नई दिल्ली: दक्षिणी दिल्ली के नेब सराय में हुए ट्रिपल मर्डर केस ने देशभर को हिला कर रख दिया है. जहां एक बेटे ने अपने माता-पिता की हत्या के साथ-साथ अपनी बहन को भी मौत के घाट उतार दिया, जिसके बाद उसने पुलिस के सामने हत्या की वजह बताई कि माता पिता उसके साथ सौतेला व्यवहार करते थे जबकि वो बहन को ज्यादा प्यार करते थे. पुलिस इस मामले में आरोपी युवक का मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी कराने वाली है. ताकि ये साफ हो सके कि आखिर कैसे एक बेटे के मन में अपने ही माता पिता और बहन के खिलाफ इतनी नफरत भर गई कि उन्हें बेहरमी से चाकू से गला रेत कर मार डाला.
आखिर क्यों किसी के अंदर इतनी हीन भावना पनपती है? या बेटे और बेटियों के रिश्तों में किस तरीके से मां-बाप संतुलन रखें? और कैसे पहचानें कि किसी के मन में आपके प्रति दुश्मनी पैदा हो रही है? इन सभी सवालों पर 'ETV भारत' ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मनोचिकित्सा विभाग की चेयरपर्सन अनीता महाजन से विशेष बातचीत की. आइए जानते हैं उन्होंने क्या बताया?
सवाल: आखिर क्यों, बहन को प्यार करने वाला भाई इस कदर हत्यारा हो सकता है? क्या मुख्य वजह लगती है?
जवाब: यह तिरस्कार और रिजेक्शन की भावना है, जो सामने वाले के मन में पनपती है. इस चीज के लिए कोई और दोषी नहीं होता, बल्कि खुद माता पिता ही दोषी होते हैं. जहां एक बेटा समझता है कि वह संपत्ति का पूरा अधिकार रखता है. लेकिन जब पिता की संपत्ति का आधा हिस्सा बहन को मिलता है तो भाई के अंदर प्रतिशोध की भावना पनपती है. इसमें सबसे बड़ी बात आती है तुलना की. जब माता पिता ही अपने बेटे और बेटे के बीच में तुलना का भाव ले आते हैं तो सामने वाला व्यक्ति प्रतिशोध में आ जाता है. नेब सराय में हुए ट्रिपल मर्डर केस में भी यही बात सामने आई है, जहां पिता बेटे को रिश्तेदारों और उसके दोस्तों के सामने डांट देते थे. कई बार मारा भी है और कड़े शब्दों के इस्तेमाल किए. इन सभी में मुख्य बात यह थी कि जिस व्यक्ति से उसका कंपैरिजन यानी तुलना हो रही थी वह उसकी बहन थी. यह बिलकुल सामान्य बात है. अगर किसी से आपकी तुलना की जाए और सामने वाले व्यक्ति को ऊंचा दिखाया जाए, तो प्रतिशोध की भावना पनपना जाहिर सी बात है. सत्य यह है कि प्रॉपर्टी का हिस्सा दोनों में यानी बेटा और बेटी में समान रूप से बंटना चाहिए. लेकिन यह बात उस बेटे को नागवार साबित हुई. इसके चलते उसने अपनी बहन को ही नहीं, बल्कि माता पिता को भी मौत के घाट उतार दिया. ऐसी भावनाएं एक या दो दिन में पनपने वाली नहीं है. यह सदियों से चली आ रही बातों के शिकार का प्रभाव है. जिसका अंत यह हुआ कि एक प्लानिंग के द्वारा उन्होंने अपने मां बाप के साथ बहन को भी मार दिया.
सवाल: पेरेंट्स को बच्चों के बीच में कैसा व्यवहार रखना चाहिए, ताकि बच्चों में भावना नहीं पनपे कि हमारे संग भेदभाव हो रहा है?
जवाब: देखिए वर्तमान के समय में बेटा और बेटी दोनों समान है. ट्रिपल मर्डर केस का जो हुआ है वह फैमिली हरियाणा की रहने वाली है और हरियाणा में भी अब बेटियों को बेटों के बराबर तवज्जो दी जाती है. अब वहां की बेटियां आसमान की उदय से समुद्र की गहराई तक उपलब्धियां हासिल कर चुकी हैं. इसके बावजूद आज भी लोगों की मानसिकता पितृ सत्ता समाज की तरफ ज्यादा है, जहां परिवार बेटों को ज्यादा महत्व दिया जाता है. लेकिन इसमें बदलाव जरूरी है, इसकी शुरुआत समाज से पहले परिवार से होती है. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों को बराबर का सम्मान और अधिकार देना चाहिए. नेब सराय वाले केस में सामने आया है कि बेटा पढ़ने में कमजोर था. उसका ध्यान बॉक्सिंग में ज्यादा था. वहीं बेटी पढ़ने में अच्छी थी. इस मामले को देखते हुए माता पिता को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के बीच तुलना का भाव न लाएं. देखिए, हर इंसान की अपनी अलग क्वालिटी और ताकत होती है. जिसको पहचानना पैरेंट्स का काम है. ऐसा न हो कि किसी एक को कमजोर समझा जाए. इन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ध्यान रखना होगा कि बेटा या फिर बेटी को किसी के सामने जलील या तिरस्कार की भावना से न भर दें.
सवाल: कैसे पहचानें ऐसी मानसिकता वाले लोगों को कि वह हीन भावना के बाद कैसा बर्ताव करते हैं? या उनमें कोई बदलाव हो, तो क्या करें?
जवाब: यह बात लाजमी है कि हीन भावना उस व्यक्ति के अंदर आती है जिसका तिरस्कार या बेइज्जती की जाती है. इसको देखते हुए सामने वाले आदमी के मन में बुराई करने वाले व्यक्ति के लिए गलत भावनाएं पैदा होने लगती है. ऐसे व्यक्ति की पहचान उसके बिहेवियर, इमोशन, हाव भाव और बात करने का ढंग से की जा सकती है. नेबसराय वाले केस में जो मामला बिगड़ा है वह पिता और बेटे के बीच की बातचीत का असर तुरंत दिखता है. अगर कोई भी पिता अपने बच्चों से बातचीत में दूरी रखेगा तो वह उसके भाव कुछ समझ नहीं पाएगा. फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इस केस में पिता अपने बेटे से बातचीत में और इमोशन शेयरिंग में दूरी रखता था कि नहीं. वहीं जिन लोगों के मन में सामने वाले के प्रति हीन भावना आने लग जाती है वह उनके ऊपर तंज कसना या हंसी मजाक में भी अपने मन की बात को जाहिर कर देने वाले बर्ताव करने लगते हैं. इसमें कमी यही होती है कि सामने वाला इन बातों को हंसी मजाक में ही ले जाता है जबकि जो बोल रहा है वह अपने मन के भाव को प्रकट कर रहा होता है. ऐसी स्थिति में मां-बाप को अपने बच्चों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए ना कि उनके ऊपर गुस्से के भाव से बात करनी चाहिए. क्योंकि बातें प्रेम और बातचीत से ही सुलझती है. इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर बच्चा अपने आप को अलग और अप्रिय भाव के रूप में महसूस कर रहा है तो माता-पिता को सहज होने की जरूरत है, मुख्य बात यह है कि मजाक और झगड़े में कहीं जाने वाली बातें भी माता-पिता को गंभीरता से लेना चाहिए. लेकिन सत्य है कि आजकल के समय में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह सामने वाली बातों को गंभीरता सुने या समझे. टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया ने हर इंसान को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. जिसका प्रभाव इस तरीके के मर्डर केस में देखने के लिए मिलता है.
सवाल: ऐसी स्थिति में क्या करें माता पिता?
जवाब: अगर माता-पिता को इस बात का आभास होने लग जाए कि बच्चों के मन में भेदभाव जैसी भावना पनप रही है तो बैठकर आराम से बातों को सुनना चाहिए. उसके इमोशंस को समझना चाहिए ताकि आगे आने वाले समय में बेटा या फिर कहीं की बेटी इस तरीके की घटनाओं को अंजाम न दे सकें.
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