सागर। वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिले साल भर नहीं हुआ, लेकिन बाघों के साथ दूसरे जीव जंतुओं के संरक्षण का काम टाइगर रिजर्व में बखूबी चल रहा है. अब यहां भारतीय गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष योजना पर काम शुरू किया जा रहा है. भोपाल के वन विहार पार्क में कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए गिद्धों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. दरअसल इंडियन वल्चर एक तरह से विलुप्ति की कगार पर है. पिछले दिनों दो चरणों में हुई प्रदेशव्यापी गिद्ध गणना के परिणामों से उत्साहित वन विभाग कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए गिद्धों के संरक्षण के विशेष कार्य योजना पर काम कर रहा है. इस योजना के तहत वन विहार से तीन जोड़े अव्यस्क गिद्धों को नौरादेही टाइगर रिजर्व के गिद्ध कोंच स्थान पर रखा जाएगा. गिद्ध कोंच टाइगर रिजर्व में गिद्धों का प्राकृतिक आवास है. जहां कुछ समय रहने के बाद गिद्धों को प्राकृतिक वातावरण में छोड़ दिया जाएगा.
विलुप्त प्राय भारतीय गिद्ध के संरक्षण का प्रयास
प्रकृति के सफाईकर्मी के तौर पर जाने जाने वाले गिद्ध विलुप्ति की कगार पर हैं. दरअसल, मृत मवेशियों पर आहार के लिए निर्भर रहने वाले गिद्ध मवेशियों को लगाए जा रहे इंजेक्शन के कारण विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं. हालांकि सरकार ने मवेशियों में उपयोग आने वाली कई दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. साथ ही साथ गिद्धों के संरक्षण के प्रयास भी तेज कर दिए गए हैं. भारतीय गिद्ध को बचाने के लिए मध्य प्रदेश वन विभाग ने दो बार प्रदेशव्यापी गणना का फैसला लिया, ताकि पता चल सके कि प्रवासी गिद्धों के अलावा ऐसे कितने गिद्ध हैं, जो मध्य प्रदेश के जंगलों में रहकर अपनी पीढ़ी बढा रहे हैं.
गिद्धों की शीतकालीन गणना फरवरी माह में 16,17 और 18 फरवरी को की गयी. वहीं ग्रीष्मकालीन गणना 29, 30 अप्रैल और एक मई को कई गयी. इसका उद्देश्य यही था कि जो मध्य प्रदेश में हिमालयन गिद्ध आते हैं, इनके चले जाने के बाद गणना की जाए. ताकि पता चल सके कि यहां रहने वाले गिद्ध कितने हैं. उसी उद्देश्य से गिद्धों की गणना पिछली सालों की तुलना में गिद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है.
कैप्टिव ब्रीडिंग के सहारे बढ़ेगी गिद्धों की संख्या
कैप्टिव ब्रीडिंग को 'संरक्षित प्रजनन' के नाम से भी जाना जाता है. लुप्तप्राय पौधों और जानवरों को नियंत्रित वातावरण में रखकर प्रजनन की प्रक्रिया को कैप्टिव ब्रीडिंग कहा जाता है. जानवरों और पौधों को प्राकृतिक आवास से बाहर चिड़ियाघरों, वनस्पति उद्यानों या सुरक्षित स्थानों पर सभी अन्य सुविधाओं में रखा जाता है. इसके लिए जानवर या वनस्पति का चयन कर उन्हें प्रजनन के उद्देश्य से नियंत्रित किया जाता है, ताकि उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके. फिलहाल यह प्रक्रिया राजधानी भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में शुरू कर दी है. यहां जन्म लेने वाले इंडियन वल्चर के अव्यस्क बच्चे ऐसे स्थान पर भेजे जाएंगे. जो गिद्धों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
नौरादेही टाइगर रिजर्व का चयन क्यों
वनविहार नेशनल पार्क में केप्टिव ब्रीडिंग से जन्मे गिद्धों के तीन अव्यस्क जोड़े नौरादेही टाइगर रिजर्व में छोड़े जाएंगे. दरअसल नौरादेही टाइगर रिजर्व का चयन इसलिए किया गया है, क्योंकि यहां पर गिद्धों के कई प्राकृतिक आवास हैं. इसके अलावा नौरादेही टाइगर रिजर्व के नरसिंहपुर जिले वाले इलाके में गिद्धकोंच एक जगह है. जहां गिद्ध काफी संख्या में पाये जाते है. इसके अलावा यहां नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य के दौरान जब पिछली बार गिद्धों की गणना हुई थी, तो नौरादेही अभ्यारण्य तीसरे स्थान पर था. इस साल हुई गणना में नौरादेही टाइगर रिजर्व में शीतकालीन गणना में 1554 गिद्ध पाए गए थे. वहीं ग्रीष्मकालीन गणना में 1252 गिद्ध पाए गए हैं. यानि करीब तीन सौ प्रवासी गिद्ध नौरादेही टाइगर रिजर्व में आए थे.
क्या कहते है जानकार
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ ए ए अंसारी बताते हैं कि नौरादेही टाइगर रिजर्व में ऐसे कुछ स्थान हैं. जहां गिद्धों का काफी अच्छा रहवास क्षेत्र है. उसमें एक जगह नरसिंहपुर जिले की डोंगरगांव रेंज में गिद्धकोंच है. वहां पर देशी गिद्ध ( इंडियन वल्चर) के बहुत अच्छे घोंसले है. एक अच्छा रहवास स्थल है. अभी हाल ही में वनविहार नेशनल पार्क में केप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है. वहां पर जो गिद्ध के नए बच्चे हुए हैं. उनको रिलीज करने का काम शुरू करने जा रहे हैं. उनको हम गिद्धकोंच में बसाएंगे. वहां हमने स्थल चयन और तैयारी कर ली है. इसमें हमें इंडियन तीन जोडे़ अव्यस्क मिलेंगे. जिन्हें हम aviary (पक्षीशाला) में रखेंगे. उनको कुछ दिन तक aviary में ही खाना उपलब्ध कराएंगे. फिर जब वह खुद ही खाने की व्यवस्था करने और खाने के लिए तैयार हो जाएंगे, तो फिर हमें उन्हें प्राकृतिक वातावरण में छोड़ देंगे.