नई दिल्ली/नोएडा: UP और अन्य प्रदेशों के बेरोजगार युवकों को एविएशन सेक्टर में नौकरी दिलाने का झांसा देकर ठगी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ है. सेक्टर-63 पुलिस ने इस गिरोह के सरगना और उसके साथी को रविवार को गिरफ्तार किया, गिरोह में शामिल एक अन्य महिला अभी भी फरार है. गिरफ्त में आए आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चार लैपटॉप और सात मोबाइल सहित अन्य सामान बरामद किया है. ठगी से अर्जित सात लाख 61 हजार 486 रुपये की रकम भी पुलिस ने फ्रीज की है. गिरोह में शामिल अन्य आरोपियों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है.
बैंकों में जमा ठगी की सात लाख 61 हजार 486 रुपये की रकम कराई फ्रीज
एसीपी दीक्षा सिंह ने बताया कि बीते दिनों एक पीड़िता ने ट्रेनिंग कराने के बाद फर्जी सर्टिफिकेट देकर ठगी करने वाले गिरोह के सदस्यों के बारे में अहम जानकारी साझा की थी. पीड़िता के बताए गए पते पर पुलिस की टीम ने छापेमारी कर राजस्थान के डीग निवासी भगवंता सिंह और दिल्ली निवासी हर्ष परिहार को गिरफ्तार कर लिया. दोनों की साथी श्वेता मिश्रा अभी भी फरार है.
LLB पास भगवंता चला रहा था पूरा नेटवर्क
बीए,एलएलबी भगवंता सिंह गिरोह का सरगना है. वहीं हर्ष परिहार ऑफिस में बैठकर सिर्फ कॉल करता था. श्वेता मिश्रा कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत हैं. इन लोगों ने सेक्टर-63 के एच ब्लॉक में ऑफिस बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये प्रतिमाह किराए पर जगह ली थी. इन लोगों ने एसआरबीएस (SRBS) भारतीय एअरवेज के नाम से ट्रैवल एंड टूरिज्म के लिए पंजीकृत कंपनी खोली थी, लेकिन असली काम बेरोजगार लोगों को ठगना था. इनके खिलाफ आगरा के दयाल बाग की डिंपल सागर ने भी शिकायत की थी. उन्होंने बताया था कि इन लोगों ने उसे एविएशन सेक्टर में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी की है. आरोपितों ने धोखाधड़ी करके फर्जी ऑफर लेटर जारी किया और फर्जी ट्रेनिंग कराई. प्राथमिक पूछताछ में दोनों आरोपियों ने बताया कि अब तक वह 100 से अधिक बेरोजगार युवकों के साथ ठगी कर चुके हैं.
ऐसे बेरोजगारों को बनाते थे निशाना
गिरोह के सरगना सहित अन्य सदस्यों के निशाने पर ऐसे बेरोजगार रहते थे, जो एविएशन सेक्टर में नौकरी की तलाश कर रहे हो. ऐसे बेरोजगारों का डाटा इंटरनेट से लेकर आरोपी बेरोजगार युवकों को कॉल करते थे. बेरोजगार युवकों को नौकरी मिलने पर 40 से 50 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन देने, रहना, खाना, मेडिकल, पीएफ, आने-जाने आदि का खर्चा कंपनी की तरफ से देने का आश्वासन देते थे. विश्वास दिलाने के लिए कंपनी की ओर से बनाया हुआ फर्जी ऑफर लेटर ई-मेल के माध्यम से आरोपी भेजते थे. ऑफर लेटर मिलने के बाद बेरोजगार व्यक्ति को विश्वास हो जाता था कि उसकी नौकरी लग गई है. इसके बाद उससे एविएशन सर्टिफिकेट सहित अन्य शैक्षिक दस्तावेज मांगते थे. एविएशन सर्टिफिकेट के लिए इसके बाद रकम ली जाती थी.
दाखिले के नाम पर भी लेते थे रकम
पूछताछ के दौरान पुलिस को पता चला कि गिरोह के सरगना ने दो और फर्जी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन ठगी के लिए करा रखा था. इनके नाम बीआरडी इंस्टीट्यूट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और ईगल एविएशन हैं. भगवंता ने पूछताछ के दौरान बताया कि जब बेरोजगार व्यक्ति एविएशन सर्टिफिकेट नहीं दे पाता था तो उससे कहते थे कि वह जल्दी से एविएशन का कोर्स कर ले तो उसकी नौकरी एअरपोर्ट पर लग जाएगी. इसके लिए कई संस्थानों का लिंक, मोबाइल नंबर और गूगल पर सर्च का स्क्रीनशाट वाट्सएप के माध्यम से भेज देते थे. साथ ही जल्दी से दाखिला लेने के लिए बोलते थे और एनरोलमेंट नंबर मांगते थे. इसके बाद उससे 10 हजार रुपये दाखिले के नाम पर जमा करा लेते थे. यह सब योजना के अनुसार होता था.
यह सामान हुआ बरामद
सात मोबाइल, 14 एअरपोर्ट मैनेजमेंट सर्टिफिकेट, दो मेट्रो मैनेजमेंट सर्टिफिकेट, एक डिप्लोमा इन मेट्रो मैनेजमेंट सर्टिफिकेट, 8 खाली सर्टिफिकेट आफ एचीवमेंट भारतीय एअरवेज, 178 हास्पिटेलिटी सर्टिफिकेट, 6 मोहर, 13 मोबाइल सिम, 94 मोबाइल सिम के रेपर, बेरोजगार लोगों का डाटा, 142 विज्ञापन पेम्पलेट, एअरपोर्ट ग्राउंड स्टाफ के कार्य की जानकारी का पर्चा, एक नियुक्ति पत्र, 46 नोटबुक समेत अन्य सामान बरामद किया है. पुलिस ठगी के शिकार हुए अन्य युवकों के बारे में भी जानकारी जुटा रही है. बरामद मोबाइल और लैपटॉप की जांच जारी है. आशंका है कि इसमें ठगी संबंधी अहम जानकारी है.
उल्टे सीधे सवाल पूछकर करते थे बाहर
फर्जी कंपनियों में दाखिला देने के बाद उस व्यक्ति से आरोपी कहते थे कि जल्द ही संस्थानों की एनओसी भेजे ताकि वह उसकी नौकरी सुरक्षित रखें. जब वह एनओसी की मांग करता था, तो संस्थान उससे पूरा पैसा जमा करने की बात कहकर 50 से 60 हजार रुपये वसूल लेता था. इसके बाद उसे साक्षात्कार के लिए बुलाते और उल्टे-सीधे सवाल पूछकर फेल कर देते थे. ठगी के शिकार जो युवक पैसा वापस मांगते थे , उनके घर वकीलों के माध्यम से झूठे केस में फंसाने की धमकी भरा नोटिस भेज देते थे. वकीलों से मिलीभगत करके ठगी का शिकार हुए युवकों को लीगल नोटिस भेजकर कंपनी को नुकसान पहुंचाने के एवज में हर्जाने के रुपये में पांच लाख की मांग की जाती थी. इसके बाद लोग डर जाते थे और शिकायत नहीं करते थे.
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