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1100 साल पुरानी टेक्नोलॉजी का कमाल, गर्मी-अकाल कुछ भी पड़े, नहीं होता रायसेन किले में पानी खत्म - 1100 year old water harvesting

देश के कई राज्यों में भीषण गर्मी से सूखे के हालात बन रहे हैं और एक बार फिर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की अहमियत लोगों को समझ आने लगी है. वहीं अगर आप सोच रहे हैं कि जल संरक्षण आज के समय की जरूरत है तो आप गलत हैं. प्राचीन काल से ही जल संरक्षण का काफी महत्व रहा है. इसी का एक जीता जागता नमूना है रायसेन किले का 1100 साल पुराना रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम.

1100 YEAR OLD WATER HARVESTING
1100 साल पुरानी जल संरक्षण की अनोखी तकनीक (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 29, 2024, 7:47 AM IST

Updated : May 29, 2024, 9:05 AM IST

रायसेन. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायसेन शहर में स्थित है रायसेन किला. 1500 फीट ऊंची पहाड़ियों पर बना ये किला 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच का बताया जाता है. इतिहासकार इसे 3 हजार वर्ष से ज्यादा पुराना भी मानते हैं. लेकिन आज भी इस किले में जल संरक्षण की ऐसी तकनीक मौजूद है, जिससे हमें सीख लेनी चाहिए. यहां के तत्कालीन राजा ने जल संरक्षण के महत्व को समझते हुए और अपनी प्रजा को हर वक्त पर्याप्त पानी प्रदान करने के लिए किले के अंदर 6 बड़े तालाब और 84 टाके कुंड बनवाए थे और इन्हें इस तरह से जोड़ा था कि आज भी यहां जल संरक्षित होता है.

1100 साल पुरानी जल संरक्षण की अनोखी तकनीक (Etv Bharat)

किले में इस तरह होता है जल संरक्षण

रायसेन किला लगभग 1 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. किले के अंदर दो से तीन मंजिला कई इमारते हैं, जिनकी छत से गिरने वाला बारिश का पानी छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले के अंदर बनी हुई बाबड़ी, तालाबों और पत्थर से बने वॉटर टैंकर जैसे कुंडों में संरक्षित होता है. फिर इसका उपयोग साल भार किया जाता है. युवा पीढ़ी रायसेन किले की इस तकनीक से भी प्रेरणा ले सकती है.

हजारों सैनिक व प्रजा को नहीं होती थी पानी की कमी

इतिहासकार बताते हैं कि भले ही रायसेन किले के निर्माण का समय 10वीं से 11वीं शताब्दी बताया जाता रहा है पर यहां मिले अवशेष और मूर्तियां 3 से 4 हजार वर्ष पुरानी भी रही हैं. ऐसे में इस किले का काफी महत्व रहा है. वहीं जब इस किले का निर्माण हुआ तब इसके दुर्ग में प्रजा के साथ-साथ 15 से 20 हजार सैनिक हुआ करते थे. तब राजा ने यहां जल संरक्षण की ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे यहां कभी पानी की कमी नहीं होती थी. यहां बनाए गए कुंडों को छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले की छत से गिरने वाले पानी की नालियों से जोड़ा गया था, जिसमें बारिश का साफ शुद्ध पानी साफ होते हुए जल कुंड में सहेजा जाता था. इस पानी का उपयोग वर्ष भर राजा और उनकी प्रजा किया करती थी.

रायसेन में पेयजल की समस्या

1500 फीट की ऊंचाई पर होने के बाद भी पानी के लिए प्रजा को मैदानी क्षेत्रों में उतरने की जरूरत नहीं थी. ऐसे में दुश्मनों के हमले के दौरान इसका काफी फायदा भी मिलता था. आज रायसेन शहर की आबादी लगभग 45 से 50 हजार से ऊपर होने को है और शासन द्वारा लोगों के लिए पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना एक चुनौती साबित हो रहा है. वहीं 1100 साल पुराने किले पर मौजूद इस सिस्टम की वजह से पर्याप्त पानी मौजूद है.

जल प्रबंधन के लिए लें रायसेन किले से सीख

कुछ वर्ष पहले तक रायसेन किले की तलहटी पर बनाए गए उस समय के कुंड का पानी रायसेन शहर में पहुंचाया जाता था. आज रायसेन शहर में लगभग 32 करोड़ रुपए खर्च कर हलाली डैम से पानी लाया जाता है, जो शहरवासियों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता. वहीं देखरेख के अभवा में ये प्राचीन जल स्रोत नष्ट होने की कगार पर है. 1100 साल पहले बनाई गई इस जल प्रबंधन की व्यवस्था से आज के युवाओं और प्रशासन को सीख लेनी चाहिए, जिससे शहर और देश के अन्य इलाकों में पेयजल जैसी समस्या का समाधान किया जा सके.

युद्ध के दौरान मिला जल संरक्षण का फायदा

'युग युगीन रायसेन' पुस्तक के लेखक राजीव लोचन चौबे कहते हैं, '' रायसेन दुर्ग पर छठवीं-सातवीं शताब्दी की मूर्तियां भी मिली हैं जो बताती हैं कि उसे समय भी यह दुर्ग विद्यमान था. तीन दिन का हमने यहां पर सर्वे किया था जिसमें देशभर के पुरातत्व विख्यात आए हुए थे. वहां जो पुरातत्व साक्ष्य मिले उससे यह तय हुआ कि यह कम से कम गुप्ता कल से भी पुराना है. पहले यहां पर आदिमानव रहा करते थे, यहां रॉक शेल्टर भी हैं. जिन्हें बाद में कट करके बाउंड्री वॉल बनाई गईं और इसी से अंदर तालाब भी बनाए गए. सबसे बड़ी समस्या यह आई थी कि जब दुश्मन किले पर हमला करते थे तो चारों तरफ वह घेरा डालते थे ताकि लोग बाहर न जा पाएं. अंदर जल और अन्न की व्यवस्था खत्म होने पर लोगों को बाहर आना पड़ता था. पर रायसेन किले की स्थिति यह रही कि इन्हें जल और अन्न के संकट की वजह से अभी किला खाली नहीं करना पड़ा.''


जल संरक्षण व्यवस्था देखने लायक

रायसेन जिले की ऐतिहासिक धरोहर के बारे में जब जिला कलेक्टर अरविंद कुमार दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा, '' पेयजल ग्राउंडवॉटर इस समय की बड़ी आवश्यकता है और उसे संजो कर रखना उतना ही महत्वपूर्ण है. जहां तक रायसेन किले की बात है तो जैसा कि हम जानते हैं कि जब किले बनते थे तो उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता था. खाने और पानी के मामले में भी किले को आत्मनिर्भर बनाया जाता था. उस समय जो भी इंजीनियरिंग उपयोग की गई थी, उस समय ध्यान रखा गया था कि पानी की पर्याप्त व्यवस्था रहे. पर अभी भी वहां की जो रेन वॉटर प्रणाली है उसमें आज भी वर्षा के पानी को संजोकर रखा जाता है. अगर हम किले को देखने जाएं तो उसके ऐतिहासिक महत्व के साथ ही जो रेन वॉटर सिस्टम है उसे भी लोग देखना पसंद करते हैं. वर्तमान में जो हमारे नए निर्माण हो रहे हैं उसमें बिल्डिंग परमिशन के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए भी नियम बनाए गए हैं, जिससे लोग रेनवॉटर हार्वेस्टिंग करें. जितना ज्यादा हो सके वर्षा जल को संरक्षित करें.''

रायसेन. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायसेन शहर में स्थित है रायसेन किला. 1500 फीट ऊंची पहाड़ियों पर बना ये किला 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच का बताया जाता है. इतिहासकार इसे 3 हजार वर्ष से ज्यादा पुराना भी मानते हैं. लेकिन आज भी इस किले में जल संरक्षण की ऐसी तकनीक मौजूद है, जिससे हमें सीख लेनी चाहिए. यहां के तत्कालीन राजा ने जल संरक्षण के महत्व को समझते हुए और अपनी प्रजा को हर वक्त पर्याप्त पानी प्रदान करने के लिए किले के अंदर 6 बड़े तालाब और 84 टाके कुंड बनवाए थे और इन्हें इस तरह से जोड़ा था कि आज भी यहां जल संरक्षित होता है.

1100 साल पुरानी जल संरक्षण की अनोखी तकनीक (Etv Bharat)

किले में इस तरह होता है जल संरक्षण

रायसेन किला लगभग 1 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. किले के अंदर दो से तीन मंजिला कई इमारते हैं, जिनकी छत से गिरने वाला बारिश का पानी छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले के अंदर बनी हुई बाबड़ी, तालाबों और पत्थर से बने वॉटर टैंकर जैसे कुंडों में संरक्षित होता है. फिर इसका उपयोग साल भार किया जाता है. युवा पीढ़ी रायसेन किले की इस तकनीक से भी प्रेरणा ले सकती है.

हजारों सैनिक व प्रजा को नहीं होती थी पानी की कमी

इतिहासकार बताते हैं कि भले ही रायसेन किले के निर्माण का समय 10वीं से 11वीं शताब्दी बताया जाता रहा है पर यहां मिले अवशेष और मूर्तियां 3 से 4 हजार वर्ष पुरानी भी रही हैं. ऐसे में इस किले का काफी महत्व रहा है. वहीं जब इस किले का निर्माण हुआ तब इसके दुर्ग में प्रजा के साथ-साथ 15 से 20 हजार सैनिक हुआ करते थे. तब राजा ने यहां जल संरक्षण की ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे यहां कभी पानी की कमी नहीं होती थी. यहां बनाए गए कुंडों को छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले की छत से गिरने वाले पानी की नालियों से जोड़ा गया था, जिसमें बारिश का साफ शुद्ध पानी साफ होते हुए जल कुंड में सहेजा जाता था. इस पानी का उपयोग वर्ष भर राजा और उनकी प्रजा किया करती थी.

रायसेन में पेयजल की समस्या

1500 फीट की ऊंचाई पर होने के बाद भी पानी के लिए प्रजा को मैदानी क्षेत्रों में उतरने की जरूरत नहीं थी. ऐसे में दुश्मनों के हमले के दौरान इसका काफी फायदा भी मिलता था. आज रायसेन शहर की आबादी लगभग 45 से 50 हजार से ऊपर होने को है और शासन द्वारा लोगों के लिए पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना एक चुनौती साबित हो रहा है. वहीं 1100 साल पुराने किले पर मौजूद इस सिस्टम की वजह से पर्याप्त पानी मौजूद है.

जल प्रबंधन के लिए लें रायसेन किले से सीख

कुछ वर्ष पहले तक रायसेन किले की तलहटी पर बनाए गए उस समय के कुंड का पानी रायसेन शहर में पहुंचाया जाता था. आज रायसेन शहर में लगभग 32 करोड़ रुपए खर्च कर हलाली डैम से पानी लाया जाता है, जो शहरवासियों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता. वहीं देखरेख के अभवा में ये प्राचीन जल स्रोत नष्ट होने की कगार पर है. 1100 साल पहले बनाई गई इस जल प्रबंधन की व्यवस्था से आज के युवाओं और प्रशासन को सीख लेनी चाहिए, जिससे शहर और देश के अन्य इलाकों में पेयजल जैसी समस्या का समाधान किया जा सके.

युद्ध के दौरान मिला जल संरक्षण का फायदा

'युग युगीन रायसेन' पुस्तक के लेखक राजीव लोचन चौबे कहते हैं, '' रायसेन दुर्ग पर छठवीं-सातवीं शताब्दी की मूर्तियां भी मिली हैं जो बताती हैं कि उसे समय भी यह दुर्ग विद्यमान था. तीन दिन का हमने यहां पर सर्वे किया था जिसमें देशभर के पुरातत्व विख्यात आए हुए थे. वहां जो पुरातत्व साक्ष्य मिले उससे यह तय हुआ कि यह कम से कम गुप्ता कल से भी पुराना है. पहले यहां पर आदिमानव रहा करते थे, यहां रॉक शेल्टर भी हैं. जिन्हें बाद में कट करके बाउंड्री वॉल बनाई गईं और इसी से अंदर तालाब भी बनाए गए. सबसे बड़ी समस्या यह आई थी कि जब दुश्मन किले पर हमला करते थे तो चारों तरफ वह घेरा डालते थे ताकि लोग बाहर न जा पाएं. अंदर जल और अन्न की व्यवस्था खत्म होने पर लोगों को बाहर आना पड़ता था. पर रायसेन किले की स्थिति यह रही कि इन्हें जल और अन्न के संकट की वजह से अभी किला खाली नहीं करना पड़ा.''


जल संरक्षण व्यवस्था देखने लायक

रायसेन जिले की ऐतिहासिक धरोहर के बारे में जब जिला कलेक्टर अरविंद कुमार दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा, '' पेयजल ग्राउंडवॉटर इस समय की बड़ी आवश्यकता है और उसे संजो कर रखना उतना ही महत्वपूर्ण है. जहां तक रायसेन किले की बात है तो जैसा कि हम जानते हैं कि जब किले बनते थे तो उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाता था. खाने और पानी के मामले में भी किले को आत्मनिर्भर बनाया जाता था. उस समय जो भी इंजीनियरिंग उपयोग की गई थी, उस समय ध्यान रखा गया था कि पानी की पर्याप्त व्यवस्था रहे. पर अभी भी वहां की जो रेन वॉटर प्रणाली है उसमें आज भी वर्षा के पानी को संजोकर रखा जाता है. अगर हम किले को देखने जाएं तो उसके ऐतिहासिक महत्व के साथ ही जो रेन वॉटर सिस्टम है उसे भी लोग देखना पसंद करते हैं. वर्तमान में जो हमारे नए निर्माण हो रहे हैं उसमें बिल्डिंग परमिशन के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए भी नियम बनाए गए हैं, जिससे लोग रेनवॉटर हार्वेस्टिंग करें. जितना ज्यादा हो सके वर्षा जल को संरक्षित करें.''

Last Updated : May 29, 2024, 9:05 AM IST
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