रायपुर: पिछले दो लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव लड़े. पार्टी को उसमें विजय भी मिली. 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों को साइड कर लोकल मुद्दों को उठाया और उसपर ही पूरा का पूरा चुनाव लड़ा. जनता की बीच एक अच्छा मैसेज गया और उसका फायदा पार्टी को मिला. छत्तीसगढ़ की सियासी राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले सियासी पंडित मानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की राजनीति में कई प्रयोग बीजेपी ने किये. अपने किए प्रयोगों में बीजेपी सफल भी रही. बीजेपी जिन मुद्दों पर लड़ी उन मुद्दों पर लड़ने में कांग्रेस पूरी तरह से फेल रही. बीजेपी की रणनीति के आगे कांग्रेस नतमस्तक हो गई.
राष्ट्रीय मुद्दों की जगह स्थानीय मुद्दों को दी तरजीह: 2014 में जब नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए निकले थे तो उन्होंने केंद्र पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आक्रमण किया किया था. तब बीजेपी ने 2G स्पेक्ट्रम, कोल घोटाले सहित कई बड़े मुद्दों को उठाया. मोदी की लहर में विपक्ष पूरी तरह से बिखर गया. विपक्ष की नेता बनने की स्थिति भी कांग्रेस की नहीं रही. 2019 में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति रही.
कांग्रेस को नहीं मिला बीजेपी का काट: पहले तो मोदी के लहर का असर उसके बाद मोदी के काम का प्रभाव, इन दोनों चीजों को कांग्रेस जनता के बीच रख नहीं पाई. विपक्ष के लोग जरूर इस बात को कहते रहे कि नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सभी लोगों के खाते में 15 लाख आएंगे. खाते में 15 लाख आने की बात को लेकर कांग्रेस लगातार तंज कसती रही. इसका भी कोई राजनीतिक फायदा विपक्ष और कांग्रेस को नहीं मिला. 2019 में मोदी 14 की तरह ही आक्रामक रहे और विपक्ष उनकी काट खोजता रह गया.
काम नहीं आई कांग्रेस की रणनीति: 2024 के लोकसभा चुनाव में 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लेकर बीजेपी आगे बढ़ी. बीजेपी की तरह ही कांग्रेस ने भी विकास को पहली प्राथमिकता चुनाव में बनाया. रोजगार और महंगाई दो अहम मुद्दे रहे. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा में इन्ही दो मुद्दों को जोर शोर से उठाया. छ्त्तीसगढ़ में भी चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने इन्ही मुद्दों को गंभीरता के साथ उठाया. बीजेपी ने बदली रणनीति के तहत स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जिससे वो जीत का एज लेने में सफल रही. बीजेपी को काउंटर करने के लिए जो कांग्रेस ने स्ट्रैटजी बनाई थी वो धरी की धरी रह गई.
बस्तर से मोदी ने दिया संदेश: 8 अप्रैल को नरेंद्र मोदी ने बस्तर में पहली बार चुनावी रैली की. बस्तर की चुनावी रैली में पीएम ने साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेंगे. भ्रष्टाचार का मुद्दा राष्ट्रीय नहीं होकर इस बार छत्तीसगढ़ में स्थानीय हो गया. बीजेपी ने इसे राज्य की सीमाओं में बांध दिया. बीजेपी को इस हर मंच पर फायदा भी मिला. कांग्रेस बीजेपी के इस रणनीति में उलझ कर रह गई. राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा का भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिला. भूपेश बघेल और कांग्रेस अपने पूर्व के किए गए काम को ही हर जगह गिनाते नजर आए. पहली बार लोकसभा चुनाव में ऐसा लग रहा था जैसे विधानसभा चुनाव के मुद्दों पर राजनीति हो रही है. नरेंद्र मोदी जब मंच पर होते थे तो गोबर घोटाले से लेकर शराब घोटाला, महादेव एप, कोल घोटाला और जेल में बंद सरकार के अधिकारी, जो भूपेश बघेल के खास हुआ करते थे उनपर हमला करते थे. चुनावी मुद्दे बनाते थे. कांग्रेस का इसके पास कोई तोड़ नहीं होता था.
मुद्दों के चयन में कांग्रेस रही फेल: इस बार भाजपा ने ईडी से निकले मुद्दे पर चुनाव लड़ा. चाहे वह महादेव एप सट्टा हो या भ्रष्टाचार का मामला हो. कथित शराब घाटाले का आरोप या फिर डीएमएफ घोटाले की बात हो. इन मुद्दों को भाजपा के स्थानीय नेताओं सहित केंद्रीय नेताओं ने छत्तीसगढ़ के मंच पर खूब उछाला. इसके अलावा मुख्यमंत्री के सलाहकार उनके करीबी या जो अधिकारी जेल में हैं उस मामले को भी भाजपा ने चुनाव में जमकर भुनाया. ऐसा माहौल बनाया गया जिससे भाजपा के पक्ष में वोट पड़े. ऐसा भी कह सकते हैं की छत्तीसगढ़ के मुद्दे इस बार लोकसभा चुनाव में हावी रहे. दूसरी ओर कांग्रेस मुद्दों को भुनाने में नाकाम रही. फिर चाहे वह ट्रेन का मामला हो, हंसदेव का मामला हो, नगरनार का हो, नक्सली का हो. इन मुद्दों को उठाने में विपक्ष थोड़ा कमजोर रहा है. - उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, रायपुर
भविष्य के लिए कांग्रेस को इशारा: छत्तीसगढ़ में 2024 का लोकसभा चुनाव भी राज्य के मुद्दे पर लड़ा गया और राज्य वाला मुद्दा ही 2024 की राजनीति में लोकसभा चुनाव के राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा आधार बना. 24 का चुनाव परिणाम इस बात को बताने के लिए काफी है कि जिस मुद्दे को भाजपा ने उठाया और जिस स्थानीयता को उन्होंने जगह दी, वह लोकसभा चुनाव में भी उसके लिए फायदेमंद रहा. शायद बदलती राजनीति के परिभाषा यह भी है कि राजनेताओं को स्थानीय राजनीति के लिए भी जवाबदेह होना भविष्य में पड़ सकता है.