खूंटीः जिले में बच्चियां बन रही हैं बिन ब्याही मां. यह सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे, लेकिन यह सच है. यहां की दर्जनों नाबालिग बच्चियां मां बन चुकी हैं. यह बात सरकारी अस्पतालों का रिकॉर्ड कह रहा है. हद तो यह है कि ना थानों तक बात पहुंची ना प्रशासन तक. किसी संस्था को इसकी भनक तक नहीं है. इतने संवेदनशील मसले पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है. अब सवाल है कि कौन कर रहा है नाबालिग बच्चियों पर अत्याचार. क्या वजह है कि यहां की बच्चियां मां बन रही हैं. कौन हैं वो हैवान जो इन मासूम बच्चियों को अपना शिकार बना रहे हैं.
झारखंड की राजधानी से महज 30 किमी की दूरी पर है खूंटी जिला. इस जिले से कई अफसर रोजाना रांची आना जाना करते हैं. भगवान बिरसा मुंडा की इस पाक धरती की पीएम मोदी कई बार तारीफ कर चुके हैं. उसी धरती की बच्चियां असुरक्षित हैं. ईटीवी भारत की टीम ने जब इस लीड पर काम करना शुरु किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. आपको जानकर हैरानी होगी कि महज तीन माह के भीतर 75 से ज्यादा नाबालिग बच्चियां बिन ब्याही मां बन चुकी हैं. खुद सिविल सर्जन ने इस बात को स्वीकारा है.
शिक्षा की कमी और नशे की लत है कारण - सिविल सर्जन
खूंटी के दूरस्थ और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में निवास करने वाली 12 से 16 साल की नाबालिग बच्चियां मां बन रही हैं. ढुकु प्रथा या नशे की लत को भी इसकी वजह माना जा रहा है. हालांकि इसका कोई प्रमाण नही है. लेकिन अस्पताल के सरकारी आंकड़ों के अनुसार तीन माह के भीतर 75 से ज्यादा नाबालिग बच्चियों का प्रसव हुआ है, जबकि निजी अस्पतालों का आंकड़ा उससे भी अधिक है. सबसे ज्यादा मामले अफीम प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाली नाबालिग बच्चियों से जुड़ा है. सिविल सर्जन ने इसकी पुष्टि की है और कहा कि क्षेत्र में शिक्षा की कमी और नशा इसका मुख्य कारण हो सकता है.
अफीम प्रभावित इलाकों में फैली है कुरीति
खूंटी जिले में इन दिनों बाल विवाह और ढुकू प्रथा में काफी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. मुरहू के अस्पताल में तीन नाबालिग बच्चियों का प्रसव हुआ है. इस बात की पुष्टि जिले के सिविल सर्जन डॉ नागेश्वर मांझी ने की है. जो नाबालिग बच्चियां, बच्चों को जन्म दे रही हैं, उनमें से अधिकांश अफीम प्रभावित क्षेत्र के कंडेर, मारंगहादा, चिचिगड़ा, कुदा, सरवादा, लांदूप, पोसेया, डेहकेला जैसे गांवों की हैं. यह समस्या इन दिनों जिले के कई गांवों में तेजी से फैल रही है. इसे लेकर गांवों के लोग भी चिंतित हैं, लेकिन रोकथाम के लिए ग्रामसभा या प्रशासनिक स्तर से कोई पहल नहीं हो रही है. अफीम प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों को अफीम के नशे की लत लग रही है. अफीम की खेती के कारण बच्चों के पास पैसे आ रहे हैं.
सिविल सर्जन डॉ नागेश्वर मांझी ने कहा कि नशापान के बाद सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है. वहीं बच्चे मंदबुद्धि होते चले जाते हैं. उन्होंने कहा कि अफीम का नशा करने के बाद किडनी की बीमारी, लंग्स प्रोब्लम और सांस लेने में दिक्कत आती है तो सोचने समझने की शक्ति पूरी तरह खत्म हो जाती है. जिले के सिविल सर्जन ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में 80 के आसपास नाबालिग बच्चियों की डिलीवरी हुई है.
खतरे में रहती है जच्चा और बच्चा की जिंदगी - सिविल सर्जन
कम उम्र में मां बनने की वजह से जच्चा और बच्चा दोनों की जिंदगी पर खतरा मंडराता रहता है. ज्यादातर बच्चे कुपोषित जन्म ले रहे हैं. सिविल सर्जन डॉ नागेश्वर मांझी ने कहा कि इसका एक बड़ा कारण शिक्षा की कमी भी है. नशापान के बाद बच्चों में सोचने- समझने की शक्ति के खत्म होने के साथ क्या करना सही है और क्या गलत इसका बोध उन्हें नहीं हो पाता है. विवेक पूरी तरह मर जाता है. इसकी रोकथाम के लिए बच्चों को नशापान से रोकना होगा और शिक्षा को बढ़ावा देना होगा.
हैवानों के खिलाफ होगी कानूनी कार्रवाई - सीडब्यूसी
सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष तनुश्री सरकार ने बताया कि नाबालिग बच्चियों का कम उम्र में मां बनना ये गैरकानूनी है. उन्होंने बताया कि जल्द ही क्षेत्र में जनजागरुकता के तहत अभियान चलाया जाएगा. तनुश्री सरकार ने बताया कि क्षेत्र में ढुकु प्रथा इसका मुख्य कारण हो सकता है. पहले से ज्यादा नाबालिग बच्चियां इस प्रथा का हिस्सा बन रही हैं. जिसके कारण कम उम्र में गर्भवती हो रही हैं. उन्होंने बताया कि जिन क्षेत्रों की नाबालिग बच्चियां गर्भवती हुई हैं, उन्हें चिन्हित कर लाभ दिलाया जाएगा और बिन ब्याही नाबालिग को गर्भवती करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
नाबालिग की शादी और ढुकू प्रथा है गैरकानूनी- डालसा
जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव राजश्री अपर्णा कुजूर ने बताया कि इसकी रोकथाम के लिए जागरुकता जरूरी है. घर की महिलाओं को भी इन बातों को समझना होगा. स्कूलों में जागरुकता अभियान चलाना होगा. उन्होंने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची की शादी या ढुकु दोनों गैर कानूनी है. लेकिन अगर इसकी जानकारी संबंधित विभाग को नहीं मिलती है और परिवार वाले प्रसव के बाद बच्ची और उसकी बच्चे की देखभाल करते हैं, तो कुछ नहीं किया जा सकता है. यदि बच्ची को घर से निकाला जाता है, तो पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी.
ईटीवी भारत से मिली जानकारी पर होगी कार्रवाई - डीडीसी
जिले के डीडीसी श्याम नारायण राम ने बताया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. ईटीवी भारत से मामले की जानकारी मिली है. उन्होंने कहा कि मामला गंभीर है और इस मामले को संज्ञान में लेकर इस पर गंभीरता से कार्य किया जाएगा. उन्होंने बताया कि चुनाव के बाद जल्द ही इस तरह की कुप्रथा के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए जिला समाज कल्याण से सर्वे कराकर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
गौरवशाली रहा है खूंटी का इतिहास
बड़ी शिद्दत और संघर्ष के बाद आदिवासी बहुल इस इलाके को रांची से अलग कर खूंटी जिला बनाया गया था. यहां की तमाम विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए ही रिजर्व हैं. इसी धरती पर भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई थी. यहां की मिट्टी से ही जयपाल सिंह मुंडा निकले थे, जिन्होंने झारखंड की मांग उठाई थी. लोकसभा क्षेत्र भी आदिवासी के लिए रिजर्व है और यही से सांसद बनकर केंद्र के जनजातीय मंत्री है अर्जुन मुंडा, यही के विधायक बनकर राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री बन चुके है नीलकंठ सिंह मुंडा, यही से सांसद बनकर लोकसभा उपाध्यक्ष रह चुके हैं कड़िया मुंडा. लेकिन उसी आदिवासी बहुल जिले की दर्जनों नाबालिग बेटियां बिन ब्याही मां बन चुकी हैं.
ये भी पढ़ेंः
अफीम की खेती के पीछे नक्सलियों की बी टीम, आर्थिक मजबूती के लिए तैयार किया गया प्लान
खूंटी में अवैध अफीम की खेती के खिलाफ प्रशासन का अभियान बेअसर, खेतों में लहलहाने लगी अफीम की फसल