वाराणसीः मूल काशी विश्वनाथ की परिक्रमा का ऐलान करने वाले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Shankaracharya Avimukteshwarananda) को पुलिस ने मठ से बाहर निकलने से रोक दिया. हालांकि शंकराचार्य परिक्रमा करने पर अड़े हुए हैं. इस दौरान उनके समर्थकों और पुलिस के बीच बहस भी हुई. पुलिस का कहना था कि किसी नई परंपरा की शुरुआत नहीं होने दी जाएगी और धारा 144 लागू होने की वजह से उन्हें वहां जाने की अनुमति नहीं है.
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ज्ञानवापी में कथित शिवलिंग के परिक्रमा को लेकर जिद पर अड़े हुए हैं. आज उन्होंने ज्ञानवापी परिसर की परिक्रमा की घोषणा की थी. जिसके बाद वह 3 बजे अपने निर्धारित वक्त पर पुलिस ने उन्हें श्री विद्या मठ से बाहर निकलने से रोक दिया. जिसके बाद शंकराचार्य के समर्थकों और पुलिस के बीच बहस हुई. पुलिस ने किसी नई परंपरा की शुरुआत न करने की बात कही. साथ ही धारा 144 लागू होने का हवाला दिया. जिस पर स्वामी अवीमुक्तेश्वरानंद और उनके समर्थकों का कहना था कि यह नहीं परंपरा नहीं, बल्कि बहुत पुराना कार्य है. जो वह हर बार करते रहे हैं. अपने धर्म और आचरण को लेकर उन्हें किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना था कि न्यायालय में उनकी तरफ से ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की पूजा, राज भोग के लिए एप्लीकेशन दी गई है, जिस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है. इतने दिनों से हमारे प्रभु भूखे हैं. हम धर्म के अनुरूप उस जगह की सिर्फ परिक्रमा करना चाह रहे हैं, लेकिन उसकी भी अनुमति हमें नहीं दी जा रही है. कहना था कि हम लिखित रूप से अनुमति लेने के लिए एप्लीकेशन देंगे और पुलिस को हमें वहां जाने देना होगा. अगर धारा 144 लागू है तो हम सिर्फ दो लोग वहां जाएंगे और परिक्रमा करके वापस आ जाएंगे.
इस संदर्भ में एसीपी भेलूपुर अतुल अंजान त्रिपाठी का कहना था कि किसी भी नई परंपरा को शुरू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, यदि उन्हें इस संदर्भ में कोई कार्य करना है तो उन्हें इसके लिए लिखित रूप से अनुमति के लिए एक पत्र भेजना होगा. इसकी जांच के बाद ही अनुमति मिल सकती है. इसमें यह भी देखा जाएगा कि वर्तमान में उनके इस कार्य से शांति व्यवस्था पर कोई असर न पड़े क्योंकि, न्यायालय की तरफ से यह स्पष्ट रूप से आदेश है कि वह स्थान सील है. इसलिए वहां और उसके इर्द-गिर्द किसी को जाने की अनुमति नहीं है और ना ही दी जा सकती है.
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