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RSS को समझने में सरकार को क्यों लगे 50 साल, हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद अब सरकारी कर्मचारियों को छूट - HC Verdict On Employees Join RSS

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भी माना कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर पहले की केंद्र सरकारों द्वारा लगाया गया प्रतिबंध असंवैधानिक था. आरएसएस की शाखाओं में केंद्र सरकार के कर्मचारी जा सकते हैं, क्योंकि आरएसएस कभी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा. एमपी हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि प्रतिबंध हटाने का सर्कुलर कार्यालयीन वेबसाइट पर लगाएं.

HC Verdict On Employees Join RSS
आरएसएस पर केंद्र सरकारों द्वारा लगाया गया प्रतिबंध असंवैधानिक (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 26, 2024, 10:15 AM IST

Updated : Jul 26, 2024, 4:11 PM IST

इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ इंदौर में अधिवक्ता मनीष नायर द्वारा याचिकाकर्ता पुरुषोत्तम गुप्ता ने याचिका लगाई. इसमें मांग की गई कि आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की लिस्ट से हटाया जाए. इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी वर्षों पूर्व ऑफिस मेमोरेंडम को निरस्त किया जाए. याचिका में कहा गया कि आरएसएस कोई राजनैतिक गतिविधियों को संचालित नहीं करता और न ही कोई राजनैतिक काम करता है. ये संगठन देश सेवा, राष्ट्र सेवा के साथ मानव सेवा के हितों का काम करता है.

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ इंदौर में अधिवक्ता मनीष नायर (ETV BHARAT)

कार्यालयीन वेबसाइट के होम पेज पर सर्कुलर प्रदर्शित करें

याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे हिमांशु जोशी डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट को बताया कि 9 जुलाई 2024 को 30 नवंबर 1966, 27 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के ऑफिस मेमोरेंडम से आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में से हटाए जाने का निर्णय लिया जा चुका है. न्यायाधिपति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और गजेन्द्र सिंह द्वारा प्रकरण में सुनवाई के बाद निर्णय दिया गया. इसके तहत भारत सरकार को निर्देशित किया गया है कि इस पॉलिसी को कार्यालयीन वेबसाइट के होम पेज पर सर्कुलर 9 जुलाई 24 के विवरण के साथ प्रदर्शित किया जाए. लोगो की जानकारी एवं सूचना के लिए ये सर्कुलर निर्णय वाले दिन से 15 दिन के अंदर वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाए.

सभी सरकारी विभागों को भी भेजें सर्कुलर

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देशित किया है इस सर्कुलर/ऑफिस मेमोरेंडम को सभी विभागों में भेजने की व्यवस्था की जाए. कोर्ट ने माना कि आरएसएस किसी ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है, जो राष्ट्र के हितों के विपरीत हो. इसके बावजूद 1966 से आरएसएस को प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में रखा जाना भारतीय संविधान के विपरीत है. सरकार का किसी भी तरह का निर्णय किसी भी ठोस आधार और साक्ष्य के आधार पर होना चाहिए, जिससे कि किसी भी व्यक्ति या संगठन के मूलभूत संवैधानिक अधिकारो का उल्लंघन न हो.

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पहले की केंद्र सरकारों पर भी टिप्पणी

न्यायालय ने यह भी माना कि केंद्र सरकारों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कार्यप्रणाली और उसके उद्देश्यों को समझने में 50 साल से ज्यादा समय लगा. इस कारण कई कर्मचारी जो केंद्र में कार्यरत थे, संघ के कामों में भाग लेने से वंचित रह गए. बता दें कि ये प्रतिबंध राज्य शासन के कर्मचारियों पर लागू नहीं था, लेकिन केंद्र शासन के अंतर्गत आने वाले हर कर्मचारी पर लागू था, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मूलभूत अधिकारों के हनन के साथ उल्लंघन था.

इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ इंदौर में अधिवक्ता मनीष नायर द्वारा याचिकाकर्ता पुरुषोत्तम गुप्ता ने याचिका लगाई. इसमें मांग की गई कि आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की लिस्ट से हटाया जाए. इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी वर्षों पूर्व ऑफिस मेमोरेंडम को निरस्त किया जाए. याचिका में कहा गया कि आरएसएस कोई राजनैतिक गतिविधियों को संचालित नहीं करता और न ही कोई राजनैतिक काम करता है. ये संगठन देश सेवा, राष्ट्र सेवा के साथ मानव सेवा के हितों का काम करता है.

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ इंदौर में अधिवक्ता मनीष नायर (ETV BHARAT)

कार्यालयीन वेबसाइट के होम पेज पर सर्कुलर प्रदर्शित करें

याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे हिमांशु जोशी डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट को बताया कि 9 जुलाई 2024 को 30 नवंबर 1966, 27 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के ऑफिस मेमोरेंडम से आरएसएस का नाम प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में से हटाए जाने का निर्णय लिया जा चुका है. न्यायाधिपति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और गजेन्द्र सिंह द्वारा प्रकरण में सुनवाई के बाद निर्णय दिया गया. इसके तहत भारत सरकार को निर्देशित किया गया है कि इस पॉलिसी को कार्यालयीन वेबसाइट के होम पेज पर सर्कुलर 9 जुलाई 24 के विवरण के साथ प्रदर्शित किया जाए. लोगो की जानकारी एवं सूचना के लिए ये सर्कुलर निर्णय वाले दिन से 15 दिन के अंदर वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाए.

सभी सरकारी विभागों को भी भेजें सर्कुलर

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देशित किया है इस सर्कुलर/ऑफिस मेमोरेंडम को सभी विभागों में भेजने की व्यवस्था की जाए. कोर्ट ने माना कि आरएसएस किसी ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है, जो राष्ट्र के हितों के विपरीत हो. इसके बावजूद 1966 से आरएसएस को प्रतिबंधित ऑर्गेनाइजेशन की सूची में रखा जाना भारतीय संविधान के विपरीत है. सरकार का किसी भी तरह का निर्णय किसी भी ठोस आधार और साक्ष्य के आधार पर होना चाहिए, जिससे कि किसी भी व्यक्ति या संगठन के मूलभूत संवैधानिक अधिकारो का उल्लंघन न हो.

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पहले की केंद्र सरकारों पर भी टिप्पणी

न्यायालय ने यह भी माना कि केंद्र सरकारों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कार्यप्रणाली और उसके उद्देश्यों को समझने में 50 साल से ज्यादा समय लगा. इस कारण कई कर्मचारी जो केंद्र में कार्यरत थे, संघ के कामों में भाग लेने से वंचित रह गए. बता दें कि ये प्रतिबंध राज्य शासन के कर्मचारियों पर लागू नहीं था, लेकिन केंद्र शासन के अंतर्गत आने वाले हर कर्मचारी पर लागू था, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मूलभूत अधिकारों के हनन के साथ उल्लंघन था.

Last Updated : Jul 26, 2024, 4:11 PM IST
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