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हाईकोर्ट ने कहा- मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना DGP को भी फिर केस की जांच करने का आदेश देने का अधिकार नहीं - Allahabad High Court Order

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 11, 2024, 8:49 PM IST

Updated : Jun 11, 2024, 10:11 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने एक अहम आदेश में कहा कि मजिस्ट्रेट की अनुमति बिना पुलिस को फिर जांच करने का आदेश देने का अधिकार नहीं है. ऐसा करने का अधिकार केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को है.

Police have no rights to order re-investigation without magistrate permission says ALLAHABAD HIGH COURT
इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम आदेश (फोटो क्रेडिट- इलाहाबाद हाईकोर्ट)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पुलिस सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत पुनर्विवेचना कर सकती है, लेकिन ऐसा करने से पहले उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना जरूरी है. मजिस्ट्रेट की अनुमति लिए बिना विवेचना करने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस का कोई भी अधिकारी चाहे वह विवेचक हो या प्रदेश का डीजीपी, किसी को भी पुनर्विवेचना का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने का अधिकार केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को है, किसी पुलिस अधिकारी को नहीं. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने नवनीत की याचिका पर अधिवक्ता आलोक कुमार यादव व सरकारी वकील को सुनकर दिया. एडवोकेट आलोक यादव ने कोर्ट को बताया कि गौतमबुद्धनगर के फेज-तीन थाने में आईपीसी की धारा 420, 406, 467, 468, 120 बी के तहत एक एफआईआर दर्ज कराई गई.

इसमें पुलिस ने विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल कर दी. आरोपी ऋषि अग्रवाल ने इस चार्जशीट को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी. हाईकोर्ट ने चार्जशीट को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी. इसी मामले में डिप्टी कमिश्नर गौतमबुद्ध नगर ने पुनर्विवेचना का आदेश कर दिया. इसके बाद इंस्पेक्टर क्राइम सेल राधारमण सिंह ने विवेचना की और फाइनल रिपोर्ट लगा दी. अब इंस्पेक्टर याची को थाने बुलाकर साक्ष्य पेश करने का दबाव बना रहे हैं और इसके लिए उसे नोटिस भेजा है.

अधिवक्ता आलोक यादव का तर्क था कि पुलिस को ऐसा करने का अधिकार ही नहीं है. हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर पुनर्विवेचना का आदेश देने वाले डीसीपी सेंट्रल नोएडा एवं इंस्पेक्टर क्राइम सेल राधारमण सिंह से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है. कोर्ट ने दोनों अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है कि किन कारणों से उन्होंने इस प्रकार का आदेश किया, विशेषकर तब, जब इस केस में चार्जशीट भी दाखिल हो गई थी और मजिस्ट्रेट ने उस पर संज्ञान भी ले लिया था.

कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया डीसीपी सेंट्रल नोएडा को पुनर्विवेचना का आदेश देने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का प्रयोग मजिस्ट्रेट की अनुमति के बाद किया जा सकता है. कोर्ट ने याची को जारी नोटिस पर रोक लगा दी है. साथ ही इंस्पेक्टर या किसी अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा याची को इस केस में तलब करने पर भी रोक लगा दी है. कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को पूर्व में दाखिल पुलिस रिपोर्ट के आधार पर केस की सुनवाई जारी रखने को कहा है. कोर्ट ने अन्य विपक्षियों से भी तीन सप्ताह में याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है.

ये भी पढ़ें- BJP के 218 MLA लोकसभा में नहीं जिता पाए अपना क्षेत्र, विधानसभा चुनाव आज हों तो चली जाए सीएम योगी की कुर्सी? - UP Assembly Election 2027

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पुलिस सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत पुनर्विवेचना कर सकती है, लेकिन ऐसा करने से पहले उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना जरूरी है. मजिस्ट्रेट की अनुमति लिए बिना विवेचना करने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस का कोई भी अधिकारी चाहे वह विवेचक हो या प्रदेश का डीजीपी, किसी को भी पुनर्विवेचना का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने का अधिकार केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को है, किसी पुलिस अधिकारी को नहीं. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने नवनीत की याचिका पर अधिवक्ता आलोक कुमार यादव व सरकारी वकील को सुनकर दिया. एडवोकेट आलोक यादव ने कोर्ट को बताया कि गौतमबुद्धनगर के फेज-तीन थाने में आईपीसी की धारा 420, 406, 467, 468, 120 बी के तहत एक एफआईआर दर्ज कराई गई.

इसमें पुलिस ने विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल कर दी. आरोपी ऋषि अग्रवाल ने इस चार्जशीट को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी. हाईकोर्ट ने चार्जशीट को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी. इसी मामले में डिप्टी कमिश्नर गौतमबुद्ध नगर ने पुनर्विवेचना का आदेश कर दिया. इसके बाद इंस्पेक्टर क्राइम सेल राधारमण सिंह ने विवेचना की और फाइनल रिपोर्ट लगा दी. अब इंस्पेक्टर याची को थाने बुलाकर साक्ष्य पेश करने का दबाव बना रहे हैं और इसके लिए उसे नोटिस भेजा है.

अधिवक्ता आलोक यादव का तर्क था कि पुलिस को ऐसा करने का अधिकार ही नहीं है. हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर पुनर्विवेचना का आदेश देने वाले डीसीपी सेंट्रल नोएडा एवं इंस्पेक्टर क्राइम सेल राधारमण सिंह से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है. कोर्ट ने दोनों अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है कि किन कारणों से उन्होंने इस प्रकार का आदेश किया, विशेषकर तब, जब इस केस में चार्जशीट भी दाखिल हो गई थी और मजिस्ट्रेट ने उस पर संज्ञान भी ले लिया था.

कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया डीसीपी सेंट्रल नोएडा को पुनर्विवेचना का आदेश देने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का प्रयोग मजिस्ट्रेट की अनुमति के बाद किया जा सकता है. कोर्ट ने याची को जारी नोटिस पर रोक लगा दी है. साथ ही इंस्पेक्टर या किसी अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा याची को इस केस में तलब करने पर भी रोक लगा दी है. कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को पूर्व में दाखिल पुलिस रिपोर्ट के आधार पर केस की सुनवाई जारी रखने को कहा है. कोर्ट ने अन्य विपक्षियों से भी तीन सप्ताह में याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है.

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Last Updated : Jun 11, 2024, 10:11 PM IST
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