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सागर के इस देवी माता मंदिर में ब्राह्मण नहीं आदिवासी होता है पुजारी, निसंतान की झोली भर देती हैं मां - Sagar Jharkhandan Mata Temple

वैसे तो बुंदेलखंड अपनी धार्मिक परंपराओं और लोक संस्कृति की विरासत के लिए प्रसिद्ध है. यहां कई ऐसी धार्मिक परंपराएं सुदूर अंचलों में आज भी कायम हैं, जो सालों पहले बनायी गई होगी. बुंदेलखंड के एक ऐसे ही आदिवासी गांव में जंगल के बीच माता का ऐसा मंदिर है जहां सिर्फ आदिवासी पुजारी ही पूजा करवा सकता है ब्राह्मण नहीं. पढ़िए खास खबर

MATA TEMPLE HATHKHOH VILLAGE DEORI
घने जंगल के बीच है झारखंडन माता का मंदिर
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 11, 2024, 10:12 PM IST

निसंतान की झोली भर देती हैं मां

सागर। कभी आपने सुना है कि मंदिर में ब्राह्मण पूजा पाठ नहीं करवा सकता. शायद नहीं लेकिन हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे जहां ब्राह्मण नहीं आदिवासी ही पूजा-पाठ करवा सकता है. अगर ऐसा नहीं किया तो कई अनहोनी हो जाती हैं. बुंदेलखंड के एक आदिवासी गांव में जंगल के बीच माता का ऐसा ही मंदिर है जिसकी पूजा सिर्फ आदिवासी पुजारी कर सकता है. इस परंपरा पर सवाल उठाते हुए मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति भी की जा चुकी है लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह यहां से चले गए. वहीं दूसरी तरफ माता भक्तों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी करती हैं. सुबह माता को जंगल में मिलने वाली चिरौंजी का भोग लगाया जाता है तो संध्या आरती के बाद बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. माता के भक्त मध्य प्रदेश और देश में दूर-दूर तक फैले हुए हैं.

priest tribal not Brahmin
हथखोह गांव में जंगल के बीच झारखंडन माता का मंदिर

घने जंगल के बीच है झारखंडन माता का मंदिर

नेशनल हाईवे 44 पर स्थित देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में जंगल के बीच झारखंडन माता का मंदिर है. माता के मंदिर की महिमा ऐसी है कि मध्य प्रदेश और देश के दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. स्थानीय लोग कोई भी मंगल या शुभ कार्य बिना माता की पूजा के शुरू नहीं करते हैं. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला भरता है और मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के मेले में दूर-दूर से आने वाले लोगों को स्थानीय पंचायत द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं.

Sagar Jharkhandan Mata Temple
झारखंडन माता

माता की पूजा नहीं करता ब्राह्मण पुजारी

घने जंगल के बीच आदिवासी गांव में बने मंदिर की एक अनोखी परंपरा है. मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं करता, बल्कि आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा कर सकता है. कई सालों पहले इस परंपरा को लेकर विवाद हुआ और सभी की सहमति से मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति की गयी. पुजारी अपनी पत्नी के साथ मंदिर में रहकर माता की पूजा करने लगे लेकिन एक अमावस्या की रात पुजारी और उनकी पत्नी के साथ अनहोनी घट गयी. जब सुबह गांव के लोगों ने जाकर देखा तो पंडित और उनकी पत्नी घायल अवस्था में मंदिर में पड़े हुए थे. किसने उन पर हमला किया और क्यों किया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी. स्थानीय लोग कहते हैं कि मंदिर की परंपरा बदले के जाने के कारण पुजारी जी को माता ने दंड दिया था. इस घटना के बाद फिर से मंदिर में आदिवासी पुजारी की नियुक्ति की गई और अब आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा अर्चना करते हैं.

mata fulfill wish Childless couple
संतान प्राप्ति के लिए लगती है हाथ की उलटी छाप

निसंतान दंपति की मन्नत होती है पूरी

कहा जाता है कि कोई भी निसंतान दंपति अगर सच्चे मन से मां से संतान प्राप्ति की कामना करें, तो इच्छा जरुर पूरी होती है और संतान के रूप में माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके लिए दंपति को मंदिर पहुंचकर माता की पूजा के बाद मंदिर के पीछे की दीवार पर हाथ का उल्टा छाप लगाना होता है. इस प्रक्रिया के बाद माता इच्छुक दंपतियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं और संतान प्राप्ति होने के बाद मंदिर पहुंचकर विशेष रूप से सीधा हाथ का छापा लगाना होता है. ऐसा न करने पर माता कुपित हो जाती हैं और संतान के लिए कई तरह की समस्याएं होती हैं.

Mata Temple Hathkhoh village Deori
निसंतान दंपति की मन्नत होती है पूरी

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चिरौंजी और बेसन के लड्डू का लगता है भोग

माता के मंदिर में भोग की परंपरा भी अनोखी है. माता की सुबह होने वाली पूजा और आरती के बाद विशेष रूप से जंगल में मिलने वाली चिरौंजी का भोग लगाया जाता है. इसके अलावा शाम की आरती के बाद माता को रोजाना बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. सुबह और शाम माता के भोग की यही परंपरा है. माता के भोग में ये दोनों वस्तुएं जरूरी होती हैं. इसके अलावा श्रद्धा अनुसार दूसरे फल, मिठाई और अन्य चीजों का भोग लगा सकते हैं.

Mata Temple Hathkhoh village Deori
माता की पूजा नहीं करता ब्राह्मण पुजारी

निसंतान की झोली भर देती हैं मां

सागर। कभी आपने सुना है कि मंदिर में ब्राह्मण पूजा पाठ नहीं करवा सकता. शायद नहीं लेकिन हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे जहां ब्राह्मण नहीं आदिवासी ही पूजा-पाठ करवा सकता है. अगर ऐसा नहीं किया तो कई अनहोनी हो जाती हैं. बुंदेलखंड के एक आदिवासी गांव में जंगल के बीच माता का ऐसा ही मंदिर है जिसकी पूजा सिर्फ आदिवासी पुजारी कर सकता है. इस परंपरा पर सवाल उठाते हुए मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति भी की जा चुकी है लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह यहां से चले गए. वहीं दूसरी तरफ माता भक्तों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी करती हैं. सुबह माता को जंगल में मिलने वाली चिरौंजी का भोग लगाया जाता है तो संध्या आरती के बाद बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. माता के भक्त मध्य प्रदेश और देश में दूर-दूर तक फैले हुए हैं.

priest tribal not Brahmin
हथखोह गांव में जंगल के बीच झारखंडन माता का मंदिर

घने जंगल के बीच है झारखंडन माता का मंदिर

नेशनल हाईवे 44 पर स्थित देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में जंगल के बीच झारखंडन माता का मंदिर है. माता के मंदिर की महिमा ऐसी है कि मध्य प्रदेश और देश के दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. स्थानीय लोग कोई भी मंगल या शुभ कार्य बिना माता की पूजा के शुरू नहीं करते हैं. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला भरता है और मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के मेले में दूर-दूर से आने वाले लोगों को स्थानीय पंचायत द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं.

Sagar Jharkhandan Mata Temple
झारखंडन माता

माता की पूजा नहीं करता ब्राह्मण पुजारी

घने जंगल के बीच आदिवासी गांव में बने मंदिर की एक अनोखी परंपरा है. मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं करता, बल्कि आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा कर सकता है. कई सालों पहले इस परंपरा को लेकर विवाद हुआ और सभी की सहमति से मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति की गयी. पुजारी अपनी पत्नी के साथ मंदिर में रहकर माता की पूजा करने लगे लेकिन एक अमावस्या की रात पुजारी और उनकी पत्नी के साथ अनहोनी घट गयी. जब सुबह गांव के लोगों ने जाकर देखा तो पंडित और उनकी पत्नी घायल अवस्था में मंदिर में पड़े हुए थे. किसने उन पर हमला किया और क्यों किया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी. स्थानीय लोग कहते हैं कि मंदिर की परंपरा बदले के जाने के कारण पुजारी जी को माता ने दंड दिया था. इस घटना के बाद फिर से मंदिर में आदिवासी पुजारी की नियुक्ति की गई और अब आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा अर्चना करते हैं.

mata fulfill wish Childless couple
संतान प्राप्ति के लिए लगती है हाथ की उलटी छाप

निसंतान दंपति की मन्नत होती है पूरी

कहा जाता है कि कोई भी निसंतान दंपति अगर सच्चे मन से मां से संतान प्राप्ति की कामना करें, तो इच्छा जरुर पूरी होती है और संतान के रूप में माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके लिए दंपति को मंदिर पहुंचकर माता की पूजा के बाद मंदिर के पीछे की दीवार पर हाथ का उल्टा छाप लगाना होता है. इस प्रक्रिया के बाद माता इच्छुक दंपतियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं और संतान प्राप्ति होने के बाद मंदिर पहुंचकर विशेष रूप से सीधा हाथ का छापा लगाना होता है. ऐसा न करने पर माता कुपित हो जाती हैं और संतान के लिए कई तरह की समस्याएं होती हैं.

Mata Temple Hathkhoh village Deori
निसंतान दंपति की मन्नत होती है पूरी

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चिरौंजी और बेसन के लड्डू का लगता है भोग

माता के मंदिर में भोग की परंपरा भी अनोखी है. माता की सुबह होने वाली पूजा और आरती के बाद विशेष रूप से जंगल में मिलने वाली चिरौंजी का भोग लगाया जाता है. इसके अलावा शाम की आरती के बाद माता को रोजाना बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. सुबह और शाम माता के भोग की यही परंपरा है. माता के भोग में ये दोनों वस्तुएं जरूरी होती हैं. इसके अलावा श्रद्धा अनुसार दूसरे फल, मिठाई और अन्य चीजों का भोग लगा सकते हैं.

Mata Temple Hathkhoh village Deori
माता की पूजा नहीं करता ब्राह्मण पुजारी
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