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राहुल नार्वेकर दल-बदल रोधी कानून की समीक्षा के लिए गठित समिति की अध्यक्षता करेंगे : ओम बिरला

Birla on anti defection law : 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने घोषणा की कि राहुल नार्वेकर दल-बदल रोधी कानून की समीक्षा के लिए गठित समिति की अध्यक्षता करेंगे.

Birla on anti defection law
ओम बिरला
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By PTI

Published : Jan 28, 2024, 9:59 PM IST

मुंबई: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने रविवार को कहा कि दल-बदल रोधी कानून की समीक्षा के लिए महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है.

बिरला ने यहां 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान यह घोषणा की. विधायकों द्वारा बार-बार राजनीतिक दल बदलने पर अंकुश लगाने के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल रोधी कानून बनाया गया था. इस कानून में ऐसे निर्वाचित विधायकों को विधायिका से अयोग्य घोषित करने का प्रावधान है यदि वे स्वेच्छा से दल बदल लेते हैं या पार्टी के निर्देश के विरुद्ध मतदान करते हैं.

  • विधान मंडल के संरक्षक के रूप में पीठासीन अधिकारियों का दायित्व है कि वे राजनीतिक दलों से चर्चा कर ऐसे निर्णय लें जो सदस्यों की कार्यकुशलता और दक्षता में अभिवृद्धि करें। हमारा कार्यकरण ऐसा हो जो भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का माध्यम बन सकें।#AIPOC pic.twitter.com/4tr5UvjRxy

    — Om Birla (@ombirlakota) January 28, 2024 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हालांकि, जब किसी पार्टी के दो-तिहाई निर्वाचित सदस्य किसी अन्य पार्टी के साथ 'विलय' के लिए सहमत होते हैं, तो उन्हें अयोग्यता के प्रावधान से छूट दी जाती है.

नार्वेकर ने हाल में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट द्वारा पाला बदलने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं को रद्द करके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के पक्ष में फैसला सुनाया था. नार्वेकर अजित पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) गुट के खिलाफ शरद पवार खेमे की ओर से दायर इसी तरह की याचिकाओं पर गौर कर रहे हैं.

बिरला ने कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता से जोड़ने और उन्हें अधिक जवाबदेह तथा पारदर्शी बनाने की कार्ययोजना पर चर्चा की.

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नार्वेकर के फैसले की आलोचना करते हुए सिब्बल ने कहा- यही इस 'लोकतंत्र की जननी' की त्रासदी है

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बिरला ने यहां 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान यह घोषणा की. विधायकों द्वारा बार-बार राजनीतिक दल बदलने पर अंकुश लगाने के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल रोधी कानून बनाया गया था. इस कानून में ऐसे निर्वाचित विधायकों को विधायिका से अयोग्य घोषित करने का प्रावधान है यदि वे स्वेच्छा से दल बदल लेते हैं या पार्टी के निर्देश के विरुद्ध मतदान करते हैं.

  • विधान मंडल के संरक्षक के रूप में पीठासीन अधिकारियों का दायित्व है कि वे राजनीतिक दलों से चर्चा कर ऐसे निर्णय लें जो सदस्यों की कार्यकुशलता और दक्षता में अभिवृद्धि करें। हमारा कार्यकरण ऐसा हो जो भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का माध्यम बन सकें।#AIPOC pic.twitter.com/4tr5UvjRxy

    — Om Birla (@ombirlakota) January 28, 2024 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

हालांकि, जब किसी पार्टी के दो-तिहाई निर्वाचित सदस्य किसी अन्य पार्टी के साथ 'विलय' के लिए सहमत होते हैं, तो उन्हें अयोग्यता के प्रावधान से छूट दी जाती है.

नार्वेकर ने हाल में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट द्वारा पाला बदलने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं को रद्द करके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के पक्ष में फैसला सुनाया था. नार्वेकर अजित पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) गुट के खिलाफ शरद पवार खेमे की ओर से दायर इसी तरह की याचिकाओं पर गौर कर रहे हैं.

बिरला ने कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता से जोड़ने और उन्हें अधिक जवाबदेह तथा पारदर्शी बनाने की कार्ययोजना पर चर्चा की.

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