पटना: 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी हो गई है. एनडीए गठबंधन में सीटों का बंटवारा हो गया है. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में बीजेपी 17 सीटों पर जेडीयू 16 सीटों पर चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 5 सीटों पर उपेंद्र कुशवाहा को एक सीट और जीतन राम मांझी को एक सीट दिया गया है. पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी को एनडीए ने एक भी सीट नहीं दिया.
कब हुआ लोजपा का गठन: रामविलास पासवान ने अपने राजनीति की शुरुआत 1969 में सोशलिस्ट पार्टी के साथ शुरू की थी और इसी वर्ष वह पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. 1977 में वह पहली बार हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे. रामविलास पासवान आठ बार हाजीपुर से और एक बार रोसरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. रामविलास पासवान ने 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था.
पारस को रामविलास ने हाजीपुर से उतारा था: रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में एक बड़ा चेहरा थे. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाए गए. फिर यूपीए की सरकार में भी वह मंत्री बने थे. 2014 में लोजपा ने फिर से एनडीए के साथ गठबंधन किया और नरेंद्र मोदी की सरकार में एक बार फिर से रामविलास पासवान मंत्री बनाए गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान चुनाव नहीं लड़े. वह राज्यसभा के लिए चुने गए. हाजीपुर सीट से उन्होंने अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को चुनाव मैदान में उतारा.
2019 में सभी छह सीटों पर जीत: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले रामविलास पासवान ने अपने पुत्र चिराग पासवान को पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया और 2019 लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा. पार्टी ने सभी 6 सीटों पर जीत हासिल की. केंद्र की सरकार में रामविलास पासवान फिर मंत्री बनाए गए. 8 अक्टूबर 2020 को 74 वर्ष की अवस्था में रामविलास पासवान का निधन हो गया.
लोजपा में क्यों हुआ बिखराव: इसके बाद पार्टी की बागडोर चिराग पासवान के हाथों में आ गई, लेकिन 2021 में उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने पांच सांसदों के साथ पार्टी पर अपना दावा पेश किया. मामला चुनाव आयोग में गया और लोजपा दो भागों में टूट गई. चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा (रामविलास) तो पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के रूप में मान्यता मिली.
टूट का क्या कारण बताया गया: पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी में टूट हुई. 6 में से पांच सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ चले गए. पार्टी में टूट के लिए पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को दोषी ठहराया था. उन्होंने कहा था कि पार्टी के अधिकांश नेता एनडीए के साथ रहना चाहते थे. लेकिन चिराग पासवान ने 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. इससे पार्टी के अधिकांश नेता नाराज थे और पशुपति कुमार पारस ने अपने आप को रामविलास पासवान का असली उत्तराधिकारी बताया था.
उत्तराधिकारी को लेकर लड़ाई: रामविलास पासवान 1977 से 2014 के बीच हाजीपुर लोकसभा सीट से आठ बार सांसद चुने गए थे. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हाजीपुर सीट से अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को उम्मीदवार बनाया था और पशुपति कुमार पारस लोकसभा के सदस्य चुने गए. पार्टी में टूट के बाद असली वारिस होने को लेकर लड़ाई चलती रही. चिराग पासवान रामविलास पासवान के पुत्र होने के नाते उनकी विरासत को आगे ले जाने की बात करते रहे. वही पशुपति कुमार पारस ने यह तर्क दिया था कि परंपरागत सीट से उत्तराधिकारी के रूप में रामविलास पासवान ने उन्हें चुना था. रामविलास पासवान के राजनीतिक जीवन में वह हमेशा उनके साथ लक्ष्मण की भूमिका में रहे, इसलिए असली वारिस पर उनका हक है.
चिराग का संघर्ष: 6 सांसदों वाली पार्टी में चिराग पासवान अकेले बच गए थे. उनके चाचा पशुपति कुमार पारस मोदी सरकार में मंत्री बनाए गए, लेकिन अकेले होने के बावजूद चिराग पासवान अपने कार्यकर्ताओं के बीच लगातार संघर्ष करते दिखे. क्योंकि उनको लग रहा था कि सांसद भले ही चाचा के साथ चले गए हैं लेकिन कार्यकर्ता चिराग पासवान के साथ हैं. यही कारण है कि 2021 के बाद लगातार चिराग पासवान बिहार के हर एक जिला में अपने संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे.
उपचुनाव में चिराग ने निभाया अहम रोल: यही कारण है कि 18 जुलाई 2023 को चिराग पासवान की पार्टी की एनडीए में फिर से वापसी हुई और 2023 में हुए बिहार विधानसभा के उपचुनाव में इसका असर देखने को भी मिला. तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में चिराग पासवान ने खुलकर एनडीए के समर्थन में जनसभाएं की और तीन में से दो सीट पर बीजेपी की जीत हुई.
2024 में चिराग का बदला पूरा हुआ: 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सीट बंटवारे में NDA ने चिराग पासवान को 5 सीट दिया है. केंद्र में मंत्री रहने के बावजूद पांच सांसदों वाली आरएलजेपी को एक भी सीट नहीं दी गई. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि चिराग पासवान पार्टी में अकेले होने के बावजूद वह लगातार अपने कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष करते रहे. 2024 के चुनाव में तो उन्होंने साबित कर दिया की असली लोक जनशक्ति पार्टी वही हैं. यही कारण है कि चिराग पासवान को 5 सीट दिया गया और पशुपति कुमार पारस को एक भी सीट नहीं मिली.
"चिराग पासवान लगातार कार्यकर्ताओं के बीच रहे. उन्होंने अपने आप को रामविलास पासवान का असली वारिस होने की बात अपने कार्यकर्ताओं के मन में भर दिया. पशुपति कुमार पारस के साथ सांसद भले ही थे लेकिन चिराग पासवान ने अपने आप को कभी कार्यकर्ताओं से दूर नहीं होने दिया. यही कारण है कि अलग-थलग पड़ चुके चिराग पासवान की सम्मानजनक एनडीए में वापसी हुई."- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
चिराग का कुनबा फिर से बढ़ने लगा: पशुपति पारस के नेतृत्व वाली पार्टी में बगावत करके चार सांसद चले गए थे , जिसमें वैशाली की सांसद वीणा देवी, नवादा के सांसद चंदन सिंह, खगड़िया के सांसद महबूब अली कैसर और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज शामिल थे. चिराग पासवान की एनडीए में वापसी के बाद फिर से उनके पुराने सांसद चिराग पासवान के संपर्क में आने लगे. सबसे पहले वीणा देवी ने पशुपति कुमार पारस का साथ छोड़कर चिराग पासवान के साथ आगे की राजनीति करने का फैसला लिया. 14 मार्च को खगड़िया के सांसद महबूब महबूब अली कैसर फिर से चिराग पासवान से मिले और अब वह खुलकर एनडीए के साथ रहने की बात करने लगे हैं.
सांसदों ने क्यों छोड़ा पारस का साथ?: पशुपति कुमार पारस के साथ चार सांसद थे. इसमें से दो सांसद वीणा देवी और महबूब अली कैसर खुलकर अब चिराग पासवान के साथ चले गए हैं. आज पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की घोषणा की. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी बाकी बचे दो सांसद चंदन सिंह और उनके भतीजे प्रिंस राज भी मौजूद नहीं थे. दो सांसदों की गैर मौजूदगी पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल ने बातचीत में कहा कि किसी निजी कारण से वह लोग आज के प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो पाए थे.
पारस की पार्टी में दिखा टूट!: श्रवण अग्रवाल ने कहा कि यदि कोई पार्टी छोड़कर दूसरे जगह जाना चाहता है तो हम लोग क्या कर सकते हैं. जब पार्टी ही नहीं बचेगी तो एनडीए में उन सांसदों का क्या सम्मान रहेगा. चिराग पासवान द्वारा पशुपति कुमार पारस से बदला पूरा किए जाने के सवाल पर श्रवण अग्रवाल का कहना है कि चिराग पासवान से उन लोगों को कोई तकलीफ नहीं है. तकलीफ इस बात की है कि एनडीए में निष्ठापूर्वक रहने के बाद भी उन लोगों की बात नहीं सुनी गई. हमने नवादा के सांसद चंदन सिंह और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज से बात करने की कोशिश की लेकिन उन दोनों का मोबाइल स्विच ऑफ था.
क्या चिराग का बदला पूरा हुआ: चिराग पासवान की पार्टी का मानना है कि चिराग पासवान कभी भी बदले की राजनीति नहीं करते हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेश भट्ट का कहना है कि चिराग पासवान हमेशा से यह मानते रहे हैं कि पार्टी बड़ी होती है व्यक्ति नहीं. कार्यकर्ता सांसद बनते हैं विधायक बनाते हैं. यही कारण था कि पशुपति कुमार पारस को यह लग रहा था कि सांसद उनके साथ चले गए हैं तो पार्टी उनकी हो गई.
"हकीकत यही थी कि सांसद भले ही पशुपति कुमार पारस के साथ चले गए हो लेकिन कार्यकर्ता और जमीन से जुड़े हुए सभी नेता चिराग पासवान के साथ रहे. चिराग पासवान कार्यकर्ताओं को अपना मानते थे, जबकि पशुपति कुमार पारस सांसदों को अपना मानते थे. यही कारण है कि चिराग पासवान की मेहनत को बीजेपी ने समझा और उन्हें 5 सीट दिया गया."- राजेश भट्ट, प्रदेश प्रवक्ता, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)
3 साल के अंदर दिया जवाब: राजनीति के बारे में यह धारणा है कि इसमें कोई ना तो अस्थाई दोस्त रहता है और नाहीं दुश्मन, लेकिन बिहार की राजनीति में जिस तरीके से चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच में राजनीतिक दूरी हो चुकी है, वह अब खत्म होती नहीं दिख रही है. जिस अंदाज से पशुपति कुमार ने चिराग पासवान को राजनीति से साइड लाइन किया था, इस अंदाज में 3 वर्ष के भीतर चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से राजनीतिक बदला पूरा किया है. इसको देखकर तो यही कहा जा सकता है कि चिराग पासवान का राजनीतिक बदला पूरा हुआ.
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