पूर्णिया : बिहार में एक कहावत है, 'चौबे गए थे छब्बे बनने, दुबे बनकर लौटे', पप्पू यादव के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है. पप्पू यादव ने बड़े ही ताम झाम के साथ अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस के साथ कर दिया. वह इस उम्मीद में कि कांग्रेस उन्हें पूर्णिया से लोकसभा का उम्मीदवार बनाएगी. लेकिन, जिस सोच के साथ पप्पू यादव ने अपना सब कुछ कांग्रेस में विलय कर दिया, वहां से उन्हें नाकामी मिली. पूर्णिया लोकसभा सीट कांग्रेस के बजाय राजद ने अपने पास रख लिया.
'ना माया मिली ना राम' : फिर पप्पू यादव क्या करते, मायूसी में पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन कर दिया. इतना होता तो ठीक था लेकिन, इसके बाद की कहानी यह है कि आज दोपहर से पहले पप्पू यादव ने नामांकन किया और दोपहर के बाद कांग्रेस आलाकमान की तरफ से यह निर्देश आया कि पप्पू यादव अपनी लोकसभा उम्मीदवारी नामांकन वापस ले लें. बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने साफ कर दिया कि, पार्टी पूर्णिया सीट पर राजद उम्मीदवार बीमा भारती के साथ खड़ी रहेगी. मतलब पप्पू यादव को ना तो माया मिली और ना ही राम.
नामांकन वापस लेने का दबाव : इसे राजनीति का दांव पेंच कहें या फिर पप्पू यादव की किस्मत. पप्पू यादव ने जैसे ही कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय किया, उसके दो दिन के बाद ही महागठबंधन में सीटों का बंटवारा हुआ और पप्पू यादव का पूर्णिया सीट आरजेडी के खाते में चली गई. ऐसे में पप्पू यादव को कांग्रेस आला कमान ने आश्वासन दिया कि वह अंत तक कुछ बेहतर कर लेंगे. पप्पू यादव वेट एंड वॉच में रहे. लेकिन, समय लगातार निकलता रहा. नामांकन की आखिरी तारीख को पप्पू यादव ने निर्दलीय उम्मीदवारी का नामांकन भर दिया. ऐसे में अब आला कमान का निर्देश आया है कि वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले लें.
कांग्रेस ने कोई कार्यवाई नहीं की : हालांकि, बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान ने कहा कि महागठबंधन में बिहार की सभी 40 सीटों को लेकर बंटवारा हो चुका है. इस बंटवारे के तहत जो सीट मिली है. उन सभी सीटों पर कांग्रेस अपनी उम्मीदवार का चयन कर रहा है. कांग्रेस पूरी तरह से गठबंधन धर्म का पालन कर रही है. जब उनसे यह पूछा गया कि पप्पू यादव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर रहे हैं क्या उन पर कार्रवाई होगी? तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया कि, ''फिलहाल पप्पू यादव के खिलाफ कार्रवाई को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है. इस विषय पर सही समय आने पर बात होगी.''
लगातार पूर्णिया में डेरा जमाए थे पप्पू यादव : दरअसल, पप्पू यादव ने बहुत पहले से पूर्णिया लोकसभा सीट पर तैयारी शुरू कर दी थी. वहां वह घर-घर घूमने लगे थे. यहां तक कि पूर्णिया लोकसभा चुनाव की तैयारी में 'प्रणाम पूर्णिया' कार्यक्रम भी चला रहे थे. उनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस से राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में उन्होंने पूरा मन बनाया कि वह कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी का विलय करेंगे और पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे.
पूर्णिया से तीन बार सांसद रह चुके हैं पप्पू यादव : पूर्णिया से पप्पू यादव का रिकॉर्ड अब तक बेहतर रहा है. दो बार निर्दलीय वहां से चुनाव जीत चुके हैं. एक बार समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में पप्पू यादव को सबसे कंफर्टेबल सीट पूर्णिया लगा और उन्होंने यह मन बनाया था कि पूर्णिया से वह लोकसभा का सीट लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे. लेकिन कहते हैं ना जो सोचो वह हो भी जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है. कुछ ऐसा ही हुआ पप्पू यादव के साथ.
बीमा भारती RJD ज्वाइन की और पप्पू बेटिकट हो गए : जेडीयू से विधायक रही बीमा भारती की एंट्री आरजेडी में हुई. एंट्री होते ही बीमा भारती को पूर्णिया का टिकट मिल गया. फिर यहां से लड़ाई शुरू हुई. अब इस लड़ाई में किसको क्या मिलता है यह तो वक्त बताएगा. लेकिन एक बात तो साफ है कि पप्पू यादव जिस सोच से आगे बढ़े थे. लालू-तेजस्वी से मिलकर कांग्रेस में शामिल हुए थे, उसका फायदा फिलहाल उन्हें नहीं मिला.
ये भी पढ़ें :-