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क्या है ब्राउन हाड्रोजन जिसको बनाने का प्रयास कर रहा दून का वाडिया इंस्टीट्यूट, अगर सफल हुआ प्रयोग तो होगा कमाल - Brown Hydrogen Production

वातावरण में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बड़ी चिंता का विषय बनती जा रही है. तमाम संस्थाओं के वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं. अब उत्तराखंड के देहरादून में स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए ब्राउन हाइड्रोजन के उत्पादन पर काम शुरू किया है, ताकि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जा सके.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 3, 2024, 10:37 AM IST

Updated : Apr 3, 2024, 5:42 PM IST

कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने लिए ब्राउन हाइड्रोजन बनाने का प्रयास कर रहे वाडिया के साइंटिस्ट

देहरादून: उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में पर्यावरण बचाने के साथ ही जल को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. यही वजह है कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी पर्यावरण को संरक्षित करने पर जोर दे रहा है. इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट कार्बन डाइऑक्साइड से ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के साथ ही तमाम अन्य उत्पाद निर्माण पर जोर दे रहा है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में सरकारों और जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए? पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की क्या अवधारणा हो? प्रदेश में मौजूद नेचुरल रिसोर्सेज का इस्तेमाल कर किस तरह से वैकल्पिक ऊर्जा पर किया जा सकता है, इन तमाम बिदुओं पर ईटीवी भारत ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ कालाचंद साईं से खास बातचीत की.

सवाल - उत्तराखंड के पहाड़ कमजोर बताए जाते रहे हैं, आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?
जवाब- उत्तराखंड में हिमालय के कमजोर होने के कई कारण हैं. हिमालय की उत्पत्ति यूरेशियन और इंडियन प्लेट के बीच घर्षण से हुई है. अभी भी दोनों प्लटों के बीच घर्षण जारी है. इसके साथ ही पहाड़ों के अंदर हो रही हलचलों के चलते पहाड़ नाजुक बने हुए हैं. इसके अलावा पहाड़ों के टूटने, दरारें पड़ने और बारिश के साथ ही पर्यावरण पर भी बड़ा फर्क पड़ा है, जिसके चलते कुछ जगहों पर पहाड़ काफी संवेदनशील तो कुछ जगह पर अति संवेदनशील भी हैं.

सवाल- किसी भी चुनाव के दौरान विकास का मुद्दा काफी अहम रहता है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की असल अवधारणा क्या होनी चाहिए?
जवाब- पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की इच्छा रहती है कि उनके क्षेत्र का विकास हो. उत्तराखंड रीजन में तमाम नेचुरल रिसोर्स मौजूद हैं, जिनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन जो नेचुरल रिसोर्सेस मौजूद हैं, अगर उसका साइंटिफिक वे में इस्तेमाल करते हैं, तो बेहतर ढंग से विकास किया जा सकता है.

साथ ही उन्होंने कहा कि सड़क व्यवस्थित हो, टनल बने, रोपवे का निर्माण हो, माइक्रो इंडस्ट्री लगे, खेती हो, ऊर्जा के क्षेत्र में नए काम जैसी तमाम अपॉर्चुनिटी उत्तराखंड के पास हैं, जिस पर काम किया जाना चाहिए.

सवाल- उत्तराखंड राज्य पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. बावजूद इसके अभी तक ऐसा कोई रोड मैप नहीं बन पाया, जिसके जरिए पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके?
जवाब- क्लाइमेट चेंज बड़ी गंभीर समस्या बनी हुई है, जो लगातार पर्यावरण पर असर डाल रही है. ऐसे में जब भी सरकार पर्वतीय क्षेत्र के लिए कोई योजना या कोई प्रोजेक्ट तैयार करती है तो उसको धरातल पर उतरने से पहले जियोलॉजिकल और जिओ फिजिकल स्टडी करनी चाहिए. ताकि इसकी जानकारी मिल सके कि किस क्षेत्र में संबंधित प्रोजेक्ट को करना है या फिर कितने बड़े स्केल पर करना है. कुल मिलाकर प्रोजेक्ट को धरातल पर उतरने से पहले इंपैक्ट एसेसमेंट किया जाना चाहिए. अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर विकास के कार्य करने हैं तो उन्हें बैलेंस वे में किया जाना चाहिए. ताकि क्षेत्र का विकास भी हो जाए और पर्यावरण को नुकसान भी ना हो.

सवाल- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन में आम जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए?
जवाब- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए सभी लोगों का एक बड़ा रोल होता है. लिहाजा आम जनता को वैज्ञानिकों की रिसर्च और पॉलिसियों की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें यह पता चल सके कि क्या करना है और क्या नहीं करना है.

मुख्य रूप से अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर रह रहे हैं तो हिमालय स्पेसिफिक गाइडलाइन को फॉलो किया जाना चाहिए. एक ही जगह पर कई मंजिला बिल्डिंग बनाने के बजाय सैटेलाइट टाउन की तरह पर्वतीय क्षेत्रों को विकसित करना चाहिए. साथ ही जंगल और पानी के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए. इसके साथ ही लोगों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि पर्वतीय क्षेत्रों पर फेंका गया प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है. इसके साथ ही बच्चों के सिलेबस में भी पर्यावरण, आपदा संबंधित टॉपिक को समाहित करने की जरूरत है.

सवाल- उत्तराखंड राज्य देश की आधी आबादी को शुद्ध हवा और पानी मुहैया कराता है, लेकिन प्रदेश के तमाम गांवों में पानी की किल्लत हो जाती है जिसकी मुख्य वजह यही है कि हमारे जब पारंपरिक स्रोत हैं वो सूखते जा रहे हैं, जिन्हें पुनर्जीवित करने को लेकर क्या पहल करने की जरूरत है?
जवाब- ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से उत्तराखंड के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लिहाजा वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी इस ओर भी लगातार स्टडी कर रहा है. ताकि बारिश का पानी वेस्ट न होकर कर धरती के अंदर जाए, जिससे ग्राउंड वाटर का लेवल बढ़ सके.

यही नहीं प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम स्प्रिंग्स ऐसे हैं, जो डेड हो गए हैं. साथ ही कुछ डेड होने की कगार पर हैं. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट इस पर फोकस कर रहा है कि किस तरह से इन सभी स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित किया जा सके.

सवाल- उत्तराखंड राज्य हर साल आपदा का दंश झेलता है. आपदा के दौरान बड़ी मात्रा में जान माल का नुकसान होता है, लेकिन अभी तक हम वह तकनीक डेवलप नहीं कर पाए हैं, जिससे आपदा का पूर्वानुमान लगाया जा सके?

जवाब- वाडिया इंस्टीट्यूट इसपर काम कर रहा है, ताकि आपदा आने से पहले उसका पूर्वानुमान लगाया जा सके. ताकि जानमाल के नुकसान को कम से कम किया जा सके. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट तमाम फैक्टर्स पर काम कर रहा है, जिसके तहत क्लाइमेट चेंज होने की वजह से क्या हो रहा है. भूगर्भीय एक्टिविटी की वजह से क्या हो रहा है. तापमान बढ़ने से सरफेस रॉक पर क्या असर पड़ रहा है, समेत तमाम फैक्टर्स पर स्टडी की जा रही है, ताकि इसका अनुमान लगाया जा सके कि कौन सा क्षेत्र किसी आपदा के लिहाज से संवेदनशील है.

इसके साथ ही आपदा प्रभावित क्षेत्र में इंस्ट्रूमेंट लगाकर उसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. साथ ही अर्ली वार्निंग सिस्टम को डेवलप करने पर भी जोर दिया जा रहा है, ताकि आपदा आने की आशंका को देखते हुए लोगों को अलर्ट किया जा सके. वाडिया के डायरेक्टर ने कहा कि नेचुरल प्रोसेस को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके इंपैक्ट को कम किया जा सकता है.

सवाल- उत्तराखंड समेत देश में नेचुरल रिसोर्सेस की भरमार है. बावजूद इसके वैकल्पिक ऊर्जा पर विशेष ध्यान नहीं दे पा रहे हैं?
जवाब- मौजूदा समय में जो ईंधन इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे काफी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. इसकी वजह से भी ग्लोबल वार्मिंग (भूमंडलीय ऊष्मीकरण) हो रही है. यही वजह है कि सारी दुनिया रिन्यूएबल एनर्जी पर जोर दे रही है. उत्तराखंड राज्य में भी तमाम नेचुरल रिसोर्सेस मौजूद हैं, जो ऊर्जा का सोर्स बन सकते हैं. ऐसे में अगर साइंटिफिक वे में इन ऊर्जा सोर्सेस का इस्तेमाल करेंगे, तो एक ग्रीन एनर्जी सोर्स बन सकेगा.

जब भी किसी प्रोजेक्ट पर काम किया जाए, तो उसका इंपैक्ट एसेसमेंट कराया जाना चाहिए. उत्तराखंड राज्य में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने से पहले बृहद स्तर पर इंपैक्ट एसेसमेंट कराया जाना चाहिए. प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में जियोथर्मल एनर्जी की भरमार है, जिसका इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है. इस एनर्जी का इस्तेमाल चारों धामों में ग्रीन एनर्जी के रूप में किया जा सकता है.

कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर कर तमाम उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है. कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि लार्ज स्केल में कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोनेट, मेथेनॉल में कन्वर्ट किया जा सके. अगर कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोनेट में कन्वर्ट करते हैं तो कार्बोनेट का इस्तेमाल तमाम प्रोडक्ट बनाने में किया जा सकता है. कार्बोनेट का इस्तेमाल मेडिसिन, ग्लास, सीमेंट और डिटर्जेंट बनाने समेत अन्य रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

यही नहीं अगर कार्बन डाइऑक्साइड को मेथेनॉल में कन्वर्ट कर दिया जाता है तो फिर सिंथेटिक फैब्रिक, पेंट्स, केमिकल्स समेत अन्य चीजों को बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि यह प्रयास देश दुनिया स्तर पर किया जा रहा है, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर कर प्रोडक्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

ब्राउन हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने पर काम कर रहा है वाडिया: वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि ब्राउन हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने की कोशिश की जा रही है, जिसके तहत कैल्शियम, आयरन, सिलिकेट (इग्नियस रॉक) को कार्बन डाइऑक्साइड और पानी के साथ मिलकर एक प्रेशर और टेंपरेचर में प्रोटोकॉल डेवलप किया जा रहा है, ताकि ब्राउन हाइड्रोजन को प्रोड्यूस करते हुए कार्बन डाइऑक्साइड को घटाया जा सके. ये प्रयास भी वाडिया इंस्टिट्यूट में किया जा रहा है.

ब्राउन हाइड्रोजन क्या होती है: ब्राउन हाइड्रोजन यानी ग्रे हाइड्रोजन जिसका इस्तेमाल वाहनों में ईंधन के रूप में लाया जा सकता है. भारत सरकार ग्रे हाइड्रोजन बनाने पर जोर दे रही है. मुख्य रूप से कोयले से बने हाइड्रोजन को ब्राउन हाइड्रोजन कहा जाता है. इसी क्रम में वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक इग्नियस पत्थर और कार्बन डाइऑक्साइड के जारी ए ब्राउन हाइड्रोजन उत्सर्जन पर काम कर रहा है.

वर्तमान समय में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल नवीनीकरण ऊर्जा के रूप में किया जा रहा है. ऐसे में आने वाले समय में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कमी आए और इसको कैप्चर कर बेहतर इस्तेमाल किया जा सके.

सवाल- मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक होने के साथ ही किन खास बिंदुओं पर ध्यान देने की है जरूरत?
जवाब- मजबूत सरकार बनाने में मतदाताओं के मतदान की एक बड़ी भूमिका होती है. ऐसे में लोगों को बढ़चढ़ कर मतदान के लिए आगे आना चाहिए. साथ ही अच्छे नेताओं को चुनें, ताकि उत्तराखंड राज्य और देश का विकास हो सके. इसके अलावा उत्तराखंड राज्य में तमाम नेचुरल रिसोर्स हैं, जिनका इस्तेमाल कर उत्तराखंड राज्य को मॉडल स्टेट बनाया जा सकता है. इस तरह के काम करने के लिए एक मजबूत सरकार की जरूरत है और मजबूत सरकार तभी बनेगी जब मतदाता अधिक से अधिक मतदान कर अच्छे लोगों को चुनेंगे.

कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने लिए ब्राउन हाइड्रोजन बनाने का प्रयास कर रहे वाडिया के साइंटिस्ट

देहरादून: उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में पर्यावरण बचाने के साथ ही जल को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. यही वजह है कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी पर्यावरण को संरक्षित करने पर जोर दे रहा है. इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट कार्बन डाइऑक्साइड से ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के साथ ही तमाम अन्य उत्पाद निर्माण पर जोर दे रहा है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में सरकारों और जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए? पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की क्या अवधारणा हो? प्रदेश में मौजूद नेचुरल रिसोर्सेज का इस्तेमाल कर किस तरह से वैकल्पिक ऊर्जा पर किया जा सकता है, इन तमाम बिदुओं पर ईटीवी भारत ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ कालाचंद साईं से खास बातचीत की.

सवाल - उत्तराखंड के पहाड़ कमजोर बताए जाते रहे हैं, आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?
जवाब- उत्तराखंड में हिमालय के कमजोर होने के कई कारण हैं. हिमालय की उत्पत्ति यूरेशियन और इंडियन प्लेट के बीच घर्षण से हुई है. अभी भी दोनों प्लटों के बीच घर्षण जारी है. इसके साथ ही पहाड़ों के अंदर हो रही हलचलों के चलते पहाड़ नाजुक बने हुए हैं. इसके अलावा पहाड़ों के टूटने, दरारें पड़ने और बारिश के साथ ही पर्यावरण पर भी बड़ा फर्क पड़ा है, जिसके चलते कुछ जगहों पर पहाड़ काफी संवेदनशील तो कुछ जगह पर अति संवेदनशील भी हैं.

सवाल- किसी भी चुनाव के दौरान विकास का मुद्दा काफी अहम रहता है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की असल अवधारणा क्या होनी चाहिए?
जवाब- पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की इच्छा रहती है कि उनके क्षेत्र का विकास हो. उत्तराखंड रीजन में तमाम नेचुरल रिसोर्स मौजूद हैं, जिनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन जो नेचुरल रिसोर्सेस मौजूद हैं, अगर उसका साइंटिफिक वे में इस्तेमाल करते हैं, तो बेहतर ढंग से विकास किया जा सकता है.

साथ ही उन्होंने कहा कि सड़क व्यवस्थित हो, टनल बने, रोपवे का निर्माण हो, माइक्रो इंडस्ट्री लगे, खेती हो, ऊर्जा के क्षेत्र में नए काम जैसी तमाम अपॉर्चुनिटी उत्तराखंड के पास हैं, जिस पर काम किया जाना चाहिए.

सवाल- उत्तराखंड राज्य पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. बावजूद इसके अभी तक ऐसा कोई रोड मैप नहीं बन पाया, जिसके जरिए पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके?
जवाब- क्लाइमेट चेंज बड़ी गंभीर समस्या बनी हुई है, जो लगातार पर्यावरण पर असर डाल रही है. ऐसे में जब भी सरकार पर्वतीय क्षेत्र के लिए कोई योजना या कोई प्रोजेक्ट तैयार करती है तो उसको धरातल पर उतरने से पहले जियोलॉजिकल और जिओ फिजिकल स्टडी करनी चाहिए. ताकि इसकी जानकारी मिल सके कि किस क्षेत्र में संबंधित प्रोजेक्ट को करना है या फिर कितने बड़े स्केल पर करना है. कुल मिलाकर प्रोजेक्ट को धरातल पर उतरने से पहले इंपैक्ट एसेसमेंट किया जाना चाहिए. अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर विकास के कार्य करने हैं तो उन्हें बैलेंस वे में किया जाना चाहिए. ताकि क्षेत्र का विकास भी हो जाए और पर्यावरण को नुकसान भी ना हो.

सवाल- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन में आम जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए?
जवाब- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए सभी लोगों का एक बड़ा रोल होता है. लिहाजा आम जनता को वैज्ञानिकों की रिसर्च और पॉलिसियों की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें यह पता चल सके कि क्या करना है और क्या नहीं करना है.

मुख्य रूप से अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर रह रहे हैं तो हिमालय स्पेसिफिक गाइडलाइन को फॉलो किया जाना चाहिए. एक ही जगह पर कई मंजिला बिल्डिंग बनाने के बजाय सैटेलाइट टाउन की तरह पर्वतीय क्षेत्रों को विकसित करना चाहिए. साथ ही जंगल और पानी के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए. इसके साथ ही लोगों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि पर्वतीय क्षेत्रों पर फेंका गया प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है. इसके साथ ही बच्चों के सिलेबस में भी पर्यावरण, आपदा संबंधित टॉपिक को समाहित करने की जरूरत है.

सवाल- उत्तराखंड राज्य देश की आधी आबादी को शुद्ध हवा और पानी मुहैया कराता है, लेकिन प्रदेश के तमाम गांवों में पानी की किल्लत हो जाती है जिसकी मुख्य वजह यही है कि हमारे जब पारंपरिक स्रोत हैं वो सूखते जा रहे हैं, जिन्हें पुनर्जीवित करने को लेकर क्या पहल करने की जरूरत है?
जवाब- ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से उत्तराखंड के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लिहाजा वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी इस ओर भी लगातार स्टडी कर रहा है. ताकि बारिश का पानी वेस्ट न होकर कर धरती के अंदर जाए, जिससे ग्राउंड वाटर का लेवल बढ़ सके.

यही नहीं प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम स्प्रिंग्स ऐसे हैं, जो डेड हो गए हैं. साथ ही कुछ डेड होने की कगार पर हैं. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट इस पर फोकस कर रहा है कि किस तरह से इन सभी स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित किया जा सके.

सवाल- उत्तराखंड राज्य हर साल आपदा का दंश झेलता है. आपदा के दौरान बड़ी मात्रा में जान माल का नुकसान होता है, लेकिन अभी तक हम वह तकनीक डेवलप नहीं कर पाए हैं, जिससे आपदा का पूर्वानुमान लगाया जा सके?

जवाब- वाडिया इंस्टीट्यूट इसपर काम कर रहा है, ताकि आपदा आने से पहले उसका पूर्वानुमान लगाया जा सके. ताकि जानमाल के नुकसान को कम से कम किया जा सके. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट तमाम फैक्टर्स पर काम कर रहा है, जिसके तहत क्लाइमेट चेंज होने की वजह से क्या हो रहा है. भूगर्भीय एक्टिविटी की वजह से क्या हो रहा है. तापमान बढ़ने से सरफेस रॉक पर क्या असर पड़ रहा है, समेत तमाम फैक्टर्स पर स्टडी की जा रही है, ताकि इसका अनुमान लगाया जा सके कि कौन सा क्षेत्र किसी आपदा के लिहाज से संवेदनशील है.

इसके साथ ही आपदा प्रभावित क्षेत्र में इंस्ट्रूमेंट लगाकर उसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. साथ ही अर्ली वार्निंग सिस्टम को डेवलप करने पर भी जोर दिया जा रहा है, ताकि आपदा आने की आशंका को देखते हुए लोगों को अलर्ट किया जा सके. वाडिया के डायरेक्टर ने कहा कि नेचुरल प्रोसेस को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके इंपैक्ट को कम किया जा सकता है.

सवाल- उत्तराखंड समेत देश में नेचुरल रिसोर्सेस की भरमार है. बावजूद इसके वैकल्पिक ऊर्जा पर विशेष ध्यान नहीं दे पा रहे हैं?
जवाब- मौजूदा समय में जो ईंधन इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे काफी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. इसकी वजह से भी ग्लोबल वार्मिंग (भूमंडलीय ऊष्मीकरण) हो रही है. यही वजह है कि सारी दुनिया रिन्यूएबल एनर्जी पर जोर दे रही है. उत्तराखंड राज्य में भी तमाम नेचुरल रिसोर्सेस मौजूद हैं, जो ऊर्जा का सोर्स बन सकते हैं. ऐसे में अगर साइंटिफिक वे में इन ऊर्जा सोर्सेस का इस्तेमाल करेंगे, तो एक ग्रीन एनर्जी सोर्स बन सकेगा.

जब भी किसी प्रोजेक्ट पर काम किया जाए, तो उसका इंपैक्ट एसेसमेंट कराया जाना चाहिए. उत्तराखंड राज्य में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने से पहले बृहद स्तर पर इंपैक्ट एसेसमेंट कराया जाना चाहिए. प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में जियोथर्मल एनर्जी की भरमार है, जिसका इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है. इस एनर्जी का इस्तेमाल चारों धामों में ग्रीन एनर्जी के रूप में किया जा सकता है.

कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर कर तमाम उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है. कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि लार्ज स्केल में कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोनेट, मेथेनॉल में कन्वर्ट किया जा सके. अगर कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोनेट में कन्वर्ट करते हैं तो कार्बोनेट का इस्तेमाल तमाम प्रोडक्ट बनाने में किया जा सकता है. कार्बोनेट का इस्तेमाल मेडिसिन, ग्लास, सीमेंट और डिटर्जेंट बनाने समेत अन्य रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

यही नहीं अगर कार्बन डाइऑक्साइड को मेथेनॉल में कन्वर्ट कर दिया जाता है तो फिर सिंथेटिक फैब्रिक, पेंट्स, केमिकल्स समेत अन्य चीजों को बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि यह प्रयास देश दुनिया स्तर पर किया जा रहा है, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर कर प्रोडक्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

ब्राउन हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने पर काम कर रहा है वाडिया: वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि ब्राउन हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने की कोशिश की जा रही है, जिसके तहत कैल्शियम, आयरन, सिलिकेट (इग्नियस रॉक) को कार्बन डाइऑक्साइड और पानी के साथ मिलकर एक प्रेशर और टेंपरेचर में प्रोटोकॉल डेवलप किया जा रहा है, ताकि ब्राउन हाइड्रोजन को प्रोड्यूस करते हुए कार्बन डाइऑक्साइड को घटाया जा सके. ये प्रयास भी वाडिया इंस्टिट्यूट में किया जा रहा है.

ब्राउन हाइड्रोजन क्या होती है: ब्राउन हाइड्रोजन यानी ग्रे हाइड्रोजन जिसका इस्तेमाल वाहनों में ईंधन के रूप में लाया जा सकता है. भारत सरकार ग्रे हाइड्रोजन बनाने पर जोर दे रही है. मुख्य रूप से कोयले से बने हाइड्रोजन को ब्राउन हाइड्रोजन कहा जाता है. इसी क्रम में वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक इग्नियस पत्थर और कार्बन डाइऑक्साइड के जारी ए ब्राउन हाइड्रोजन उत्सर्जन पर काम कर रहा है.

वर्तमान समय में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल नवीनीकरण ऊर्जा के रूप में किया जा रहा है. ऐसे में आने वाले समय में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में कमी आए और इसको कैप्चर कर बेहतर इस्तेमाल किया जा सके.

सवाल- मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक होने के साथ ही किन खास बिंदुओं पर ध्यान देने की है जरूरत?
जवाब- मजबूत सरकार बनाने में मतदाताओं के मतदान की एक बड़ी भूमिका होती है. ऐसे में लोगों को बढ़चढ़ कर मतदान के लिए आगे आना चाहिए. साथ ही अच्छे नेताओं को चुनें, ताकि उत्तराखंड राज्य और देश का विकास हो सके. इसके अलावा उत्तराखंड राज्य में तमाम नेचुरल रिसोर्स हैं, जिनका इस्तेमाल कर उत्तराखंड राज्य को मॉडल स्टेट बनाया जा सकता है. इस तरह के काम करने के लिए एक मजबूत सरकार की जरूरत है और मजबूत सरकार तभी बनेगी जब मतदाता अधिक से अधिक मतदान कर अच्छे लोगों को चुनेंगे.

Last Updated : Apr 3, 2024, 5:42 PM IST
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