देहरादून: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, केरल समेत कई राज्यों में भारी बारिश के चलते बड़ी तबाही मची है. जहां एक ओर हिमालयी राज्यों में भारी बारिश के चलते आपदा जैसे हालात बन गए हैं, तो वहीं मैदानी राज्यों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है. जिसके चलते आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कतें हिमालयी राज्यों में देखने को मिल रही हैं.
उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते हुए लैंडस्लाइड की वजह से न सिर्फ सड़कों, पुलों समेत अन्य सरकारी संसाधनों को नुकसान पहुंचा है बल्कि, तमाम लोगों की मौत हो चुकी है. खासकर रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में आसमान से बरसी आफत में भारी तबाही मची है. जगह-जगह रास्ते वॉश आउट हो चुके हैं. साथ ही सड़कें टूट चुकी है. इसके अलावा पुल भी बह गए. ऐसे में शासन प्रशासन की ओर से लगातार राहत बचाव का कार्य किया जा रहा है.
क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहा ये सब: भारी बारिश के चलते उत्तराखंड समेत देश में तमाम राज्यों में बनी गंभीर परिस्थितियों पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के डायरेक्टर कालाचंद साईं कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज की वजह से एक साथ भारी बारिश हो रही है, जिसके चलते तमाम राज्यों में विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं.
अगर बारिश धीमी गति और बहुत देर तक होती तो बारिश का पानी नेचुरल फ्लो में बह जाता है. अगर एक साथ अत्यधिक बारिश होने के चलते बारिश का पानी बह नहीं पा रहा है, जिसकी मुख्य वजह भारी बारिश के साथ ही ये भी है कि मैदानी राज्यों में ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था ठीक नहीं है. जिसके चलते बरसाती पानी निकल नहीं पा रहा है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जा रही है.
तापमान बढ़ने और घटने की वजह से पहाड़ों में पड़ रही दरारें: पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश की वजह से भूस्खलन हो रहा है, इसकी मुख्य वजह यही है कि तमाम स्लोप क्षेत्रों में तेजी से डेवलपमेंट के काम हो रहे हैं. इसके साथ ही तापमान बढ़ने और घटने की वजह से पहाड़ों के पत्थरों के बीच में दरारें पड़ रही है. जिसके चलते पहाड़ों के सतह की मजबूती कम होती जा रही है. पेड़ों का कटान होने के चलते पेड़ की जड़ें, जो पहाड़ों को सुरक्षित रखती थीं, वो अब पहाड़ों के स्लोप क्षेत्रों को वीक बना रही है.
पर्वतीय क्षेत्रों में बेयरिंग कैपेसिटी पर ध्यान देने की जरूरत: इनके अलावा सड़कों या टनल का निर्माण समेत अन्य प्रोजेक्ट्स के दौरान वैज्ञानिक अध्ययन करने की जरूरत है. पर्वतीय क्षेत्रों में बेयरिंग कैपेसिटी (Bearing Capacity) पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि, अगर उसके धारण क्षमता से ज्यादा लोड पड़ेगा तो उसका असर कभी न कभी देखने को मिलेगा.
पर्यावरणविद पद्मभूषण अनिल जोशी ने कहा- प्रचंड गर्मी ने दिया था मानसून भारी रहने का संकेत: वहीं, तमाम राज्यों में भारी बारिश के चलते बनी स्थितियों पर पर्यावरणविद पद्मभूषण अनिल जोशी ने कहा कि हर साल की तरह इस साल भी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ दरकने शुरू हो चुके हैं, लेकिन वर्तमान साल की घटनाएं साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा से बड़ी इस वजह से भी दिखाई दे रही हैं. क्योंकि, इस साल हुई प्रचंड गर्मी ने पहले ही संकेत दे दिया था कि इस बार का मानसून ज्यादा गंभीर होगा.
मौसम का चक्र है कि भीषण गर्मी के बाद मानसून में अत्यधिक बारिश होती है. साथ ही मौजूदा समय में ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दे भी साथ में जुड़े हुए हैं. जिसके चलते ये पूर्वानुमान लगाना काफी मुश्किल होता है कि किस क्षेत्र में कब और कितनी बारिश होगी. साथ ही कहा कि साल 2013 की तरह एक बार फिर रुद्रप्रयाग जिले में भारी बारिश हुई है, जिसके चलते पूर्व की घटनाएं दोबारा हुई हैं.
ढांचागत विकास के लिए नई नीति तैयार करने की जरुरत: ऐसे में अब इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि अपने ढांचागत विकास के लिए नई नीति तैयार की जाए. जिसका आधार होगा कि जब इस तरह की परिस्थितियां आएं तो वो ढांचागत विकास कब हो और कहां हो पर केंद्रित होकर चलेंगे तो भविष्य में सुरक्षित हो पाएंगे. साथ ही कहा कि आने वाले से में पहाड़ की स्थिरता ही मायने नहीं रखेगी. बल्कि, ये भी महत्वपूर्ण होगा कि कब व कितनी बारिश कहां पड़ रही है? उसके चलते क्या क्या संभावित नुकसान हो सकते हैं, उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत बोले- सरकार को और बेहतर करने की जरूरत: उत्तराखंड समेत देश के तमाम हिस्सों में भारी बारिश के चलते हो रहे नुकसान के सवाल पर सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि ये दैवीय आपदा है, जिसका पहले से अनुमान नहीं लगा सकते कि कहां पर ये आपदा आ सकती है. जिसको देखते हुए उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने 'उत्तराखंड दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति' बनायी. साथ ही राज्य की एसडीआरएफ देश में पहले स्थान पर आती है.
हालांकि, सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सरकार को और बेहतर करने की जरूरत है. वर्तमान समय से सबसे बड़ी जरूरत यही है कि आम जनता भी जागरूक हो. सांसद त्रिवेंद्र सिंह ने कहा कि उत्तराखंड और पूरा हिमालय करीब 2600 किलोमीटर का क्षेत्र मेन सेंट्रल थ्रस्ट में है. जिसके तहत जोशीमठ से पहले हेलंग से लेकर पूरा हिमालय मेन सेंट्रल थ्रस्ट में है. लिहाजा, खासकर इन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र के लिए मास्टर प्लान बनाना चाहिए.
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि वहां की बेयरिंग कैपेसिटी को देखकर छोटे-छोटे टाउन नियोजित तरीके से बनाने चाहिए. ये नियम बनाना चाहिए कि चयनित क्षेत्र में ही आबादी बसेगी, उसके बाहर किसी को बसने का अधिकार नहीं होगा. कुल मिलाकर जिस तरह से आपदाएं बढ़ रही हैं, उसको देखते हुए सख्त कदम उठाने की जरूरूत है.
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