मथुराः श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण संगठन अध्यक्ष भृगुवंशी आशुतोष पांडेय को एक बार फिर पाकिस्तान से जान से मारने की धमकी मिली है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पक्षकार आशुतोष पांडेय को मथुरा से इलाहाबाद हाईकोर्ट जाते समय मंगलवार देर रात फोन पर धमकी दी गई. आषुतोष पांडेय श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह प्रकरण की सुनवाई को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में है. जिसको लेकर आशुतोष पांडेय मंगलवार की देर रात मथुरा से इलाहाबाद जा रहे थे, तभी उन्हें व्हाट्एसप काल आई, जिसमें एक व्यक्ति खुद को पाकिस्तानी बताते हुए जान से मारने की धमकी दी. इसके अलावा अभद्र भाषा का प्रयोग किया. इसकी जानकारी तुरंत आशुतोष पांडे ने जिला प्रशासन को दी. इसके साथ ही पुलिस को प्रार्थना पत्र दिया. जिस पर पुलिस कार्रवाई कर रही है.
बता दें कि हिंदूवादी नेता आशुतोष पांडेय को पाकिस्तान से पिछले 3 महीने में तीसरी बार धमकी भरा कॉल आया है. फोन कॉल में आशुतोष पांडे को विवादित स्थान शाही ईदगाह मस्जिद परिसर में बम से उड़ने की धमकी दी गई है. जिला प्रशासन द्वारा पीड़ित के प्रार्थना पत्र के बाद जैंत कोतवाली में दो मुकदमे अज्ञात के खिलाफ दर्ज किए गए हैं. एसपी सिटी अरविंद कुमार ने बताया कि प्रार्थना पत्र पर आशुतोष पांडेय द्वारा दिया गया था, जिस पर आईएसडी कॉल द्वारा धमकी दी जाने की बात कही जा रही है. जैंत कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है. मामले की जांच कर कार्रवाई की जाएगी.
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की पोषणीयता को सुनवाई चल रही है. इस मामले में 13 मार्च को सुनवाई होगी. आज सुनवाई में सबसे पहले मुस्लिम पक्ष अपनी बची हुई दलीलों को पूरा करेगा. इसके बाद हिंदू पक्ष को अपनी बहस पेश करने का मौका दिया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है कि हिंदू पक्ष भी दो से तीन दिनों की सुनवाई में अपनी दलीलें खत्म करेगा. सभी पक्षों की बहस खत्म होने के बाद ही पोषणीयता को लेकर अदालत अपना फैसला सुनाएगी. मथुरा के मंदिर में मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल किए गए डेढ़ दर्जन मुकदमों की सुनवाई अयोध्या विवाद की तर्ज पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीधे तौर पर हो रही है.
मुस्लिम पक्ष ने रखीं चार दलीलें
मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि मथुरा मामले को लेकर दाखिल किए गए मुकदमे 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से बाधित हैं. इसकी वजह से मुकदमों की सुनवाई नहीं हो सकती. दूसरी दलील लिमिटेशन एक्ट को लेकर दी गई. कोर्ट में कहा गया कि मंदिर पक्ष और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 1968 में समझौता हो चुका है. समझौते के तहत ही शाही ईदगाह मस्जिद को 13.37 एकड़ जमीन मिली हुई है. इस समझौते की डिक्री भी 1973 में मथुरा की अदालत में हो चुकी है. नियम के मुताबिक समझौते और डिक्री को 3 साल के अंदर ही चुनौती दी जा सकते थी. अब 50 साल बाद मुकदमा दाखिल करने की कोई कानूनी वैधानिकता नहीं है. इसके अलावा यह भी कहा गया कि शाही ईदगाह मस्जिद वक्फ प्रॉपर्टी है. वक्फ प्रॉपर्टी होने की वजह से यह मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में ही चल सकता है. चौथी दलील यह दी गई कि हिंदू पक्ष के पास इस मामले में कब्जा नहीं है, इसलिए यह मामले इस स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट से भी बाधित हैं. मुस्लिम पक्ष ने मुख्य रूप से इन्हीं चार दलीलों के आधार पर अपनी बातों को रखा है.
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