मेरठ: आज राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. लेकिन शायद ही किसी को यह जानकारी होगी कि आजाद भारत का जो पहला तिरंगा तैयार हुआ था वह मेरठ में हुआ था. अपने देश की आन बान और शान तिरंगे को मेरठ के सुभाष नगर के रहने वाले नत्थे सिंह ने लालटेन की रोशनी में तैयार किया था.
मेरठ में स्थित क्षेत्रीय श्री खादी गांधी आश्रम के माध्यम से नत्थे सिंह को यह अवसर मिला था और उसके बाद उन्होंने ही लालकिले पर फहराये जाने के लिए तिरंगा तैयार किया था. लालकिले पर फहराये गए पहले तिरंगे को तैयार करने वाले नत्थे सिंह जीवन भर तिरंगे ही तैयार करते रहे. उनके बनाए खादी के झंडे देशभर में गए. तब से आज तक उनका परिवार इसी काम को कर रहा है.
नत्थे सिंह के बेटे रमेश बताते हैं कि पिता लगभग 5 वर्ष पूर्व दुनिया को अलविदा कहकर जा चुके हैं. तब से उनकी यही कोशिश है कि वह उनके पिता द्वारा जो शुरुआत की गई, उसे जारी रखें. रमेश बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ, उस वक़्त संसद भवन में एक मीटिंग हुई थी, जिसके बाद क्षेत्रीय गांधी आश्रम मेरठ में दिल्ली से एक प्रतिनिधि मंडल पहुंचा था. जिसके बाद पहली बार तिरंगा बनाने के लिए बताया गया था.
वह बताते हैं कि उनके पिता और पिता के बड़े भाई दोनों गांधी आश्रम से जुड़े थे और तब आजाद भारत के पहले राष्ट्रध्वज को बनाने की जिम्मेदारी उनके पिता नत्थे सिंह को ही दी गयी थी. उनके पिताजी बताते थे कि उस वक़्त घर में लालटेन तो थी लेकिन तेल नहीं था. तब पड़ोसी ने लालटेन के लिए तेल दिया था. उसके बाद लालटेन की रोशनी में तिरंगा तैयार किया गया था.
उसके बाद से मेरठ में खादी के तिरंगे बड़े पैमाने पर फिर क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम में बनाने का काम होता आ रहा है. आज देशभर में मेरठ के बने तिरंगे की काफी डिमांड है. रमेश बताते हैं कि अपने पिता के बाद उन्होंने भी इसी काम के लिए खुद को समर्पित कर दिया है. और कुछ नहीं किया चाहे जो हालात आए. उन्हें इस काम को करके बेहद ख़ुशी होती है. क्योंकि सरकारी कार्यालय हो या फिर प्राइवेट संस्थान, सभी पर मेरठ का बना तिरंगा ही फहरता है.
हालांकि वह कहते हैं कि काफी उतार चढाव भी आए हैं, लेकिन उनकी कोशिश है कि वह इसी काम को करते रहें. रमेश जिस जगह पर रहते हैं वह मकान एक ही कमरा है. उसी में छोटी सी रसोई है. वहीं काम भी करना होता है और आराम भी. वह कहते हैं कि कई बार उन्होंने सरकारी अफसर के चक्कर काटे कि उन्हें किसी न किसी सरकारी योजना का लाभ मिल जाए ताकि उनका घर बन जाए, वह कहते हैं कि दस हजार रुपये भी उन्होंने खर्च किए लेकिन हुआ कुछ नहीं.
वह बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से उम्मीद है शायद वही उनकी कुछ मदद करा दें. रमेश हार्ट के मरीज हैं, पत्नी भी बीमार रहती हैं. परिवार में अकेले ही कमाने वाले हैं. उनकी दो बेटियां हैं, उन्हें चिंता सताती रहती है कि आखिर वे अपनी बेटियों की शादी कैसे करेंगे और जिस तरह से उन्हें समस्या है वह कैसे अपने परिवार को पालेंगे.
रमेश ने बताया कि काम भी काफी कम हो गया है, ज़ब राष्ट्रीय पर्व आते हैं तो उन्हें भी उम्मीद होती है कि वह ज्यादा मेहनत करके दो पैसे का इंतजाम कर लें. क्योंकि एक झंडा तैयार करने का उन्हें 20 रुपया ही मिलता है. रमेश बताते हैं कि क्योंकि अब तो आम पब्लिक भी झंडा बनाने लगी है, जिससे काम और भी कम हो चुका है.
रमेश कहते हैं कि बेशक आपकी नजर में हम महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, लेकिन आज तक कभी भी किसी मंच पर कहीं कोई सम्मान तक नहीं मिला. रमेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हैं कि वह चाहते हैं कि सरकार उनकी तरफ थोड़ा ध्यान दें, उनकी कुछ आर्थिक मदद हो जाए, उन्हें घर मिल जाए औऱ सरकार चाहे तो उनकी कुछ तकलीफ कम हो सकती.