के लिए संयुक्त पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर ने एक फॉर्मूला दिया. इसी फॉर्मूले को सच्चर फार्मूला कहा गया. सच्चर ने अपने फॉर्मूले में हिसार, करनाल, रोहतक, नारायणगढ़, अंबाला और कांगड़ा को हिंदी भाषी क्षेत्र माना और बाकी बचे हिस्से को पंजाबी भाषी, लेकिन दोनों क्षेत्रों की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया.
प्रताप सिंह कैरों के फैसले ने दी आंदोलन को हवा: जब भीमसेन सच्चर संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री थे. उस वक्त प्रताप सिंह कैरों वहां के राजस्व मंत्री थे. उन्होंने भूमि उपयोग अधिनियम के तहत अमृतसर और गुरदासपुर के दलित परिवारों को अंबाला और कुरुक्षेत्र में बसा दिया. जिसका इन क्षेत्रों के दलितों ने भारी विरोध किया. इसके बाद अलग हरियाणा की मांग और तेज हो गई.
जब विधानसभा में हरियाणवी में बोलने लगे देवी लाल: फजल अली आयोग की रिपोर्ट में हरियाणा की मांग को स्वीकार नहीं किया गया. जिसके विरोध में चौधरी देवी लाल ने संयुक्त पंजाब की विधानसभा में हरियाणवी में बोलना शुरू कर दिया. इसका वहां बैठे सदस्यों ने विरोध किया. इस पर चौधरी देवी लाल ने कहा कि मेरे क्षेत्र की जनता यही भाषा समझती है. जिसे आप नहीं समझते. चौधरी देवी लाल के इस भाषण का बड़ा असर हुआ.
प्रताप सिंह कैरों ना होते तो पहले ही बन गया होता हरियाणा: 1956 में भीमसेन सच्चर के बाद प्रताप सिंह कैरों संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री बने. प्रताप सिंह कैरों पंजाब के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे. इसलिए जब केंद्र सरकार ने पंजाब के पुनर्गठन का प्रस्ताव दिया और कहा कि प्रदेश को हिंदी और पंजाबी भाषा के आधार पर बांटा जाए, लेकिन विधानसभा और गवर्नर एक ही रहे और भाषा के आधार पर विधायकों की अलग-अलग कमेटियां बना दी जाए. इस पर पंजाब सरकार ने कमेटियों का गठन तो कर दिया, लेकिन उनकी शक्तियां बेहद कम कर दी. इसलिए केंद्र सरकार का ये फॉर्मूला भी फेल हो गया.
हरियाणा से बड़ी थी अलग पंजाब की मांग: दरअसल हरियाणा से पहले से अलग पंजाब की मांग हो रही थी. जिसका नेतृत्व करते हुए 1960 में मास्टर तारा सिंह ने 48 दिन तक अनशन किया. लेकिन उनकी मांग तब भी पूरी नहीं हुई.
हरियाणा के कुछ नेता हरियाणा के विरोध में थे: अलग हरियाणा की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन का नेतृत्व चौधरी देवी लाल और प्रोफेसर शेर सिंह कर रहे थे. जिसकी वजह से इन नेताओं की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी, लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्र के ही कई नेता अलग हरियाणा का विरोध भी कर रहे थे जिनमें हरद्वारी लाल, राव बीरेंद्र सिंह भगवत दयाल शर्मा शामिल थे. दरअसल ये तीनों नेता प्रताप सिंह कैरों के काफी करीबी माने जाते थे इसीलिए ये हरियाणा गठन के विरोध में थे.
संत फतेह सिंह के अनशन से मिला फायदा! अलग पंजाब की मांग को लेकर भी आंदोलन चरम पर था. 1965 में संत फतेह सिंह अनशन पर बैठ गए. आत्मदाह की धमकी दे दी. इस आंदोलन के दबाव में पंजाब के बंटवारे की मांग जनसंघ को छोड़कर सभी ने मान ली. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी और उन्होंने पंजाब के बंटवारे को मंजूरी दे दी. 23 अप्रैल 1966 को जेसी शाह के नेतृत्व में एक सीमा आयोग का गठन किया गया.
जिसने 31 मई 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी और 3 सितंबर 1966 को तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा में पेश किया. जिसमें कहा गया कि हरियाणा और पंजाब के उच्च न्यायालय, विश्वविद्यालय, बिजली बोर्ड और भंडारण निगम एक ही रहेंगे. इसके अलावा चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी होगी. 7 सितंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा से पास हो गया और 18 सितंबर 1966 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर मुहर लगाई. ऐसे 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बन गया.
- आज हरियाणा में 22 जिले हैं. इसके अलावा 90 विधानसभा, 10 लोकसभा और 5 राज्यसभा सीटें आती हैं. हरियाणा में इस बार इतिहास रचते हुए बीजेपी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है. फिलहाल हरियाणा का आबादी तीन करोड़ के करीब है. हरियाणा, देश में जीएसटी कलेक्शन में छठे नंबर पर है.
एक झलक में हरियाणा राज्य: मैं हरियाणा हूं. मैं हरि की भूमि हूं. मेरी चर्चा तमाम महाकाव्यों में होती है. मैं गीता की जन्मभूमि हूं. मैंने दुनिया को जीने की राह बताई है. मैंने पानीपत की लड़ाइयां देखी हैं. मैंने अंग्रेजों का राज देखा है. मैंने गांधी की चाल देखी है. मैंने गुलामी की जंजीरों को देखा है. मैंने भारत को आजाद होते हुए देखा है. मैं हरियाणा हूं.
- यूं तो काल-कालांतर से मैं यहीं हूं, लेकिन आजाद भारत में औपचारिक रूप से मेरा जन्म 1 नवंबर, साल 1966 में हुआ, जब मैं अपने बड़े भाई पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया. शुरुआत में 7 जिलों को जोड़ कर मैं एक राज्य बना था, लेकिन आज मैं धीरे-धीरे 22 जिलों का सुखी संपन्न राज्य हूं.
- मेरे उत्तरी हिस्से में स्थित यमुना-घग्गर के मैदान हैं. सुदूर उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों की पट्टी, दक्षिण-पश्चिम में बांगर क्षेत्र और दक्षिणी हिस्से में अरावली पर्वतमालाओं के अंतिमांश है, जिनका क्षैतिज विस्तार राजस्थान से दिल्ली तक है.
- मेरे बाशिंदे खुद को हरियाणवी कह कर बहुत गर्व करते हैं. खेती इनका मूल धर्म है. इन्हें दूध-दही और चौपाल का हुक्का बहुत पसंद है. देशी बोली, सादा जीवन-सादा विचार, यही तो है इनके जीवन का सूत्र धार.
- मैं देश का ऐसा पहला राज्य हूं, जहां सबसे पहले गांव-गांव तक बिजली पहुंची. आज मुझे भारत का विशाल औद्योगिक हब माना जाता है. मैं कारों, ट्रैक्टरों, मोटरसाइकिलों, साइकिलों, रेफ्रिजरेटरों, वैज्ञानिक उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता हूं.
- आज पूरी दुनिया में मेरे नाम का डंका बज रहा है. हमारी बिटिया ने चांद पर अपना नाम लिखा. हमारे खिलाड़ियों ने दुनियाभर में झंडे गाड़े हैं. अब मैं 54 साल का हो चुका हूं और आज मेरा जन्मदिन है. मैं हरियाणा हूं.
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