देहरादून: पितृ पक्ष शुरू हो चुके हैं. माना जाता है कि इन 15-16 दिनों तक पूर्वज धरती पर आते हैं. इस दौरान पितरों का पिंडदान या तर्पण किया जाता है. कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितरों का तर्पण करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके लिए खास जगह भी बताए गए हैं. जहां पिंडदान या तर्पण करने से उन्हें न केवल मुक्ति मिलती है. बल्कि, वे प्रसन्न भी होते हैं. ऐसे ही कुछ जगह उत्तराखंड में हैं. जहां देश के विभिन्न हिस्सों से लोग अपने पितरों को तर्पण करने के लिए पहुंचते हैं.
पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए किए जाते हैं ये काम: श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है. ऐसे कई पुराण हैं, जिनमें पितरों की महिमा और महत्व को बताया गया है. मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, वायु पुराण, विष्णु पुराण के साथ ही रामायण और अन्य ग्रंथों में भी श्राद्ध पक्ष की महिमा और पितरों के महत्व के बारे में बताया गया है.
कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष के 15-16 दिनों में पितरों को खुश करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है. उत्तराखंड में गंगा जैसी पवित्र नदी बहती है. इस वजह से यहां हर पूजा पद्धति, कर्मकांड, पिंडदान आदि का महत्व बढ़ जाता है. क्योंकि, बिना गंगा जल के सभी काम अधूरे माने जाते हैं. गंगा तट पर ही तमाम कर्मकांड किए जाते हैं. ऐसे में आज आपको उत्तराखंड के उन स्थानों के बारे में बताते हैं, जहां श्राद्ध से जुड़े काम कर सकते हैं.
हरिद्वार का नारायणी शीला में भगवान विष्णु का वास: श्राद्ध के दिनों में सबसे ज्यादा महत्व हरिद्वार का माना गया है. हरिद्वार के नारायणी शिला को भगवान विष्णु का स्थान माना जाता है. जहां देश और दुनिया से लोग साल के 365 दिन अपने पितरों के लिए प्रार्थना और कर्मकांड करते हैं. हरिद्वार के केंद्र बिंदु में स्थित भगवान विष्णु का यह स्थान पौराणिक है. माना जाता है यहां पर श्राद्ध या तर्पण आदि करने से 100 मातृ वंश और 100 पितृ वंश का उद्धार हो जाता है.
पुराणों में इस स्थान का विशेष महत्व बताया गया है. जिस तरह से बिहार के गया जी में भगवान विष्णु का स्थान होने के साथ ही उसे स्थान को श्राद्ध-तर्पण करने के लिए विशेष माना गया है. इस तरह हरिद्वार के नारायणी शिला को भी इन सभी कार्यों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है.
कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु का कंठ मौजूद है. यहां पर आकर लोग न केवल अपने पितरों के लिए जल तर्पण करते हैं. बल्कि, यहां मौजूद तीर्थ पुरोहित उनके लिए विशेष पूजा अनुष्ठान भी करवाते हैं. इस स्थान पर पूर्वजों को जगह देने के लिए छोटे-छोटे स्थान बनाए गए हैं. जहां कहा जाता है कि आज भी देश और दुनिया से लोग अपने पितरों से मिलने आते हैं.
हरिद्वार का कुशावर्त घाट है भगवान दत्तात्रेय की समाधि स्थल: नारायणी शिला पर पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के बाद इसके पास ही कुशा या कुशावर्त घाट मौजूद है. जिसकी मान्यता भी पुराणों में बताई गई है. कुशावर्त घाट को भगवान दत्तात्रेय की समाधि स्थल कहा जाता है. इस स्थान पर मान्यता है कि पांडवों और राम ने भी अपने पितरों का पिंडदान व तर्पण आदि किया था.
खास बात ये है कि तर्पण आदि करने के बाद यहां पर गंगा स्नान का भी बड़ा महत्व माना जाता है. हरिद्वार शहर के बीचों बीच स्थित यह घाट बिल्कुल हरकी पैड़ी के नजदीक है. यहां पर भी आपको तीर्थ पुरोहित और पांडे समाज के लोग श्राद्ध, तर्पण इत्यादि करते हुए मिल जाएंगे.
बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने से पितरों को मिलता है मोक्ष: उत्तराखंड में भले ही बारिश और भूस्खलन जैसी घटनाएं हो रही हों, लेकिन अपने पितरों के लिए कठिन रास्तों से होकर आज भी कई लोग चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम पहुंच रहे हैं. बदरीनाथ केवल भगवान विष्णु का स्थान ही नहीं बल्कि, मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है.
यही वजह से हर साल श्राद्ध पक्ष के मौके पर सैकड़ों श्रद्धालु अपने पूर्वजों के श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए बदरीनाथ आते हैं. बदरीनाथ में यह स्थान भगवान बदरी विशाल के मंदिर के पास ब्रह्मकपाल तीर्थ है. जहां ये सभी काम संपन्न कराए जाते हैं. कहा जाता है कि अगर कोई ब्रह्मकपाल तीर्थ पर अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध या तर्पण आदि करवाता हैं तो पूर्वजों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इसके अलावा कहा जाता है कि ब्रह्मकपाल में विधि पूर्वक पिंडदान या तर्पण करने से पितरों को नरक लोक से भी मोक्ष मिल जाता है. वैसे तो इस स्थान पर साल के 365 दिन श्राद्ध या तर्पण आदि किए जाते हैं, लेकिन इन 15-16 दिनों में इस स्थान का बड़ा महत्व बताया गया है. स्कंद पुराण में हरिद्वार, प्रयागराज, काशी, गया, पुष्कर जैसे स्थान तो पितृ तर्पण आदि के लिए अहम स्थान रखते हैं, लेकिन हिमालय में स्थित मोक्ष का द्वार कहे जाने वाले बदरीनाथ के बह्मकपाल को विशेष स्थान दिया गया है.
अगर आप भी बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में पिंडदान या तर्पण करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले हरिद्वार-ऋषिकेश या देहरादून आना होगा. इसके बाद आप ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे से होकर बदरीनाथ धाम पहुंच सकते हैं. हालांकि, देहरादून से गोचर तक हेली सुविधा भी मिल जाएगी, उसके बाद सड़क मार्ग से जाना होगा. जहां ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान और तर्पण आदि कर सकते हैं.
देवप्रयाग में बनती है गंगा, दशरथ के लिए श्रीराम ने किया था श्राद्ध: उत्तराखंड में बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल के बाद एक और स्थान ऐसा है, जिसका महत्व श्राद्ध पक्ष में काफी बढ़ जाता है. यह स्थान उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित भागीरथी और अलकनंदा का संगम स्थल देवप्रयाग है. इस स्थान पर न केवल भारत बल्कि, अन्य देशों के लोग भी अपने पूर्वजों को याद करने के लिए आते हैं.
खासकर पड़ोसी देश नेपाल से सबसे ज्यादा लोग यहां पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण आदि करने के लिए पहुंचते हैं. यह स्थान ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर ही स्थित है. जहां भागीरथी और अलकनंदा आपस में मिलकर गंगा बनाती है. इस जगह पर दोनों नदियों का संगम हर किसी का मन मोह लेता है.
दोनों ही नदियों की धाराओं का रंग अलग-अलग नजर आता है. यहीं से गंगा बनती है. जो उत्तराखंड से लेकर बंगाल की खाड़ी तक लोगों के लिए जीवनदायिनी बनती है. माना जाता है कि इस स्थान पर भी पांडवों ने अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण आदि किया था.
आनंद रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने देवप्रयाग में भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. यहां पर भगवान राम का एक छोटा सा मंदिर भी स्थित है. भले ही यह धार्मिक स्थल छोटा हो, लेकिन इसकी मान्यता और महत्व बड़ा है. ऋषिकेश से करीब 4 घंटे का सफर कर आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है. आप एक दिन में ही यहां पहुंचकर कर्मकांड, पूजा पाठ आदि करवाकर वापस अपने घर भी लौट सकते हैं.
चारों स्थान का है विशेष महत्व, बही में मिल जाएगी आपके पूर्वजों की जानकारी: धर्म के जानकर और तीर्थ पुरोहित डॉ. प्रतीक मिश्रपुरी कहते हैं वैसे तो उत्तराखंड का हर एक कोना पूजनीय है, लेकिन कहा जाता है कि भगवान की पूजा से पहले भी इंसान अपने पूर्वजों को अपने पितरों को याद करता है. यह 15 दिन बेहद पवित्र होते हैं. इन दौरान हमारे पूर्वज आशीर्वाद देने के लिए धरती पर विराजते हैं.
प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि पितरों को प्रसन्न करने के लिए उत्तराखंड में हरिद्वार के नारायणी शिला, बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ, देवप्रयाग के गंगा तट और हरिद्वार के कुशावर्त घाट ये चारों स्थान ऐसे हैं, जहां का वर्णन कई पुराणों में मिल जाता है. इन 15 दिनों में उत्तराखंड आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है. ये श्रद्धालु वही होते हैं, जो बेहद शांत मन से अपने पूर्वजों को याद करने के लिए यहां पर आते हैं.
खास बात ये है कि इन दिनों में इन तीर्थ स्थान पर पहुंचकर लोग अपने परिवार के बारे में भी जानना चाहते हैं. यहां के तीर्थ पुरोहितों के पास रखी सैकड़ों साल पुरानी बही बता देती है कि जो लोग आज इन स्थानों पर श्राद्ध तर्पण आदि करने के लिए आए हैं. आज से 50 साल या 100 साल पहले उनके परिवार से कौन लोग यहां पर आए थे. उनके हस्ताक्षर उनके नाम और पूर्वजों की मृत्यु कैसे हुई? इन सभी का वर्णन तीर्थ पुरोहितों की एक विशेष किताब में लिखा होता है. इसको जानने के लिए लोग अपने तीर्थ पुरोहितों के पास आते हैं.
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