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AIMIM बिहार में 11 सीटों पर लड़ेगी चुनाव, पढ़ें विस्तार से आखिर महागठबंधन की क्यों उड़ी नींद! - lok sabha election 2024

RJD shocked by AIMIM लोकसभा चुनाव में बिहार में 40 सीटों पर कड़ा मुकाबला होना है. एनडीए और महागठबंधन सभी सीटों पर जीत के लिए एड़ी चोटी लगा रहा है. इन दोनों के बीच एआईएमआईएम ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. एआईएमआईएम ने अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, उजियारपुर, काराकाट, बक्सर, गया और भागलपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा की है. पढ़ें, विस्तार से इन सीटों पर क्या हैं समीकरण.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 14, 2024, 7:56 PM IST

एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से महागठबंधन को झटका.

पटना: असद्दुदीन औबेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. किशनगंज से प्रत्याशी अख्तरुल ईमान का नाम भी तय हो गया है. इन 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा, जदयू और कांग्रेस को टक्कर देने की तैयारी है. लेकिन, एआईएमआईएम के उम्मीदवारों से राजद सहित महागठबंधन के घटक दल कांग्रेस की नींद उड़ी हुई है. क्योंकि इन सीटों पर 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. ओवैसी की पार्टी जिस वोट बैंक की राजनीति करती है, बिहार में 'माय' समीकरण के तहत उस पर आरजेडी का भी दावा रहा है.

मुस्लिम वोट के दावेदारों को दिया झटकाः एआईएमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगता रहा है. हालांकि, ओवैसी की पार्टी इससे हमेशा इंकार करती रही है. आरजेडी का आरोप है कि बीजेपी वोटों के बिखराव के लिए अपनी बी टीम कई जगह उतारती है, लेकिन इस बार जनता सब समझ रही है. एआईएमआईएम ने साढ़े 4 साल पहले बिहार में एंट्री तब की थी जब किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में कमरुल हौदा ने जीत दर्ज की थी. एआईएमआईएम को 41.46 फीसदी वोट मिला था. 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर जीत कर पार्टी ने माय समीकरण पर अपनी दावेदारी करने वाली पार्टियों को बड़ा झटका दिया था.

लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम को नहीं मिली सफलताः इससे पहले एआईएमआईएम ने बिहार में जितने चुनाव लड़े थे किसी में सफलता नहीं मिली थी. 2015 में एआईएमआईएम ने 6 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था. 2019 लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में अख्तरुल ईमान को 26.78 फीसदी वोट हासिल हुआ था और तीसरे स्थान पर रहे थे. कांग्रेस 33.32 फीसदी वोट लाकर पहले स्थान पर रही थी. जबकि दूसरे स्थान पर रहे जदयू के उम्मीदवार ने 30.19 फीसदी वोट लाए थे. अब एआईएमआईएम ने अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, उजियारपुर, काराकाट, बक्सर, गया और भागलपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

दरभंगा सीट पर मुस्लिम वोट महत्वपूर्णः दरभंगा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार लगातार जीत रहे हैं. आरजेडी कड़ा टक्कर देता है. 2019 लोकसभा चुनाव में राजद को 23.02 प्रतिशत वोट यहां से मिला था, जबकि भाजपा को 60.79 प्रतिशत वोट मिला था. नोटा को 2.12% और अन्य को 4.07 प्रतिशत वोट मिला था. 2004 में अली अशरफ फातमी यहां से राजद के टिकट पर चुनाव जीते थे. 2009 और 2014 में कीर्ति आजाद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और दोनों बार जीते. 2019 में गोपाल जी ठाकुर यहां से भाजपा के टिकट पर सांसद बने. 2014 में जदयू जब अलग चुनाव लड़ा था तो संजय झा को मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी सफलता हाथ नहीं लगी थी.

मुजफ्फरपुर में चतुष्कोणीय मुकाबले की संभावनाः मुजफ्फरपुर से भी एआईएमआईएम ने उम्मीदवार उतारा है. 2019 के चुनाव में वीआईपी को यहां 24.27% वोट मिला था, जबकि भाजपा को 63% वोट मिला था. अन्य को 12.73%. अजय निषाद 2014 और 2019 से सांसद हैं. उससे पहले उनके पिता कैप्टन जय नारायण निषाद जदयू से सांसद बनते रहे हैं. जॉर्ज फर्नांडिस भी यहां से 2004 में जदयू के टिकट पर चुनाव जीते थे. मुकेश सहनी की इस बार इस सीट पर नजर है. एआईएमआईएम उम्मीदवार के उतरने से यहां चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना है. इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है.

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भागलपुर में मुस्लिम वोटों का हो सकता है बिखरावः भागलपुर से जदयू के अजय कुमार मंडल सांसद हैं. उससे पहले शैलेश कुमार मंडल आरजेडी से 2014 में सांसद बने थे. 2019 में राजद को 32.67% वोट मिला था, वहीं जदयू को 59.30%, 3% नोटा और 5% अन्य उम्मीदवारों को वोट मिला था. कांग्रेस के लिए भागलपुर कभी गढ़ था. लेकिन, अब यह सीट एनडीए के पास है. एआईएमआईएम के उतरने से राजद के माई समीकरण पर जबरदस्त असर पड़ेगा. भागलपुर सीट पर राजद अपनी मजबूत दावेदारी देता रहा है. लेकिन, एआईएमआईएम के कारण मुस्लिम वोटों का बिखराव होना का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसका लाभ एनडीए को हो सकता है.

उजियारपुर सीट पर राजद की लंबे समय से है नजरः उजियारपुर से बीजेपी के नित्यानंद राय 2014 से लगातार सांसद हैं. 2009 में अश्वमेघ देवी जदयू की सांसद थी. 2019 में बीजेपी को 56.5% वोट मिला था. वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 27.49% वोट मिला था. तब उपेंद्र कुशवाहा राजद के साथ गठबंधन में थे. वहीं अन्य को 16.43% वोट मिला था. यहां भी समीकरण के तहत एआईएमआईएम आरजेडी को बड़ा झटका दे सकता है. उपेंद्र कुशवाहा अब एनडीए के पाले में हैं, इसलिए भाजपा के लिए मुकाबला और आसान हो सकता है. राजद की नजर इस सीट पर लंबे समय से है.

बक्सर में भाजपा का लंबे समय से है कब्जाः बक्सर से भाजपा के अश्वनी चौबे लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं. 2009 में जगदानंद सिंह राजद से सांसद बने थे. 2009 को छोड़कर यहां से लगातार भाजपा का कब्जा रहा है. 2019 में राजद को यहां 36.02% वोट मिला था और भाजपा को 47.94%. बक्सर सीट इसलिए भी चर्चा में है कि इस बार जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को टिकट मिल सकता है. जगदानंद सिंह राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनका गृह क्षेत्र भी है. पिछले बार भी चुनाव लड़े थे. एआईएमआईएम के उम्मीदवार उतरने से माय वोट बैंक में डेंट लगा तो आरजेडी को बड़ा झटका लग सकता है.

काराकाट सीट से लड़ सकते हैं उपेंद्र कुशवाहाः काराकाट लोक सभा सीट से महाबली सिंह जदयू के सांसद है. इस सीट से इस बार उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ने वाले हैं. 2014 में भी उपेंद्र कुशवाहा यहां अपनी पार्टी से चुनाव जीते थे. 2019 में जदयू को यहां 45.82% वोट मिला था, जबकि उपेंद्र कुशवाहा को 36.01% और अन्य को 18.08% वोट मिला था. तब उपेंद्र कुशवाहा राजद के साथ गठबंधन में थे. इस बार उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में हैं. एनडीए उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ सकते हैं. एआईएमआईएम के उतरने से यहां लड़ाई दिलचस्प हो जाएगी. महाबली सिंह का टिकट कटने के बाद उनका क्या रुख होता है यह भी देखना दिलचस्प है.

गया में एनडीए मजबूत स्थिति मेंः गया लोकसभा सीट भी चर्चा में है. 2019 में जीतन राम मांझी यहां से चुनाव लड़े थे. 32.85% वोट मिला था, जबकि जदयू को 48.7% वोट मिला था. जदयू के विजय मांझी सांसद हैं. हरि मांझी लगातार 2009 से सांसद चुने जाते रहे हैं. 2004 में राजद के राजेश कुमार मांझी यहां से सांसद बने थे. यह सीट आरजेडी के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन एआईएमआईएम ने यहां उम्मीदवार उतार कर चुनौती बढ़ा दी है. इस बार जीतन राम मांझी एनडीए में हैं और उनके चुनाव लड़ने की भी चर्चा है. मांझी चुनाव नहीं भी लड़े तब भी एनडीए के पक्ष में पलड़ा भारी है. अब एआईएमआईएम के उतरने से एनडीए की स्थिति और मजबूत हो गई है.

अल्पसंख्यकों के लिए नीतीश ने काम कियाः कुल मिलाकर देखें तो एआईएमआईएम ने सीमांचल की चार सीटों पर तो माय समीकरण को ध्वस्त करने की तैयारी कर ही ली है, साथ ही राजद के लिए आधा दर्जन से अधिक सीट पर जो लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण था वहां भी उम्मीदवार देकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव का कहना है कि बीजेपी वोटों में बिखराव के लिए अपनी बी टीम उतारते रहती है. लेकिन जनता सब समझ रही है. हम लोग किसी के चुनाव लड़ने पर सवाल कैसे उठा सकते हैं. कभी जदयू भी एआईएमआईएम को बीजेपी की बी टीम बताती रही है. जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन एआईएमआईएम के उतरने से राहत महसूस करते हुए दवा कर रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के लिए नीतीश कुमार ने सबसे ज्यादा काम किया है.


"एआईएमआईएम अल्पसंख्यक वोट की राजनीति करती है. ओवैसी की पार्टी उन्हीं स्थान पर उम्मीदवार उतरती है जहां मुस्लिम की आबादी अधिक है. इसके अलावा महागठबंधन MY समीकरण पर राजनीति करता रहा है. उसमें से मुस्लिम वोट बैंक में डेंट लगना तय है. एआईएमआईएम के उम्मीदवार कुछ ना कुछ वोट लेंगे, जिसका सीधा लाभ एनडीए को होगा."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विश्लेषक

बीजेपी की बी टीम होने से किया इंकारः राजद और महागठबंधन के नेता एआईएमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगा रहे हैं. एआईएमआईएम के नेता इस आरोप को खारिज करते रहे हैं कि बीजेपी की मदद कर रहे हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान तो यहां तक कहते हैं कि हम लोग तो बीजेपी के खिलाफ लड़ते रहे हैं. लेकिन जिन सीटों पर एआईएमआईएम ने उम्मीदवार दिया है उसे देखने से साफ है कि कहीं ना कहीं इसका लाभ एनडीए और बीजेपी को मिलेगा. क्योंकि सीमांचल के अलावे बिहार में किसी सीट पर एआईएमआईएम जीत का दावा नहीं कर सकता है, लेकिन खास वर्ग का वोट लेकर खेल जरूर बिगाड़ सकता है.

इसे भी पढ़ेंः अल्पसंख्यकों के रहनुमा बनने की राह पर ओवैसी! जानें उनका मिशन सीमांचल

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एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से महागठबंधन को झटका.

पटना: असद्दुदीन औबेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. किशनगंज से प्रत्याशी अख्तरुल ईमान का नाम भी तय हो गया है. इन 11 लोकसभा सीटों पर भाजपा, जदयू और कांग्रेस को टक्कर देने की तैयारी है. लेकिन, एआईएमआईएम के उम्मीदवारों से राजद सहित महागठबंधन के घटक दल कांग्रेस की नींद उड़ी हुई है. क्योंकि इन सीटों पर 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. ओवैसी की पार्टी जिस वोट बैंक की राजनीति करती है, बिहार में 'माय' समीकरण के तहत उस पर आरजेडी का भी दावा रहा है.

मुस्लिम वोट के दावेदारों को दिया झटकाः एआईएमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगता रहा है. हालांकि, ओवैसी की पार्टी इससे हमेशा इंकार करती रही है. आरजेडी का आरोप है कि बीजेपी वोटों के बिखराव के लिए अपनी बी टीम कई जगह उतारती है, लेकिन इस बार जनता सब समझ रही है. एआईएमआईएम ने साढ़े 4 साल पहले बिहार में एंट्री तब की थी जब किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में कमरुल हौदा ने जीत दर्ज की थी. एआईएमआईएम को 41.46 फीसदी वोट मिला था. 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर जीत कर पार्टी ने माय समीकरण पर अपनी दावेदारी करने वाली पार्टियों को बड़ा झटका दिया था.

लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम को नहीं मिली सफलताः इससे पहले एआईएमआईएम ने बिहार में जितने चुनाव लड़े थे किसी में सफलता नहीं मिली थी. 2015 में एआईएमआईएम ने 6 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था. 2019 लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में अख्तरुल ईमान को 26.78 फीसदी वोट हासिल हुआ था और तीसरे स्थान पर रहे थे. कांग्रेस 33.32 फीसदी वोट लाकर पहले स्थान पर रही थी. जबकि दूसरे स्थान पर रहे जदयू के उम्मीदवार ने 30.19 फीसदी वोट लाए थे. अब एआईएमआईएम ने अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, उजियारपुर, काराकाट, बक्सर, गया और भागलपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

दरभंगा सीट पर मुस्लिम वोट महत्वपूर्णः दरभंगा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार लगातार जीत रहे हैं. आरजेडी कड़ा टक्कर देता है. 2019 लोकसभा चुनाव में राजद को 23.02 प्रतिशत वोट यहां से मिला था, जबकि भाजपा को 60.79 प्रतिशत वोट मिला था. नोटा को 2.12% और अन्य को 4.07 प्रतिशत वोट मिला था. 2004 में अली अशरफ फातमी यहां से राजद के टिकट पर चुनाव जीते थे. 2009 और 2014 में कीर्ति आजाद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और दोनों बार जीते. 2019 में गोपाल जी ठाकुर यहां से भाजपा के टिकट पर सांसद बने. 2014 में जदयू जब अलग चुनाव लड़ा था तो संजय झा को मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी सफलता हाथ नहीं लगी थी.

मुजफ्फरपुर में चतुष्कोणीय मुकाबले की संभावनाः मुजफ्फरपुर से भी एआईएमआईएम ने उम्मीदवार उतारा है. 2019 के चुनाव में वीआईपी को यहां 24.27% वोट मिला था, जबकि भाजपा को 63% वोट मिला था. अन्य को 12.73%. अजय निषाद 2014 और 2019 से सांसद हैं. उससे पहले उनके पिता कैप्टन जय नारायण निषाद जदयू से सांसद बनते रहे हैं. जॉर्ज फर्नांडिस भी यहां से 2004 में जदयू के टिकट पर चुनाव जीते थे. मुकेश सहनी की इस बार इस सीट पर नजर है. एआईएमआईएम उम्मीदवार के उतरने से यहां चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना है. इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है.

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भागलपुर में मुस्लिम वोटों का हो सकता है बिखरावः भागलपुर से जदयू के अजय कुमार मंडल सांसद हैं. उससे पहले शैलेश कुमार मंडल आरजेडी से 2014 में सांसद बने थे. 2019 में राजद को 32.67% वोट मिला था, वहीं जदयू को 59.30%, 3% नोटा और 5% अन्य उम्मीदवारों को वोट मिला था. कांग्रेस के लिए भागलपुर कभी गढ़ था. लेकिन, अब यह सीट एनडीए के पास है. एआईएमआईएम के उतरने से राजद के माई समीकरण पर जबरदस्त असर पड़ेगा. भागलपुर सीट पर राजद अपनी मजबूत दावेदारी देता रहा है. लेकिन, एआईएमआईएम के कारण मुस्लिम वोटों का बिखराव होना का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसका लाभ एनडीए को हो सकता है.

उजियारपुर सीट पर राजद की लंबे समय से है नजरः उजियारपुर से बीजेपी के नित्यानंद राय 2014 से लगातार सांसद हैं. 2009 में अश्वमेघ देवी जदयू की सांसद थी. 2019 में बीजेपी को 56.5% वोट मिला था. वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 27.49% वोट मिला था. तब उपेंद्र कुशवाहा राजद के साथ गठबंधन में थे. वहीं अन्य को 16.43% वोट मिला था. यहां भी समीकरण के तहत एआईएमआईएम आरजेडी को बड़ा झटका दे सकता है. उपेंद्र कुशवाहा अब एनडीए के पाले में हैं, इसलिए भाजपा के लिए मुकाबला और आसान हो सकता है. राजद की नजर इस सीट पर लंबे समय से है.

बक्सर में भाजपा का लंबे समय से है कब्जाः बक्सर से भाजपा के अश्वनी चौबे लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं. 2009 में जगदानंद सिंह राजद से सांसद बने थे. 2009 को छोड़कर यहां से लगातार भाजपा का कब्जा रहा है. 2019 में राजद को यहां 36.02% वोट मिला था और भाजपा को 47.94%. बक्सर सीट इसलिए भी चर्चा में है कि इस बार जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को टिकट मिल सकता है. जगदानंद सिंह राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनका गृह क्षेत्र भी है. पिछले बार भी चुनाव लड़े थे. एआईएमआईएम के उम्मीदवार उतरने से माय वोट बैंक में डेंट लगा तो आरजेडी को बड़ा झटका लग सकता है.

काराकाट सीट से लड़ सकते हैं उपेंद्र कुशवाहाः काराकाट लोक सभा सीट से महाबली सिंह जदयू के सांसद है. इस सीट से इस बार उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ने वाले हैं. 2014 में भी उपेंद्र कुशवाहा यहां अपनी पार्टी से चुनाव जीते थे. 2019 में जदयू को यहां 45.82% वोट मिला था, जबकि उपेंद्र कुशवाहा को 36.01% और अन्य को 18.08% वोट मिला था. तब उपेंद्र कुशवाहा राजद के साथ गठबंधन में थे. इस बार उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में हैं. एनडीए उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ सकते हैं. एआईएमआईएम के उतरने से यहां लड़ाई दिलचस्प हो जाएगी. महाबली सिंह का टिकट कटने के बाद उनका क्या रुख होता है यह भी देखना दिलचस्प है.

गया में एनडीए मजबूत स्थिति मेंः गया लोकसभा सीट भी चर्चा में है. 2019 में जीतन राम मांझी यहां से चुनाव लड़े थे. 32.85% वोट मिला था, जबकि जदयू को 48.7% वोट मिला था. जदयू के विजय मांझी सांसद हैं. हरि मांझी लगातार 2009 से सांसद चुने जाते रहे हैं. 2004 में राजद के राजेश कुमार मांझी यहां से सांसद बने थे. यह सीट आरजेडी के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन एआईएमआईएम ने यहां उम्मीदवार उतार कर चुनौती बढ़ा दी है. इस बार जीतन राम मांझी एनडीए में हैं और उनके चुनाव लड़ने की भी चर्चा है. मांझी चुनाव नहीं भी लड़े तब भी एनडीए के पक्ष में पलड़ा भारी है. अब एआईएमआईएम के उतरने से एनडीए की स्थिति और मजबूत हो गई है.

अल्पसंख्यकों के लिए नीतीश ने काम कियाः कुल मिलाकर देखें तो एआईएमआईएम ने सीमांचल की चार सीटों पर तो माय समीकरण को ध्वस्त करने की तैयारी कर ही ली है, साथ ही राजद के लिए आधा दर्जन से अधिक सीट पर जो लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण था वहां भी उम्मीदवार देकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव का कहना है कि बीजेपी वोटों में बिखराव के लिए अपनी बी टीम उतारते रहती है. लेकिन जनता सब समझ रही है. हम लोग किसी के चुनाव लड़ने पर सवाल कैसे उठा सकते हैं. कभी जदयू भी एआईएमआईएम को बीजेपी की बी टीम बताती रही है. जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन एआईएमआईएम के उतरने से राहत महसूस करते हुए दवा कर रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के लिए नीतीश कुमार ने सबसे ज्यादा काम किया है.


"एआईएमआईएम अल्पसंख्यक वोट की राजनीति करती है. ओवैसी की पार्टी उन्हीं स्थान पर उम्मीदवार उतरती है जहां मुस्लिम की आबादी अधिक है. इसके अलावा महागठबंधन MY समीकरण पर राजनीति करता रहा है. उसमें से मुस्लिम वोट बैंक में डेंट लगना तय है. एआईएमआईएम के उम्मीदवार कुछ ना कुछ वोट लेंगे, जिसका सीधा लाभ एनडीए को होगा."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विश्लेषक

बीजेपी की बी टीम होने से किया इंकारः राजद और महागठबंधन के नेता एआईएमआईएम पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगा रहे हैं. एआईएमआईएम के नेता इस आरोप को खारिज करते रहे हैं कि बीजेपी की मदद कर रहे हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान तो यहां तक कहते हैं कि हम लोग तो बीजेपी के खिलाफ लड़ते रहे हैं. लेकिन जिन सीटों पर एआईएमआईएम ने उम्मीदवार दिया है उसे देखने से साफ है कि कहीं ना कहीं इसका लाभ एनडीए और बीजेपी को मिलेगा. क्योंकि सीमांचल के अलावे बिहार में किसी सीट पर एआईएमआईएम जीत का दावा नहीं कर सकता है, लेकिन खास वर्ग का वोट लेकर खेल जरूर बिगाड़ सकता है.

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