नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली सरकार को पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) योजना के क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया था. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने इस मामले पर सुनावई की. पीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया.
क्या दलील दी दिल्ली सरकार के वकील नेः शुक्रवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने दलील दी कि राष्ट्रीय राजधानी के संदर्भ में केंद्र सरकार की शक्तियां राज्य सूची (सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि) में प्रविष्टि 1, 2 और 18 के तहत मामलों तक सीमित हैं. शीर्ष अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश ने स्वास्थ्य क्षेत्र के संबंध में सरकार की शक्ति को फिर से परिभाषित किया है.
दिल्ली सरकार को मजबूर किया जा रहाः वकील ने उच्च न्यायालय के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि यह दिल्ली सरकार को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर रहा है. पीठ को बताया गया कि यदि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाते हैं तो केंद्र पूंजीगत व्यय का 60 प्रतिशत और दिल्ली सरकार 40 प्रतिशत वहन करेगी. हालांकि, दिल्ली सरकार के वकील ने चालू व्यय का मुद्दा उठाया.
हाई कोर्ट ने क्या दिया था आदेशः पिछले महीने हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को 5 जनवरी तक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने को कहा था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केंद्रीय योजना राष्ट्रीय राजधानी में लागू हो. दिल्ली सरकार ने केंद्रीय योजना के क्रियान्वयन का कड़ा विरोध करते हुए कहा है कि दिल्ली के नागरिकों को इस योजनाओं के तहत मिलने वाली सुविधा से बेहतर सुविधा मिल रही है.
हाई कोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञानः बयानों को सुनने के बाद पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश पर भी रोक लगा दी. बता दें कि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर सुविधाओं की उपलब्धता के मुद्दे के संबंध में 2017 में शुरू की गई एक स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था.
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