कोयंबटूर: राजकुमार कोयंबटूर जिले के करमदई का रहने वाला है. उसने 2009 में एक परिचित से दोपहिया वाहन खरीदा था. बाद में पता चला कि वाहन का मालिक कोई और था और राजकुमार ने बिना किसी कागजात के वाहन खरीद लिया था, लेकिन बाद में पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उसने वाहन किसी और को बेच दिया.
मामले की जानकारी जब पुलिस को हुई तो पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर कोयंबटूर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया. गिरफ्तारी के चलते वह डिप्रेशन में चला गया था, लेकिन इससे बाहर आने के लिए राजकुमार ने जेल में छोटी-छोटी पेंटिंग बनाना शूरू किया. सेंट्रल जेल के अधीक्षक ने राजकुमार की प्रतिभा को देखकर उसका हौसला बढ़ाया. बाद में राजकुमार को 4 महीने बाद रिहा कर दिया गया.
भित्ति चित्र बनाने का अवसर: इसके बाद पिछले साल 2010 में कट्टूर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर रहे श्रीनिवासलु ने राजकुमार को उस समय आयोजित विश्व तमिल शास्त्रीय सम्मेलन में भित्ति चित्र बनाने का अवसर दिया. इस सम्मेलन में राजकुमार ने अपनी चित्रकारी का हुनर अलग और खूबसूरत तरीके से दिखाया और बेहतरीन पेंटिंग बनाई.
15 सालों में किया विकास: राजकुमार की पेंटिंग कौशल से परिचित एक निजी रियल एस्टेट कंपनी ने जेल से निकलने के बाद उसके पुनर्वास का फैसला किया और राजकुमार को अपने अपार्टमेंट के अग्रभाग पर लगाया. साथ ही, आवासों में हाथी, घोड़े आदि की विभिन्न वॉल पेंटिंग और मूर्तियां बनाने का अवसर मिला. राजकुमार ने इसका अच्छा उपयोग किया है और 15 सालों में एक पहचान हासिल की. वह कोयंबटूर में विभिन्न इमारतों के लिए वॉल पेंटिंग और मूर्तियां बना रहा है.
इस मामले में कोयंबटूर जिला कलेक्टर कार्यालय में एक नया प्रवेश द्वार बनाने और उसके दोनों तरफ मूर्तियों को डिजाइन करने का काम चल रहा है. काम के लिए अनुबंधित निजी निर्माण कंपनी ने राजकुमार को मूर्तियां स्थापित करने का अवसर दिया. तदनुसार, राजकुमार अपने कर्मचारियों के साथ जिलाधिकारी कार्यालय में मूर्तियों को डिजाइन कर रहा है.
इस बारे में राजकुमार ने कहा कि 'जेल में बिताए चार महीनों के दौरान मैं बहुत उदास था. जेल अधिकारियों ने मुझे जेल में मिलने वाले चारकोल के टुकड़ों और पेंसिलों से दीवारों पर पेंटिंग करते देखा, जिससे मुझे पेंटिंग पर पूरा ध्यान देने की प्रेरणा मिली.'
उसने कहा कि 'जेल से बाहर आने के बाद मैंने कई जगहों पर भित्ति चित्र बनाए. एक निजी निर्माण कंपनी जो मुझे जानती थी, उसने मुझे मूर्तियां डिजाइन करने का अवसर दिया. चूंकि उन्हें मुझ पर भरोसा था और मैंने उन्हें दिए गए सभी काम अच्छे से पूरे किए, इसलिए उन्हें एक के बाद एक अवसर मिलते गए. मैंने आज कोयंबटूर की अधिकांश इमारतों के अग्रभाग डिजाइन किए हैं.'