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मानसून में जलभराव और बाढ़: पूर्व सचिव ने जल निकासी के मुद्दों को हल करने के लिए बताए कई उपाय - Water logging

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 31, 2024, 2:25 PM IST

Logging Flooding Urban Drainage Systems Challenges : बारिश के मौसम में बाढ़ और जलभराव की समस्या से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. सुरक्षा संबंधी खतरे भी पैदा होते हैं. शहरी विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ. सुधीर कृष्ण ने ईटीवी भारत की सुरभि गुप्ता से इन चुनौतियों और बेहतर जल प्रबंधन की आवश्यकता पर चर्चा की.

Water logging
सड़क पर जलभराव (प्रतीकात्मक फोटो) (ANI)

नई दिल्ली: मानसून का मौसम चिलचिलाती गर्मी से राहत तो देता है, लेकिन साथ ही यह अपने साथ कई तरह की चुनौतियां भी लेकर आता है जैसे सड़कों पर जलभराव और गड्ढे. हर साल यह समस्या लोगों को परेशान करती है. ओवरफ्लो होने वाली नालियां और क्षतिग्रस्त सड़कें अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं. शहरी विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ. सुधीर कृष्ण ने ईटीवी भारत की सुरभि गुप्ता से विशेष बातचीत की और मानसून के मौसम में जल प्रबंधन को लेकर कई सुझाव दिए.

डॉ. कृष्णा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले कुछ दशकों में कई छोटे गांव शहरी क्षेत्रों में विकसित हो गए. इस परिवर्तन ने प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न को काफी हद तक बदल दिया. पहले पानी स्वाभाविक रूप से तालाबों और छोटी धाराओं के माध्यम से बहता था, लेकिन शहरी विस्तार ने इन प्राकृतिक रास्तों को रियल एस्टेट विकास के साथ दबा दिया. नतीजतन, बुनियादी जल निकासी प्रणालियों से समझौता किया गया.

डॉ. कृष्णा ने बताया कि प्राकृतिक जल निकासी चैनल अब अवरुद्ध हो गए हैं. इससे बारिश का पानी झीलों और तालाबों तक नहीं पहुंच पा रहा है. उन्होंने कहा, 'बारिश का पानी जो झीलों और तालाबों जैसे जल निकायों में बहना चाहिए था, वहां नहीं पहुंच पा रहा है. इसलिए झीलें सूख रही हैं और कुछ लोग इसे सिर्फ खुली जगह के तौर पर देखते हैं. इसलिए वे अब ऐसी जमीनों का इस्तेमाल या तो अतिक्रमण करके या झुग्गियां बनाकर कर रहे हैं या फिर वहां सरकारी परियोजनाएं भी बन रही हैं.'

पूर्व सचिव ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बहाल करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि एक प्रभावी तरीका मौजूदा जल निकासी नेटवर्क का मानचित्रण करने और आवश्यक पुनर्निर्माण की पहचान करने के लिए सेटेलाइट इमेजरी का उपयोग करना होगा. इन नेटवर्कों को सटीक रूप से चित्रित करके शहरी जल प्रवाह को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं और भविष्य में बाढ़ को रोक सकते हैं.

डॉ. कृष्णा ने यह भी प्रस्ताव दिया कि आगे की क्षति को रोकने के लिए शहरों को जलाशयों के लिए उपयुक्त जल स्तर निर्धारित करने के लिए एक भौगोलिक मॉडल अपनाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नगरपालिका नियमों के तहत संरक्षित हैं. उन्होंने कहा, 'आगे की क्षति को रोकने के लिए पूर्ण टैंक स्तर (FTL) निर्धारित किया जाना चाहिए.

जब बहुत अधिक बारिश होती है तो कई इलाकों में पानी भर जाता है. ऐसे इलाकों को निर्धारित करने के लिए एक भौगोलिक (जीआईएस) मॉडल का निर्माण किया जा सकता है. ऐसे क्षेत्रों को संरक्षित किया जाना चाहिए. मास्टर प्लान, बिल्डिंग बायलॉज और अन्य प्रासंगिक कानूनों के तहत ऐसी भूमि के विकास को विनियमित करने के लिए अधिसूचित किया जाना चाहिए.

डॉ. कृष्णा ने जिस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात की, वह था मानव निर्मित जल निकासी प्रणालियों का खात्मा. उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक रूप से सड़क किनारे की नालियां खुली रहती थी और उनका रख-रखाव और सफाई आसान होती थी. हालांकि, पिछले 3-4 दशकों में जैसे-जैसे सड़कें चौड़ी होती गई और बुनियादी ढाँचा विकसित हुआ, इन नालियों को ढक दिया गया और संकरा कर दिया गया. इससे उनकी क्षमता कम हो गई और उनमें रुकावट आने की संभावना बढ़ गई. इन इंजीनियर्ड नालियों के अपर्याप्त डिजाइन और रख-रखाव के कारण अपेक्षाकृत कम बारिश में भी सड़कों पर अक्सर बाढ़ आ जाती है.

डॉ. कृष्णा के अनुसार जल निकासी व्यवस्था का खराब प्रबंधन सड़कों पर जलभराव का मुख्य कारण है. जलभराव वाली सड़कों पर जल्दी ही गड्ढे बन जाते हैं, जो समय के साथ खराब होते जाते हैं और सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए गंभीर असुविधा का कारण बनते हैं, साथ ही दुर्घटनाएं भी होती हैं. कृष्णा ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि सड़क और जल निकासी के रखरखाव की जिम्मेदारी अलग-अलग है. कई शहरों में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग प्राधिकरण, नगर पालिकाओं और विकास निकायों सहित कई एजेंसियां ​​सड़क बुनियादी ढांचे के विभिन्न खंडों के प्रबंधन में शामिल हैं.

इस विखंडन के कारण अक्सर जल निकासी व्यवस्था को बनाए रखने और साफ करने में समन्वित प्रयास की कमी हो जाती है. उनके अनुसार दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सड़कों के मालिक लगभग 30 संगठन हैं. इतने सारे विभागों के लिए एक साथ बैठकर नालों के रखरखाव के लिए उचित कार्रवाई सुनिश्चित करना काफी मुश्किल काम है.

डॉ. कृष्णा ने बेहतर शहरी नियोजन और प्रबंधन की वकालत करते हुए अपनी चर्चा का समापन किया. उन्होंने जल निकासी के मुद्दों को हल करने के लिए कई उपाय बताए. इसमें मिट्टी को रिचार्ज करने और समग्र जल खपत को कम करने के लिए वर्षा जल का पुनः उपयोग करना शामिल है.

ये भी पढ़ें- देश में आई जल प्रलय को रोकने का उपाय है जगह-जगह बांध बनाना ?

नई दिल्ली: मानसून का मौसम चिलचिलाती गर्मी से राहत तो देता है, लेकिन साथ ही यह अपने साथ कई तरह की चुनौतियां भी लेकर आता है जैसे सड़कों पर जलभराव और गड्ढे. हर साल यह समस्या लोगों को परेशान करती है. ओवरफ्लो होने वाली नालियां और क्षतिग्रस्त सड़कें अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं. शहरी विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव डॉ. सुधीर कृष्ण ने ईटीवी भारत की सुरभि गुप्ता से विशेष बातचीत की और मानसून के मौसम में जल प्रबंधन को लेकर कई सुझाव दिए.

डॉ. कृष्णा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले कुछ दशकों में कई छोटे गांव शहरी क्षेत्रों में विकसित हो गए. इस परिवर्तन ने प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न को काफी हद तक बदल दिया. पहले पानी स्वाभाविक रूप से तालाबों और छोटी धाराओं के माध्यम से बहता था, लेकिन शहरी विस्तार ने इन प्राकृतिक रास्तों को रियल एस्टेट विकास के साथ दबा दिया. नतीजतन, बुनियादी जल निकासी प्रणालियों से समझौता किया गया.

डॉ. कृष्णा ने बताया कि प्राकृतिक जल निकासी चैनल अब अवरुद्ध हो गए हैं. इससे बारिश का पानी झीलों और तालाबों तक नहीं पहुंच पा रहा है. उन्होंने कहा, 'बारिश का पानी जो झीलों और तालाबों जैसे जल निकायों में बहना चाहिए था, वहां नहीं पहुंच पा रहा है. इसलिए झीलें सूख रही हैं और कुछ लोग इसे सिर्फ खुली जगह के तौर पर देखते हैं. इसलिए वे अब ऐसी जमीनों का इस्तेमाल या तो अतिक्रमण करके या झुग्गियां बनाकर कर रहे हैं या फिर वहां सरकारी परियोजनाएं भी बन रही हैं.'

पूर्व सचिव ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बहाल करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि एक प्रभावी तरीका मौजूदा जल निकासी नेटवर्क का मानचित्रण करने और आवश्यक पुनर्निर्माण की पहचान करने के लिए सेटेलाइट इमेजरी का उपयोग करना होगा. इन नेटवर्कों को सटीक रूप से चित्रित करके शहरी जल प्रवाह को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं और भविष्य में बाढ़ को रोक सकते हैं.

डॉ. कृष्णा ने यह भी प्रस्ताव दिया कि आगे की क्षति को रोकने के लिए शहरों को जलाशयों के लिए उपयुक्त जल स्तर निर्धारित करने के लिए एक भौगोलिक मॉडल अपनाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नगरपालिका नियमों के तहत संरक्षित हैं. उन्होंने कहा, 'आगे की क्षति को रोकने के लिए पूर्ण टैंक स्तर (FTL) निर्धारित किया जाना चाहिए.

जब बहुत अधिक बारिश होती है तो कई इलाकों में पानी भर जाता है. ऐसे इलाकों को निर्धारित करने के लिए एक भौगोलिक (जीआईएस) मॉडल का निर्माण किया जा सकता है. ऐसे क्षेत्रों को संरक्षित किया जाना चाहिए. मास्टर प्लान, बिल्डिंग बायलॉज और अन्य प्रासंगिक कानूनों के तहत ऐसी भूमि के विकास को विनियमित करने के लिए अधिसूचित किया जाना चाहिए.

डॉ. कृष्णा ने जिस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात की, वह था मानव निर्मित जल निकासी प्रणालियों का खात्मा. उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक रूप से सड़क किनारे की नालियां खुली रहती थी और उनका रख-रखाव और सफाई आसान होती थी. हालांकि, पिछले 3-4 दशकों में जैसे-जैसे सड़कें चौड़ी होती गई और बुनियादी ढाँचा विकसित हुआ, इन नालियों को ढक दिया गया और संकरा कर दिया गया. इससे उनकी क्षमता कम हो गई और उनमें रुकावट आने की संभावना बढ़ गई. इन इंजीनियर्ड नालियों के अपर्याप्त डिजाइन और रख-रखाव के कारण अपेक्षाकृत कम बारिश में भी सड़कों पर अक्सर बाढ़ आ जाती है.

डॉ. कृष्णा के अनुसार जल निकासी व्यवस्था का खराब प्रबंधन सड़कों पर जलभराव का मुख्य कारण है. जलभराव वाली सड़कों पर जल्दी ही गड्ढे बन जाते हैं, जो समय के साथ खराब होते जाते हैं और सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए गंभीर असुविधा का कारण बनते हैं, साथ ही दुर्घटनाएं भी होती हैं. कृष्णा ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि सड़क और जल निकासी के रखरखाव की जिम्मेदारी अलग-अलग है. कई शहरों में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग प्राधिकरण, नगर पालिकाओं और विकास निकायों सहित कई एजेंसियां ​​सड़क बुनियादी ढांचे के विभिन्न खंडों के प्रबंधन में शामिल हैं.

इस विखंडन के कारण अक्सर जल निकासी व्यवस्था को बनाए रखने और साफ करने में समन्वित प्रयास की कमी हो जाती है. उनके अनुसार दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सड़कों के मालिक लगभग 30 संगठन हैं. इतने सारे विभागों के लिए एक साथ बैठकर नालों के रखरखाव के लिए उचित कार्रवाई सुनिश्चित करना काफी मुश्किल काम है.

डॉ. कृष्णा ने बेहतर शहरी नियोजन और प्रबंधन की वकालत करते हुए अपनी चर्चा का समापन किया. उन्होंने जल निकासी के मुद्दों को हल करने के लिए कई उपाय बताए. इसमें मिट्टी को रिचार्ज करने और समग्र जल खपत को कम करने के लिए वर्षा जल का पुनः उपयोग करना शामिल है.

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