कोटा/जूनागढ़: राजस्थान के हाड़ौती संभाग में लहसुन का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है. नवंबर 2023 से लहसुन उत्पादक किसानों को दाम भी अच्छे मिल रहे हैं. वर्तमान में लहसुन की आवक मंडी में कम हो गई है, लेकिन दाम लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. इन सबके बीच अब चोरी छुपे चीनी लहसुन में दस्तक दी है, जिसका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं और व्यापारियों को भी इसका नुकसान हो रहा है.
राजस्थान और गुजरात में चीनी लहसुन का विरोध बढ़ता जा रहा है. भामाशाह कृषि उपज मंडी कोटा की ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी का कहना है कि अच्छे दाम मिलने की उम्मीद में किसानों ने बड़ी मात्रा में अपना माल रोक रखा है. इसी तरह से चीनी लहसुन राज्य और देश में आता रहा तो किसानों के लहसुन के दाम नीचे गिर जाएंगे. सरकार ने चीनी लहसुन पर बैन लगाया है, लेकिन नेपाल, भूटान और बर्मा के म्यांमार से तस्करी के जरिए भारतीय बाजारों में ये लहसुन पहुंच रहा है. यह माल राजस्थान के हाड़ौती सहित मध्य प्रदेश और गुजरात के किसानों को भी नुकसान पहुंचा रहा है.
राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का कहना है कि चीनी लहसुन की आवक देश में अगर कहीं हो रही है, तो उसे रोकने का प्रयास किया जाएगा. व्यापारी और किसानों को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. कृषि विपणन विभाग के संयुक्त निदेशक शशि शेखर शर्मा का कहना है चाइनीज लहसुन चोरी छुपे आ रहा है. इसके चलते किसानों को दाम कम मिल रहे हैं. कोटा और हाड़ौती की मंडियों में यह लहसुन नहीं आ रहा है. यह राजस्थान के बाहर दूसरी मंडियों में पहुंच रहा है, लेकिन उसका असर यहां भी देखने को मिल रहा है.
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500 से 3000 तक गिरे दाम : अविनाश राठी का कहना है कि चीन का लहसुन आने से साउथ और अन्य कई इलाकों के लोगों ने हाड़ौती से लहसुन की डिमांड कम कर दी है. वे सस्ता लहसुन होने के चक्कर में चोरी छुपे आ रहा चीनी माल खरीद रहे हैं. इसके चलते कोटा समेत हाड़ौती की मंडियों में लहसुन के प्रति क्विंटल दाम 500 से 3000 रुपए तक गिर गए हैं. इसका असर अब आने वाले दिनों में कोटा संभाग में भी नजर आएगा. इसी तरह से अगर चीनी लहसुन की आवक लगातार जारी रही तो किसानों को नुकसान ज्यादा होगा. साल 2022-23 में करीब 11 लाख क्विंटल लहसुन मंडी में पहंचा था. वहीं, साल 2023-24 में अब तक 7.25 लाख क्विंटल लहसुन मंडी में पहुंचा है. मंडी में औसत दाम वर्तमान में 22 हजार रुपए प्रति क्विंटल चल रहे हैं, जबकि अधिकतम दाम 28 से 30 हजार प्रति क्विंटल है. वहीं, न्यूनतम दाम भी 15 से 18 हजार रुपए प्रति क्विंटल है.
गुजरात में भी सुर्खियों में चीनी लहसुन: 2 दिन पहले गुजरात के उपलेटा के एक किसान ने गोंडल मार्केटिंग यार्ड में लहसुन की नीलामी में चीनी लहसुन रखकर एपीएमसी में हलचल मचा दी. चूंकि भारत सरकार ने चीनी लहसुन पर प्रतिबंध लगा रखा है, इसके बाद भारत की अधिकांश कृषि उपज मंडी समितियों में चीनी लहसुन की नीलामी तत्काल बंद कर दी गई है. सौराष्ट्र में किसान चीनी लहसुन का विरोध कर रहे हैं. सौराष्ट्र के राजको, गोंडल और जामनगर के हापा विपणन यार्डों ने लहसुन की नीलामी बंद कर दी है.
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अच्छे दाम की अपेक्षा में किसानों ने रोक रखा था माल : भारतीय किसान संघ के कोटा जिला महामंत्री रूप नारायण यादव का कहना है कि साल 2022 में किसानों लहसुन के अच्छे दाम नहीं मिले थे. ऐसे में उत्पादन भी किसानों ने कम कर दिया था, लेकिन साल 2023 में दाम एकाएक बढ़ने लगे और लहसुन के दामों ने आसमान छू लिया. साल 2023 के अंत में लहसुन मंडियों में ना के बराबर आ रहा था, लेकिन डिमांड ज्यादा होने से दाम काफी ज्यादा बढ़ गए. लहसुन का उत्पादन पहले ही कम हुआ था, लेकिन दाम बढ़ने से किसानों को अच्छा मुनाफा मिला. इस कारण साल 2024 में शुरू से ही दाम अच्छे बने हुए थे. इसी को देखते हुए किसानों ने पहले ही सोच लिया था कि सितंबर 2024 से जनवरी 2025 में अच्छा दाम उन्हें मिलेगा और बड़ी मात्रा में माल रोक कर रखा हुआ है. अब किसानों को चीनी लहसुन की वजह से नुकसान हो सकता है.
कोटा से बड़े व्यापारियों और प्रोसेसिंग यूनिट्स को भेजा जाता है : साल 2021 में 1,15,000 हेक्टेयर में कोटा में लहसुन का उत्पादन किया गया था. वहीं, वर्ष 2022 में दाम ठीक नहीं मिले, इसलिए किसानों ने रकबा कम करते हुए 51,448 हेक्टेयर ही लहसुन का उत्पादन किया था. इसके बाद वर्ष 2023 में दाम बढ़ने के चलते 89 हजार हेक्टेयर के आसपास बुवाई हुई थी. कोटा संभाग में कोटा भामाशाह कृषि उपज मंडी सब्जी मंडी, बारां कृषि उपज मंडी और छीपाबड़ौद की लहसुन की विशिष्ट मंडी में बड़ी संख्या में लहसुन आता है. व्यापारी यहां से लहसुन की ट्रेडिंग करते हैं और उसके बाद बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट्स को भी यहां से माल भेजा जाता है. इसके अलावा विदेश में भी एक्सपोर्ट यहां से किया जाता है.
व्यापारियों को थी उम्मीद 2 से 5 हजार प्रति क्विंटल बढ़ेंगे : भामाशाह कृषि उपज मंडी में लहसुन की ट्रेडिंग से जुड़े व्यापारी ओमप्रकाश जैन का कहना है कि बड़ी मंडियां कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और नेपाल बॉर्डर के नजदीक स्थित गोरखपुर, भुवनेश्वर सहित अन्य जगहों पर बड़ी मात्रा में माल वहां से आ रहा है. इसके चलते कोटा संभाग की मंडियों में दाम टूटे हैं, जबकि यहां पर हम लोग उम्मीद लगा कर बैठे थे कि अभी 2 से 5 हजार प्रति क्विंटल दाम और बढ़ सकते हैं.
ओमप्रकाश जैन का कहना है कि भारत में करीब 75 हजार क्विंटल यानी 1.5 लाख कट्टे लहसुन की रोज डिमांड है. लहसुन रबी की फसल है. ऐसे में फसल को अक्टूबर के बाद बोया जाता है. इससे मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर जून तक उत्पादन होता है. लहसुन को ज्यादा समय तक स्टोरेज भी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसकी नमी खत्म हो जाती है. ऐसे में जून से अगस्त तक मंडियों में लहसुन की आवक पर्याप्त रहती है, लेकिन सितंबर से मार्च तक आवक कम हो जाती है, जबकि डिमांड रोज होती है. इसलिए इसके दाम इन महीनों में बढ़ जाते हैं, जबकि चीनी लहसुन आने से यह दाम बढ़ने की बजाय कम हो रहे हैं.
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यह है चीनी लहसुन का गणित : वैश्विक स्तर पर चीन और भारत दुनिया में लहसुन के सबसे बड़े उत्पादक हैं. चीन 73.8% लहसुन का उत्पादन करता है, जबकि भारत 10.4% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर है. आंकलन के अनुसार देश में चीनी लहसुन का स्टॉक 1,000-1,200 टन है.
चीनी लहसुन की तस्करी कैसे होती है : भामाशाह कृषि उपज मंडी कोटा की ग्रेन एंड सीड्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अविनाश राठी का कहना है कि नेपाल, भूटान और बर्मा के म्यांमार से तस्करी के जरिए भारतीय बाजारों में चाइनीज लहसुन पहुंच रहा है. वहीं, एक सीमा शुल्क अधिकारी के अनुसार चीनी लहसुन अफगानिस्तान के रास्ते गुजरात और भारत के अन्य केंद्रों में अपना रास्ता बना रहा है. विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर में, जहां लहसुन नेपाल के रास्ते अवैध रूप से भारत लाया जाता है.
भारत ने चीनी लहसुन के आयात पर प्रतिबंध क्यों लगाया ? : चीन से आयातित लहसुन की खेप में एम्बेलिसिया एली (लहसुन का सूखा सड़ांध) और यूरोसिस्टिस सेपुले (प्याज स्मट) के बार-बार पाए जाने के कारण 2005 से चीन से लहसुन का आयात प्रतिबंधित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्बेलिसिया एलीन (Embellisia alliin) और यूरोसिस्टिस सेपुल (Urocystis cepulae) लहसुन को प्रभावित करने वाले विदेशी रोगाणु हैं और देश की बायोडायवर्सिटी की रक्षा के लिए चीन से लहसुन के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया था.
दिसंबर 2023 में कीमतों में तेज उछाल : नवंबर 2023 से कीमत लगभग दोगुनी होकर 450-500 रुपए किलो हो गई थी. दिसंबर 2023 में लहसुन की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया और यह 300-400 रुपए प्रति किलो हो गई. कई इलाकों में थोक बाजार में लहसुन 150-250 रुपए प्रति किलो और खुदरा बाजार में 300 से 400 रुपए प्रति किलो के बीच बिक रहा है. कृषि विपणन विभाग के संयुक्त निदेशक शशि शेखर शर्मा ने बताया कि अप्रैल से जून 2023 के बीच लहसुन की कीमत 5100 रुपए प्रति क्विंटल थी, जबकि 2024 में इसी अवधि में कीमत 10,800 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है. 2024 में जून और अगस्त के महीने में लहसुन की कीमतों में तेज उछाल देखने को मिला.
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लहसुन की कीमतों में तेज वृद्धि के प्रमुख कारण : भारत में प्रमुख लहसुन उत्पादक राज्यों में घटते भूजल के कारण लहसुन की कीमतों में तेज वृद्धि हो रही है. इसके अलावा खराब मानसून और बारिश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है, जिससे लहसुन के उत्पादन में गिरावट आई है. पिछले कुछ महीनों में कीमतों में उछाल के पीछे फसल का नुकसान और बुवाई में देरी को प्राथमिक कारण माना जा रहा है. देश के सबसे बड़े लहसुन उत्पादकों में से एक मध्य प्रदेश ने 2023 में लहसुन की बुवाई स्थगित कर दी. इस वजह से भी लहसुन के उत्पादन पर ब्रेक लग गया. भारत में पिछले कुछ वर्षों में लहसुन का उत्पादन घट रहा है. आधिकारिक अनुमान के अनुसार, 2022-23 में उत्पादन 2.2 मिलियन टन रहा, जबकि 2021-22 में 3.5 मिलियन टन था. 2020-21 में लहसुन का उत्पादन 3.3 मिलियन टन रहा.
चीनी लहसुन में पाए जाते हैं हानिकारक तत्व : बीएपीएस संस्था, जूनागढ़ (गुजरात) के केमिस्ट्री प्रोफेसर विभाकर जाणी का कहना है कि चीनी लहसुन में हानिकारक तत्व पाए जाते हैं. चीनी लहसुन को सफेद रंग देने के लिए उसे क्लोरीनयुक्त किया जाता है, ताकि यह बिल्कुल सफेद हो और पहली नजर में हर किसी को पसंद आ जाए. इसके अलावा चीनी लहसुन में जिंक और आर्सेनिक जैसी हानिकारक धातुएं भी होती हैं, जिसे विज्ञान की भाषा में कार्सिनोजेन कहा जाता है. कई शोधों से यह भी पता चला है कि यह कार्सिनोजेन ही कैंसर का कारण है. बच्चों में क्लोरीन और आर्सेनिक युक्त चीनी लहसुन खाने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. यह कैंसर का कारण भी बनता है.
भारतीय लहसुन स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम : प्रोफेसर विभाकर जाणी ने बताया कि भारत में पैदा होने वाला देसी लहसुन स्वाद और सुगंध के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. भारतीय लहसुन में एलिसिन नामक रसायन होता है, जिसे सल्फर के नाम से भी जाना जाता है. इसी वजह से लहसुन में तेज गंध आती है. एलिसिन एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल के रूप में भी काम करता है. चिकित्सकीय दृष्टि से लहसुन एक एंटीबायोटिक के रूप में काम करता है. एलिसिन पदार्थ रक्त कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है, जिसके कारण भारतीय लहसुन में मौजूद एलिसिन तत्व के कारण हृदय संबंधी बीमारियों को दूर रखने में काफी मदद मिलती है.
कच्चे लहसुन का उपयोग करें : भारतीय लहसुन में पाया जाने वाला एलिसिन नामक रसायन हृदय संबंधी बीमारियों को रोकने में मदद करता है, लेकिन अगर आप इस एलिसिन तत्व का 100 प्रतिशत उपयोग करना चाहते हैं तो आपको लहसुन को कच्चा खाना शुरू कर देना चाहिए. आम तौर पर, हम खाना पकाने में लहसुन को भूनते हैं या पकाते हैं, ऐसे में लहसुन में मौजूद एलिसिन टूट जाता है, जिससे यह पर्याप्त रूप से जीवाणुरोधी या कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला नहीं होता है.
चीनी लहसुन को पहचानना है आसान : प्रोफेसर विभाकर जाणी के अनुसार भारत और चीन में पैदा होने वाले लहसुन को पहचानना काफी आसान है. चीनी लहसुन दिखने में शुद्ध सफेद होता है. उसकी तुलना में भारतीय लहसुन पीले सफेद रंग का होता है. चीनी लहसुन में बहुत कम लहसुन की कलियां होती हैं, लेकिन इसका आकार बहुत बड़ा है. दूसरी ओर, भारतीय स्थानीय लहसुन में कई कलियां होती हैं, जिसका आकार चीनी लहसुन से कई गुना छोटा होता है. भारतीय लहसुन की जड़ वाला भाग काला पड़ता हुआ देखा जा सकता है, जबकि चीन से निर्मित लहसुन पूरी तरह से सफेद पाया जाता है. लहसुन की कली में फूल आते ही सबसे बड़ा गैप नजर आता है. चाइनीज लहसुन की कली छीलने के बाद एकदम सफेद रंग की निकलती है, लेकिन भारतीय लहसुन में अंकुर निकलने के बाद इसका रंग पीला दिखाई देता है. इस प्रकार भारत और चीन के लहसुन को दृष्टिगत रूप से पहचाना जा सकता है. अगर लोग खरीदते समय कुछ सावधानियां बरतें तो चाइनीज लहसुन खरीदने से बच सकते हैं.
अमेरिका में भी विरोध : अमेरिकी सीनेटर रिक स्कॉट ने हाल ही में चीन में उगाए जाने वाले लहसुन की खाद्य सुरक्षा की जांच करने के लिए कहा. इसके बाद सीनेटर स्कॉट ने कहा कि रिपोर्ट बताती है कि चीनी लहसुन की खेती कच्चे सीवेज का उपयोग करके की जाती है, जिसमें संभवतः मानव अपशिष्ट होता है, जिसे बाद ब्लीच करके हटा दिया जाता है. उन्होंने तर्क दिया कि जब तक चीनी लहसुन की सुरक्षा और गुणवत्ता की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक इसे मानव उपयोग के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.