देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आपदा जैसे हालात अक्सर बनते हैं. हालांकि, मॉनसून सीजन के दौरान आपदा की स्थिति बद से बदतर हो जाती है. यही वजह है कि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इकोनॉमी और इकोलॉजी को जोड़कर काम किए जाए. ताकि हिमालय का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके. यही कारण है कि देश में हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. ताकि लोगों को हिमालय के प्रति जागरूक किया जा सके.
ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए पर्यावरणविद् पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी ने बताया, साल 2010 में सामाजिक संगठनों ने आपस में बैठक की थी. उस दौरान चर्चा की गई थी कि देश में तमाम तरह के दिवस मनाते हैं. लेकिन हिमालय जिसका इस्तेमाल पूरा देश करता है, उसके लिए भी एक दिन होना चाहिए और उस जिस दिन हिमालय पर चर्चा की जाए. इसके बाद से हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. खास बात ये है कि आज हिमालय दिवस सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में मनाया जा रहा है. यानी हिमालय के उपकार जहां-जहां जा रहे हैं, वहां हिमालय दिवस मनाया जा रहा है.
हिमालय दिवस सप्ताह: अनिल जोशी कहते हैं, हिमालय दिवस मनाने की मुख्य वजह यही थी कि पहले स्तर पर हिमालय की चर्चा हो. हिमालय के हालातों की बात हो, इससे जुड़े सभी पहलुओं पर बातचीत हो, देश दुनिया को ये भी बताना है कि हिमालय दिवस का महत्व अपने लिए नहीं, बल्कि आपके लिए ज्यादा है. हालांकि, इस साल हिमालय दिवस को सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है, जिसकी शुरुआत 2 सितंबर से हो चुकी है. 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाएगा.
नीति आयोग और पीएम को सौंपी जाएगी रिपोर्ट: अनिल जोशी ने कहा कि लंबे समय से पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. लेकिन एक बड़ा सवाल यही है कि क्या पर्यावरण सुरक्षित है? क्या जंगल नहीं खत्म हो रहे? क्या हवा खराब नहीं हुई? पानी खत्म हो गया है. नदियां सूख गई हैं. लेकिन ये मुद्दा नहीं है. हालांकि, पर्यावरण दिवस को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लेकिन इन तमाम कार्यक्रमों का असर शून्य है. लिहाजा, हिमालय दिवस पर ये निर्णय लिया गया है कि तमाम संस्थानों की ओर से जो रिपोर्ट तैयार होगी, उसको नीति आयोग को देने के साथ ही पीएम और सीएम धामी को भी दिया जाएगा.
दशा और दिशा से जुड़ी रखी गई थीम: उन्होंने आगे कहा कि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुरोध किया गया है कि पूरे हिमालय की संवेदनशीलता के बारे में चर्चा करें. हालांकि, नीति आयोग की बैठक के दौरान सीएम धामी ने इस विषय को रखा था. ऐसे में राजनीतिज्ञ और सामाजिक संगठन जो हिमालय को लेकर बात करते हैं, उनको एक साथ जुड़ना होगा. आपदा सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं आ रही, बल्कि आपदा से अब पूरा देश प्रभावित है. क्योंकि जिस तरह से दुनिया का पर्यावरण बदला है ऐसे में कोई भी हिस्सा बचने वाला नहीं है. हालांकि, उत्तराखंड राज्य हिमालय क्षेत्र है. ऐसे में ढांचागत विकास एक बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि हिमालय दिवस 2024 को मनाने के लिए 'हिमालय का विकास दशा और दिशा' थीम रखी गई है. उत्तराखंड राज्य में विकास को मना नहीं किया जा सकता. लेकिन हमें किन चुनौतियों को समझते हुए आगे बढ़ाना है? वो सबसे महत्वपूर्ण है. ऐसे में विकास की शैली क्या होनी चाहिए? उस पर बात करने की जरूरत है.
गांव और पहाड़ के लिए बना था राज्य : उन्होंने कहा कि, उत्तराखंड में विकास तो करना ही होगा. क्योंकि, उत्तराखंड के लोग सिर्फ आपदाओं को झेलने के लिए नहीं बने हैं. बल्कि वो भी विकास का लाभ लेना चाहते हैं. उत्तराखंड राज्य सिर्फ देहरादून, उधमसिंह नगर और हरिद्वार के लिए नहीं था. बल्कि ये गांव और पहाड़ के लिए था. ऐसे में विकास की शैली को लेकर बात होनी चाहिए.
जल संग्रहण की काफी जरूरत: पर्यावरणविद् जोशी ने कहा, प्राकृतिक स्रोतों और नदियों को बचाने के लिए जो क्षेत्र सूखे पड़े हैं, उन क्षेत्रों को जल संग्रहण में तब्दील कर देना चाहिए. क्योंकि जब पानी आएगा तो तमाम वनस्पतियां उगेंगी. जल संग्रहण करने से बाढ़ की स्थिति पर भी थोड़ा लगाम लग सकेगा. जब तक राज्य पूरी तरह से वनाच्छादित नहीं होगा, तब तक अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे. लिहाजा, हिमालय दिवस पर इन्ही सब विषयों पर बातचीत की जाती है. वर्तमान समय में इकोनॉमी और इकोलॉजी पर बहस चल रही है. लेकिन स्थितियां हैं कि दोनों को एक साथ लेकर चलने की जरूरत है.
उच्च हिमालय क्षेत्र में छेड़छाड़ और आवाजाही पर रोक की जरूरी: जोशी ने कहा कि इस बार की प्रचंड गर्मी को सिर्फ भारत देश ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने देखा. यानी ये ग्लोबल वार्मिंग है. लिहाजा, किसी क्षेत्र विशेष के लिए यह संभव नहीं है कि इसको सुधार सके. ग्लोबल वार्मिंग अपने जगह पर है, जिसके चलते ग्लेशियर पर असर पड़ना लाजिमी है. लेकिन अगर क्षेत्रीय टेंपरेचर को कम करने में कामयाब हो जाते हैं तो क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम कर सकते हैं. उच्च हिमालय क्षेत्र में किसी भी तरह का छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. साथ भी आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगाना पड़ेगा.
हिमालय सिर्फ घूमने और दर्शन की जगह नहीं: उन्होंने कहा कि, जितनी भी योजनाएं हैं, उसमें इकोलॉजी जुड़ा होना चाहिए. सड़क, ढांचागत विकास समेत अन्य विकास कार्य कैसे हो इस पर विचार होना चाहिए. हिमालय दिवस पर अनिल जोशी ने प्रदेशवासियों को संदेश देते हुए कहा कि हिमालय के लोग हिमालय संरक्षण के लिए किसी न किसी रूप में अपना योगदान करते हैं, लेकिन जो लोग हिमालय से आते हैं उनसे अनुरोध है कि हिमालय को एकमात्र घूमने और दर्शन करने की जगह ना मानें. बल्कि ये भी कोशिश करें कि आप हिमालय के संरक्षण और संवर्धन के लिए किस तरह से अपना योगदान दे सकते हैं.
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