गुवाहाटी: भारत में महिलाएं वोटर लिस्ट में तो बढ़ी हैं लेकिन संसद में नहीं. वैसे महिलाओं की आबादी देश में 48 फीसदी से ज्यादा है. राजनीति की बात करें तो संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र की है. सवाल है कि आखिर क्यों राजनीतिक पार्टियां इन्हें टिकट देने में कंजूसी दिखाते हैं. वैसे महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को सितंबर 2023 में पारित किया गया था. इसने महिलाओं के लिए एक तिहाई विधायी सीटों के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया. हालांकि, राजनीति में महिलाओं की हो रही अंदेखी कई सवाल खड़े करते हैं. बात असम की करें तो, राज्य में चल रहे लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने महिला उम्मीदवारों की उपेक्षा की है.
राजनीति में महिलाओं की उपेक्षा
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में तीन चरण के चुनाव में लड़ रहे कुल 143 उम्मीदवारों में से केवल 12 महिला उम्मीदवार हैं. इसका मतलब यह है कि असम की 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में से केवल 8.3 फीसदी महिलाएं हैं. दूसरी ओर, राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 43 लाख1 हजार 960 है. जिसमें से 1 करोड़ 21 लाख 79 हजार 538 पुरुष मतदाता और 1 करोड़ 21 लाख 22 हजार 602 महिला मतदाता हैं. शेष 414 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं.
महिला उम्मीदवारों की संख्या 8.3 प्रतिशत
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में असम की 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में केवल 9.2 प्रतिशत महिलाएं थीं. 2019 में असम में 10.3 फीसदी महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. इस बार असम की 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में केवल 8.3 प्रतिशत महिलाएं हैं. इससे साफ पता चलता है कि महिला आरक्षण विधेयक लागू होने के बाद महिला उम्मीदवारों की भागीदारी बढ़ने की बजाय इस बार कम हो गई है. इसी तरह,देश स्तर पर भी लगभग 8 फीसदी महिला उम्मीदवार ही चुनाव लड़ रही हैं.
असम से बीजेपी की एक महिला उम्मीदवार
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, असम में चुनाव लड़ रही 12 महिला उम्मीदवारों में से तीन निर्दलीय हैं. गण सुरक्षा पार्टी ने सबसे अधिक तीन महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. देश की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने असम में कुल 11 उम्मीदवारों में से केवल एक महिला उम्मीदवार बिजुली कलिता मेधी को गुवाहाटी से मैदान में उतारा है. वहीं, विपक्षी कांग्रेस पार्टी के 13 उम्मीदवारों में से दो महिला उम्मीदवारों में काजीरंगा से रोसेलिना तिर्की और गुवाहाटी निर्वाचन क्षेत्र से मीरा बोरठाकुर हैं. एसयूसीआई (कम्युनिस्ट), हिंदू समाज पार्टी और वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल ने एक-एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है.
महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधि बनाने में कंजूसी
राजनीतिक दलों के लिए यह ध्यान रखा जरूरी है कि, असम में महिला मतदाता व्यवहारिक तौर पर पुरुष मतदाताओं के बराबर हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, जोरहाट, डिब्रूगढ़, लखीमपुर, नागांव और गुवाहाटी निर्वाचन क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है. हालांकि, सोनितपुर, कोकराझार, दरांग-उदलगुरी, काजीरंगा, सिलचर और दीफू में पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है. इसका मतलब साफ है कि, राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए महिलाओं का सहयोग तो लेते हैं लेकिन चुनाव में टिकट देने से कतराते नजर आते हैं. वैसे इस बार के लोकसभा चुनावों में असम में महिलाएं और युवा मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे. राज्य भाजपा सरकार ने महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए असम में महिलाओं के लिए लखपति दीदी (लगभग 39 लाख महिला लाभार्थी), अरुणोदोई योजना और उज्ज्वला योजना जैसी योजनाएं शुरू की है. कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी देशभर में अपनी लगभग सभी सभाओं में अक्सर महिला समानता की बात करते हैं. हालांकि, हकीकत में राजनीतिक दल महिलाओं को अपना राजनीतिक प्रतिनिधि बनाने के प्रति कंजूसी दिखाते रहे हैं और यह सिलसिला अभी तक जारी है.
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