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राजीव गांधी ने कांग्रेस की बदल दी थी काया, 1985 के बिहार चुनाव में रिकॉर्ड जीत से झूम उठी थी पार्टी - Rajiv Gandhi birth anniversary

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 20, 2024, 6:23 PM IST

RAJIV GANDHI BIRTH ANNIVERSARY: राजीव गांधी के कार्यकाल की कांग्रेस पार्टी के सबसे स्वर्णिम कार्यकाल के रूप में गिनती होती है. उनके कार्यकाल में कांग्रेस में युवाओं को सबसे ज्यादा राजनीति में लाया गया. वहीं 1985 में बिहार में कांग्रेस ने बिहार में बेहतरीन प्रदर्शन किया और 196 सीट लेकर सरकार बनाई थी. उसके बाद से कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई.

राजीव गांधी की जयंती
राजीव गांधी की जयंती (ETV Bharat)
कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा के साथ खास बातचीत (ETV Bharat)

पटना: देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की मंगलवार को 80वां जयंती समारोह है. पूरा देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर रहा है. देश उनकी जयंती समारोह को सद्भावना दिवस के रूप में मानता है. बिहार में भी राजीव गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद से पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दूसरे दलों का सहारा ले रही है. विस्तार से जानें कैसे बिहार में स्वर्णिम रहा राजीव गांधी के समय कांग्रेस का कार्यकाल.

1985 में कांग्रेस की बिहार में बड़ी जीत: 1985 के शुरुआती महीनो में 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें बिहार भी एक था. बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत हुई. 324 सीटों में से 196 पर पार्टी को जीत मिली. अगर आंकड़ों के आईने से देखें तो 1951-52 और 1957 चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी की बिहार में यह सबसे बड़ी जीत थी.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

मुख्यमंत्री बनाने और हटाने का खेल: इससे पहले की चंद्रशेखर सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते, राजीव गांधी ने उन्हें केंद्र में मंत्री बनने का निमंत्रण देकर बिहार के राजनितिक दलदल से बहार निकाल लिया और सूबे की कमान बिन्देश्वरी दुबे को सौंप दी. हालांकि, राजीव गांधी के पास आपनी मां की तरह असुरक्षित महसूस करने का कोई ठोस कारण नहीं था, लेकिन राजीव गांधी भी अपनी मां के पदचिह्नों पर चलते हुए बार-बार मुख्यमंत्री बदलते रहे.

दुबे के बाद आजाद के हाथों सत्ता की चाबी: दुबे पद पर तीन साल से थोड़े दिन कम रहे. चंद्रशेखर सिंह की तरफ उनकी भी पदोन्नति हो गई. 13 फरवरी 1988 को बिन्देश्वरी दुबे ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अगले दिन नई दिल्ली में वह केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेते दिखे. फिर बारी आई भागवत झा आजाद की. आजाद, इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे थे. उन्हें दुबे की जगह बिहार का मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया. पद पर 1 साल और 23 दिन रहे और फिर उनकी भी छुट्टी हो गई.

राजीव गांधी की इस नीति के कारण कमजोर हुई पार्टी!: आजाद को मुख्यमंत्री पद से हटाना उतना ही अचरज भरा था जितना कि उनको मुख्यमंत्री बनाना था. राजीव गांधी ने भागवत झा आजाद को बेवजह मुख्यमंत्री पद से हटा कर ब्राह्मण जाति के लोगों को, खास तौर पर मैथिल ब्राह्मणों को नाराज जरूर कर दिया, जिसका फायदा आने वाले वर्षों में बीजेपी उठाने वाली थी.

जगन्नाथ मिश्र की वापसी: फिर आई सत्येन्द्र नारायण सिंह की बारी, जो बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह के बेटे थे. सत्येन्द्र नारायण सिंह जाने-माने घराने के तो थे ही, दबंग राजपूत जाति के अग्रणी नेताओं में भी उनकी गिनती होती थी. लेकिन राजीव गांधी के लिए मुख्यमंत्री हटाना और बनाना मानो एक खेल था, जिसे वह बड़े चाव से खेलते दिखे. सत्येन्द्र सिंह मुख्यमंत्री पद पर करीब नौ महीने ही रहे और अब उनकी बारी थी जाने की. ब्राह्मण जाति के वोटरों को खुश करने के लिए, 1990 के विधानसभा चुनाव से ठीक तीन महीने पहले डॉ. जगन्नाथ मिश्र की वापसी हुई.

विपक्ष की कमजोरी का हुआ फायदा: कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत का सीधा मतलब था विपक्ष का कमजोर होना. सोशलिस्ट नेता कर्पूरी ठाकुर का 1988 में निधन हो गया था. बचे हुए समाजवादी नेताओं ने लोकदल में शरण ली, जो 46 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी. बीजेपी को 21, जनता पार्टी को 13, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को 9, सीपीआई, सीपीएम और इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट को एक-एक सीट मिली, जबकि हमेशा की तरह बड़ी तादाद में 29, निर्दलीय चुने गए.

बिहार से कांग्रेस विदाई हुई तय: राज्य में पांच साल तक कांग्रेस पार्टी का म्यूजिकल चेयर का खेल चला और पांच मुख्यमंत्रियों का आना जाना लगा रहा. वहीं केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह का राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा देना, बोफोर्स सौदे में राजीव गांधी पर आरोप लगना और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में चला भ्रष्ट्राचार विरोधी आन्दोलन. 1989 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार हुई. बिहार में भी भ्रष्ट्राचार के खिलाफ काफी आक्रोश था और 1990 में हुए अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मुहं की खानी पड़ी. जगन्नाथ मिश्र कांग्रेस की डूबती नैया को बचा नहीं पाए.

सत्ता गंवाए हुआ तीन दशक: कांग्रेस का ग्राफ बिहार में लगातार नीचे ही गिरता जा रहा है और सत्ता गंवाए हुए तीन दशक हो गए हैं. आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र थे और अब कांग्रेस पार्टी लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की पीठ पर सवारी करने को मजबूर हैं. लालू प्रसाद यादव 1985 में एक बार फिर से सोनपुर क्षेत्र से विधायक बने थे और पांच साल बाद 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री पद संभालने वाले थे. कभी लालू यादव बिहार में कांग्रेस के दुश्मन नंबर 1 होते थे और अब कांग्रेस की मजबूरी का आलम यह है कि अगर लालू का साथ ना हो तो कांग्रेस पार्टी का बिहार विधानसभा में खाता खोलना मुश्किल होगा.

राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ प्रेमचंद मिश्रा की तस्वीर
राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ प्रेमचंद मिश्रा की तस्वीर (ETV Bharat)

राजीव गांधी के कार्यकाल को प्रेमचंद्र ने किया याद: वहीं बिहार कांग्रेस में प्रेमचंद मिश्रा उस समय राजीव गांधी के सबसे करीबी नेताओं में जाने जाते थे. खुद राजीव गांधी नहीं उन्हें प्रदेश एनएसयूआई की कमान सौंपी थी. मंगलवार को राजीव गांधी की जयंती पर ईटीवी भारत से बातचीत में प्रेमचंद मिश्रा ने राजीव गांधी के कार्यकाल को याद किया. उन्होंने कहा कि मैं बहुत निकटतम सहयोगी नहीं था लेकिन उस समय मैं एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष था. राजीव गांधी के समय का प्रदर्शन कांग्रेस का ऐतिहासिक प्रदर्शन था जो आज तक कांग्रेस नहीं दोहरा पाई. लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद है कि कांग्रेस फिर से उस स्थिति में आ सकती है और उस रिकॉर्ड को दोहरा सकती है.

"आज राहुल गांधी अपने पिता के ध्वजवाहक के रूप में राजनीति में काम कर रहे हैं और सच्चाई के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. छोटे-छोटे समूह अपेक्षित वंचितों के पास राहुल गांधी पहुंच रहे हैं जो राजीव गांधी की देन है. यह सच्चाई है बिहार में हम 1985 के बाद धीरे-धीरे कमजोर होते गए. खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाना एक बड़ी चुनौती बिहार के कांग्रेस के नेताओं के लिए है.आज संकल्प लेने का दिन है. राजीव गांधी के बताए हुए रास्ते पर चलने से ही कांग्रेस अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस ला सकती है."- प्रेमचंद मिश्रा, कांग्रेस नेता

राजीव गांधी के कार्यकाल में बिहार कांग्रेस खूब चमका
राजीव गांधी के कार्यकाल में बिहार कांग्रेस खूब चमका (ETV Bharat)

राजीव गांधी का बचपन और शिक्षा: राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बॉम्बे में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के घर हुआ था. 1951 में राजीव गांधी की स्कूली शिक्षा शिव निकेतन स्कूल से शुरू हुई. 1954 में राजीव गांधी को वेल्हम बॉयज स्कूल, देहरादून और दून स्कूल, देहरादून में भर्ती कराया गया. 1961 में राजीव गांधी ए-लेवल की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. 1962 में राजीव गांधी को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन में दाखिला मिला, लेकिन उन्होंने डिग्री हासिल नहीं की. 1966 में राजीव गांधी को इंपीरियल कॉलेज, लंदन में दाखिला मिला.

कंप्यूटर क्रांति लाने में अहम रोल: उन्हें डिजिटल इंडिया और सूचना तकनीक और दूरसंचार क्रांति का जनक कहा जाता है. राजीव गांधी की पहल पर अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर पार डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(C-DOT)की स्थापना हुई थी. इस पहल से शहर से लेकर गांवों तक दूरसंचार का जाल बिछना शुरू हुआ था. गांव के लोगों को भी संचार के मामले में देश-दुनिया से जोड़ने की योजना बनाई गई. फिर 1986 में राजीव की पहल से ही एमटीएनएल की स्थापना हुई. देश में पहले कंप्यूटर आम लोगों की पहुंच से दूर था. मगर राजीव गांधी की सरकार ने देश में कंप्यूटर क्रांति लाने की दिशा में काम किया.

मंच पर बोलते हुए प्रेमचंद मिश्रा
मंच पर बोलते हुए प्रेमचंद मिश्रा (ETV Bharat)

देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री: 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी. आजादी के बाद सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले में यदि किसी की गिनती होती है तो वह है स्वर्गीय राजीव गांधी हैं. 40 साल की अवस्था में उन्होंने 31 दिसंबर 1984 को देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया था. युवा सोच वाले राजीव गांधी को 21 वीं सदी के भारत का निर्माता भी कहा जाता है. राजीव गांधी की नेतृत्व में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की कांग्रेस 404 सीट लेकर सत्ता में आई. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने.

राजनीति में एंट्री: 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में अपने छोटे भाई संजय गांधी की मृत्यु के बाद, राजीव गांधी लंदन से दिल्ली लौटे. 16 फरवरी 1981 को राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया और दिल्ली में एक रैली को संबोधित किया.इस समय राजीव अभी भी एयर इंडिया में सेवारत थे. 4 मई 1981 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में राजीव गांधी को अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया. इसके बाद राजीव गांधी ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और अपना नामांकन दाखिल करने के लिए सुल्तानपुर चले गए. राजीव गांधी ने लोकदल के उम्मीदवार शरद यादव को 2,37,000 मतों से हराया और 17 अगस्त 1981 को संसद सदस्य के रूप में शपथ ली.

दूर संचार क्रांति के जनक: राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री बने उसके बाद से ही भारत में दूरसंचार क्रांति आई. भारत आज जिस डिजिटल इंडिया की बात कर रहा है, उसकी कल्पना राजीव गांधी ने अपने जमाने में किया था. यही कारण है कि उन्हें डिजिटल इंडिया और सूचना तकनीक और दूरसंचार क्रांति का जनक कहा जाता है. राजीव गांधी की पहल पर अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर पार डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(C-DOT)की स्थापना हुई थी.

ये भी पढ़ें- राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जयंती पर दी श्रद्धांजलि - Birth Anniversary Of Rajiv Gandhi

कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा के साथ खास बातचीत (ETV Bharat)

पटना: देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की मंगलवार को 80वां जयंती समारोह है. पूरा देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर रहा है. देश उनकी जयंती समारोह को सद्भावना दिवस के रूप में मानता है. बिहार में भी राजीव गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद से पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दूसरे दलों का सहारा ले रही है. विस्तार से जानें कैसे बिहार में स्वर्णिम रहा राजीव गांधी के समय कांग्रेस का कार्यकाल.

1985 में कांग्रेस की बिहार में बड़ी जीत: 1985 के शुरुआती महीनो में 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें बिहार भी एक था. बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत हुई. 324 सीटों में से 196 पर पार्टी को जीत मिली. अगर आंकड़ों के आईने से देखें तो 1951-52 और 1957 चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी की बिहार में यह सबसे बड़ी जीत थी.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

मुख्यमंत्री बनाने और हटाने का खेल: इससे पहले की चंद्रशेखर सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते, राजीव गांधी ने उन्हें केंद्र में मंत्री बनने का निमंत्रण देकर बिहार के राजनितिक दलदल से बहार निकाल लिया और सूबे की कमान बिन्देश्वरी दुबे को सौंप दी. हालांकि, राजीव गांधी के पास आपनी मां की तरह असुरक्षित महसूस करने का कोई ठोस कारण नहीं था, लेकिन राजीव गांधी भी अपनी मां के पदचिह्नों पर चलते हुए बार-बार मुख्यमंत्री बदलते रहे.

दुबे के बाद आजाद के हाथों सत्ता की चाबी: दुबे पद पर तीन साल से थोड़े दिन कम रहे. चंद्रशेखर सिंह की तरफ उनकी भी पदोन्नति हो गई. 13 फरवरी 1988 को बिन्देश्वरी दुबे ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अगले दिन नई दिल्ली में वह केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेते दिखे. फिर बारी आई भागवत झा आजाद की. आजाद, इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे थे. उन्हें दुबे की जगह बिहार का मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया. पद पर 1 साल और 23 दिन रहे और फिर उनकी भी छुट्टी हो गई.

राजीव गांधी की इस नीति के कारण कमजोर हुई पार्टी!: आजाद को मुख्यमंत्री पद से हटाना उतना ही अचरज भरा था जितना कि उनको मुख्यमंत्री बनाना था. राजीव गांधी ने भागवत झा आजाद को बेवजह मुख्यमंत्री पद से हटा कर ब्राह्मण जाति के लोगों को, खास तौर पर मैथिल ब्राह्मणों को नाराज जरूर कर दिया, जिसका फायदा आने वाले वर्षों में बीजेपी उठाने वाली थी.

जगन्नाथ मिश्र की वापसी: फिर आई सत्येन्द्र नारायण सिंह की बारी, जो बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह के बेटे थे. सत्येन्द्र नारायण सिंह जाने-माने घराने के तो थे ही, दबंग राजपूत जाति के अग्रणी नेताओं में भी उनकी गिनती होती थी. लेकिन राजीव गांधी के लिए मुख्यमंत्री हटाना और बनाना मानो एक खेल था, जिसे वह बड़े चाव से खेलते दिखे. सत्येन्द्र सिंह मुख्यमंत्री पद पर करीब नौ महीने ही रहे और अब उनकी बारी थी जाने की. ब्राह्मण जाति के वोटरों को खुश करने के लिए, 1990 के विधानसभा चुनाव से ठीक तीन महीने पहले डॉ. जगन्नाथ मिश्र की वापसी हुई.

विपक्ष की कमजोरी का हुआ फायदा: कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत का सीधा मतलब था विपक्ष का कमजोर होना. सोशलिस्ट नेता कर्पूरी ठाकुर का 1988 में निधन हो गया था. बचे हुए समाजवादी नेताओं ने लोकदल में शरण ली, जो 46 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी. बीजेपी को 21, जनता पार्टी को 13, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को 9, सीपीआई, सीपीएम और इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट को एक-एक सीट मिली, जबकि हमेशा की तरह बड़ी तादाद में 29, निर्दलीय चुने गए.

बिहार से कांग्रेस विदाई हुई तय: राज्य में पांच साल तक कांग्रेस पार्टी का म्यूजिकल चेयर का खेल चला और पांच मुख्यमंत्रियों का आना जाना लगा रहा. वहीं केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह का राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा देना, बोफोर्स सौदे में राजीव गांधी पर आरोप लगना और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में चला भ्रष्ट्राचार विरोधी आन्दोलन. 1989 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार हुई. बिहार में भी भ्रष्ट्राचार के खिलाफ काफी आक्रोश था और 1990 में हुए अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मुहं की खानी पड़ी. जगन्नाथ मिश्र कांग्रेस की डूबती नैया को बचा नहीं पाए.

सत्ता गंवाए हुआ तीन दशक: कांग्रेस का ग्राफ बिहार में लगातार नीचे ही गिरता जा रहा है और सत्ता गंवाए हुए तीन दशक हो गए हैं. आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र थे और अब कांग्रेस पार्टी लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की पीठ पर सवारी करने को मजबूर हैं. लालू प्रसाद यादव 1985 में एक बार फिर से सोनपुर क्षेत्र से विधायक बने थे और पांच साल बाद 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री पद संभालने वाले थे. कभी लालू यादव बिहार में कांग्रेस के दुश्मन नंबर 1 होते थे और अब कांग्रेस की मजबूरी का आलम यह है कि अगर लालू का साथ ना हो तो कांग्रेस पार्टी का बिहार विधानसभा में खाता खोलना मुश्किल होगा.

राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ प्रेमचंद मिश्रा की तस्वीर
राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ प्रेमचंद मिश्रा की तस्वीर (ETV Bharat)

राजीव गांधी के कार्यकाल को प्रेमचंद्र ने किया याद: वहीं बिहार कांग्रेस में प्रेमचंद मिश्रा उस समय राजीव गांधी के सबसे करीबी नेताओं में जाने जाते थे. खुद राजीव गांधी नहीं उन्हें प्रदेश एनएसयूआई की कमान सौंपी थी. मंगलवार को राजीव गांधी की जयंती पर ईटीवी भारत से बातचीत में प्रेमचंद मिश्रा ने राजीव गांधी के कार्यकाल को याद किया. उन्होंने कहा कि मैं बहुत निकटतम सहयोगी नहीं था लेकिन उस समय मैं एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष था. राजीव गांधी के समय का प्रदर्शन कांग्रेस का ऐतिहासिक प्रदर्शन था जो आज तक कांग्रेस नहीं दोहरा पाई. लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद है कि कांग्रेस फिर से उस स्थिति में आ सकती है और उस रिकॉर्ड को दोहरा सकती है.

"आज राहुल गांधी अपने पिता के ध्वजवाहक के रूप में राजनीति में काम कर रहे हैं और सच्चाई के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. छोटे-छोटे समूह अपेक्षित वंचितों के पास राहुल गांधी पहुंच रहे हैं जो राजीव गांधी की देन है. यह सच्चाई है बिहार में हम 1985 के बाद धीरे-धीरे कमजोर होते गए. खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाना एक बड़ी चुनौती बिहार के कांग्रेस के नेताओं के लिए है.आज संकल्प लेने का दिन है. राजीव गांधी के बताए हुए रास्ते पर चलने से ही कांग्रेस अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस ला सकती है."- प्रेमचंद मिश्रा, कांग्रेस नेता

राजीव गांधी के कार्यकाल में बिहार कांग्रेस खूब चमका
राजीव गांधी के कार्यकाल में बिहार कांग्रेस खूब चमका (ETV Bharat)

राजीव गांधी का बचपन और शिक्षा: राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बॉम्बे में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के घर हुआ था. 1951 में राजीव गांधी की स्कूली शिक्षा शिव निकेतन स्कूल से शुरू हुई. 1954 में राजीव गांधी को वेल्हम बॉयज स्कूल, देहरादून और दून स्कूल, देहरादून में भर्ती कराया गया. 1961 में राजीव गांधी ए-लेवल की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. 1962 में राजीव गांधी को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन में दाखिला मिला, लेकिन उन्होंने डिग्री हासिल नहीं की. 1966 में राजीव गांधी को इंपीरियल कॉलेज, लंदन में दाखिला मिला.

कंप्यूटर क्रांति लाने में अहम रोल: उन्हें डिजिटल इंडिया और सूचना तकनीक और दूरसंचार क्रांति का जनक कहा जाता है. राजीव गांधी की पहल पर अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर पार डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(C-DOT)की स्थापना हुई थी. इस पहल से शहर से लेकर गांवों तक दूरसंचार का जाल बिछना शुरू हुआ था. गांव के लोगों को भी संचार के मामले में देश-दुनिया से जोड़ने की योजना बनाई गई. फिर 1986 में राजीव की पहल से ही एमटीएनएल की स्थापना हुई. देश में पहले कंप्यूटर आम लोगों की पहुंच से दूर था. मगर राजीव गांधी की सरकार ने देश में कंप्यूटर क्रांति लाने की दिशा में काम किया.

मंच पर बोलते हुए प्रेमचंद मिश्रा
मंच पर बोलते हुए प्रेमचंद मिश्रा (ETV Bharat)

देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री: 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी. आजादी के बाद सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले में यदि किसी की गिनती होती है तो वह है स्वर्गीय राजीव गांधी हैं. 40 साल की अवस्था में उन्होंने 31 दिसंबर 1984 को देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया था. युवा सोच वाले राजीव गांधी को 21 वीं सदी के भारत का निर्माता भी कहा जाता है. राजीव गांधी की नेतृत्व में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की कांग्रेस 404 सीट लेकर सत्ता में आई. राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने.

राजनीति में एंट्री: 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में अपने छोटे भाई संजय गांधी की मृत्यु के बाद, राजीव गांधी लंदन से दिल्ली लौटे. 16 फरवरी 1981 को राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया और दिल्ली में एक रैली को संबोधित किया.इस समय राजीव अभी भी एयर इंडिया में सेवारत थे. 4 मई 1981 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में राजीव गांधी को अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया. इसके बाद राजीव गांधी ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और अपना नामांकन दाखिल करने के लिए सुल्तानपुर चले गए. राजीव गांधी ने लोकदल के उम्मीदवार शरद यादव को 2,37,000 मतों से हराया और 17 अगस्त 1981 को संसद सदस्य के रूप में शपथ ली.

दूर संचार क्रांति के जनक: राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री बने उसके बाद से ही भारत में दूरसंचार क्रांति आई. भारत आज जिस डिजिटल इंडिया की बात कर रहा है, उसकी कल्पना राजीव गांधी ने अपने जमाने में किया था. यही कारण है कि उन्हें डिजिटल इंडिया और सूचना तकनीक और दूरसंचार क्रांति का जनक कहा जाता है. राजीव गांधी की पहल पर अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर पार डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(C-DOT)की स्थापना हुई थी.

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