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वक्त-वक्त की बात है! मधेपुरा में लालू यादव का MY भी हो गया था फेल, राबड़ी देवी के CM रहते शरद यादव ने चटायी थी धूल - Madhepura Lok Sabha Seat History - MADHEPURA LOK SABHA SEAT HISTORY

Madhepura Lok Sabha Seat History: लालू यादव अपने MY समीकरण पर चुनाव लड़ते आए हैं लेकिन काफी लंबे समय तक सरकार में रहने के बावजूद उनका यह फैक्टर कमजोर होता गया. 1999 लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने लालू यादव को यादवों के गढ़ में MY समीकरण को धवस्त करते हुए हार का स्वाद चखाया था. पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 30, 2024, 7:10 PM IST

मधेपुरा लोकसभा सीट समीकरण

पटनाः बिहार के 40 लोकसभा सीट में मधेपुरा लोकसभा एक ऐसी सीट है जो यादवों का गढ़ माना जाता है. बावजूद यहां से 1999 में शरद यादव ने लालू यादव को कड़ी शिकस्त दी थी. राबड़ी देवी के बिहार का सीएम रहते हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव को हार का मुंह देखना पड़ा था. इसके बाद से मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में लालू यादव का MY समीकरण धवस्त होता चला गया.

बीपी मंडल से शरद यादप तक का कब्जाः एक कहावत है 'रोम पॉप का तो मधेपुरा गोप का', यह लंबे समय से चली आ रही है. चुनाव के समय इसकी खूब चर्चा भी होती है. बीपी मंडल से लेकर लालू यादव, शरद यादव और पप्पू यादव तक इस कहावत की चर्चा मधेपुरा में होती रही है. यहां यादव और मुस्लिम वोट के कारण लालू यादव और उनकी पार्टी के नेता जीतते रहे हैं लेकिन 1999 में सबकुछ बदला बदला नजर आया था.

एक-दूसरे को हराए लालू-शरदः 1999 में लालू यादव की लोकप्रियता चरम पर होने के बावजूद जनता ने रिजेक्ट कर दिया था. मध्य प्रदेश से आने वाले शरद यादव को जीत का ताज पहना दिया था. बता दें कि मधेपुरा में 2 साल में दो चुनाव हुए थे. 1998 में शरद यादव लालू प्रसाद से हार गए थे लेकिन 1999 में फिर चुनाव हुआ तो लालू यादव शरद यादव से हार गए.

'खत्म होने लगा था लालू यादव का जलवा': वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन भारती ने बताया कि मधेपुरा की 1999 की लड़ाई शरद यादव और लालू यादव के बीच चर्चा में थी. पूरे देश की नजर मधेपुरा लोकसभा सीट पर थी. उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि 15 दिनों तक मधेपुरा में चुनाव प्रचार के कवरेज के लिए कैंप किए थे. उन्होंने बताया कि उस समय परिवर्तन का दौर चल रहा था. लालू यादव का जलवा खत्म हो रहा था.

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कई कारण से हारे थे लालू यादवः प्रिय रंजन भारती ने बताया कि बदलाव के कई कारण थे. इसमें भारत के तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन भी थे. जिनके नेतृत्व में काफी सख्ती बढ़ने लगी थी. मधेपुरा में 4 लाख यादवों का बड़ा हिस्सा शरद यादव के साथ था. सबसे बड़ी बात थी कि राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने से नाराज राजेश रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव भी शरद यादव के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. यही कारण रहा था कि लालू यादव को शरद यादव से हार का सामना करना पड़ा था.

"उस समय चुनाव सुधार का दौर था. टीएन शेषन (पूर्व चुनाव आयुक्त) सुधार के लिए अपना हंटर चला रहे थे. दूसरा कारण पूरा का पूरा जातीय समीकरण शरद यादव के पक्ष में था. राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री होने के बावजूद MY समीकरण काम नहीं किया था. शरद यादव के पक्ष में रंजन यादव (पप्पू यादव) काम कर रहे थे. लालू यादव से नाराजगी के कारण ऐसा हुआ था." - प्रिय रंजन भारती, वरिष्ठ

पढ़े लिखे लोग होने के कारण रिजल्ट अलग आयाः राजनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर सुनील कुमार का कहना है कि मधेपुरा यादव बहुल है. वहां के यादव बिहार के अन्य हिस्सों के यादवों से ज्यादा शिक्षित और संभ्रांत हैं. कहा कि लालू यादव भले ही यादवों के बड़े नेता हो गए थे लेकिन मधेपुरा में यादव अपने ढंग से फैसला लेते रहे हैं. वहां के यादव प्रोफेसर और आईएएस जैसे ऊंचे पदों पर थे. यही कारण है कि लालू यादव अपने MY समीकरण से कामयाब नहीं हो पाए और यादवों ने उन्हें हार का स्वाद चखाया.

नीतीश फैक्टर का भी रहा था असरः डॉक्टर सुनील कुमार ये भी कहते हैं कि उस समय नीतीश फैक्टर भी शुरू हो गया था. 1999 में नीतीश फैक्टर और यूं कहें की एंटी लालू फैक्टर ने काम करना शुरू कर दिया था. लवली आनंद ने वैशाली में किशोरी सिन्हा को हराया था. मधेपुरा में शरद यादव ने लालू यादव को हराने का काम किया था.

"मधेपुरा यादव बहुल क्षेत्र है लेकिन यहां के यादव काफी पढ़ें लिखे हैं. यहां के लोग लोकतंत्र और चुनाव में काफी रूची रखते हैं. यहां के लोग प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर और आईएएस हैं. जिस समय की बात कर रहे हैं उस समय वहां के लोग उस तरह की राजनीति नहीं करते थे. इसी समय से एंटी लालू और नीतीश फैक्टर काम करना शुरू हुआ. शरद यादव ने लालू यादव को हराने का काम किया." -डॉ सुनील कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

राजद ने इस हार को नकाराः मधेपुरा में MY समीकरण धवस्त होने को राजद नेता नहीं मानते हैं. राजद के प्रवक्ता ने साफ-साफ कहना है कि वहां की जनता ने लालू यादव को रिजेक्ट नहीं किया था. कहा कि लालू यादव को एक बार वहां हार मिली लेकिन हमेशा उनकी पार्टी के नेता को जीत मिलती रही है. राजद का यह भी दावा है कि इसबार उनकी जीत होगी.

"मधेपुरा और उसके इर्द-गिर्द समाजवादियों की धरती है. वहां के लोग समाजवादी विचारों के साथ हमेशा लालू यादव के साथ खड़े रहे हैं. एक बार लालू यादव नहीं जीत पाए हैं लेकिन बांकी बार लालू यादव ही जीते या लालू जी की पार्टी जीती है." -एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता

नीतीश के आने के बाद बार बार RJD को मिली हारः शरद यादव का पिछले साल 2023 में निधन हो चुका है. लालू यादव चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. मधेपुरा की स्थिति ऐसी है कि 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता संभालने के बाद हमेशा RJD को मुंह की खानी पड़ी है. जदयू जब एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा तो उस समय भी पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव जीत पाए थे.

इसबार जदयू और राजद में मुकाबलाः इस बार जदयू के तरफ से दिनेश चंद्र यादव चुनावी मैदान में है. जदयू के टिकट पर 2019 में चुनाव जीते थे. जदयू के सामने 1989 में सांसद रहे रामेंद्र कुमार यादव रवि के बेटे प्रोफेसर चंद्रदीप यादव राजद से चुनाव लड़ रहे हैं. तीसरे चरण में 7 मई को वोटिंग होनी है. 4 जून को रिजल्ट आएगा. इस बार देखना है कि मधेपुरा के यादव किसके पक्ष में फैसला लेते हैं?

मधेपुरा लोकसभा सीट समीकरण

पटनाः बिहार के 40 लोकसभा सीट में मधेपुरा लोकसभा एक ऐसी सीट है जो यादवों का गढ़ माना जाता है. बावजूद यहां से 1999 में शरद यादव ने लालू यादव को कड़ी शिकस्त दी थी. राबड़ी देवी के बिहार का सीएम रहते हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव को हार का मुंह देखना पड़ा था. इसके बाद से मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में लालू यादव का MY समीकरण धवस्त होता चला गया.

बीपी मंडल से शरद यादप तक का कब्जाः एक कहावत है 'रोम पॉप का तो मधेपुरा गोप का', यह लंबे समय से चली आ रही है. चुनाव के समय इसकी खूब चर्चा भी होती है. बीपी मंडल से लेकर लालू यादव, शरद यादव और पप्पू यादव तक इस कहावत की चर्चा मधेपुरा में होती रही है. यहां यादव और मुस्लिम वोट के कारण लालू यादव और उनकी पार्टी के नेता जीतते रहे हैं लेकिन 1999 में सबकुछ बदला बदला नजर आया था.

एक-दूसरे को हराए लालू-शरदः 1999 में लालू यादव की लोकप्रियता चरम पर होने के बावजूद जनता ने रिजेक्ट कर दिया था. मध्य प्रदेश से आने वाले शरद यादव को जीत का ताज पहना दिया था. बता दें कि मधेपुरा में 2 साल में दो चुनाव हुए थे. 1998 में शरद यादव लालू प्रसाद से हार गए थे लेकिन 1999 में फिर चुनाव हुआ तो लालू यादव शरद यादव से हार गए.

'खत्म होने लगा था लालू यादव का जलवा': वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन भारती ने बताया कि मधेपुरा की 1999 की लड़ाई शरद यादव और लालू यादव के बीच चर्चा में थी. पूरे देश की नजर मधेपुरा लोकसभा सीट पर थी. उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि 15 दिनों तक मधेपुरा में चुनाव प्रचार के कवरेज के लिए कैंप किए थे. उन्होंने बताया कि उस समय परिवर्तन का दौर चल रहा था. लालू यादव का जलवा खत्म हो रहा था.

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कई कारण से हारे थे लालू यादवः प्रिय रंजन भारती ने बताया कि बदलाव के कई कारण थे. इसमें भारत के तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन भी थे. जिनके नेतृत्व में काफी सख्ती बढ़ने लगी थी. मधेपुरा में 4 लाख यादवों का बड़ा हिस्सा शरद यादव के साथ था. सबसे बड़ी बात थी कि राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने से नाराज राजेश रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव भी शरद यादव के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. यही कारण रहा था कि लालू यादव को शरद यादव से हार का सामना करना पड़ा था.

"उस समय चुनाव सुधार का दौर था. टीएन शेषन (पूर्व चुनाव आयुक्त) सुधार के लिए अपना हंटर चला रहे थे. दूसरा कारण पूरा का पूरा जातीय समीकरण शरद यादव के पक्ष में था. राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री होने के बावजूद MY समीकरण काम नहीं किया था. शरद यादव के पक्ष में रंजन यादव (पप्पू यादव) काम कर रहे थे. लालू यादव से नाराजगी के कारण ऐसा हुआ था." - प्रिय रंजन भारती, वरिष्ठ

पढ़े लिखे लोग होने के कारण रिजल्ट अलग आयाः राजनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर सुनील कुमार का कहना है कि मधेपुरा यादव बहुल है. वहां के यादव बिहार के अन्य हिस्सों के यादवों से ज्यादा शिक्षित और संभ्रांत हैं. कहा कि लालू यादव भले ही यादवों के बड़े नेता हो गए थे लेकिन मधेपुरा में यादव अपने ढंग से फैसला लेते रहे हैं. वहां के यादव प्रोफेसर और आईएएस जैसे ऊंचे पदों पर थे. यही कारण है कि लालू यादव अपने MY समीकरण से कामयाब नहीं हो पाए और यादवों ने उन्हें हार का स्वाद चखाया.

नीतीश फैक्टर का भी रहा था असरः डॉक्टर सुनील कुमार ये भी कहते हैं कि उस समय नीतीश फैक्टर भी शुरू हो गया था. 1999 में नीतीश फैक्टर और यूं कहें की एंटी लालू फैक्टर ने काम करना शुरू कर दिया था. लवली आनंद ने वैशाली में किशोरी सिन्हा को हराया था. मधेपुरा में शरद यादव ने लालू यादव को हराने का काम किया था.

"मधेपुरा यादव बहुल क्षेत्र है लेकिन यहां के यादव काफी पढ़ें लिखे हैं. यहां के लोग लोकतंत्र और चुनाव में काफी रूची रखते हैं. यहां के लोग प्रोफेसर, इंजीनियर, डॉक्टर और आईएएस हैं. जिस समय की बात कर रहे हैं उस समय वहां के लोग उस तरह की राजनीति नहीं करते थे. इसी समय से एंटी लालू और नीतीश फैक्टर काम करना शुरू हुआ. शरद यादव ने लालू यादव को हराने का काम किया." -डॉ सुनील कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

राजद ने इस हार को नकाराः मधेपुरा में MY समीकरण धवस्त होने को राजद नेता नहीं मानते हैं. राजद के प्रवक्ता ने साफ-साफ कहना है कि वहां की जनता ने लालू यादव को रिजेक्ट नहीं किया था. कहा कि लालू यादव को एक बार वहां हार मिली लेकिन हमेशा उनकी पार्टी के नेता को जीत मिलती रही है. राजद का यह भी दावा है कि इसबार उनकी जीत होगी.

"मधेपुरा और उसके इर्द-गिर्द समाजवादियों की धरती है. वहां के लोग समाजवादी विचारों के साथ हमेशा लालू यादव के साथ खड़े रहे हैं. एक बार लालू यादव नहीं जीत पाए हैं लेकिन बांकी बार लालू यादव ही जीते या लालू जी की पार्टी जीती है." -एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता

नीतीश के आने के बाद बार बार RJD को मिली हारः शरद यादव का पिछले साल 2023 में निधन हो चुका है. लालू यादव चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. मधेपुरा की स्थिति ऐसी है कि 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता संभालने के बाद हमेशा RJD को मुंह की खानी पड़ी है. जदयू जब एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा तो उस समय भी पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव जीत पाए थे.

इसबार जदयू और राजद में मुकाबलाः इस बार जदयू के तरफ से दिनेश चंद्र यादव चुनावी मैदान में है. जदयू के टिकट पर 2019 में चुनाव जीते थे. जदयू के सामने 1989 में सांसद रहे रामेंद्र कुमार यादव रवि के बेटे प्रोफेसर चंद्रदीप यादव राजद से चुनाव लड़ रहे हैं. तीसरे चरण में 7 मई को वोटिंग होनी है. 4 जून को रिजल्ट आएगा. इस बार देखना है कि मधेपुरा के यादव किसके पक्ष में फैसला लेते हैं?

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