चंद्रपुर: लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और हर उम्मीदवार जनता को रिझाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहा है. लेकिन यहां हम आपको महाराष्ट्र के ऐसे सांसद के बारे में बताने जा रहे हैं, केवल एक दिन के लिए सांसद का पद संभाला और इस्तीफा दे दिया. चंद्रपुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास में ऐसा सिर्फ एक ही सांसद ने किया है. वह केवल एक दिन के लिए संसद भवन में जाने वाले पहले सांसद बने. इनका नाम लाल श्याम शाह है और इनकी कहानी साल 1962 की है.
लोकसभा चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे. उनके ख़िलाफ़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार वीएन स्वामी थे. साल 1957 के लोकसभा चुनाव में वे मामूली अंतर से हार गये थे. स्वामी को 1 लाख 19 हजार 949 वोट मिले थे, तो वहीं लाल श्याम शाह को 97 हजार 973 वोट मिले थे. इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में शाह ने एक मजबूत मार्च का आयोजन किया और साल 1962 के चुनाव में उन्होंने 1 लाख 28 हजार 233 वोट के साथ जीत हासिल की.
स्वामी को 85 हजार 322 वोट मिले थे. 5 सितंबर 1962 को उन्होंने सांसद के रूप में शपथ ली. लाल श्याम शाह का जन्म 1 मई 1919 को तत्कालीन मध्य प्रदेश में हुआ था. उस समय चंद्रपुर ब्रिटिश सीपी और बरार प्रांत के अंतर्गत आता था. शाह का परिवार धनवान था. वे चंदा (चंद्रपुर) क्षेत्र में पानाबरस के जमींदार थे. वह अहेरी के दिवंगत विदर्भ नेता विश्वेश राव अत्राम के रिश्तेदार थे. हजारों एकड़ भूमि उनके अधिकार में थी. यहां आस्थावानों का एक बड़ा वर्ग था.
वह चौकी विधानसभा क्षेत्र के विधायक थे. जनवरी 1955 को उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. लाल श्याम शाह के विधानसभा क्षेत्र का सीमांकन किया गया और चंदा निर्वाचन क्षेत्र को मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र राज्य में जोड़ा गया. इसलिए सांसद बनने के पहले से ही चौकी, राजनांदगांव, धनोरा, चांदा क्षेत्र उनके जनसंघर्ष का क्षेत्र रहे थे. 1962 में वे चांदा से सांसद बने. लाल श्याम शाह जल, जंगल और जमीन के कट्टर समर्थक थे.
1964 के दौरान तत्कालीन सरकार की भूमिका पूर्वी पाकिस्तान यानी वर्तमान बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को चंद्रपुर लोकसभा क्षेत्र के दंडकारण्य जंगल में बसाने की थी. शाह ने इसका कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि जब स्थानीय आदिवासियों की समस्याएं बहुत गंभीर हैं, तो केंद्र सरकार दंडकारण्य पर नई विपदा क्यों थोप रही है? अंततः बेहद परेशान शाह ने चांदा स्थित धर्मराव के बंगले से तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह को अपना इस्तीफा लिखा.
यह इस्तीफा सुदीप ठाकुर द्वारा लिखी गई जीवनी में उपलब्ध है. उन्होंने 24 अप्रैल 1964 को इस्तीफा दे दिया. लोकसभा अध्यक्ष हुकुम सिंह ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया. उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि 'मैं सरकार को कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, लेकिन मैं इन सभी मामलों पर नए तरीके से सोचने का अनुरोध कर सकता हूं. यह मेरा इस्तीफा है.कृपया यह इस्तीफा स्वीकार करें.'