नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भीड़ हिंसा से संबंधित एक जनहित याचिका (PIL) में पेश होने वाले वकीलों से कहा कि वे उन मामलों के बारे में चयनात्मक न हों, जिन्हें वे अदालत के समक्ष उजागर करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा, 'वकीलों को अदालत के समक्ष चुनिंदा मामलों को उजागर करने से बचना चाहिए. हमें धर्म या जाति के आधार पर नहीं जाना चाहिए'. शीर्ष अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ भीड़ की हिंसा की घटनाओं में वृद्धि पर चिंता जताई गई थी. साथ ही, भीड़ द्वारा हत्या के पीड़ितों के परिवारों के लिए तत्काल अंतरिम मुआवजे की मांग की गई थी.
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील निजाम पाशा से कन्हैया लाल से जुड़ी घटना को शामिल करने के बारे में पूछा. बता दें, कन्हैया लाल राजस्थान में एक दर्जी था. उनकी 2022 में पैगंबर मोहम्मद के संबंध में निलंबित भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की एक सोशल मीडिया पोस्ट साझा करने के आरोप में हत्या कर दी गई थी.
पीठ ने पाशा से पूछा, 'राजस्थान के दर्जी कन्हैया लाल के बारे में क्या, जिसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. वकील ने अदालत के समक्ष कहा कि यह याचिका में शामिल नहीं है.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि याचिका बिल्कुल भी चयनात्मक नहीं है, अगर राज्य सरकार को मामले में पक्षकार बनाया गया है. गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील अर्चना दवे पाठक ने कहा कि याचिका में सभी को शामिल किया जाना चाहिए.
इस बिंदु पर, गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि अदालत के समक्ष केवल मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या के मामलों को उजागर किया जा रहा है. वरिष्ठ अधिवक्ता अर्चना पाठक दवे ने कहा, 'यह सिर्फ मुसलमानों की भीड़ द्वारा हत्या है'.
पीठ ने टिप्पणी की कि इस तरह की दलीलें नहीं दी जानी चाहिए. हम जो कहते हैं उसके आधार पर अपनी बात न रखें. हम कह रहे हैं कि यह धर्म या जाति के बारे में नहीं है. यह उस समग्र मुद्दे के बारे में होना चाहिए जो प्रचलित है'.
पीठ ने पाशा से कहा, 'हमें धर्म या जाति के आधार पर नहीं जाना चाहिए'. पाशा ने जवाब दिया कि अपनी दलीलों में उन्होंने किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं किया है. उन्होंने दवे के तर्क को संबोधित करते हुए कहा, 'अगर मेरे विद्वान मित्र कोई अन्य घटना लाना चाहते हैं, तो मेरे लॉर्ड्स के सामने अतिरिक्त सामग्री रखने के लिए उनका स्वागत है'.
पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, 'बड़े कारण को देखें'. पाशा ने जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल का इस अदालत में जनहित याचिका का एक लंबा इतिहास है. दवे ने अदालत से याचिका के एक पैराग्राफ की जांच करने का आग्रह किया.
पाशा ने कहा, 'मुझे नहीं पता कि राज्य को यह समस्या क्यों है. अगर कोई विशेष घटना है, यदि किसी विशेष समुदाय को लक्षित करने का कोई विशेष सामाजिक मुद्दा है... ऐसा कोई कारण नहीं है कि इसे अदालत में न लाया जाए. मैंने अपनी दलील में किसी धर्म का जिक्र नहीं किया है'.
दवे ने याचिका के सारांश में एक पैराग्राफ पर अदालत का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा, 'मुस्लिम समुदाय के खिलाफ लिंचिंग और भीड़ हिंसा की चिंताजनक वृद्धि को देखते हुए...' पाशा ने कहा कि यह तथ्य का बयान है. यह इस देश में एक सांख्यिकीय तथ्य है और एक विशेष समुदाय के खिलाफ घटनाओं में वृद्धि हुई है. यह एक वास्तविकता है जिससे हम निपट रहे हैं'.
पीठ ने दवे को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा, 'राजस्थान में एक कानून है, कोई धर्म विशिष्ट कानून नहीं'. दवे ने कहा कि उन्होंने याचिका को ज्यों का त्यों पढ़ते हुए एक प्रस्तुति दी है.
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने किसी विशेष समुदाय के व्यक्तियों के संबंध में कुछ घटनाओं पर ध्यान दिया है, तो क्या इसे एक निश्चित सीमा तक ले जाना उचित है? दवे ने कहा कि अगर यह एक सामान्य जनहित याचिका है तो इसे किसी खास समुदाय तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'वे उन घटनाओं को अदालत के संज्ञान में ला रहे हैं जो उनकी जानकारी में हैं. हमें बताएं कि ऐसी कौन सी घटनाएं हैं, जहां हिंदू लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया है'.
शीर्ष अदालत ने वकीलों से अपनी दलीलें पेश करने में सावधानी बरतने को कहा. पीठ ने कहा कि यह मौजूदा जानकारी मुद्दे के बारे में होना चाहिए. पिछले साल जुलाई में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और छह राज्यों की पुलिस से जवाब मांगा था.
पढ़ें: मणिपुर के विस्थापित 18 हजार लोगों को मतदान की सुविधा देने संबंधी याचिका खारिज