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महाराष्ट्र कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला: BSIL के निदेशक को तीन और दो साल की सजा, कंपनी पर 50 लाख का जुर्माना - Coal Block Allocation Scam

दिल्ली कोर्ट ने महाराष्ट्र में कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले की दोषी कंपनी पर पचास लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. साथ ही कोर्ट ने कंपनी के एक निदेशक को तीन साल और दूसरे निदेशक को दो साल की सजा सुनाई है.

महाराष्ट्र कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला
महाराष्ट्र कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला (Etv Bharat फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : May 30, 2024, 6:40 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने महाराष्ट्र के मार्की मंगली प्रथम में कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में दोषी करार दिए गए बीएस इस्पात कंपनी लिमिटेड (बीएसआईएल) पर पचास लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही बीएसआईएल के दो निदेशकों को भी सजा सुनाई है. वहीं, स्पेशल जज संजय बंसल ने आरोपियों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए दो महीने की जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने बीएसआईएल के निदेशक मोहन अग्रवाल को तीन साल की कैद और दस लाख रुपए का जुर्माना और दूसरे निदेशक राकेश अग्रवाल को दो साल की कैद और दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने इससे पहले 29 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने बीएसआईएल के अलावा इसके दो निदेशकों मोहन अग्रवाल और राकेश अग्रवाल को दोषी करार दिया है. तीनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120 बी के तहत दोषी करार दिया है.

कोर्ट ने बीएसआईएल को भारतीय दंड संहिता की धारा 406 का भी दोषी करार दिया है. ये कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला 2012 का है. इस मामले में सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर सीबीआई ने 2012 में जांच शुरु की थी, जिसके बाद 2015 में एफआईआर दर्ज की गई थी.

सीबीआई के मुताबिक, बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को केंद्रीय कोयला मंत्रालय को मार्की मंगली कोयला ब्लॉक में कोयले के खनन का आवंटन देने के लिए आवेदन दिया था. सीबीआई के मुताबिक, बीएसआईएल ने जब कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय को आवेदन किया था उस समय वह कंपनी बनी ही नहीं थी. बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन किया था, लेकिन कंपनी का गठन 1 दिसंबर 1999 को हुआ था.

कंपनी के गठन का प्रमाण पत्र 27 अप्रैल 2000 को जारी किया गया था. बीएसआईएल ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए अपने जिस लेटरहेड पर आवेदन किया था उसमें मोहन अग्रवाल का बतौर निदेशक के रूप में हस्ताक्षर किया गया था. सीबीआई के मुताबिक, राकेश अग्रवाल ने 23 जुलाई 1999 को यवतमाल जिले के कलेक्टर के पास बतौर बीएसआईएल के निदेशक के रूप में कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदन किया था.

राकेश अग्रवाल ने आवेदन के साथ बीएसआईएल का मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन और आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन भी संलग्न किया था. कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपियों की मंशा आपराधिक नहीं होती तो वे अपनी कंपनी के गठन का इंतजार करते. लेकिन आरोपियों ने इसका इंतजार किए बिना कोयला ब्लॉक आवंटन की कार्रवाई को आगे बढ़ाया. कंपनी के दोनों निदेशकों ने इस बात का भी संतोजनक जवाब नहीं दिया.

नई दिल्ली: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने महाराष्ट्र के मार्की मंगली प्रथम में कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में दोषी करार दिए गए बीएस इस्पात कंपनी लिमिटेड (बीएसआईएल) पर पचास लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही बीएसआईएल के दो निदेशकों को भी सजा सुनाई है. वहीं, स्पेशल जज संजय बंसल ने आरोपियों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए दो महीने की जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने बीएसआईएल के निदेशक मोहन अग्रवाल को तीन साल की कैद और दस लाख रुपए का जुर्माना और दूसरे निदेशक राकेश अग्रवाल को दो साल की कैद और दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने इससे पहले 29 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने बीएसआईएल के अलावा इसके दो निदेशकों मोहन अग्रवाल और राकेश अग्रवाल को दोषी करार दिया है. तीनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120 बी के तहत दोषी करार दिया है.

कोर्ट ने बीएसआईएल को भारतीय दंड संहिता की धारा 406 का भी दोषी करार दिया है. ये कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला 2012 का है. इस मामले में सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर सीबीआई ने 2012 में जांच शुरु की थी, जिसके बाद 2015 में एफआईआर दर्ज की गई थी.

सीबीआई के मुताबिक, बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को केंद्रीय कोयला मंत्रालय को मार्की मंगली कोयला ब्लॉक में कोयले के खनन का आवंटन देने के लिए आवेदन दिया था. सीबीआई के मुताबिक, बीएसआईएल ने जब कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय को आवेदन किया था उस समय वह कंपनी बनी ही नहीं थी. बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन किया था, लेकिन कंपनी का गठन 1 दिसंबर 1999 को हुआ था.

कंपनी के गठन का प्रमाण पत्र 27 अप्रैल 2000 को जारी किया गया था. बीएसआईएल ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए अपने जिस लेटरहेड पर आवेदन किया था उसमें मोहन अग्रवाल का बतौर निदेशक के रूप में हस्ताक्षर किया गया था. सीबीआई के मुताबिक, राकेश अग्रवाल ने 23 जुलाई 1999 को यवतमाल जिले के कलेक्टर के पास बतौर बीएसआईएल के निदेशक के रूप में कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदन किया था.

राकेश अग्रवाल ने आवेदन के साथ बीएसआईएल का मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन और आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन भी संलग्न किया था. कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपियों की मंशा आपराधिक नहीं होती तो वे अपनी कंपनी के गठन का इंतजार करते. लेकिन आरोपियों ने इसका इंतजार किए बिना कोयला ब्लॉक आवंटन की कार्रवाई को आगे बढ़ाया. कंपनी के दोनों निदेशकों ने इस बात का भी संतोजनक जवाब नहीं दिया.

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