रांचीः झारखंड, जिसकी पहचान खनिज संपदा के साथ-साथ नक्सलवाद वाले राज्य के रूप में होती है. बीते तीन दशक तक नक्सलियों ने इस धरती को इंसानी खून से रंग दिया. कोई ऐसा इलाका या जंगल नहीं बचा था जहां इनके न होने की गुंजाइश न हो. वक्त बदला सरकार बदली और प्रबल इच्छाशक्ति के साथ जब केंद्र और राज्य ने हाथ मिला तो सुखद अंजाम भी सामने आए. आज आलम ऐसा है कि 30 साल तक नक्सलियों की गिरफ्त में रहा बूढ़ापहाड़ माओवादियों से आजाद हो चुका है. कोल्हान से लेकर सारंडा तक के जंगलों में नक्सली अब पनाह मांगते फिर रहे हैं.
नक्सलियों के खिलाफ अभियान में पिछले तीन वर्ष के दौरान झारखंड पुलिस ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की है. पुलिस के इस दावे को अब नक्सली संगठन भी स्वीकार करने लगे हैं. हाल के दिनों में नक्सली संगठनों के प्रवक्ताओं के द्वारा जारी किया गया एक पत्र यह प्रमाणित करता है कि पिछले 3 साल में नक्सलियों को जानमाल का भारी नुकसान हुआ है. नक्सली यह भी मानते हैं कि सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें झारखंड में हुआ है.
नक्सलियों को नहीं मिल रहा जन समर्थन
झारखंड के नक्सली इतिहास में पिछले 3 साल पुलिस के लिए कामयाबी भरे रहे हैं. ताबड़तोड़ ऑपरेशन की वजह से नक्सलियों की जमीन झारखंड से लगभग खिसक ही गई है. पिछले साल और इस साल माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के द्वारा जारी किए गए पत्रों में इस बात का जिक्र है कि भाकपा माओवादियों को सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड में उठाना पड़ा है. आलम यह है कि नक्सलियों को ना तो लोकल सपोर्ट मिल रहा है और ना ही बाहरी मदद.
भाकपा माओवादियों की सेंट्रल कमेटी ने अपने पत्र में लगातार नक्सली समाज के बुद्धिजीवियों और ग्रामीणों से जन समर्थन की मांग कर रहे है. लेकिन कई पत्र जारी करने के बावजूद नक्सलियों को जन समर्थन न के बराबर मिल रहा है. इसके ठीक उलट झारखंड पुलिस के द्वारा जारी किए गए इनामी नक्सलियों के पोस्टर और लोकल भाषाओं में नक्सलियों के बारे में दी गई जानकारी की वजह से नक्सली पकड़े जा रहे हैं और एनकाउंटर में मारे जा रहे हैं. इससे ऐसा माना जा सकता है कि कल तक जो जन समर्थन नक्सलियों के पास था अब वह खिसक कर पुलिस के पास चला गया है.
शहीद सफ्ताह के दौरान 23 पन्ने का लिखा गया पत्र
माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के द्वारा हाल में ही शहीद सप्ताह को लेकर एक लंबा चौड़ा पत्र जारी किया गया है. 23 पन्नों के उस पत्र में पिछले एक साल के दौरान जिन-जिन नक्सलियों की मौत एनकाउंटर में हुई है या फिर बीमारी से सभी की जानकारी साझा की गई थी. सेंट्रल कमेटी के पत्र में स्पष्ट लिखा गया है कि उन्हें सामरिक रूप से सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड में हुआ है.
पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि सबसे ज्यादा जान का नुकसान दण्डकारण्य में हुआ है. एक साल के भीतर देशभर में कुल 160 के करीब उनके कॉमरेड शहीद हुए हैं. जिसमें झारखंड में 20, तेलंगाना में 09, दंडकारण्य में 68, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ स्पेशल जोन में पांच, आंध्र प्रदेश-ओडिशा सीमा पर 3, ओडिशा में 09, आंध्र प्रदेश में 01, पश्चिमी घाटियों में एक और पश्चिम बंगाल के उनके एक कॉमरेड शामिल हैं.
देश भर में 38 महिला नक्सली मारी गईं
नक्सलियों के इस पत्र में एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी गई है. इस पत्र के अनुसार सबसे ज्यादा शहीद होने वाली महिला कॉमरेड हैं, इनकी संख्या 38 है. झारखंड में भी पिछले 1 साल में चार महिला नक्सली एनकाउंटर में मारी गई हैं जबकि तीन के करीब गिरफ्तार की गईं. इसके साथ ही कोल्हान में छह नक्सलियों के मारे जाने के बात भी पत्र में लिखी गयी है.
नक्सलियों को उठाना पड़ा है भारी नुकसान
10 जून 2024 को सारंडा में झारखंड पुलिस ने नक्सलियों को सबसे बड़ा झटका दिया है. 10 जून को एक साथ छह नक्सलियों को मार गिराया गया था, जिसमें दो इनामी थे. इस घटना के बाद नक्सली संगठन लगभग हताश हो गए हैं. 10 जून को हुए एनकाउंटर के बाद भाकपा माओवादियो के दक्षिणी जनरल कमेटी के प्रवक्ता अशोक ने एक प्रेस रिलीज जारी कर एनकाउंटर को पुलिसिया अत्याचार करार दिया. 5 जुलाई 2024 को जारी किए गए पत्र में नक्सलियों ने यह लिखा है कि कोल्हान में ऑपरेशन कगार के तहत हमारे 6 कॉमरेड को पुलिस ने पकड़ कर उन्हें बर्बर तरीके से मार डाला. नक्सलियों का दावा है कि अपने बीमार साथी के इलाज के लिए जा रहे छह कॉमरेडों को पुलिस ने पड़कर मार डाला.
हर पत्र में मांग रहे जन समर्थन
हाल के दिनों में नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों के द्वारा आधा दर्जन से ज्यादा पत्र जारी किए गए हैं. सभी पत्र में पुलिस को अत्याचारी बताया गया है. पुलिस के द्वारा चलाए जा रहे अभियान को उनके द्वारा दमन की संज्ञा दी गई है. इन पत्रों के माध्यम से लगातार समाज के बुद्धिजीवी और ग्रामीणों से जन समर्थन की मांग की जा रही है.
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण था झारखंड
नक्सलियों के पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि झारखंड-बिहार सामरिक रूप से उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था. छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से सीमाएं सटने की वजह से कॉमरेडों को आंदोलन में सहूलियत होती थी. लेकिन झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बूढ़ापहाड़, पारसनाथ, झुमरा और बुलबुल जंगल से नक्सलियों को खदेड़ दिया है. सारंडा में भी नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जा रही है. भाकपा माओवादियों के अनुसार झारखंड में एक वर्ष के भीतर उनके 300 से ज्यादा कमांडर, कैडर और समर्थकों को जेल में भी डाला गया है.
पुलिस इनकाउंटर को नक्सली दे रहे छल का नाम
झारखंड और छत्तीसगढ़ को लेकर नक्सली बेहद परेशान हैं. दोनों राज्यों में पिछले 1 साल में दर्जनों नक्सली एनकाउंटर में मारे गए हैं और सैकड़ो सलाखों के पीछे पहुंचाए गए हैं. आम जनता और दूसरे बुद्धिजीवियों का सपोर्ट हासिल करने के लिए पत्र में नक्सलियों के द्वारा यह बताया गया है कि पुलिस ने उनके साथियों को छलपूर्वक मारा है. माओवादियों ने पुलिस पर यह आरोप लगाया है कि झारखंड के अलावा दण्डकारण्य स्पेशल जोन के गढ़चिरौली डिवीजन में एक कार्बेट ऑपरेशन के दौरान कई वरिष्ठ कॉमरेडों को सुरक्षा बलों के द्वारा मार डाला गया.
इसके अलावा नक्सलियों ने पत्र जारी कर यह आरोप भी लगाया है कि बस्तर इलाके में हमारे खिलाफ लड़ाई के लिए ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिए हमले किए जा रहे हैं. यहां तक कि गरुड़ कमांडो का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि माओवादी कैडरों ने बस्तर में सुरक्षा बलों का जमकर मुकाबला किया है. इस मुकाबले में सुरक्षा बलों के दो हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचाया गया जबकि पुलिस के कई कमांडो भी मारे गए. बस्तर इलाके में कब-कब पुलिस पर हमला हुआ. इस बात की पूरी जानकारी भी माओवादियों के पत्र में दी गयी है.
गिरफ्तारी से हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
पिछले एक साल में झारखंड में 12 इनामी नक्सलियों सहित एक दर्जन नक्सली कमांडर एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं. लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान बड़े कैडरों की गिरफ्तारी और उनके आत्मसमर्पण करने से हुआ है. नक्सली संगठन ने सरेंडर करने वालों को गद्दार घोषित कर रखा है. झारखंड पुलिस मुख्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार साल 2020 से लेकर 2024 के जून महीने तक कुल 1 हजार 490 नक्सली गिरफ्तार हुए.
इनमें कई बड़े नाम भी शामिल हैं, जिनकी गिरफ्तारी से नक्सली संगठन को बड़ा झटका लगा है. बड़े नक्सलियों को टारगेट कर अभियान चलाने की शुरुआत 2020 से शुरू हुई थी. इस दौरान कई बड़े और इनामी गिरफ्तार किए गए. वहीं दूसरी तरफ माओवादियों से बूढ़ापहाड़, बुलबुल छिनने के बाद पुलिस और केंद्रीय बलों ने चाईबासा, सरायकेला और खूंटी के ट्राइजंक्शन पर एक करोड़ के माओवादी पतिराम मांझी के दस्ते को साल भर से घेरकर रखा हुआ है.
प्रमुख नाम जो गिरफ्तार हुए
नक्सलियों के खिलाफ अभियान में बड़े नक्सली गिरफ्तार हुए. इनमें एक करोड़ के इनामी प्रशांत बोस शामिल है. इसके अलावा 10 लाख के इनामी रूपेश कुमार सिंह (सैक मेंबर), प्रभा दी, सुधीर किस्कू, प्रशांत मांझी, बलराम उरांव समेत अन्य को सुरक्षा बलों ने कार्रवाई के दौरान गिरफ्तार किया. इसके साथ ही 25 लाख के इनामी नक्सली नंद लाल मांझी को भी पुलिस ने शिकंजे में लिया है.
बड़े नक्सलियों के सरेंडर करने कमजोर हुआ संगठन
झारखंड में भाकपा माओवादियों को ताकतवर बनाने वाले कई बड़े नाम संगठन छोड़ कर पुलिस के शरण में आ चुके हैं. इनमें महाराज प्रमाणिक, विमल यादव, सुरेश सिंह मुंडा, भवानी सिंह, विमल लोहरा, संजय प्रजापति, अभय जी, रिमी दी, राजेंद्र राय जैसे बड़े नक्सली पुलिस के सामने हथियार डाल चुके हैं. इसके अलावा भी छिपपुट कैडर से जुड़े नक्सली भी आत्मसर्पण की नीति से प्रभावित होकर संगठन छोड़ रहे हैं.
अरविंद जी के मौत के बाद स्थिति हुई खराब
पुलिस के द्वारा की गई ताबड़तोड़ कार्रवाई की वजह से झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों को अब उनके प्रभाव वाले इलाकों में ही बिखरने पर मजबूर कर दिया है. झारखंड में भाकपा माओवादियों के प्रभाव का बड़ा इलाका नेतृत्वविहीन हो गया है. झारखंड, छतीसगढ़ और बिहार तक विस्तार वाला बूढ़ापहाड़ का इलाका माओवादियों के सुरक्षित गढ़ के तौर पर जाना जाता था.
नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के बाद अब बूढ़ापहाड़ के इलाके में पड़ने वाला पलामू, गढ़वा, लातेहार से लेकर लोहरदगा तक के इलाके में माओवादियों के लिए नेतृत्व का संकट पैदा हो गया है. बता दें कि साल 2018 के पूर्व सीसी मेंबर देवकुमार सिंह उर्फ अरविंद जी बूढ़ापहाड़ इलाके का प्रमुख था, देवकुमार सिंह की बीमारी से मौत के बाद तेलगांना के सुधाकरण को यहां का प्रमुख बनाया गया था. लेकिन 2019 में तेलंगाना पुलिस के समक्ष सुधाकरण ने सरेंडर कर दिया. इसके बाद बूढ़ापहाड़ इलाके की कमान विमल यादव को दी गई थी. विमल यादव ने फरवरी 2020 तक बूढ़ापहाड़ के इलाके को संभाला, इसके बाद बिहार के जेल से छूटने के बाद मिथलेश महतो को बूढ़ापहाड़ भेजा गया था तब से वो ही यहां का प्रमुख था लेकिन मिथिलेश को भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. इसका नतीजा ये हुआ कि अब सिर्फ कोल्हान इलाके में ही नक्सलियों का शीर्ष नेतृत्व बचा हुआ है.
क्या कहती है पुलिस
झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल वी होमकर, जिनके कार्यकाल में झारखंड में नक्सलियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. वे नक्सलियों के पत्र को लेकर ज्यादा आश्चर्य में नहीं हैं. आईजी अमोल वी होमकर के अनुसार झारखंड में चाईबासा को छोड़ पूरे झारखंड में नक्सलियों का अस्तित्व न के बराबर है. चाईबासा में भी नक्सलियों के सफाए के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है. आईजी ने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली और नक्सली संगठन के द्वारा जारी किए गए प्रेस रिलीज में इस बात का साफ-साफ जिक्र है कि उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड में झेलना पड़ा है.
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