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विन्ध्य की गजब परम्परा, नरक में जाने के डर से अंधेरे में नहलाए जाते हैं बच्चे

विन्ध्य क्षेत्र में नरक चौदस पर बच्चों को अंधेरे में नहलाने की परंपरा है. मान्यता है बच्चे साल भर हष्ट पुष्ट और निरोगी रहते हैं.

mp tradition on Narak Chaudas
नरक चौदस पर अनोखी परंपरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 29, 2024, 8:33 PM IST

Updated : Oct 29, 2024, 10:32 PM IST

शहडोल: जब भी दीपावली का त्योहार आता है तो कुछ दिन पहले से ही लोग अपने घरों में इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं. धनतेरस के दिन से ही दीपावली के त्योहार की शुरुआत भी हो जाती है. दीपावली के त्योहार में देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग परंपराएं भी होती हैं. कुछ ऐसी परंपराएं होती हैं, जो सबसे जुदा होती हैं. इन्हीं में से विन्ध्य क्षेत्र की एक परंपरा नरक चौदस के दिन की है. जिसे जानकर आप भी सोचने में मजबूर हो जाएंगे, कि आखिर ऐसा करने की परंपरा क्यों है?

नरक चौदस की अनोखी परंपरा
कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, यम चतुर्दशी, छोटी दीपावली कई अलग-अलग नाम से जाना जाता है. और इस दिन अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग अनोखी परंपराएं भी हैं. इनमें से एक अनोखी परंपरा विन्ध्य क्षेत्र की है, जहां नरक चतुर्दशी के दिन माताएं अपने बच्चों को सूर्योदय से पहले घर के बाहर स्नान करवाती हैं. ताकि बच्चे निरोगी रहें.

नरक चौदस पर बच्चों को अंधेरे में नहलाने की परंपरा (ETV Bharat)

विन्ध्य की अनोखी परंपरा
शहडोल जिले के पडनिया गांव के रहने वाले अनिल साहू बताते हैं कि, ''नरक चौदस में विंध्य क्षेत्र की ये सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा के तहत नरक चौदस के दिन गजब का उत्साह रहता है. बच्चे इसका साल भर इंतजार करते हैं. इस दिन सभी हिंदू लोग अपने घरों के बाहर स्नान करते हैं. इसके लिए माताएं बहुत तैयारी करती हैं. बच्चों को दातून कराने के लिए रात में ही चकौड़े का दातून लेकर आती हैं. चकौड़े का पौधा और चिड़चिडा का पौधा लेकर आती हैं. आंगन में चूल्हा तैयार किया जाता है, जिस पर पानी को गर्म किया जाता है. हल्के गुनगुने पानी से सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले घर के गेट के बाहर लड़का हो या लड़की स्नान कराया जाता है.''

Vindhya unique tradition on Diwali
विन्ध्य क्षेत्र की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)

अंधेरे में नहाते हैं बच्चे, आरती के बाद सूर्य देव को प्रणाम
नहलाने से पहले माताएं बच्चों के पूरे शरीर पर तिल के तेल से मालिश करती हैं. जिससे बच्चों को ठंड ना लगे. इसके बाद उन्हें चकौड़े के दातून से दातून कराया जाता है. जहां बच्चा बैठता है वहां चाकोड़ा और चिड़चिड़ा का पौधा रखा जाता है, उसके ऊपर पटा रखा जाता है और वहां बच्चा बैठता है. वहीं दातुन करेगा फिर माताएं हल्के गुनगुने पानी से बच्चे को स्नान कराती हैं. आरती उतारेंगी, टीका लगाएंगी और मीठा खिलाएंगी. फिर बच्चा अंदर आएगा और शरीर में तिल का तेल लगाएगा. कपड़े पहनने के बाद भगवान की पूजा करेगा. सूर्य देव को अर्घ देगा और सूर्य देव को प्रणाम करेगा.

साल भर हष्ट पुष्ट और निरोगी रहता है बच्चा
अनिल साहू, सुधा साहू और कुछ ग्रामीण बताते हैं कि, ''अलग-अलग क्षेत्र में इस परंपरा को निभाने की अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों की मान्यता है कि सुबह जब बच्चा स्नान करता है तो साल भर के लिए उसके सारे पाप धुल जाते हैं. साल भर बच्चे के साथ सूर्य देव का आशीर्वाद बना रहता है. जिससे बच्चा साल भर हष्ट पुष्ट और स्वस्थ और निरोगी रहता है.''

स्नान से धुल जाते हैं सभी पाप, खुलते हैं तरक्की के द्वार
नरक चौदस की इस अनोखी परंपरा को लेकर जब ईटीवी भारत ने पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से बात की तो उन्होंने बताया कि, ''ये विंध्य क्षेत्र की अनोखी परंपरा है. जैसे-जैसे विन्ध्य क्षेत्र के लोग बाहर जाते जा रहे हैं, तो विन्ध्य क्षेत्र से बाहर भी ये परंपरा अब जा रही है. इस त्यौहार में प्रातः कालीन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले सभी लोग उठते हैं. 20 साल से ऊपर के लोग तालाब में, घर में और कुएं में स्नान करते हैं. फिर सूर्य देव को अर्घ देते हैं, प्रणाम करते हैं और घर आते हैं. वहीं 20 साल से कम उम्र के लोगों को उनकी माताएं घर पर ही बड़े विधि विधान से सूर्योदय से पहले स्नान कराती हैं.'' पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं, ''ऐसी मान्यता है कि नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से 84 लाख योनियों में भटकना नहीं पड़ता है. सारे पाप धुल जाते हैं, नरक की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं और साल भर बच्चे की तरक्की होती है, सब कुछ अच्छा अच्छा होता है.''

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इंदौर के धन्वंतरि मंदिर में लगता है डॉक्टरों का मेला, धनतेरस पर होती है दवाइयों की सिद्धि

रीवा राजघराने में निभाई गई सालों पुरानी परंपरा, शाही तरीके से भगवान राम की हुई पूजा

ये सदियों पुरानी परंपरा
सुधा साहू कहती हैं कि, ''अब तो वो बुजुर्ग हो चुकी हैं लेकिन जब वो छोटी थीं तो उनकी माता नरक चौदस के दिन घर के बाहर स्नान कराती थीं. अब अपने बच्चों के साथ परंपरा को अपनाती आ रही हैं.'' लोगों का कहना है की अच्छा ही है एक दिन सुबह-सुबह स्नान करके भगवान को याद कर लेते हैं, सूर्य देव को प्रणाम कर लेते हैं. इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. हालांकि बदलते वक्त के साथ अब इसमें भी बदलाव देखने को मिल रहा है. कई जगहों पर अब लोग इसे छोड़ भी चुके हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा बखूबी निभाई जाती है. बड़े ही उत्साह और आस्था के साथ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है.

क्या कहना है डॉक्टर का
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि, ''यह जो समय चल रहा है शरद ऋतु की शुरुआत है. हम वर्षा ऋतु से शरद ऋतु में पहुंच चुके हैं. इस चीज को ऋतु संधि बोला जाता है और ऋतु संधि में शरीर बल कम होता है और रोग का बल ज्यादा होता है. इसलिए इस मौसम में आम तौर पर सर्दी जुकाम बुखार वायरल डिसीस होने की पॉसिबिलिटीज ज्यादा होती हैं. मान लीजिए कि इस समय पर सूर्योदय के पहले बच्चों को अगर खुले में स्नान कराया जाता है तो उनके शरीर में शीतलता बढ़ने के कारण उन्हें सर्दी जुकाम बुखार आने की संभावना काफी होती है. अगर सुबह स्नान करना भी है तो बच्चे को सुबह बंद कमरे में या बाथरूम में गुनगुने पानी से स्नान कराएं और फिर उसी बाथरूम में उसके शरीर को पूरी तरह से पोंछ लें. उसकी बॉडी के टेंपरेचर को नॉर्मल होने के बाद ही बाथरूम से निकालें. अगर आप घर के बाहर उन्हें नहलाते हैं तो उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही अगर आप किसी तरह से बीमार हैं तो बिल्कुल भी सूर्योदय से पहले घर के बाहर न नहाएं, इससे सर्दी, खांसी, जुकाम होने के चांसेस रहते हैं. जिनकी ठंडी तासीर है उनको तो बिल्कुल भी सुबह सूर्योदय से पहले बाहर नहीं नहाना चाहिए. परंपराएं, समाज की व्यवस्थाएं समय के साथ में परिवर्तनशील होती हैं, क्योंकि परंपराएं शास्त्रोक्त नहीं होती हैं.''

शहडोल: जब भी दीपावली का त्योहार आता है तो कुछ दिन पहले से ही लोग अपने घरों में इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं. धनतेरस के दिन से ही दीपावली के त्योहार की शुरुआत भी हो जाती है. दीपावली के त्योहार में देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग परंपराएं भी होती हैं. कुछ ऐसी परंपराएं होती हैं, जो सबसे जुदा होती हैं. इन्हीं में से विन्ध्य क्षेत्र की एक परंपरा नरक चौदस के दिन की है. जिसे जानकर आप भी सोचने में मजबूर हो जाएंगे, कि आखिर ऐसा करने की परंपरा क्यों है?

नरक चौदस की अनोखी परंपरा
कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस, यम चतुर्दशी, छोटी दीपावली कई अलग-अलग नाम से जाना जाता है. और इस दिन अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग अनोखी परंपराएं भी हैं. इनमें से एक अनोखी परंपरा विन्ध्य क्षेत्र की है, जहां नरक चतुर्दशी के दिन माताएं अपने बच्चों को सूर्योदय से पहले घर के बाहर स्नान करवाती हैं. ताकि बच्चे निरोगी रहें.

नरक चौदस पर बच्चों को अंधेरे में नहलाने की परंपरा (ETV Bharat)

विन्ध्य की अनोखी परंपरा
शहडोल जिले के पडनिया गांव के रहने वाले अनिल साहू बताते हैं कि, ''नरक चौदस में विंध्य क्षेत्र की ये सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा के तहत नरक चौदस के दिन गजब का उत्साह रहता है. बच्चे इसका साल भर इंतजार करते हैं. इस दिन सभी हिंदू लोग अपने घरों के बाहर स्नान करते हैं. इसके लिए माताएं बहुत तैयारी करती हैं. बच्चों को दातून कराने के लिए रात में ही चकौड़े का दातून लेकर आती हैं. चकौड़े का पौधा और चिड़चिडा का पौधा लेकर आती हैं. आंगन में चूल्हा तैयार किया जाता है, जिस पर पानी को गर्म किया जाता है. हल्के गुनगुने पानी से सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले घर के गेट के बाहर लड़का हो या लड़की स्नान कराया जाता है.''

Vindhya unique tradition on Diwali
विन्ध्य क्षेत्र की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)

अंधेरे में नहाते हैं बच्चे, आरती के बाद सूर्य देव को प्रणाम
नहलाने से पहले माताएं बच्चों के पूरे शरीर पर तिल के तेल से मालिश करती हैं. जिससे बच्चों को ठंड ना लगे. इसके बाद उन्हें चकौड़े के दातून से दातून कराया जाता है. जहां बच्चा बैठता है वहां चाकोड़ा और चिड़चिड़ा का पौधा रखा जाता है, उसके ऊपर पटा रखा जाता है और वहां बच्चा बैठता है. वहीं दातुन करेगा फिर माताएं हल्के गुनगुने पानी से बच्चे को स्नान कराती हैं. आरती उतारेंगी, टीका लगाएंगी और मीठा खिलाएंगी. फिर बच्चा अंदर आएगा और शरीर में तिल का तेल लगाएगा. कपड़े पहनने के बाद भगवान की पूजा करेगा. सूर्य देव को अर्घ देगा और सूर्य देव को प्रणाम करेगा.

साल भर हष्ट पुष्ट और निरोगी रहता है बच्चा
अनिल साहू, सुधा साहू और कुछ ग्रामीण बताते हैं कि, ''अलग-अलग क्षेत्र में इस परंपरा को निभाने की अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों की मान्यता है कि सुबह जब बच्चा स्नान करता है तो साल भर के लिए उसके सारे पाप धुल जाते हैं. साल भर बच्चे के साथ सूर्य देव का आशीर्वाद बना रहता है. जिससे बच्चा साल भर हष्ट पुष्ट और स्वस्थ और निरोगी रहता है.''

स्नान से धुल जाते हैं सभी पाप, खुलते हैं तरक्की के द्वार
नरक चौदस की इस अनोखी परंपरा को लेकर जब ईटीवी भारत ने पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से बात की तो उन्होंने बताया कि, ''ये विंध्य क्षेत्र की अनोखी परंपरा है. जैसे-जैसे विन्ध्य क्षेत्र के लोग बाहर जाते जा रहे हैं, तो विन्ध्य क्षेत्र से बाहर भी ये परंपरा अब जा रही है. इस त्यौहार में प्रातः कालीन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले सभी लोग उठते हैं. 20 साल से ऊपर के लोग तालाब में, घर में और कुएं में स्नान करते हैं. फिर सूर्य देव को अर्घ देते हैं, प्रणाम करते हैं और घर आते हैं. वहीं 20 साल से कम उम्र के लोगों को उनकी माताएं घर पर ही बड़े विधि विधान से सूर्योदय से पहले स्नान कराती हैं.'' पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं, ''ऐसी मान्यता है कि नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से 84 लाख योनियों में भटकना नहीं पड़ता है. सारे पाप धुल जाते हैं, नरक की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं और साल भर बच्चे की तरक्की होती है, सब कुछ अच्छा अच्छा होता है.''

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इंदौर के धन्वंतरि मंदिर में लगता है डॉक्टरों का मेला, धनतेरस पर होती है दवाइयों की सिद्धि

रीवा राजघराने में निभाई गई सालों पुरानी परंपरा, शाही तरीके से भगवान राम की हुई पूजा

ये सदियों पुरानी परंपरा
सुधा साहू कहती हैं कि, ''अब तो वो बुजुर्ग हो चुकी हैं लेकिन जब वो छोटी थीं तो उनकी माता नरक चौदस के दिन घर के बाहर स्नान कराती थीं. अब अपने बच्चों के साथ परंपरा को अपनाती आ रही हैं.'' लोगों का कहना है की अच्छा ही है एक दिन सुबह-सुबह स्नान करके भगवान को याद कर लेते हैं, सूर्य देव को प्रणाम कर लेते हैं. इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. हालांकि बदलते वक्त के साथ अब इसमें भी बदलाव देखने को मिल रहा है. कई जगहों पर अब लोग इसे छोड़ भी चुके हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा बखूबी निभाई जाती है. बड़े ही उत्साह और आस्था के साथ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है.

क्या कहना है डॉक्टर का
आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि, ''यह जो समय चल रहा है शरद ऋतु की शुरुआत है. हम वर्षा ऋतु से शरद ऋतु में पहुंच चुके हैं. इस चीज को ऋतु संधि बोला जाता है और ऋतु संधि में शरीर बल कम होता है और रोग का बल ज्यादा होता है. इसलिए इस मौसम में आम तौर पर सर्दी जुकाम बुखार वायरल डिसीस होने की पॉसिबिलिटीज ज्यादा होती हैं. मान लीजिए कि इस समय पर सूर्योदय के पहले बच्चों को अगर खुले में स्नान कराया जाता है तो उनके शरीर में शीतलता बढ़ने के कारण उन्हें सर्दी जुकाम बुखार आने की संभावना काफी होती है. अगर सुबह स्नान करना भी है तो बच्चे को सुबह बंद कमरे में या बाथरूम में गुनगुने पानी से स्नान कराएं और फिर उसी बाथरूम में उसके शरीर को पूरी तरह से पोंछ लें. उसकी बॉडी के टेंपरेचर को नॉर्मल होने के बाद ही बाथरूम से निकालें. अगर आप घर के बाहर उन्हें नहलाते हैं तो उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही अगर आप किसी तरह से बीमार हैं तो बिल्कुल भी सूर्योदय से पहले घर के बाहर न नहाएं, इससे सर्दी, खांसी, जुकाम होने के चांसेस रहते हैं. जिनकी ठंडी तासीर है उनको तो बिल्कुल भी सुबह सूर्योदय से पहले बाहर नहीं नहाना चाहिए. परंपराएं, समाज की व्यवस्थाएं समय के साथ में परिवर्तनशील होती हैं, क्योंकि परंपराएं शास्त्रोक्त नहीं होती हैं.''

Last Updated : Oct 29, 2024, 10:32 PM IST
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