संबलपुर: ओडिशा के संबलपुर स्थित हुतमा गांव की महिलाओं को कई पीढ़ियों से घर के कामों में ही उलझाए रखा गया है, उनका जीवन रसोई, बच्चों और कभी-कभार छोटी-मोटी सब्जियों के खेतों में ही घूमता रहता है. वहीं, पुरुष खेती के कामों में दबदबा रखते हैं, धान और मटर की खेती करते हैं, जबकि महिलाएं परिवार के आर्थिक प्रयासों में सिर्फ दर्शक बनकर रह जाती हैं. हालांकि, 2017 में प्रेरणा की एक छोटी सी चिंगारी ने यहां बदलाव के आंदोलन को प्रज्वलित कर दिया.
मां लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने एक स्थानीय गेंदा किसान से प्रेरित होकर एक नया रास्ता तय करने का फैसला किया. समूह की एक प्रमुख सदस्य संध्यारानी बघ याद करती हैं, "हमने उसे फूल उगाते देखा और सोचा, हम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते?" इस दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने नदी के किनारे एक एकड़ जमीन की पहचान की और इसे एक खिलते हुए बगीचे में बदलने का फैसला किया.
वहीं एक अन्य महिला दीपा बघ कहती हैं कहा कि यह आसान नहीं था. महिलाओं के पास संसाधनों, ज्ञान और सबसे महत्वपूर्ण बात, पारिवारिक समर्थन की कमी थी. शुरू में हमारे परिवारों को हम पर शक था. हमें धान के खेतों में काम करने की भी अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्हें फूलों के लिए जमीन देने के लिए मनाना एक चुनौती थी. फिर भी हमारी दृढ़ता ने जीत हासिल की.
तबला पंचायत की सीआरपी मंजुलता भायेंसा की मदद से समूह ने स्वयं सहायता समूह संघ से 1 लाख रुपये और बैंक से 2 लाख रुपये का अतिरिक्त लोन लिया. उन्होंने इन पैसों का इस्तेमाल कोलकाता से गेंदे के पौधे खरीदने, बाड़ लगाने, खाद्य और सिंचाई में निवेश करने में किया. महिलाओं ने फूलों को लगाने, पानी देने और उनकी देखभाल करने में लंबा समय बिताया.
संध्यारानी संघर्षों को याद करते हुए कहा हैं कि अक्सर पौधों में कीड़े लग जाते थे. हमने स्थानीय किसानों से सलाह ली, कीटनाशकों के बारे में सीखा और धीरे-धीरे परिणाम देखने लगे. जब पहला फूल खिला, तो ऐसा लगता है कि हमने कुछ असाधारण हासिल कर लिया है.
केवल ढाई महीने में गेंदे के फूल कटाई के लिए तैयार हो गए. महिलाओं ने अपनी उपज संबलपुर बाजार में बेची, जिससे उन्हें हर महीने 40,000 रुपये की कमाई हुई. वित्तीय लाभ से परे उनके निजी जीवन में भी बहुत बड़ा बदलाव आया.
सम्मान अर्जित किया और जीवन भी बदला
आज ये महिलाएं सिर्फ गृहिणी नहीं रह गई हैं. वे उद्यमी, कमाने वाली सदस्य और रोल मॉडल हैं. दीपा कहती हैं कि हमारे परिवार अब हमारी ओर देखते हैं. हम अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकते हैं, अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख सकते हैं और यहां तक कि अच्छी साड़ियां जैसी छोटी-मोटी लग्जरी सामान भी खरीद सकते हैं.
दीपा गर्व से कहती हैं कि महिलाएं समलेश्वरी मंदिर को फूल भी देती हैं, जिससे उन्हें हर हफ़्ते 8,000 से ₹10,000 रुपये का मुनाफा होता है. पहले हम हर छोटे-मोटे खर्च के लिए अपने पतियों पर निर्भर रहती थीं. अब, हम घर में बराबर का योगदान देती हैं. वह सम्मान बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था.
सहायता और अवसर
मां लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की सफलता ने स्थानीय अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया है. जिले के बागवानी विभाग ने गेंदा की खेती की अप्रयुक्त क्षमता को स्वीकार करते हुए महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन की घोषणा की है.
बागवानी के उप निदेशक हिमांशु शेखर साहू ने संबलपुर में गेंदा के फूलों की मांग पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जिले को सालाना 8,000 टन गेंदे के फूलों की आवश्यकता होती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर केवल 2,700 टन का उत्पादन होता है. मां लक्ष्मी जैसे सहायक समूह महिलाओं को सशक्त बनाते हुए इस अंतर को पाट सकते हैं. वित्तीय सहायता के अलावा बागवानी विभाग सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण और बाजार संपर्क प्रदान कर रहा है.
उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए विभिन्न योजनाओं के बारे में बात करते हुए बताया, "सरकार महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए 4,000 रुपये प्रति हेक्टेयर दे रही है, जबकि गेंदा की खेती करने वाले किसी भी एक सदस्य को 40,000 रुपये का 45 प्रतिशत यानी करीब 18,000 रुपये मिलते हैं. इसी तरह महिला स्वयं सहायता समूहों के छोटे और सीमांत किसानों के लिए हम बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत 12,000 रुपये और 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर देते हैं."
अधिकारी ने बताया कि समलेश्वरी मंदिर और हुमा मंदिर गेंदा के लिए सबसे बड़े बाजार हैं. साहू ने कहा, "फिलहाल उत्पादन 330 हेक्टेयर में हो रहा है. फिर भी हम 6000 टन से भी कम उत्पादन कर रहे हैं, जिसे हम आयात कर रहे हैं. इसलिए हम एमआईडीएच योजनाओं के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं और स्वयं सहायता समूह हमारी प्राथमिकता हैं - चाहे वे समूह के रूप में हों या एकल सदस्य के रूप में."
उज्जवल भविष्य
अपनी सफलता से उत्साहित होकर महिलाएं अब अपने उद्यम का विस्तार करने की योजना बना रही हैं. उनका लक्ष्य अपने खेती के क्षेत्र को दोगुना करना और बड़े बाजारों में सीधे बिक्री की संभावना तलाशना है.
संध्यारानी कहती हैं कि यह तो बस शुरुआत है.हमने खुद को और अपने समुदाय को साबित कर दिया है कि महिलाएं कुछ भी हासिल कर सकती हैं. हम सिर्फ फूल नहीं उगा रहे हैं. हम आत्मविश्वास, सम्मान और एक उज्जवल भविष्य बढ़ा रहे हैं. जब हुतमा गांव के गेंदे के खेत खिलते हैं, तो वे सिर्फ वित्तीय सफलता का प्रतीक नहीं होते, बल्कि उन महिलाओं के खिलते सपनों का भी प्रतीक होते हैं, जिन्होंने सीमित रहने से इनकार कर दिया.
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