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लोकसभा अध्यक्ष ने पढ़ा आपातकाल पर प्रस्ताव, सदन में विपक्ष का हंगामा, बाहर विरोध प्रदर्शन - LS speaker Om Birla on Emergency - LS SPEAKER OM BIRLA ON EMERGENCY

LS speaker Om Birla on Emergency: आज लोकसभा में आपातकाल पर पेश किए गए प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल(इमरजेंसी) लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया.

LS speaker Om Birla on Emergency
लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला. (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 26, 2024, 3:15 PM IST

नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को आपातकाल लागू करने की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले को संविधान पर हमला बताया, जिसके बाद सदन में विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन किया. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित होने के तुरंत बाद बिरला की ओर से आपातकाल का उल्लेख किए जाने पर निचले सदन के पहले सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव देखने को मिला.

विपक्षी दलों के जोरदार विरोध के बीच बिरला ने कहा कि यह सदन 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले की कड़ी निंदा करता है. हम उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हैं जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी निभाई. कांग्रेस सहित विपक्षी सांसद आपातकाल के संदर्भ के खिलाफ नारे लगाते हुए खड़े हो गए.

स्पीकर ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहब अंबेडकर की ओर से बनाए गए संविधान पर हमला किया.

बिरला ने कहा कि भारत को पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है. भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और बहस का समर्थन किया गया है. लोकतांत्रिक मूल्यों की हमेशा रक्षा की गई है, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया है. इंदिरा गांधी ने ऐसे भारत पर तानाशाही थोपी.

सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया. बिरला ने कहा कि भारतीय नागरिकों के अधिकारों को कुचला गया और उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई. वह समय था जब विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, पूरे देश को जेल में बदल दिया गया था.

बिरला ने कहा कि तत्कालीन तानाशाही सरकार ने मीडिया पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर प्रतिबंध था. स्पीकर ने सदस्यों से कुछ देर के लिए मौन रहने का आग्रह किया और बाद में कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी. सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित होने के तुरंत बाद भाजपा सदस्यों ने संसद के बाहर तख्तियां लहराते हुए और नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया.

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नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को आपातकाल लागू करने की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले को संविधान पर हमला बताया, जिसके बाद सदन में विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन किया. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित होने के तुरंत बाद बिरला की ओर से आपातकाल का उल्लेख किए जाने पर निचले सदन के पहले सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव देखने को मिला.

विपक्षी दलों के जोरदार विरोध के बीच बिरला ने कहा कि यह सदन 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले की कड़ी निंदा करता है. हम उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हैं जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी निभाई. कांग्रेस सहित विपक्षी सांसद आपातकाल के संदर्भ के खिलाफ नारे लगाते हुए खड़े हो गए.

स्पीकर ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहब अंबेडकर की ओर से बनाए गए संविधान पर हमला किया.

बिरला ने कहा कि भारत को पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है. भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और बहस का समर्थन किया गया है. लोकतांत्रिक मूल्यों की हमेशा रक्षा की गई है, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया है. इंदिरा गांधी ने ऐसे भारत पर तानाशाही थोपी.

सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचल दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया. बिरला ने कहा कि भारतीय नागरिकों के अधिकारों को कुचला गया और उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई. वह समय था जब विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, पूरे देश को जेल में बदल दिया गया था.

बिरला ने कहा कि तत्कालीन तानाशाही सरकार ने मीडिया पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर प्रतिबंध था. स्पीकर ने सदस्यों से कुछ देर के लिए मौन रहने का आग्रह किया और बाद में कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित कर दी. सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित होने के तुरंत बाद भाजपा सदस्यों ने संसद के बाहर तख्तियां लहराते हुए और नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया.

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