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अब मानव मूत्र से पैदा होगी बिजली, केरल में IIT पलक्कड़ के शोधकर्ताओं ने हासिल की सफलता

Electricity by Urine, केरल में आईआईटी पलक्कड़ के शोधकर्ताओं ने एक नए शोध में गौमूत्र से बिजली पैदा करने में सफलता हासिल की है. शोधकर्ताओं का दावा है कि मानव मूत्र से भी बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि 1 लीटर मूत्र से 1.5 वोल्ट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 15, 2024, 2:18 PM IST

तिरुवनन्तपुरम: केरल में आईआईटी पलक्कड़ के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए, मानव मूत्र से बिजली पैदा की है. विश्व स्तर पर बढ़ती ऊर्जा मांगों से निपटने के लिए यह इनोवेशन प्रासंगिक है. पहले चरण में शोधकर्ताओं ने बिजली पैदा करने के लिए गोमूत्र का इस्तेमाल किया. इस प्रक्रिया में गोमूत्र एक कक्ष में एकत्र होगा और फिर वह इलेक्ट्रोकेमिकल रिसोर्स रिकवरी रिएक्टर में जाएगा, जो कांच से बनी छोटी कोशिकाओं की तरह दिखता है.

इन कोशिकाओं के अंदर मैग्नीशियम एनोड के रूप में उपयोग किया जाता है और वायु कैथोड के साथ काम करता है. अपने प्रारंभिक शोध में शोधकर्ताओं ने 50 कोशिकाओं का उपयोग किया. प्रत्येक कोशिका 100 मिलीलीटर गौमूत्र से काम करती है. शोधकर्ताओं ने दावा किया कि मूत्र-संचालित, स्व-चालित स्टैक्ड इलेक्ट्रोकेमिकल रिसोर्स रिकवरी रिएक्टर प्लंबिंग और इलेक्ट्रिकल मैनिफोल्ड्स के साथ-साथ एक इलेक्ट्रोकेमिकल रिएक्टर, अमोनिया सोखने वाला कॉलम, डिकोलराइजेशन और क्लोरीनीकरण कक्ष को एकीकृत करता है.

यह प्रणाली स्मार्टफोन और लैंप को रिचार्ज करने और टिकाऊ कृषि के लिए बिजली उत्पादन का दोहरा लाभ प्रदान करती है. 1 लीटर मूत्र यानि 10 कोशिकाओं से शोधकर्ता औसतन 1.5 वोल्ट बिजली उत्पन्न करने में कामयाब रहे. उत्पादित बिजली मोबाइल फोन चार्ज करने, इमरजेंसी लैंप और एलईडी लाइटें जलाने के लिए पर्याप्त थी.

शोधकर्ताओं ने दावा किया कि 'यह प्रयोगशाला में निर्मित एमएएफसी के साथ एक साथ पोषक तत्व पुनर्प्राप्ति और ऊर्जा उत्पादन के लिए वास्तविक स्रोत से अलग किए गए गोमूत्र के उपयोग की खोज करने वाला पहला अध्ययन है.' इस नए आविष्कार के पीछे आईआईटी-पलक्कड़ सिविल इंजीनियरिंग विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रवीणा गंगाधरन हैं, जिन्होंने एक टीम का नेतृत्व किया.

सिविल इंजीनियरिंग विभाग से रिसर्च स्कॉलर संगीता वी, प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. श्रीजीत पीएम और रिसर्च एसोसिएट रिनू अन्ना कोशी की टीम ने इस नई डिवाइस को विकसित करने में कामयाबी हासिल की. उनके शोध निष्कर्ष विज्ञान पत्रिका 'पृथक्करण और शुद्धि प्रौद्योगिकी' के 1 फरवरी खंड में प्रकाशित हुए थे. बिजली उत्पादन के बाद मूत्र को दूसरे कक्ष में भेज दिया जाता है, जहां वे उसी मूत्र से उर्वरक भी बना सकते हैं.

शोधकर्ताओं ने कहा कि 'वयस्क मनुष्य प्रतिदिन औसतन 1.5 लीटर मूत्र का उत्पादन करता है. इसका अनुमान 500 लीटर प्रति वर्ष लगाया जा सकता है. यह नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे उर्वरकों का उत्पादन करने में सक्षम है, जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक है. 500 लीटर मानव मूत्र से 2.5-4.3 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम फॉस्फोरस और 1 किलोग्राम पोटेशियम का उत्पादन किया जा सकता है.'

तिरुवनन्तपुरम: केरल में आईआईटी पलक्कड़ के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए, मानव मूत्र से बिजली पैदा की है. विश्व स्तर पर बढ़ती ऊर्जा मांगों से निपटने के लिए यह इनोवेशन प्रासंगिक है. पहले चरण में शोधकर्ताओं ने बिजली पैदा करने के लिए गोमूत्र का इस्तेमाल किया. इस प्रक्रिया में गोमूत्र एक कक्ष में एकत्र होगा और फिर वह इलेक्ट्रोकेमिकल रिसोर्स रिकवरी रिएक्टर में जाएगा, जो कांच से बनी छोटी कोशिकाओं की तरह दिखता है.

इन कोशिकाओं के अंदर मैग्नीशियम एनोड के रूप में उपयोग किया जाता है और वायु कैथोड के साथ काम करता है. अपने प्रारंभिक शोध में शोधकर्ताओं ने 50 कोशिकाओं का उपयोग किया. प्रत्येक कोशिका 100 मिलीलीटर गौमूत्र से काम करती है. शोधकर्ताओं ने दावा किया कि मूत्र-संचालित, स्व-चालित स्टैक्ड इलेक्ट्रोकेमिकल रिसोर्स रिकवरी रिएक्टर प्लंबिंग और इलेक्ट्रिकल मैनिफोल्ड्स के साथ-साथ एक इलेक्ट्रोकेमिकल रिएक्टर, अमोनिया सोखने वाला कॉलम, डिकोलराइजेशन और क्लोरीनीकरण कक्ष को एकीकृत करता है.

यह प्रणाली स्मार्टफोन और लैंप को रिचार्ज करने और टिकाऊ कृषि के लिए बिजली उत्पादन का दोहरा लाभ प्रदान करती है. 1 लीटर मूत्र यानि 10 कोशिकाओं से शोधकर्ता औसतन 1.5 वोल्ट बिजली उत्पन्न करने में कामयाब रहे. उत्पादित बिजली मोबाइल फोन चार्ज करने, इमरजेंसी लैंप और एलईडी लाइटें जलाने के लिए पर्याप्त थी.

शोधकर्ताओं ने दावा किया कि 'यह प्रयोगशाला में निर्मित एमएएफसी के साथ एक साथ पोषक तत्व पुनर्प्राप्ति और ऊर्जा उत्पादन के लिए वास्तविक स्रोत से अलग किए गए गोमूत्र के उपयोग की खोज करने वाला पहला अध्ययन है.' इस नए आविष्कार के पीछे आईआईटी-पलक्कड़ सिविल इंजीनियरिंग विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रवीणा गंगाधरन हैं, जिन्होंने एक टीम का नेतृत्व किया.

सिविल इंजीनियरिंग विभाग से रिसर्च स्कॉलर संगीता वी, प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. श्रीजीत पीएम और रिसर्च एसोसिएट रिनू अन्ना कोशी की टीम ने इस नई डिवाइस को विकसित करने में कामयाबी हासिल की. उनके शोध निष्कर्ष विज्ञान पत्रिका 'पृथक्करण और शुद्धि प्रौद्योगिकी' के 1 फरवरी खंड में प्रकाशित हुए थे. बिजली उत्पादन के बाद मूत्र को दूसरे कक्ष में भेज दिया जाता है, जहां वे उसी मूत्र से उर्वरक भी बना सकते हैं.

शोधकर्ताओं ने कहा कि 'वयस्क मनुष्य प्रतिदिन औसतन 1.5 लीटर मूत्र का उत्पादन करता है. इसका अनुमान 500 लीटर प्रति वर्ष लगाया जा सकता है. यह नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे उर्वरकों का उत्पादन करने में सक्षम है, जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक है. 500 लीटर मानव मूत्र से 2.5-4.3 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम फॉस्फोरस और 1 किलोग्राम पोटेशियम का उत्पादन किया जा सकता है.'

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