Lok Sabha Elections: लखनऊः सदी के महानायक बिग अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) अब भले ही राजनीति से दूर हो गए हो लेकिन पहली बार जब वह पॉलिटिक्स में आए थे उनकी जोरदार एंट्री ने बड़े-बड़े राजनीतिक समीकरणों को मात दे दी थी. बिग बी (big b) जब प्रयागराज से पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े तो न उन्होंने बड़े अंतर से चुनाव जीता. उस दौरान उनके प्रचार और मिले वोटों को लेकर कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनकी अभी भी चर्चाएं होतीं हैं.
यह किस्सा है सन् 1984 का. देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा था. उस दौर में अमिताभ बच्चन ने एक से एक सुपरहिट फिल्में देकर सुपरस्टार का तमगा हासिल कर लिया था. राजीव गांधी के कहने पर वह प्रयागराज से चुनाव लड़ने के लिए राजी हो गए थे. उन्होंने हेमवती नंदन के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया.
कहा जाता है उस दौर में जब अमिताभ बच्चन प्रचार के लिए निकलते थे तो लोग उनके दीवाने हो जाते थे. कई बार चुनाव प्रचार के दौरान उन पर युवतियां और महिलाएं दुपट्टे भी फेंक देती थीं. वह जहां भी जाते लड़कियों के भीड़ 'लव यू अमितजी' कहकर उनके पीछे हो लेती. हेमवती नंदन बहुगुणा उस दौर में सबसे मजबूत राजनेता थे. उन्हें हराना बेहद कठिन था. वहीं, अमिताभ बच्चन प्रय़ागराज की सड़कों पर जहां से भी गुजरते लोग उनके पीछे दौड़ पड़ते. उनकी सभाओं में धीरे-धीरे युवाओं के साथ ही महिलाओं की भीड़ बढ़ने लगी थी. अमिताभ बच्चन ने पत्नी जया बच्चन के साथ भी प्रचार किया था. हालांकि कई बार प्रचार के दौरान फैन्स की दीवानगी देखकर अमिताभ को शर्माना भी पड़ा.
आखिर वोटिंग का दिन भी आ गया. प्रयागराज के लोगों ने जमकर वोटिंग की. जब वोट गिनने की शुरुआत हुई तो बैलेट पर अमिताभ को मिले वोटों के साथ लिपिस्टक के निशान भी मिलने लगे. जैसे-जैसे गिनती आगे बढ़ी वैसे-वैसे लिपिस्टक के निशान वाले बैलेटों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. ऐसे करीब चार हजार बैलेट निकले जिन पर अमिताभ को मिले वोट के साथ लिपिस्टक के निशान भी थे. आखिरकार इन चार हजार वोटों को निरस्त करना पड़ा. ये
इस चुनाव में अमिताभ को 2 लाख 97 हजार 461 वोट मिले थे. वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी भारतीय लोकदल के प्रत्याशी हेमवती नंदन बहुगुणा को मात्र 1 लाख 09 हजार 666 वोट मिले. अमिताभ बच्चन 187795 वोटों से चुनाव जीत गए. हालांकि अमिताभ की राजनीति का यह सफर पांच साल भी पूरे नहीं कर पाया और अमिताभ बच्चन ने राजनीति से किनारा कर लिया.