रांची: झारखंड की कुल 14 सीटों में से आधी यानी सात सीटों पर चुनाव का कार्य पूरा हो चुका है. पहले फेज में 13 मई को सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा, पलामू और दूसरे फेज में 20 मई को चतरा, कोडरमा और हजारीबाग सीट के लिए कुल 99 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है. 2019 के चुनाव में इन सात सीटों में से सिर्फ सिंहभूम सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. शेष छह सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी. लेकिन इस चुनाव में दोनों गठबंधन सभी सीटों पर जीत का दावा ठोक रहे हैं.
खास बात है कि 2019 के चुनाव में हार और जीत के अनुमान का गणित निकालना आसान था. क्योंकि वोटर मुखर थे. फैक्टर का असर दिख रहा था. लेकिन इस बार वोटर साइलेंट हैं. ऊपर से भीतरघात, ध्रुवीकरण, जातीय समीकरण, बाहरी-भीतरी समेत स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशियों के चयन ने अनुमान को अबूझ पहेली बना दिया है. इससे एक बात निकलकर सामने आई है कि हर सीट पर एनडीए और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला हुआ है.
सिंहभूम में भाजपा की गीता और झामुमो की जोबा में टक्कर
'हो 'आदिवासी बहुल सिंहभूम में इसी समाज से आने वाली भाजपा की गीता कोड़ा पिछली बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतने वाली सिंगल सांसद थी. उन्हें समाज का पूरा समर्थन मिला था. पिछले चुनाव में गीता कोड़ा को चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर में बढ़त मिली थी. जबकि भाजपा को सिर्फ सरायकेला में एकतरफा बढ़त हासिल हुई थी. लेकिन इस बार संथाल समाज से आने वाली मनोहरपुर की झामुमो विधायक जोबा मांझी के उतरने से कांटे की टक्कर हुई है. अनुमान के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में झामुमो तो शहरी क्षेत्रों में भाजपा को वोट मिला है. यहां 'हो ' समाज की एकजुटता हार-जीत तय करने वाली है. दोनों गठबंधन का दावा है कि 'हो' समाज ने कृपी बरसाई है. लेकिन सच यह है कि दोनों गठबंधन के नेता ऑफ द रिकॉर्ड मान रहे हैं कि अनुमान निकालना मुश्किल है.
खूंटी में भाजपा के अर्जुन और कांग्रेस के काली में जंग
इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. एसटी के लिए रिजर्व इसी सीट पर जीतने के बात अर्जुन मुंडा को केंद्र में जनजातीय मामलों का मंत्री बनाया गया था. उनकी जीत और हार तय करेगी कि यहां के आदिवासी समाज में उन्होंने भाजपा की पैठ को मजबूत किया है या नहीं. पिछले चुनाव में खूंटी लोकसभा क्षेत्र के खरसांवा और तमाड़ विस क्षेत्र में अर्जुन मुंडा को बढ़त मिली थी जबकि कांग्रेस के कालीचरण ने तोरपा, सिमडेगा और कोलेबिरा में बढ़त बनाई थी. जानकार बता रहे हैं कि इस बार ईसाई, मुस्लिम वोट की एकजुटता और पत्थलगड़ी समर्थकों के वोटिंग में शामिल होने से भाजपा के लिए बड़ी चुनौती दिख रही है. क्योंकि आदिवासी वोट में बिखराव का अनुमान है.
लोहरदगा में भाजपा के समीर और कांग्रेस के सुखदेव में मुकाबला
कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत और भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव के बीच मानी जा रही है. इस सीट पर पिछले तीन चुनाव से भाजपा का कब्जा है. 2019 के चुनाव में लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के मांडर विस में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. सिसई में भी भाजपा सिर्फ 10 हजार वोट का बढ़त ले पाई थी. बिशुनपुर में भाजपा ने बड़ी लीड ली थी. लोहरदगा विस में भी भाजपा को करीब 12 हजार वोट की बढ़ मिली थी लेकिन गुमला में कांग्रेस आगे रही थी. हमेशा की तरह मुकाबला भी भाजपा और कांग्रेस के बीच हुआ है. झामुमो के बागी विधायक चमरा लिंडा के आने से जिस त्रिकोणीय संघर्ष की उम्मीद थी, वह काम नहीं कर पाई. ज्यादातर आदिवासी वोटर काम के सिलसिले में दूसरे प्रदेशों में हैं. बहुत कम संख्या में युवा आदिवासी वोटर नजर आए थे. यही स्थिति पुरुष मुस्लिम वोटरों की रही है. जानकारों के मुताबिक यहां महिलाओं का वोट निर्णायक साबित होने जा रहा है. यहां बड़ी संख्या में ऐसी भी वोटर हैं जो अपने पत्ते नहीं खोलते. इनका झुकाव नतीजों पर प्रभाव डालेगा. ओवर ऑल देखे तो लोहरदगा में नेक टू नेक टक्कर का अनुमान है.
पलामू में भाजपा के विष्णु और राजद की ममता में मुकाबला
झारखंड में एक मात्र पलामू सीट ही ऐसी है जो अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. यहां पिछले दो चुनाव से भाजपा के वीडी राम जीतते आ रहे हैं. राज्य के डीजीपी भी रह चुके हैं.2019 में भाजपा को सभी छह विधानसभा क्षेत्र मसलन, डाल्टनगंज, विश्रामपुर, छत्तरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और भवनाथपुर में बढ़त हासिल हुई थी. तब राजद के घूरन राम अलग-थलग पड़ गये थे. लेकिन पहली बार चुनावी मैदान में उतरीं राजद की ममता भुईंया ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. यहां जातीय समीकरण निर्णायक साबित होगा. यहां एससी समाज की भुईंयां जाति का जबरदस्त प्रभाव है. माना जा रहा है कि बसपा इस वोट बैंक में सेंध लगाने में असफल रहा है. इसका रुझान राजद की तरफ दिखा है. मुस्लिम वोटरों ने भी राजद के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाई है. ओबीसी का झुकाव भाजपा की तरफ दिखा है. लेकिन यादव जाति राजद के लिए एकजुट रही है. वहीं अगड़ी जाति में वोट बंटा है. ऐसे में यहां भी चौंकाने वाला परिणाम आ सकता है. यहां साइलेंट वोटर्स निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. राजद के गढ़ कहे जाने हुसैनाबाद और छत्तरपुर में कम वोट प्रतिशत राजद के लिए परेशानी का सबब साबित हो सकती है.
चतरा में भाजपा के काली और कांग्रेस के कृष्णा का मुकाबला
चतरा लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं. 2019 के चुनाव में भाजपा ने सिमरिया, चतरा, लातेहार और पांकी में एकतरफा बढ़त हासिल की थी. मनिका में भी बढ़त मिली लेकिन अंतर कम था. लेकिन इस बार इस सीट पर पूरा समीकरण बदल गया है. भाजपा ने सीटिंग सांसद सुनील कुमार सिंह की जगह चतरा के स्थानीय कालीचरण सिंह को प्रत्याशी बनाया. वहीं इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस ने डाल्टनगंज के पूर्व विधायक केएन त्रिपाठी को. पिछले चुनाव में इस सीट पर मनोज कुमार यादव को कांग्रेस प्रत्याशी बनाए जाने के विरोध में राजद के सुभाष प्रसाद यादव भी मैदान में उतर गये. लिहाजा, भाजपा की एकतरफा जीत हुई थी. हालांकि नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में पांच में से दो सीटों पर भाजपा और शेष तीन सीटों पर कांग्रेस और राजद को जीत मिली थी.
इस बार यहां स्थानीय उम्मीदवार, रोजगार और भीतरघात का समीकरण काम कर रहा है. स्थानीयता के मामले में भाजपा प्रत्याशी कालीचरण को एज मिल रहा है लेकिन रोजगार के मसले पर कांग्रेस में उम्मीद ढूंढा जा रहा है. दोनों प्रत्याशी के अगड़ी जाति से होने की वजह से इस वोट में बंटवारे की संभावना है. पलामू में एससी समाज के रुख का असर यहां दिख रहा है. दोनों प्रत्याशियों के साथ भीतरघात की संभावना है. यहां जाति विशेष को लेकर भी बनाने और बिगाड़ने का आंतरिक खेल चल रहा है. इस वजह से यहां भी कंफ्यूजन वाली स्थिति बनी हुई है. एक बात निकलकर आ रही है कि यहां भी भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है.
कोडरमा में भाजपा की अन्नपूर्णा और माले के विनोद में टक्कर
खूंटी के बाद कोडरमा सबसे हॉट सीट है. वजह हैं अन्नपूर्णा देवी. राजद से आकर भाजपा की सांसद बनी. केंद्र में मंत्री का दर्जा मिला. लेकिन यहां से भाकपा माले के बगोदर विधायक विनोद कुमार सिंह के इंडिया गठबंधन प्रत्याशी बनने के बाद मुकाबला रोचक हो गया है. विधानसभावार बात करें तो कोडरमा की छह विधानसभा सीटों में से चार पर एनडीए का कब्जा है तो दो पर इंडिया गठबंधन का. कोडरमा में भाजपा, बरकट्ठा में निर्दलीय अमित कुमार यादव, धनवार में जेवीएम के बाबूलाल मरांडी, बगोदर से भाकपा माले के विनोद कुमार सिंह, जमुआ से भाजपा के केदार हाजरा और गांडेय से झामुमो के सरफराज अहमद की जीत हुई थी.
इस सीट को निकालने के लिए पीएम मोदी और राजद नेता तेजस्वी ने भी जनसभा की थी. विनोद सिंह के साथ माले कैडर और साफ छवि एक प्लस प्वाइंट है. वहीं कोडरमा में प्रभाव रखने वाले यादव समाज से तेजस्वी ने यह कहकर सेंध लगा दी है कि अन्नपूर्णा ने लालू जी को धोखा दिया है. पलायन और रोजगार के मसले पर विनोद कुमार सिंह ज्यादा मुखर रहे हैं. लेकिन चुनाव के दौरान ग्राउंड लेवल पर सूत्रों से बातचीत में इस बात का अनुमान है कि अनुसूचित जाति और मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण परिणाम पर असर डाल सकता है. यादव और अगड़ी जाति के वोट में भी बिखराव से भाजपा को झटका लग सकता है. मुकाबला एकतरफा नहीं है. लेकिन भाजपा के कैडर वोट की बदौलत ओवर ऑल अनुमान है कि अन्नपूर्णा को एज मिल सकता है.
गांडेय उपचुनाव में किस पर बरसी है कृपा
सरफराज अहमद के सीट छोड़ने पर गांडेय में उपचुनाव हुआ है. यहां कल्पना सोरेन बड़ा फैक्टर साबित होती दिख रही हैं. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से सहानुभूति वोट की उम्मीद है. उनको सीएम के पैरेलल पेश किया गया है. वहीं भाजपा के दिलीप कुमार वर्मा की सक्रियता में कमी एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकती है. हालांकि उनके लिए भाजपा तमाम बड़े नेताओं ने जमकर फील्डिंग की है. बाबूलाल मरांडी तो यहां तक बोल चुके हैं कि कल्पना सोरेन चुनाव हार रही हैं. लेकिन जमीनी तौर पर आजसू के बागी अर्जुन बैठा ने भाजपा के समीकरण पर असर डाला है. दूसरी तरफ आदिवासी और मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण कल्पना की राह आसान करता दिख रहा है.
हजारीबाग में भाजपा के मनीष और कांग्रेस के जेपी का सामना
झारखंड में खूंटी और कोडरमा के बाद हजारीबाग सबसे ज्यादा चर्चा में है. इसकी वजह से जयंत सिन्हा का टिकट कटना. ऊपर से यशवंत सिन्हा की चुनावी रणनीति से भाजपा पर असर की संभावना है. हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में हजारीबाग, बरही, बड़कागांव और मांडू में पिछली बार भाजपा को एकतरफा बढ़ मिली थी. लेकिन लोस चुनाव के कुछ माह बाद हुए विस चुनाव में बरही, बड़कागांव और रामगढ़ में कांग्रेस की जीत हुई थी. जबकि हजारीबाग और मांडू में भाजपा प्रत्याशी जीते थे. बाद में ममता देवी को एक मामले में सजा होने पर आजसू ने रामगढ़ उपचुनाव जीत लिया था.
सबसे दिलचस्प बात है कि वर्तमान में हजारीबाग के भाजपा विधायक मनीष जयसवाल को भाजपा ने और मांडू से भाजपा विधायक रहे जे.पी. पटेल कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं. इस लिहाज में पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर कांग्रेस, एक पर भाजपा और एक पर आजसू का कब्जा है. रामगढ़ जिला के रामगढ़, मांडू और बड़कागांव में कांटे की टक्कर दिख रही है. महिला वोट एक तरफ जाता दिख रहा है तो आदिवासी और मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण हुआ है. ओबीसी वोटरों में कुर्मी और कोइरी वोट में भी बिखराव हुआ है. वहीं हजारीबाग और बरही में साइलेंट वोटिंग हुई है. शहरी क्षेत्र के वोटरों में उत्साह नहीं दिखा. वहीं ग्रामीण इलाकों में जबरदस्त उत्साह है. इसकी वजह से भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है. हालत यह है कि बरही में यादव वोट को साधने के लिए मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव को चुनावी सभा करना पड़ा है. ऐसी स्थिति है कि यहां अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है. कुल मिलाकर कहें तो चंद हजार वोट के अंतर से ही हार-जीत का फैसला होना है.
ओवरऑल देखें तो गीता कोड़ा के भाजपा में आने से दो फेज की जिन सात सीटों पर चुनाव हुए हैं, वे सभी भाजपा के पास हैं. लेकिन हर जगह इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों से कांटे की टक्कर देखने को मिली है. यहां हर जगह भीतरघात, ध्रुवीकरण, जातीयता, सांप्रदायिकता, आदिवासी अस्मिता के इर्द-गिर्द सारा समीकरण घूम रहा है. लेकिन मंचों से मोदी की गारंटी, जुमलेबाजी, महंगाई, बेरोजगारी, कौन बनेगा पीएम, भ्रष्टाचारियों की जमात जैसे नारों को लेकर खींचतान चल रही है. दूसरी तरफ वोटर्स साइलेंट हैं और प्रत्याशियों के पसीने छूट रहे हैं.
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