अयोध्या : 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य काफी हद तक पूरा हो चुका है. लेकिन, इस मंदिर निर्माण के पीछे अनेक बलिदान, कई चुनौतियां और राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं. मंदिर निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले सिर्फ राम मंदिर आंदोलन से जुड़े राम भक्त, संघ, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के नेता ही नहीं थे, बल्कि सरकारी सेवाओं में तैनात तमाम ऐसे अधिकारी भी थे, जिन्होंने जन भावनाओं का सम्मान करते हुए कई ऐसे आदेशों को मानने से इनकार कर दिया था. इनसे मंदिर निर्माण और राम भक्तों की आस्था को ठेस पहुंच सकती थी.
ऐसे ही एक आईएएस अधिकारी थे केके नायर, जो सन 1949 में फैजाबाद (अयोध्या) शहर के जिला अधिकारी थे. 22-23 दिसंबर की रात विवादित ढांचे के अंदर प्रभु श्री राम की प्रतिमाएं प्रकट हुईं और उसके बाद उस विवादित स्थान पर रामलला विराजमान का दावा मजबूत हुआ.
पीएम और सीएम ने जब मूर्ति हटवाने को कहा...: यह वही घटनाक्रम था जिसे फैजाबाद की जिला अदालत से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी रामलला विराजमान के पक्ष में एक अहम दावा माना. विवादित ढांचे के अंदर रामलला की प्रतिमा की मौजूदगी इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण था कि वही स्थान राम जन्मभूमि है. इसके बाद लगभग 70 वर्षों तक कानूनी प्रक्रिया, अनेक गवाह और सबूत पेश करने के बाद देश की सर्वोच्च अदालत की विशेष खंडपीठ ने माना कि उस स्थान पर रामलला विराजमान का ही अधिकार है. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का सपना साकार हो सका.
22-23 दिसंबर की रात ढांचे के अंदर रामलला की प्रतिमा के प्रकट होने को लेकर हुए दावे को जिला प्रशासन से लेकर तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार को स्वीकार करना आसान नहीं था. इसके बाद काफी बवाल हुआ. इसे देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के सीएम गोविंद बल्लभ पंत से मूर्तियां हटवाने को कहा, लेकिन जन भावनाओं का सम्मान करते हुए कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देकर तत्कालीन डीएम केके नायर ने दोनों बार प्रधानमंत्री के आदेश को नहीं माना था.
जानिए आखिर कौन थे पूर्व डीएम : केके नायर का पूरा नाम कंडांगलाथिल करुणाकरण नायर था. इनका जन्म 11 सितंबर, 1907 को केरल में हुआ था. इनका बचपन केरल के अलाप्पुझा के कुट्टनाड गांव में बीता था. यहां अपनी बेसिक शिक्षा पूरी करने के बाद नायर हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां से लौटकर भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा मात्र 21 साल की उम्र में पास कर ली. सिविल सेवा पास करने के बाद उन्हें फैजाबाद के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट पद पर तैनाती मिली थी. आईएएस केके नायर 1949 में फैजाबाद के डीएम बन चुके थे.
तब 22-23 दिसंबर 1949 की रात में कुछ लोगों ने विवादित ढांचे के गर्भगृह में रामलला की मूर्तियां रख दी थीं. इसके बाद काफी बवाल हुआ. इसे देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के सीएम गोविंद बल्लभ पंत से मूर्तियां हटवाने को कहा. इसके बाद गोविंद बल्लभ पंत ने इन मूर्तियों को हटाने के आदेश डीएम केके नायर को दिए, लेकिन डीएम केके नायर ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
आदेश न मानने पर किया गया था सस्पेंड : अयोध्या में राम जन्मभूमि पर विवादित ढांचे के अंदर मौजूद रामलला की प्रतिमा ही इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण थी कि उस स्थान पर प्रभु श्री राम का जन्म स्थल है. तत्कालीन कांग्रेस की सरकार यह जानती थी कि आने वाले समय में यह मामला तूल पकड़ सकता है. यहां हिन्दू समुदाय का दावा मजबूत हो सकता है, इसलिए वह चाहती थी कि उस स्थान से प्रतिमा को हटा दिया जाए.
तत्कालीन पीएम के कहने पर सीएम ने दूसरी बार भी डीएम केके नायर को आदेश दिया, लेकिन उन्होंने ये कहते हुए मूर्तियां हटवाने से इनकार कर दिया कि इससे हिंदुओं की भावना आहत होगी और दंगे भड़क सकते हैं. दूसरी बार में केके नायर ने लिखा कि मूर्ति हटाने से पहले मुझे हटाया जाए. माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई, लेकिन पीएम और सीएम के आदेश न मानने पर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था. वह हाईकोर्ट गए और वहां से स्टे पाकर फिर से फैजाबाद के डीएम बन गए थे.
7 सितंबर 1977 को हुआ निधन : केके नायर के इस प्रयास को लेकर आज भी विश्व हिंदू परिषद, भाजपा और संघ के नेता उन्हें राम मंदिर निर्माण में बेहद अहम किरदार मानते हैं. इसीलिए विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय कार्यालय कार सेवक पुरम से लेकर राम जन्मभूमि परिसर के अंदर बनाए जा रहे म्यूजियम में भी उनकी तस्वीर को स्थान दिया गया है. 7 सितंबर 1977 को केके नायर का उनके गृह जनपद में निधन हो गया.
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