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नए आपराधिक कानून लागू, इसके प्रभावों के बारे में जानें कानूनी विशेषज्ञों की राय - New criminal laws

NEW CRIMINAL LAWS COME INTO EFFECT: देश में आज से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं. इससे न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव होगा. मामले की सुनवाई त्वरित होगी.

new criminal laws come into effect
नए आपराधिक कानून लागू (प्रतिकात्मक फोटो) (ETV Bharat)
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By ANI

Published : Jul 1, 2024, 9:06 AM IST

नई दिल्ली: तीन नए आपराधिक कानून आज से प्रभावी हो गए हैं. ऐसे में कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों और कानूनी पेशेवरों के लिए आगे बड़ी चुनौतियां हैं. कहा जाता है कि ये कानून किसी न किसी समय बड़ी संख्या में नागरिकों को प्रभावित करेंगे. पिछले साल संसद में तीन आपराधिक कानून विधेयकों के पारित होने से नए आपराधिक कानूनों के साथ कानून के क्षेत्र में विकास की दिशा में ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता के बारे में बहस की एक श्रृंखला शुरू हो गई.

पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार की राय: न्यूज एजेंसी के साथ एक साक्षात्कार में पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार ने कहा, 'जिस तरह से सरकार ने संसद में इन कानूनों को लाने के लिए जल्दबाजी की और जिस तरह से इसे लागू किया, वह लोकतंत्र में वांछनीय नहीं है. इन कानूनों पर न तो संसदीय समिति में पर्याप्त चर्चा की गई और न ही सदन में व्यापक चर्चा की गई, यहां तक ​​कि हितधारकों के साथ भी कोई परामर्श नहीं किया गया.

अब, विपक्षी दलों द्वारा आपराधिक कानूनों के कानूनी ढांचे में बदलाव की मांग करने से पहले सभी हितधारकों के बीच सार्थक विचार-विमर्श होना चाहिए, जो कि नहीं हुआ है. वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार ने कहा कि विपक्षी दलों की यही एकमात्र शिकायत है, जिसका समाधान सत्तारूढ़ दल को करना चाहिए.

फिडेलीगल एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर के एडवोकेट सुमित गहलोत ने भी इस मुद्दे पर कहा, 'नए आपराधिक कानूनों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना किसी जांच और संतुलन के अप्रतिबंधित शक्तियां दी गई हैं और सुरक्षा उपायों और सुरक्षा प्रावधानों को नजरअंदाज किया गया है. इसका दुरुपयोग होने की संभावना है. नए आपराधिक कानूनों के तहत, नागरिक स्वतंत्रता का संभावित उल्लंघन होगा.

उन्होंने आगे कहा, 'बीएनएस की धारा 150 के तहत राजद्रोह कानून की तरह, इस अपराध को भी कठोर बना दिया गया है. धारा 150 के साथ-साथ अन्य प्रावधानों को भी निश्चित रूप से चुनौती दी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक अदालतें इसे खारिज कर देंगी. राजद्रोह कानून को पिछले दरवाजे से शामिल करने का उद्देश्य राजनीतिक है. आतंकवाद को सामान्य दंडनीय अपराध क्यों बनाया गया, जबकि यह पहले से ही विशेष कानून के तहत दंडनीय है? पुलिस हिरासत को 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिन क्यों किया गया है? नए आपराधिक कानूनों में कई प्रतिगामी कदम हैं और इन सभी से पुलिस की यातना और दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ेंगी और कई अस्पष्ट क्षेत्र हैं.

औपनिवेशिक युग के कानून में बदलाव: इस संबंध में ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता और अध्यक्ष तथा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. आदिश सी. अग्रवाल ने कहा, 'स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी कई औपनिवेशिक युग के कानून भारतीय कानूनी बिरादरी के गले में बोझ की तरह लटके हुए थे. अब भारत की आत्मा और भावना को प्रमुख आपराधिक कानूनों, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता में शामिल कर दिया गया है, जो पुराने और अप्रचलित भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह ले रहे हैं.'

अग्रवाल ने कहा,' इन प्रमुख आपराधिक कानूनों में बदलाव की बहुत पहले से ही आवश्यकता थी, क्योंकि उनके कई प्रावधान अपने उद्देश्यों से परे हो चुके थे और वास्तव में वे उस समय और उद्देश्यों के लिए असंगत थे जिसके लिए कानून बनाया गया था. इसलिए नए भारत की आत्मा और भावना के साथ नए कानून हमारी आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाएंगे.

पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पीके मल्होत्रा की राय: इस मुद्दे पर पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पीके मल्होत्रा ​​ने कहा, 'ब्रिटिश काल के कानूनों की जगह लाए गए तीन नए आपराधिक कानूनों के कारण इन कानूनों की वैधता पर सवाल उठाते हुए अदालतों में याचिकाएं दायर की गई हैं और कुछ राज्य सरकारें इन कानूनों को लागू करने में अनिच्छुक हैं. इस बात पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि इन तीन कानूनों, यानी आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की बदलते सामाजिक परिदृश्य और तकनीकी प्रगति को ध्यान में रखते हुए समीक्षा की जानी आवश्यक थी.

चूंकि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है, इसलिए संसद इन कानूनों को लागू करने के लिए पूरी तरह सक्षम है. यदि कोई राज्य इनमें से किसी भी कानून में संशोधन करना चाहता है, तो राज्य का विधानमंडल संशोधन कानून पारित कर सकता है. इसे लागू किया जा सकता है यदि राज्य विधानमंडल द्वारा किए गए परिवर्तनों को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया जाता है. पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) और वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने कहा, 'वर्तमान सरकार ने नए कानून को लागू करने में बहुत तत्परता से काम किया है. इन कानूनों में बदलाव की आवश्यकता थी. इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे.

ये भी पढ़ें- 'BNS की धारा 26 के तहत प्रावधानों पर परिपत्र ज्ञापन जारी करें', IMA ने पीएम से अपील की - Sections 26 Of BNS

नई दिल्ली: तीन नए आपराधिक कानून आज से प्रभावी हो गए हैं. ऐसे में कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों और कानूनी पेशेवरों के लिए आगे बड़ी चुनौतियां हैं. कहा जाता है कि ये कानून किसी न किसी समय बड़ी संख्या में नागरिकों को प्रभावित करेंगे. पिछले साल संसद में तीन आपराधिक कानून विधेयकों के पारित होने से नए आपराधिक कानूनों के साथ कानून के क्षेत्र में विकास की दिशा में ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता के बारे में बहस की एक श्रृंखला शुरू हो गई.

पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार की राय: न्यूज एजेंसी के साथ एक साक्षात्कार में पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और कांग्रेस नेता अश्विनी कुमार ने कहा, 'जिस तरह से सरकार ने संसद में इन कानूनों को लाने के लिए जल्दबाजी की और जिस तरह से इसे लागू किया, वह लोकतंत्र में वांछनीय नहीं है. इन कानूनों पर न तो संसदीय समिति में पर्याप्त चर्चा की गई और न ही सदन में व्यापक चर्चा की गई, यहां तक ​​कि हितधारकों के साथ भी कोई परामर्श नहीं किया गया.

अब, विपक्षी दलों द्वारा आपराधिक कानूनों के कानूनी ढांचे में बदलाव की मांग करने से पहले सभी हितधारकों के बीच सार्थक विचार-विमर्श होना चाहिए, जो कि नहीं हुआ है. वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार ने कहा कि विपक्षी दलों की यही एकमात्र शिकायत है, जिसका समाधान सत्तारूढ़ दल को करना चाहिए.

फिडेलीगल एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर के एडवोकेट सुमित गहलोत ने भी इस मुद्दे पर कहा, 'नए आपराधिक कानूनों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना किसी जांच और संतुलन के अप्रतिबंधित शक्तियां दी गई हैं और सुरक्षा उपायों और सुरक्षा प्रावधानों को नजरअंदाज किया गया है. इसका दुरुपयोग होने की संभावना है. नए आपराधिक कानूनों के तहत, नागरिक स्वतंत्रता का संभावित उल्लंघन होगा.

उन्होंने आगे कहा, 'बीएनएस की धारा 150 के तहत राजद्रोह कानून की तरह, इस अपराध को भी कठोर बना दिया गया है. धारा 150 के साथ-साथ अन्य प्रावधानों को भी निश्चित रूप से चुनौती दी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप संवैधानिक अदालतें इसे खारिज कर देंगी. राजद्रोह कानून को पिछले दरवाजे से शामिल करने का उद्देश्य राजनीतिक है. आतंकवाद को सामान्य दंडनीय अपराध क्यों बनाया गया, जबकि यह पहले से ही विशेष कानून के तहत दंडनीय है? पुलिस हिरासत को 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिन क्यों किया गया है? नए आपराधिक कानूनों में कई प्रतिगामी कदम हैं और इन सभी से पुलिस की यातना और दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ेंगी और कई अस्पष्ट क्षेत्र हैं.

औपनिवेशिक युग के कानून में बदलाव: इस संबंध में ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता और अध्यक्ष तथा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. आदिश सी. अग्रवाल ने कहा, 'स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी कई औपनिवेशिक युग के कानून भारतीय कानूनी बिरादरी के गले में बोझ की तरह लटके हुए थे. अब भारत की आत्मा और भावना को प्रमुख आपराधिक कानूनों, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता में शामिल कर दिया गया है, जो पुराने और अप्रचलित भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह ले रहे हैं.'

अग्रवाल ने कहा,' इन प्रमुख आपराधिक कानूनों में बदलाव की बहुत पहले से ही आवश्यकता थी, क्योंकि उनके कई प्रावधान अपने उद्देश्यों से परे हो चुके थे और वास्तव में वे उस समय और उद्देश्यों के लिए असंगत थे जिसके लिए कानून बनाया गया था. इसलिए नए भारत की आत्मा और भावना के साथ नए कानून हमारी आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाएंगे.

पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पीके मल्होत्रा की राय: इस मुद्दे पर पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पीके मल्होत्रा ​​ने कहा, 'ब्रिटिश काल के कानूनों की जगह लाए गए तीन नए आपराधिक कानूनों के कारण इन कानूनों की वैधता पर सवाल उठाते हुए अदालतों में याचिकाएं दायर की गई हैं और कुछ राज्य सरकारें इन कानूनों को लागू करने में अनिच्छुक हैं. इस बात पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि इन तीन कानूनों, यानी आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की बदलते सामाजिक परिदृश्य और तकनीकी प्रगति को ध्यान में रखते हुए समीक्षा की जानी आवश्यक थी.

चूंकि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है, इसलिए संसद इन कानूनों को लागू करने के लिए पूरी तरह सक्षम है. यदि कोई राज्य इनमें से किसी भी कानून में संशोधन करना चाहता है, तो राज्य का विधानमंडल संशोधन कानून पारित कर सकता है. इसे लागू किया जा सकता है यदि राज्य विधानमंडल द्वारा किए गए परिवर्तनों को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया जाता है. पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) और वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने कहा, 'वर्तमान सरकार ने नए कानून को लागू करने में बहुत तत्परता से काम किया है. इन कानूनों में बदलाव की आवश्यकता थी. इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे.

ये भी पढ़ें- 'BNS की धारा 26 के तहत प्रावधानों पर परिपत्र ज्ञापन जारी करें', IMA ने पीएम से अपील की - Sections 26 Of BNS
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