भोपाल: जैसे मेहमान के साथ होता है कि उसकी आवभगत तो पूरी होती है लेकिन रहता वो मेहमान ही है. मध्य प्रदेश के करीब 70 हजार अतिथि शिक्षकों की स्थिति भी उसी मेहमान की तरह है. जिसे लाया तो बहुत आवभगत के साथ गया था. पंद्रह बरस पहले अतिथि शिक्षक के तौर पर लाए गए इन शिक्षकों के नाम पर एमपी के इतिहास का सबसे बड़ा सत्ता पलट हो गया. केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में रहते हुए इन्हीं अतिथि शिक्षकों का साथ देने अपनी सरकार के खिलाफ बगावती देवर दिखाए थे. इसी एक सियासी घटना ने सीन बदला था और कांग्रेस सड़क पर और बीजेपी सत्ता में आ गई थी.
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने दिया था आश्वासन
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की सरकार के दौर में महापंचायत बुलाकर इन्हें नियमित करने का आश्वासन भी मिला. लेकिन बीजेपी के दुबारा सत्ता में आ जाने के बाद भी बदला कुछ नहीं. बल्कि मोहन सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह के बयान ने तो स्थिति और साफ कर दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि आप मेहमान बनकर आओगे तो क्या घर पर कब्जा करोगे. भले ही एमपी में इनकी बदौलत सत्ता पलट गई लेकिन अतिथि से ये शिक्षक स्थाई नहीं हो पाए.
हर बार मिला सिर्फ आश्वासन
एमपी में करीब पंद्रह बरस से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी मध्यप्रदेश के एजुकेशन सिस्टम की अहम कड़ी अतिथि शिक्षक स्थाई नहीं हो पाए. इन पंद्रह सालों में ऐसा नहीं कि इनकी बात सरकारों के कानों तक नही पहुंची. लेकिन बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक हर सरकार से आश्वासन मिला. जमीन पर हालात बदलने वाले एक्शन का इन्हें अब भी इंतजार है. अतिथि शिक्षक संघ के अध्यक्ष के सी पवार का आरोप है कि "अतिथि शिक्षकों को सरकारों ने अपना बनाया ही नहीं. हमारी सबसे बड़ी मांग नियमितीकरण की है, सरकारें बदलती रहीं लेकिन हमारी एक सूत्रीय मांग पर केवल आश्वासन मिले. स्थाई समाधान किसी सरकार ने नहीं किया."
अतिथि शिक्षकों के आंदोलन में पहुंचे थे सिंधिया
2018 में कांग्रेस सरकार के दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के नेता बतौर इन अतिथि शिक्षकों के प्रदर्शन में पहुंचे थे. उन्होंने अतिथि शिक्षकों से कहा था कि आपकी मांग के लिए हम सड़क पर भी उतर आएंगे. उसके बाद तत्कालीन सीएम कमलनाथ से जब सिंधिया के बयान को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उतर आएं सड़क पर और वाकई सिंधिया सड़क पर आ गए. अतिथि शिक्षकों के आंदोलन की जमीन से उठे इस बवाल के बाद एमपी में सत्ता पलट हो गया था. उसके बाद शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बनें. उन्होने महापंचायत में आश्वासन दिया कि योजना बनाने के साथ अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण का रास्ता निकाला जाएगा.
कमलनाथ ने अतिथि शिक्षकों को बताया था रीढ़
इस दौरान विपक्ष में आ चुके कमलनाथ का बयान बदल गया. उन्हें अब अतिथि शिक्षकों से सहानुभूति हुई और उन्होंने इन शिक्षकों को एमपी की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बताया. एमपी में 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता तो आई लेकिन शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री नहीं बने और उनका किया वादा अधूरा रह गया. फिर मोहन सरकार में पहले चरण के आंदोलन में ही शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह के बयान ने सरकार का रुख इनके सामने स्पष्ट कर दिया.
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'मोहन सरकार के सामने बड़ी चुनौती'
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं कि "ये वादा शिवराज सरकार के दौर का है. 70 हजार की तादाद में जो अतिथि शिक्षक हैं उनके नियमित किए जाने के साथ तय है कि सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. लाड़ली बहना जैसी योजनाओं के चलते रहने के साथ ये वाकई मोहन सरकार के सामने बड़ी चुनौती है."